नारी ब्लाग की संचालिका रचना जी ने सांपत्तिक अधिकारों से संबंधित प्रश्न प्रेषित किया है -
यदि स्त्री या पुरुष दूसरा विवाह करते हैं, तो उनकी अपनी संतान का दूसरे पति/ पत्नी की सम्पत्ति पर तब तक कोई क़ानूनी अधिकार नहीं होता जब तक की उस बच्चे को दूसरा पति या पत्नी क़ानूनी रूप से गोद ना ले लें। भारतीय कानून के अनुसार इस में कितनी सत्यता है। उदाहरण के बतौर क की पहली शादी से अपने पति ख की एक संतान म है, यदि क दूसरी शादी ग से करती है तो क्या उसकी पहली संतान म जो पूर्व पति ख से है, क्या उसका ग पति की सम्पत्ति पर क़ानूनी अधिकार बनता है, महज इस लिये कि उसकी माँ ने दूसरा विवाह कर लिया, या तब बनेगा जब क़ानूनी रूप से वो ग का पुत्र होगा। उसी तरह अगर ग पति के पहले से कोई संतान है तो इस स्त्री की संपत्ति पर क्या उसका अधिकार बनेगा या उसको भी गोद लेने के बाद ही अधिकार मिलेगा?
रचना जी,
आप का प्रश्न बहुत भ्रामक है। आप किस अधिकार की बात पूछ रही हैं? यह स्पष्ट नहीं है। कानून में किसी भी संपत्ति पर केवल उस के स्वामी का अधिकार होता है, अन्य किसी भी व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं होता। संपत्ति पर स्वामी का यह अधिकार तब तक बना रहता है जब तक कि वह स्वयं इसे किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित न कर दे अथवा किसी न्यायालय की डिक्री आदि से वह संपत्ति कुर्क न कर ली जाए। यह हो सकता है कि किसी संपत्ति के एक से अधिक संयुक्त स्वामी हों। तब उस संपत्ति के बारे में वही अधिकार संयुक्त रूप से उस के संयुक्त स्वामियों के तब तक बने रहते हैं जब तक कि उस संपत्ति का विभाजन न हो जाए अथवा एक संयुक्त स्वामी के हक में अन्य संयुक्त स्वामी संपत्ति पर अपना अधिकार न त्याग दें।
आप के प्रश्न के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि यदि कोई संपत्ति यदि पति की है तो उस पर पति का ही अधिकार होता है उस की पत्नी का उस में कोई अधिकार नहीं होता। इसी तरह यदि कोई संपत्ति किसी पत्नी की है तो उस पर पत्नी का ही अधिकार होता है उस के पति का उस में लेश मात्र भी अधिकार नहीं होता। पिता और माता की संपत्तियों में उन के पुत्र-पुत्रियों का कोई अधिकार नहीं होता। उसी तरह पुत्र-पुत्रियों की संपत्ति में उन के माता-पिता का कोई अधिकार नहीं होता है। जब किसी पत्नी का अपने पति की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होता है तो उस में पत्नी के पूर्व पति की संतान के अधिकार की बात सोचना सिरे से ही गलत है। क्यों कि उन दोनों के बीच तो कोई सम्बन्ध भी नहीं है। वस्तुतः यह संपत्ति के अधिकार का मूल तत्व है कि संपत्ति केवल उस के स्वामी की हो सकती है और उस पर उसी का एक मात्र अधिकार होता है। व्यक्ति जिस संपत्ति का स्वामी है, अपने जीवनकाल में उस का किसी भी प्रकार से उपभोग कर सकता है और उसे किसी भी प्रकार से खर्च कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति चाहे तो अपनी सारी संपत्ति को अपने जीवन काल में ही खर्च कर सकता है, उसे खर्च करने में उस पर किसी प्रकार की कोई बाध्यता नहीं है।
