नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

May 18, 2011

ये पुरुष का दुर्भाग्य है की वो माँ नहीं बनता


 मैंने ये कहा था की माँ बनने के दौरान होने वाले कष्टों को देखते हुए हम कह सकते है की शायद पुरुष शौभाग्यशाली है जो उसे माँ नहीं बनना पड़ता और उन कष्टों से नहीं गुजरना पड़ता है जो एक नारी को सहना पड़ता है, किन्तु पुरुषो को कम से कम उन कष्टों के प्रति थोडा संवेदनशील होना चाहिए और माँ बन रही पत्नी को हर संभव मदद करनी चाहिए | आज इस पोस्ट में इस बात का जिक्र करुँगी की ये पुरुष का दुर्भाग्य है की वो माँ नहीं बन सकता, वो माँ बनने के बाद मिलने वाली ख़ुशी को नहीं पाता, जबकि बिना किसी कष्ट , दर्द, परेशानी के वो इसे पा सकता है |


                                               कुछ साल पहले पति और उनके मित्रो के साथ पिकनिक पर गई थी, मित्रो की मंडली में एक के सपुत्र आ कर उनकी गोद में बैठ गये वो बड़े फक्र से बताने लगे की वो अपने बेटे को अकेले अपने पास रख सकते है उसे माँ की जरुरत नहीं है | बताने लगे की कैसे दो बार उन्होंने अपने ढाई साल के बेटे को अकेले दो दिन तक अपने पास रखा, उसे माँ की याद ही नहीं आई और उन्होंने दो दिनों तक बड़े आराम से उसकी देखभाल की, उनकी सुन मेरे पति देव भी कहा चुप रहने वाले थे उन्होंने भी गर्व से सीना फुला कर कहा की मै भी अपनी बेटी को आराम से रख सकता हूँ, ( अभी तक अकेले रखने का मौका नहीं मिला है ) वो भी मेरी लाडली है और माँ के बैगेर भी मेरे पास रह सकती है | बाकियों ने सवाल किया खाना वाना भी खिला लेते हो और तुम्हारे साथ सो भी जाती है ये दो कम तो हम नहीं कर पाते |  दोनों मित्रो ने फिर एक बड़ी मुस्कान के साथ कहा की हा थोड़े नखरे तो खाने में करते है, वो तो माँ के साथ भी करते है, पर बाकि कोई परेशानी नहीं होती है हमारे बच्चे हमारे बड़े करीब है | फिर दुसरे मित्रो ने भी बताना शुरू किया की हा हमारे बच्चे भी आफिस से आने के बाद हमारे ही पास रहते है , हम उन्हें घुमा देते है हमारे साथ खेलते है और घंटो बात करते है |  पर जो गर्व, ख़ुशी, मुस्कान मेरे पतिदेव और उनके उस दुसरे मित्र के चेहरे पर थी वो किसी और के नहीं थी क्योकि उन्हें गर्व इस बात पर था की वो अपने बच्चो के लिए माँ के बराबर ही थे बच्चो के लिए उतने ही महत्वपूर्ण थे जितने की माँ और वो गर्व वो ख़ुशी उनके चेहरे पर अपने बच्चे के माँ बनने की थी ,भले पार्ट टाइम के लिए ही सही |  अपने  बच्चे की पूर्ण रूप से देखभाल उसके लालन पालन करने में जो आन्नद और उसके बदले में उन्हें बच्चे से जो प्यार और लाड मिल रह था वो उनके लिए एक अलग ही एहसास था जो कम से कम भारत में बहुत कम ही पिता को नसीब होता है वजह वही सोच  है की बच्चे पालने का काम माँ का है पिता का नही | इन के बीच एक मित्र और भी थे जिनकी बेटी पुरे समय अपनी माँ की गोद में ही चिपकी रही, वो बाकियों की बातो पर मुंह बिचकाते रहे और बीच बीच में ताने कसते रहे की ये "जनाने" काम उन्हें नहीं करने है, वो अलग बात है जब सभी के बच्चे अपने अपने पापा के साथ खेलने और झरने में नहाने में  मस्ती कर रहे थे तो उनके लाख बुलाने पर भी उनकी बेटी एक बार भी उनके पास नहीं आई और वो इस बात पर भी अपनी बेटी और पत्नी पर खीज रहे थे |

