पिछले एक हफ्ते से रुचिका molestation केस पर आया निर्णय पूरे देश में चर्चा का विषय है। देश के हर कोने से इस निर्णय के विरोध में आवाजें उठ रही है। हर शख़्स को कोर्ट से बाहर निकलते वक्त राठौर के चेहरे पर खिली मुस्कराहट विचलित कर रही है। हर शख़्स इस मुस्कराहट के पीछे के सत्य को जानना चाहता है, पर किसी की नज़र उनके पीछे चल रही उनकी बीवी की मुस्कराहट पर नहीं है। उनकी मुस्कराहट अपने पति से ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं थी। वे किस बात पर मुस्करा रही थी? उनका पति ऐसी कौन सी जंग जीत कर आ रहा था कि उसका मुस्करा कर स्वागत करना जरूरी था। उनका पति अपनी बेटी की उम्र लड़की के यौन शोषण के मामले सजा सुन कर बाहर निकला था।
आभा राठौर, यही नाम है उस भद्र महिला का। जिन्हें शायद अपने पति की अनुगामिनी होने का गर्व हो। गर्व हो इस बात का कि उन्होंने उस भारतीय परम्परा का पूरी तरह पालन किया जिसमें औरत को अपने पति की हर गलत-सही बातों का समर्थन करने की शिक्षा दी जाती है। पर आज मेरा मन उनसे यह पूछना चाहता है कि आप पत्नी होने के साथ-साथ एक औरत भी है। क्या इन उन्नीस सालों में आपके मन ने एक बार में अपने पति के कृत्य को गलत नहीं ठहराया? क्या आपके अंदर की ममता कभी रुचिका के लिए नहीं तड़पी? जिसे और जिसके परिवार को आपके पति ने इतना सताया कि वह बिन मां की बच्ची अपने आस-पास हो रहे हादसों के लिए स्वयं को ही जिम्मेदार समझने लगी और उसने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिय़ा। क्या आपने कभी अपनी बच्ची से नहीं पूछा- कि बेटा क्या वास्तव में रुचिका वैसी ही है जैसी तुम्हारे पापा कह रहे है? या आपकी बेटी जो स्वयं रुचिका की क्लास में पढ़ती थी ने कभी आपसे रुचिका का ज़िक्र नहीं किया। कभी नहीं कहा कि ममा, रुचिका क्लास में रोती रहती है, वह किसी से बात नहीं करती, पापा जो कुछ कर रहे हैं वह ठीक नहीं है। पापा से कहिए कि वह उसे स्कूल से न निकलवाएं। या आपके घर में रुचिका का नाम लेने पर भी पाबंदी थी? बताइएं आभाजी, हम जानना चाहते हैं। एक औरत के रूप में आपने रुचिका की पीड़ा क्यों नहीं महसूस की? या आप मानसिक रूप से इतनी त्रस्त थी कि आपने एक मां और एक औरत की पीड़ा को दफन कर, अपना पत्नी धर्म निभाना श्रेयस्कर समझा। जो आपको अपने पति के लम्बें सायें में सुरक्षित रखता है। आपको कभी नहीं लगा कि जिस दुनिया में आप रह रही है, सिर्फ रह ही नहीं रही उसका पुरजोर समर्थन भी कर रही है, उस दुनिया में आपकी बेटी भी, जो रुचिका की ही उम्र की है किसी और राठौर की वासना का शिकार बन सकती है। भगवान न करे, लेकिन अगर कभी आपकी बेटी के साथ भी ऐसा ही कोई हादसा हो जाए, तो भी क्या आप इसी तरह व्यवहार करेंगी? या आप निश्चिंत हैं कि डीजीपी की बेटी को कौन हाथ लगाएगा!!!
आभाजी, आपने पत्नी का धर्म तो बखूबी निभाया है, पर औरत का धर्म निभाने में आपसे चूक हो गई। अक्सर महिलाएं रिश्ते-नातों के ज़ाल में इतना उलझ जाती हैं कि वे यह भूल जाती हैं कि वे स्वयं भी एक महिला हैं। एक ऐसी महिला जिसे समाज में बच्चियों और औरतों पर हो रहे अभद्र और अश्लील व्यवहार के प्रति अपना अपना रोष दर्ज कराना ही चाहिए। उन्हें उस दायरे को तोड़ कर बाहर आना ही होगा जिसे तथाकथित समाज ने उनके लिए बना दिया है। जिसमें घर-परिवार के दायरे को तोड़, बाहर आकर अपनी बात कहना अशोभनीय माना जाता है। अगर हम समाज में अपनी बच्चियों को राठौर जैसे दरिंदों से सुरक्षित रखना चाहते हैं तो हमें बाहर निकलकर पुरजोर तरीके ऐसे लोगों के प्रति अपना विरोध दर्ज कराना ही होगा। कोई समाज तब तक खुद को विकसित नहीं कह सकता, जब तक उस समाज में महिलाओं को उनका due respect नहीं मिलता।
-प्रतिभा वाजपेयी
“आपने बहुत रोचक रतीके से अपनी बात रखी है ...... और बहुत सार्थक लिखा है ..........”