बालकों और अल्पवयस्कों का अपने माता-पिता की संपत्ति पर किसी प्रकार का कोई अधिकार नहीं होता। उन का अधिकार केवल भरण पोषण तक सीमित है। यदि माता-पिता उन के वयस्क होने तक उनका भरण पोषण नहीं करते हैं तो उन के इस अधिकार को कानून के द्वारा लागू कराया जा सकता है। इसी तरह स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ पत्नी का पति पर, पति का पत्नी पर, माता-पिता का अपनी संतानों पर भरण-पोषण का कानूनी अधिकार है और उसे भी कानून द्वारा लागू कराया जा सकता है।
आप अपने उक्त प्रश्न में जिस अधिकार के बारे में पूछना चाहती हैं, उस से लगता है कि आप उत्तराधिकार के संबंध में बात करना चाहती हैं। उत्तराधिकार का अर्थ किसी मृत व्यक्ति द्वारा छोड़ी गई संपत्ति पर अधिकार से है। भारत में उत्तराधिकार का कोई सामान्य कानून नहीं है। उत्तराधिकार लोगों की व्यक्तिगत विधि से तय होता है। मृत मुस्लिम व्यक्ति की संपत्ति पर उत्तराधिकार का प्रश्न मुस्लिम विधि से तय होता है और मृत हिन्दू व्यक्ति की संपत्ति का उत्तराधिकार हिन्दू विधि से तय होता है। हिन्दू विधि को एक सीमा तक आजादी के बाद संहिताबद्ध किया गया है। एक मृत हिन्दू व्यक्ति की निर्वसीयती संपत्ति का उत्तराधिकार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम से तय होता है।
उत्तराधिकार का मूल सिद्धान्त ही यह है कि एक मृत व्यक्ति की संपत्ति उस के निकटतम रक्त संबंधियों को मिलनी चाहिए। उन में पत्नी और पति को और सम्मिलित किया गया है। अब रक्त संबंधी भी दूर और पास के हो सकते हैं, इस कारण से उन की अनेक श्रेणियाँ बनाई गई हैं। प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों में से एक के भी जीवित होने तक मृत हि्न्दू की संपत्ति पर उन का उत्तराधिकार होता है। प्रथम श्रेणी के जितने भी उत्तराधिकारी होंगे उन सब का मृत व्यक्ति की संपत्ति में समान अधिकार होता है। प्रथम श्रेणी का कोई भी उत्तराधिकारी न होने पर ही द्वितीय श्रेणी के उत्तराधिकारियों को संपत्ति पर अधिकार प्राप्त होता है।
आप पत्नी की पूर्व पति से संतानों पर दूसरे पति की संपत्ति के अधिकार की बात करना चाहती हैं। इस तरह का कोई भी अधिकार केवल विवाह के समय पति द्वारा स्वेच्छा से प्रदत्त किया जा सकता है या पत्नी के साथ हुई किसी संविदा के अंतर्गत ही प्रदान किया जा सकता है अन्यथा नहीं। उत्तराधिकार तो किसी भी प्रकार से उसे प्राप्त नहीं हो सकता। क्यों कि ऐसी संतान किसी भी प्रकार से पति की रक्त संबंधी नहीं हो सकती और उसे इस प्रकार का अधिकार प्राप्त होना उत्तराधिकार के मूल सिद्धांत के विपरीत होगा। वैसे भी पत्नी के पूर्व पति की संतान को अपने पिता का उत्तराधिकार प्राप्त होगा और अपनी माता का भी। जहाँ तक दत्तक संतान का प्रश्न है, किसी भी दत्तक संतान को दत्तक ग्रहण करने वाले माता-पिता की औरस संतान की ही तरह अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। इस तरह जिसे भी दत्तक ग्रहण किया जाएगा उसे ये अधिकार प्राप्त होंगे। अब यह और बात है कि कोई पति अपनी पत्नी के पूर्व पति से उत्पन्न संतान को दत्तक ग्रहण करता है तो ऐसी संतान को दत्तक पुत्र होने के नाते ये सब अधिकार प्राप्त होंगे, न कि पूर्व पति से उत्पन्न पत्नी की संतान होने के कारण।