                                                           कई बार कुछ लोग ये भी कहते है की बच्चे हमारे पास आते ही नहीं आते है तो जल्द ही माँ के पास चले जाते है या उसका लगाव हमसे ज्यादा नहीं है या बच्चो की देखभाल जितने अच्छे से माँ कर सकती है पिता नहीं कर सकता इसलिए ये काम माँ को ही करना चाहिए | आप को बताऊ एक प्यार भरे स्पर्स को जितने अच्छे से एक बच्चा महसूस कर सकता है कोई और नहीं कर सकता इसलिए जब पिता बच्चे को एक बोझ की तरह गोद में ले कर चलता है (जैसे की पत्नी बेचारी बच्चे का इतना बोझ ले कर कैसे चल सकती है है सो मै ले लेता हूँ ) तो बच्चा जल्द ही ऐसे पिताओ के गोद से निकल कर माँ के पास चले जाते है  उन्हें पता होता है की कहा उन्हें प्यार से गोद में लिया जायेगा न की बोझा की तरह | बच्चा होना ही अपने आप में किसी को भी उसके प्रति लगाव पैदा कर सकता है किन्तु कुछ लोग इतने पाषाण होते है की उन्हें अपने बच्चे से भी कोई लगाव नहीं होता ( कई बार समझ नहीं आता की वो पिता बनते ही क्यों है शायद वो इस बारे में सोचते ही नहीं उनके लिए पिता बनना अपनी मर्दानगी दिखाने का एक साक्ष्य भर होता है ) अपने आस पास ही देखा है पत्नी को सख्त निर्देश होते है की मेरे आने से पहले बच्चे को सुला देना, रात को उसके रोने की आवाज नहीं आनी चाहिए मेरी नीद ख़राब होगी , उसकी नैपी गन्दी होते ही बदबू की शिकायत कर वह से भगा जाना | जी नहीं मै ये सब किसी पुरातन काल का वर्णन नहीं कर रही हूँ मै आज के समय की ही बात कर रही हूँ यदि आप ऐसे पिता नहीं है या आप के घर में ऐसे पिता नहीं है तो थोड़ी नजर ध्यान से आस पास घुमाइये आप को इस तरह के कई पिता आज भी मिल जायेंगे, बच्चे इनके लिए सदा के पे चिल्ल पो करने वाले मुसीबत ही होते है |
                        एक और आम सी बात प्रचलित है कि बच्चे की देखभाल जितने अच्छे से माँ कर सकती है पिता नहीं कर सकता | मुझे नहीं लगता है की कोई भी नारी ये गुण ले कर पैदा होती है यदि होती तो सभी नारी सभी बच्चो से वैसे ही जुड़ जाती जैसे की अपने बच्चो से, असल में तो ये एक प्रक्रिया है सबसे पहले तो हम दूसरी माँओ को देख कर ये सीखते जाते है और फिर माँ बनने के बाद जैसे जैसे हम बच्चे के साथ समय बिताते है उस पर ध्यान देते है उसकी हर हरकत पर नजर रखते है हम उसको उसकी जरूरतों को उसकी परेशानियों को अच्छे से समझने लगते है और ये काम कोई भी पुरुष अपने बच्चे से थोडा जुड़ाव रख समझ सकता है यदि उसमे थोडा धैर्य हो तो ये काम और भी आसन हो जाता है | जबकि होता ये है की बचपन से ही ये सुन सुन कर की बच्चे तो माँ को पालना है पिता कभी उससे जुड़ने की सोचता ही नहीं है या इस बारे में सोचता तक नहीं तो फिर कैसे उसमे ये गुण आयेंगे | मेरी बात वो कई पिता साबित कर सकते है जो अपने बच्चे की खुद देखभाल करते है उससे जुड़े है और उसकी हर परेशानी बात को समझते है |