ReplyDeletevery good pratibha, these words i also want to say. i agree with your point of you.
ReplyDeleteएक बहुत ही अच्छी व विचारनीय पोस्ट
ReplyDeleteरत्नेश त्रिपाठी
इस तरह के ज्यादातर मामलों में औरतें पति का साथ देती हैं । ज्यादातर क्या सभी बडे मामलों में , नजरअंदाज या समझौता , ऐसा ही देखने में आता है । बिल क्लिंटन और अभी गोल्फ खिलाडी का मामला । क्योंकि इसके विपरीत व्यवहार करने में काफी साहस और त्याग की दरकार है । शायद उन्हें पहले अपनी सुरक्षा सुविधा का ख्याल रहता होगा ।
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है प्रतिभाजी। सही और खरा खरा।
ReplyDeleteअजीब सी बात है ,छेड़खानी के बाद रुचिका की आत्महत्या और जेसिका ,प्रियदर्शिनी मट्टू समेत तमाम शहरी युवतियों के साथ बलात्कार पर इतनी चर्चाएँ ,लेकिन उन गरीब मजदूर आदिवासी महिलाओं पर एक शब्द भी नहीं ,जिनके साथ पूरे देश में शारीरिक मानसिक बलत्कार की घटनाएँ रोज हो रही हैं ,आभा को तो शर्म नहीं आएगी ,लेकिन आप और हम भी कम बेशर्म नहीं हैं |नारी कोई भी हो समाज के किसी भी आर्थिक वर्ग से आती हो उसका सम्मान होता है ,मुझे ये कहने में कोई गुरेज नहीं आप और हम सिर्फ उसके लिए आवाज उठाते हैं जो वर्ग आवाज उठाने की हिम्मत रखता हो ,मीडिया के लिए भी ये मामला रुचिका को न्याय दिलाने का मकसद कम मसाला अधिक है और आपके लिए ये पोस्ट चाय पीते हुए अपनी कुंठाओं को बाहर निकलने और चंद कमेन्ट बटोरने का माध्यम |मै खुद भी उसी भीड़ में शामिल हूँ जिसमे आप हैं |मगर कहूँगा नारी अस्मिता को हाई और लो प्रोफाइल करके देखने का कुकर्म बंद होना चाहिए |
ReplyDeletethik hai. nice
ReplyDeleteआभा राठोर के लिये मेरे पास एक ही शब्द हैं "छि "
ReplyDeleteपके लिए ये पोस्ट चाय पीते हुए अपनी कुंठाओं को बाहर निकलने और चंद कमेन्ट बटोरने का माध्यम |
ReplyDeleteआवेश
aap jaraa naari blog ki shuru sae lae kar aakhir tak ki post padhey aur phir kahey
kisi ko kyaa aur kaese kehna haen yae laekhak par chhod dae
bahut sateek baat uthayi hai is lekh ke madhyam se....aap sab bhale hi kuchh comments paane ka madhyam samjhen par ek vicharneey baat to uthayi hai......shubhkamnayen
ReplyDeleteBahut sahi kaha aapne....
ReplyDeleteबहुत महत्वपूर्ण हो गया है समाज में व्याप्त आर्थिक भ्रष्टाचार जो ऐसे अपराधों और अपराधियों की रक्षा करता है. हरियाणा के जिन राजनेताओं के नाम राठौर को संरक्षण देने में आये हैं वे अपनी अवैध कमाई के लिये ही उससे गठजोड़ किये हुये थे। मध्य प्रदेश में एक संघी नेता की सी डी को यहाँ की पुलिस ने नकार कर उसे क्लीन चिट दे दी थी भले ही संघ ने उसे सज़ा देकर उसकी राजनैतिक हैसियत खत्म कर दी। मध्य प्रदेश के अनेक मंत्रियों के घर पर इनकम टैक्स छापे में करोड़ों रुपये मिले पर चुनाव निबत जाने के बाद उन्हें फिरसे मंत्री बना दिया गया। इन मंत्रियों के रंगीन किस्से सबकी ज़ुबान पर हैं किंतु प्रेस के लोग उनके रसगुल्ले खाकर और दारू पीकर चुप हैं।
ReplyDeletepratibha ji bahut achhe aur mazboot tareeqe se apne apni baat rakhi hai .
ReplyDeletebharteeya sanskriti agar naari ko pati ka saath dena sikhati hai to doosri taraf sach ka sath dena bhi sikhati hai aur jo mahila aisa nahin karti wo puri sanskriti baur mahila varg ki apraadhi hai .Abha rathor ki muskan ke peechhe jo jhoot ki bechaini hogi wo hamen nahin dikhai pad rahi hai ,lekin jhoot ke sahare wo kab tak apne pati ko bacha payengi bas yahi dekhna hai .aavesh ji shayad avesh men kuchh likh gaye hain ,lekin is samay bat rathor ki ho rahi hai ye sare kukarm ke liye keval aik rathore zimmedar nahin poori mansikta zimmedar hai .naari ki sahi ma'ame men izzat karne wale purush to kam hain hi ham mahilayen bhi kam hain ,hamne abhi tak khud ko pahchana hi nahin.
Bahut sahi kaha aapne....
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