रचना जी,
आप का प्रश्न बहुत भ्रामक है। आप किस अधिकार की बात पूछ रही हैं? यह स्पष्ट नहीं है। कानून में किसी भी संपत्ति पर केवल उस के स्वामी का अधिकार होता है, अन्य किसी भी व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं होता। संपत्ति पर स्वामी का यह अधिकार तब तक बना रहता है जब तक कि वह स्वयं इसे किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित न कर दे अथवा किसी न्यायालय की डिक्री आदि से वह संपत्ति कुर्क न कर ली जाए। यह हो सकता है कि किसी संपत्ति के एक से अधिक संयुक्त स्वामी हों। तब उस संपत्ति के बारे में वही अधिकार संयुक्त रूप से उस के संयुक्त स्वामियों के तब तक बने रहते हैं जब तक कि उस संपत्ति का विभाजन न हो जाए अथवा एक संयुक्त स्वामी के हक में अन्य संयुक्त स्वामी संपत्ति पर अपना अधिकार न त्याग दें।
आप के प्रश्न के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि यदि कोई संपत्ति यदि पति की है तो उस पर पति का ही अधिकार होता है उस की पत्नी का उस में कोई अधिकार नहीं होता। इसी तरह यदि कोई संपत्ति किसी पत्नी की है तो उस पर पत्नी का ही अधिकार होता है उस के पति का उस में लेश मात्र भी अधिकार नहीं होता। पिता और माता की संपत्तियों में उन के पुत्र-पुत्रियों का कोई अधिकार नहीं होता। उसी तरह पुत्र-पुत्रियों की संपत्ति में उन के माता-पिता का कोई अधिकार नहीं होता है। जब किसी पत्नी का अपने पति की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होता है तो उस में पत्नी के पूर्व पति की संतान के अधिकार की बात सोचना सिरे से ही गलत है। क्यों कि उन दोनों के बीच तो कोई सम्बन्ध भी नहीं है। वस्तुतः यह संपत्ति के अधिकार का मूल तत्व है कि संपत्ति केवल उस के स्वामी की हो सकती है और उस पर उसी का एक मात्र अधिकार होता है। व्यक्ति जिस संपत्ति का स्वामी है, अपने जीवनकाल में उस का किसी भी प्रकार से उपभोग कर सकता है और उसे किसी भी प्रकार से खर्च कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति चाहे तो अपनी सारी संपत्ति को अपने जीवन काल में ही खर्च कर सकता है, उसे खर्च करने में उस पर किसी प्रकार की कोई बाध्यता नहीं है।
बालकों और अल्पवयस्कों का अपने माता-पिता की संपत्ति पर किसी प्रकार का कोई अधिकार नहीं होता। उन का अधिकार केवल भरण पोषण तक सीमित है। यदि माता-पिता उन के वयस्क होने तक उनका भरण पोषण नहीं करते हैं तो उन के इस अधिकार को कानून के द्वारा लागू कराया जा सकता है। इसी तरह स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ पत्नी का पति पर, पति का पत्नी पर, माता-पिता का अपनी संतानों पर भरण-पोषण का कानूनी अधिकार है और उसे भी कानून द्वारा लागू कराया जा सकता है।