                                                                                मुझे याद है जब मेरी बेटी के जन्म के १५ दिन बाद ही मैंने नाउन(  जो बच्चो को नहलाती है उसकी मालिश आदि करती है ) वाली को उसे नहलाने से मना कर दिया की अब मै ही इसे स्नान कराऊंगी, तो वो मुझसे शिकायत करने लगी की ये तो उसका हक़ है उसे ही करना चाहिए, तो मैंने कहा की मुझे तो एक ही बेटी होनी है उसके नहलाने मालिश करने उसे तैयार करने का आन्नद तो मुझे एक ही बार मिलेगा एक बार जो बड़ी हो गई तो फिर ये दिन लौट कर न आयेंगे फिर न होगी मेरी बेटी वापस छोटी तो मै कब इन सब चीजो का आन्नद लुंगी आखिर बेटी तो मेरी है उसकी देखभाल में मिलने वाली ख़ुशी पर पहला हम तो मेरा बनता है | उसके छोटे छोटे हाथो का पकड़ना उसकी नन्ही नन्ही उंगलियों को सहलाना उसके मासूम से चेहरे को घंटो तक देखते रहना, जब वो ठीक से बोल भी नहीं पाती थी तब भी उससे बाते करना और उसकी टूटी फूटी जबान को समझना उसे सीने से लगा थपकी दे सुलाना न जाने कितनी अनगिनत खुशिया है जो हम दोनों उसके साथ पा चुके है जो फिर कभी लौट कर नहीं आयेंगे जिन्हें याद कर के ही हम पति पत्नी का दिलो दिमाग आन्नद से भर जाता है समझ नहीं आता उसे पाने से कैसे कुछ लोग वंचित होना ठीक समझते है उसे मजबूरी एक बोझा एक काम मानते है उसे करने से भागते है | ऐसे पुरुषो को देख कर यही कहा जा सकता है की शायद ये पुरुष का दुर्भाग्य ही है की वो बिना किसी कष्ट के माँ बनने का मौका गवा देता है |

17 comments:

  1. इस लेख को पढ़ते हुए एक ख्याल आ रहा था कि कई बार पहली बार माँ बनी औरत से भी चूक हो जाती है जो अपने पति पर विश्वास ही नहीं कर पाती....नन्हें से बच्चे को गोद में देने से भी डरती है ...फिर पुरुष को तो मौका चाहिए...'करो अपने आप सब काम'..सोच कर मन ही मन बेफिक्र हो जाता है...वह भी पिता है...उसे भी बच्चों से प्यार है...यह सोच कर बच्चे उसके हवाले कर दिए जाएँ तो यकीनन वह भी ममतामय पिता साबित हो सकता है....

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  2. मातृ-दिवस पर एक पोस्‍ट 'पंडुक' http://akaltara.blogspot.com/2011/05/blog-post.html पर लगाई है, समय मिले तो उसकी अंतिम पंक्ति पर गौर फरमाएं.

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  3. अंशुमाला जी,चलिये आपने ये तो माना कि महिलाओं के हिस्से में थोडा 'सौभाग्य' भी है जिससे पुरुष वंचित है.हाँ प्रसव पीडा सहने के कारण वो थोडी दुर्भाग्यशाली भी है लेकिन कोई इस पीडा को आनंद कहे तो आपको उसकी लानत मलानत करने का पूरा हक है और आपने की भी.वहाँ तक तो आप बिल्कुल ठीक है.लेकिन मेरी असहमति अभी भी इसे सौभाग्य या दुर्भाग्य कहे जाने से है.इससे तो फिर वही बहस शुरू हो जाएगी कि मातृत्व ही स्त्री का सौभाग्य है और इसीमें उसकी पूर्णता है.आप जिस सौभाग्य के बारे में बता रही है फिर तो इससे वो महिलाएँ भी वंचित होंगी जो कल को माँ नहीं बनना चाहेंगी.वो क्या अपने आपको दुर्भाग्यशाली कहला ही लेगी ? आज तक ये कह कह कर ही तो उन महिलाओं में हीनता बोध भरा जाता है जो माँ नही बनना चाहती.और वैसे भी पुरुष को ये सौभाग्य तभी तो मिलेगा जब महिला माँ बने.ये तो फिर हम वहीं पहुँच गये.और अंशुमाला जी आपके इस लेख का तो ये ही मतलब है कि बच्चे को पालना महिला के लिये सिर्फ एक आनंद ही है सौभाग्य की हद तक.इसमें महिला को कोई परेशानी नहीं है बल्कि खुशी है.पुरुष इस जिम्मेदारी(सौभाग्य) को निबाहे न निबाहे उसे कोई फर्क नहीं पडेगा,ऐसा ?
    पता नही खुद महिलाएँ भी आपसे सहमत है कि नही.


    मुझे समझ नहीं आ रहा जो बात आप सीधे सीधे समझा सकती है बल्कि समझा चुकी है उसे इतना घुमा फिराकर क्यों कह रही है?

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  4. बच्चे की परवरिश दोनों की जिम्मेदारी है.इसे दोनों को निबाहना चाहिए.मेरा तो मानना है कि महिला के त्याग व समझौतों को इस तरह महिमामंडित करना ठीक नहीं है.बाकी जो आप ठीक समझे.और जैविक भिन्नता के कारण कोई भाग्यशाली या दुर्भाग्यशाली नहीं होता.न महिला न पुरूष.

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  5. @ राजन जी

    सबसे पहले इस बात का उत्तर दू की क्या माँ बने बिना कोई नारी पूर्ण नहीं होती है | मैंने ये कही भी ये शब्द नहीं लिखे है दूसरी बात मैंने लेख को इसीलिए दो भागो में बाटा था जिसमे एक में बच्चे के जन्म से जुड़े कष्टों के बारे में था दूसरा उसके लालन पालन से था | किसी बच्चे का लालन पालन आप उसे गोद ले कर भी कर सकते है या अपने घर में साथ रह रहे अपने करीबियों के बच्चो का भी कर सकते है | कोई भी माँ बच्चे को जन्म देने से नहीं बनता है उसे पालने से बनता है जैसी कृष्ण की माँ के नाम पर हमें पहले यशोदा जी का ही नाम याद आता है अगर जन्म देने से की कोई माँ बन सकता तो पुरुष तो कभी माँ बन ही नहीं पाता और मेरे इस पोस्ट का कोई मतलब नहीं होता | बहुत सारे लोग है जो अविवाहित रहते है वो विवाह नहीं करना चाहते किन्तु मुझे नहीं लगता है की विवाह से होने वाली ख़ुशी आदि का वर्णन करने से उनमे किसी प्रकार की हीनता आती होगी फिर माँ नहीं बनना चाहने वालो में ये भाव क्यों आएगा | फिर कुछ लेख का अर्थ सिर्फ उससे जुड़े लोगो तक ही रखा जाता है यहाँ मै सिर्फ उन्ही लोगो की बात कर रही हूँ जो पिता तो बन जाते है किन्तु न तो माँ बन रही अपनी पत्नी के कष्टों को समझते है और न ही अपने बच्चो से जुड़ते है | लेखा लिखने का मर्म लोगो में संवेदन्शीलता जगाना और अपने बच्चो के और करीब लाना है उन पिता को इस बात का एहसास दिलाना है की पिता बनने के बाद भी वो किन खुशियों से दूर रह जा रहे है जबकि वो उसे पा सकते है |