आप अपने उक्त प्रश्न में जिस अधिकार के बारे में पूछना चाहती हैं, उस से लगता है कि आप उत्तराधिकार के संबंध में बात करना चाहती हैं। उत्तराधिकार का अर्थ किसी मृत व्यक्ति द्वारा छोड़ी गई संपत्ति पर अधिकार से है। भारत में उत्तराधिकार का कोई सामान्य कानून नहीं है। उत्तराधिकार लोगों की व्यक्तिगत विधि से तय होता है। मृत मुस्लिम व्यक्ति की संपत्ति पर उत्तराधिकार का प्रश्न मुस्लिम विधि से तय होता है और मृत हिन्दू व्यक्ति की संपत्ति का उत्तराधिकार हिन्दू विधि से तय होता है। हिन्दू विधि को एक सीमा तक आजादी के बाद संहिताबद्ध किया गया है। एक मृत हिन्दू व्यक्ति की निर्वसीयती संपत्ति का उत्तराधिकार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम से तय होता है।
उत्तराधिकार का मूल सिद्धान्त ही यह है कि एक मृत व्यक्ति की संपत्ति उस के निकटतम रक्त संबंधियों को मिलनी चाहिए। उन में पत्नी और पति को और सम्मिलित किया गया है। अब रक्त संबंधी भी दूर और पास के हो सकते हैं, इस कारण से उन की अनेक श्रेणियाँ बनाई गई हैं। प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों में से एक के भी जीवित होने तक मृत हि्न्दू की संपत्ति पर उन का उत्तराधिकार होता है। प्रथम श्रेणी के जितने भी उत्तराधिकारी होंगे उन सब का मृत व्यक्ति की संपत्ति में समान अधिकार होता है। प्रथम श्रेणी का कोई भी उत्तराधिकारी न होने पर ही द्वितीय श्रेणी के उत्तराधिकारियों को संपत्ति पर अधिकार प्राप्त होता है।
आप पत्नी की पूर्व पति से संतानों पर दूसरे पति की संपत्ति के अधिकार की बात करना चाहती हैं। इस तरह का कोई भी अधिकार केवल विवाह के समय पति द्वारा स्वेच्छा से प्रदत्त किया जा सकता है या पत्नी के साथ हुई किसी संविदा के अंतर्गत ही प्रदान किया जा सकता है अन्यथा नहीं। उत्तराधिकार तो किसी भी प्रकार से उसे प्राप्त नहीं हो सकता। क्यों कि ऐसी संतान किसी भी प्रकार से पति की रक्त संबंधी नहीं हो सकती और उसे इस प्रकार का अधिकार प्राप्त होना उत्तराधिकार के मूल सिद्धांत के विपरीत होगा। वैसे भी पत्नी के पूर्व पति की संतान को अपने पिता का उत्तराधिकार प्राप्त होगा और अपनी माता का भी। जहाँ तक दत्तक संतान का प्रश्न है, किसी भी दत्तक संतान को दत्तक ग्रहण करने वाले माता-पिता की औरस संतान की ही तरह अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। इस तरह जिसे भी दत्तक ग्रहण किया जाएगा उसे ये अधिकार प्राप्त होंगे। अब यह और बात है कि कोई पति अपनी पत्नी के पूर्व पति से उत्पन्न संतान को दत्तक ग्रहण करता है तो ऐसी संतान को दत्तक पुत्र होने के नाते ये सब अधिकार प्राप्त होंगे, न कि पूर्व पति से उत्पन्न पत्नी की संतान होने के कारण।
विवाह और संतान इंसान को ख़ुशी का अहसास दिलाते हैं। जायदाद से भी इंसान ख़ुशी का अहसास करता है लेकिन जब वह इनमें संतुलन खो देता है तो मुसीबतें खड़ी हो जाती हैं। ऐसे में आप क़ानूनी जानकारी देकर उन्हें एक समाधान दे रहे हैं और वह भी मुफ़्त। इससे आपको भी ख़ुशी मिलती होगी और आपसे जानकारी पाने वालों को भी।
ReplyDeleteधन्यवाद !
ख़ुशी के अहसास के लिए आपको जानना होगा कि ‘ख़ुशी का डिज़ायन और आनंद का मॉडल‘ क्या है ? - Dr. Anwer Jamal
वाह .... अति सुस्पष्ट व्याख्या...
ReplyDeleteआभार इस जानकारी परक पोस्ट के लिए...
इस पोस्ट के लिए धन्यवाद!
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