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  6. @ राजन जी
    आप की बात सही है की सच में देखा जाये तो किसी नारी को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा की उसके बच्चो का पिता बच्चो के लालन पालन में कितनी रूचि ले रहा है कितनी ही महिलाए है जो बिना पति के सहयोग के अपने बच्चो को बड़े आराम से पल रही है कही कही तो पिता कम की वजह से घर नहीं आते तो कही घर पर सिर्फ नाम का रहते है तो कही पर पिता है ही नहीं वो अकेले ही बच्चो का पालन कर रही है | किन्तु जैसा आपने कहा की बच्चे को पालना दोनों की जिम्मेदारी है तो ये दोनों को निभानी चाहिए इसमे भी काम का बटवारा जैसा नहीं होना चाहिए की मै बस उसकी जरूरतों के लिए पैसे ला कर दूंगा और तुम बस उसका पालन पोषण करोगी | यदि दोनों मिल कर इस काम को कर्नेगे हर तरीके के काम में सहयोग करेंगे तो मुझे लगता है तब बच्चे में परिवार के प्रति अपने माता पिता के प्रति ज्यादा लगाव होगा उसकी परवरिश ज्यादा बेहतर होगी वो ज्यादा बेहतर इन्सान बन सकता है | रही बात शौभाग्य या दुर्भाग्य जैसे शब्दों की तो आप को बता दू की जब मै भी माँ नहीं बनी थी तो मुझे भी इन शब्दों पर हसी आती थी और माँ की ममता जैसी बातो पर हम भी मुंह छुपा कर हंसते थे पर माँ बनने के बाद विचार बदल गये ये सब अपने आप हुआ बिना किसी प्रयास के आप इसे माँ बनने के दौरान हुए हार्मोनल बदलाव के करना भी मन सकते है | इन शब्दों को मेरी व्यक्तिगत भावना कह सकते है संभव है की बहुत सी नारियो को इसमे ऐसी कोई बात न नजर आती हो | हम किसी भी चीज के लिए क्या शब्द कहते है ये हमरे सोच और ख़ुशी पर निर्भर है शायद मै माँ बनने में एक अलग ही ख़ुशी महसूस कर रही हूँ जो शब्दों में बहार आ रहा है या आप इस ख़ुशी को नहीं पाए है इसलिए इन शब्दों को समझ नहीं पा रहे है :)

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  7. वाह! एकदम सही बात लिखी है. मैंने भी अपने बेटे के साथ रहने का लुफ़्त उठाया है और उठा रहा हूं. मेरा कहना है कि पुरुष भी आवश्यकता पड़ने पर अकेला सभी काम कर सकता है. मिल-जुल कर करना तो आनन्द ही आनन्द है. आखिर स्त्री-पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं और मिलकर ही सारे काम करने चाहिये.

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  8. जो महसूस कर सके ,उसके लिए बच्चों को बड़ा करने और बड़ा होते देखने की ख़ुशी अनमोल होती है ... वो पिता हो या माँ ...

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  9. अंशुमाला जी,एक तो आजकल मुझे डर ही इस बात का लगा रहता है कि कब कौन किस बात को व्यक्तिगत ले लेगा.पता नहिं आपको ऐसा क्यों लगा कि मैं आप पर कोई आरोप लगा रहा हूँ.मैंने सिर्फ ये कहा है कि इन बातों का क्या मतलब निकल रहा है और कैसे यथास्थितिवादी पुरुष इन्हे अपने पक्ष में ही प्रयोग कर सकते है(करते ही है).चलिये भेद खोल ही देता हूँ कि मुझे ऐसा क्यों लगा.आपने पिछली पोस्ट में जो दूसरा प्रश्न किया था उसका जवाब मैं जानता था कुछ इसी तरह की पोस्ट होगी.आप जून 2010 की उस पोस्ट पर मेरा पहला ही कमेंट देखिये आप समझ जाएंगी कि क्यों मैं आपसे असहमत था.आपकी बातें मुझे उसी पारंपरिक नजरिये को आगे बढाते हुए लगी(भले ही आपकी वैसी भावना न हो).वैसे एक बात बताऊँ इस तरह की ज्यादापर बातें करते ही वो पुरुष है जो मानते है नारी की पूर्णता माँ बनने में ही है कि कैसे बच्चे के लिये दिन रात खटने में माँ को कितना आनंद आता है.आपकी बातें कैसे उनसे अलग है.आप जब इसे नियति से ही जोडती है तो मुझे ये कहना पडता है कि प्रकृति ने पुरुषों को माँ बनाया होता तो वात्सल्य का भाव उनमें भी होता.

    और अभी भी कुछ तय नहीं हो पा रहा है कभी आप बच्चे के पालन पोषण में होने वाली कठिनाईयों को समझने के लिये मुझे कहती है कि माँ बनके देखो फिर अगली पोस्ट में कहती है कि ये बडा आनंददायक काम है फिर मुझे जवाब में कहती है कि मै ऐसा इसलिये कह रही हूँ ताकि पुरुष माँ बनने वाली पत्नी के कष्टों को समझे तो कभी आपकी पोस्ट पर महिलाएँ बच्चे के लिये हर त्याग के लिये आगे रहने को भी अपना सौभाग्य मानती है.वहीं साहित्य में तो महिलाएँ इस तरह कि बातों का साफ विरोध करती है जिसमें कहा गया हो कि बच्चों की सारी जिम्मेदारी अकेले उठाने में महिलाएँ कितनी खुश महसूस करती है.अब मैं किसकी बात को सही मानूँ.

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  10. और अंशुमाला जी,मैं खुद भी ये ही चाहता हूँ कि आप कहें कि कैसे बच्चे की अकेले जिम्मेदारी अकेले उठाना महिला के लिये कष्टसाध्य है.यदि पुरुष अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाएगा तो महिला को दुगुनी मेहनत करनी ही पडेगी.ठीक है कि ये माँ का अपने बच्चे के प्रति समर्पण है लेकिन कहीं न कहीं इसमें एक मजबूरी भी है,समझौता है.थोपा हुआ सुख कभी सुख नहीं होता.और ये आपने क्या कह दिया जो अविवाहित है उनके आगे विवाह संस्था का बखान करने पर उनमें हीन भावना नहीं आती.अंशुमाला जी मैं कोई मंगल ग्रह पर नहीं रहता हूँ.आप इस बारे में किसी मनोवैज्ञानिक से पूछकर देखिए सब साफ हो जाएगा.

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  11. @ राजन जी

    नहीं मै किसी भी बात को व्यक्तिगत नहीं ले रही हूँ क्योकि की आप कोई व्यक्तिगत बात नहीं कर रहे है आप मेरे लेख पर अपनी बात कह रहे है और मै उनका जवाब देने का प्रयास कर रही हूँ | इसलिए निश्चिन्त हो कर अपनी बात रखे | किसी बात का किसी के द्वारा अपने पक्ष में प्रयोग करना वो भी उसका दुसरे कई मतलब निकल कर जैसी बातो को हम नहीं रोक सकते है आप कितना भी संभल कर लिखे लोग अपनी समझ से उसका मतलब निकाल ही लेते है उनकी बातो को छोड़ दीजिये | मै शायद फिर से वही बात दोहराने जा रही हूँ जो पहले ही कह चुकी हूँ | किसी लेख को लिखने का उद्देश्य क्या है मै यहाँ बच्चे के जिम्मेदारी के आलावा उसके साथ जुड़े एक भावनात्मक पक्ष को रख रही हूँ | होता ये है की पुरुष बच्चे को सिर्फ एक जिम्मेदारी के तौर पर देखता है उससे जुड़े काम को सिर्फ घरेलु काम की तरह देखता है उससे कोई भावनात्मक लगाव नहीं रखता है और मै यहाँ उसे ही जोड़ने की बात कर रही हूँ |

    बच्चे के लिए खटने में माँ को आन्नद आता है ? माँ बच्चे के लिए खटती नहीं है खटती तो वो दुसरे कामो में है जहा उसे बच्चे को छोड़ दुसरे काम करने पड़ते है कष्ट उसे उससे होता है और यदि पति बच्चे के साथ न जुड़े उसे बोझ की तरह समझे तो फिर स्थिति उसके लिए और कष्ट प्राय हो जाती है | यही बात तो मै कह रही हूँ की माँ बनते ही एक नारी पर एक अतिरिक्त जिम्मेदारी आ जाती है और पति को उसमे शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरीके से मदद करनी चाहिए | काम के लिए खटना आन्नद दायक नहीं है बच्चे के साथ आराम से समय बिताना उसका लालन पालन करना आन्नद दायक है और यही आन्नद मै पुरुषो को भी उठाने के लिए कह रही हूँ |

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  12. राजन जी

    पोस्ट को दो भागो में इसलिए ही बाटा है की इससे जुडी परेशानी और इससे जुड़े आन्नद दोनों की बात कर सकू और पिता बन रहे व्यक्ति को दोनों ही स्थिति को समझना चाहिए जो माँ बन रही नारी महसूस कर रही है | रही बात हीन भावना वाली तो इस तरह तो हम किसी भी विषय में नहीं लिख पाएंगे क्योकि कोई और इससे हीनता से ग्रस्त हो जायेगा किसी एक बात के पक्ष में लिखने का ये अर्थ नहीं है की हम कसी दुसरे पक्ष को हीन दिखाना चाहते है | सभी के सोचने और जीने का तरीका अलग लगा होता है यदि कोई विवाह नहीं करना चाहता या माँ नहीं बनाना चाहता तो उसके कोई मजबूत कारण होंगे उसे ये बाते भली प्रकार मालूम होगी मुझे नहीं लगता है की इस तरह की बातो से उसको कोई कष्ट होगा यदि होता है तो निश्चित रूप से उसने गलत फैसला अपने लिए किया है उसने ठीक से इस पर विचार नहीं किया है |

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  13. भविष्य का मानव ये झंझट ही नहीं पलेगा-नारियां भी केवल अंडज होंगीं,पुरुष आज ही की तरह वीर्यज -बच्चे इनकुबेटर में पलेगें -ये सब तोर मोर का लफडा ही नहीं रहेगा !

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  14. निरर्थक बहस की तरफ ले जाती पोस्ट.
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  15. इसे यूं कहिये नारी ही एक मात्र वो होती है जिसे यह सौभाग्य मिलता है
    क्योंकि पुरुष ऐसा भाग्यवान जीव होता है जिसे श्मशान वैराग्य जैसा सर्वोच्च पावन एहसाह होता है
    आलेख वाक़ई उत्तम है
    बधाईया

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  16. @ डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

    यहाँ किसी बहस के लिए ये लेख नहीं लिखा गया है बस पुरुष को अपने बच्चो से जुड़ने के लिए कह गया है जो पुरुष को ही फायदा पहुचायेगा |

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  17. माँ होना एक अत्यंत सौभाग्य की बात है. नारी और पुरुष दोनों स्वयं में अपूर्ण हैं, विवाह करके एक दूसरे को पूर्ण बनाते हैं. नारी तो माँ बन कर इस पूर्णता से भी आगे निकल जाती है, पर पुरुष मातृत्व के सुख से अछूता रह जाता है. पुरुष तन से तो माँ नहीं बनता पर मन से तो उसे एक आदर्श माँ बनने का प्रयत्न करना ही चाहिए.

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