
हर्षिता महज १७ साल में अपने लोगो को छोड़ कर पंचतत्व मे विलीन हो गयी । उनके जाने के बाद उनके माता पिता ने उनके organ donate कर दिये और उस दान से ७ व्यक्तियों को जीवन दान मिल गया । आज हर्षिता ७ जगह जीवित हैं ।
हर्षिता के बारे मे आप इस लिंक पर ज्यादा पढ़ सकते हैं
मेरा नमन हर्षिता को और उनके माता पिता को भी ।
एक सुखद पहल, ऐसे माता पिता को कोटि कोटि धन्यवाद और हमें भी कुछ सीखना चाहिए. इस देह को भी मानवता के नाम कर दें तो हमारे शरीर की सार्थकता होगी.
ReplyDeleteऐसे माता - पिता और हर्षिता को सौ -सौ बार नमन ! लिंक पर गया , पढ़ा ..दिल भर आया !
ReplyDeleteDhany hain ese mata pita ...tyaag evam uchch vicharon ko mera naman hai ....
ReplyDeleteRIP for Harshita.
ऐसे माता पिता को कोटि कोटि धन्यवाद
ReplyDeleteइस तरह अंग दान करके हर्षिता केवल सात जगह नहीं हजारों-लाखों हृदयों में जगह बना लेगी. जो भी सुनेगा हर्षिता की स्मृति को अपने हृदय में तुरंत स्थान देगा. जीवन दान सात को मिला है तो प्रेरणा लाखों को मिलेगी.
ReplyDeleteharshita aur uske maata pita ko mera naman...
ReplyDeleteकितना अच्छा हो कि हम सब हर्षिता के माता पिता को फालो कर सकें ...
ReplyDeleteप्रेरणादायी...... हर्षिता को नमन
ReplyDeleteharishta aur uske maata pita ko mera shat shat naman... such me bhut himmat kam hai..ek misal ke rup ye mata pita hai...
ReplyDeleteप्रेरक पोस्ट!
ReplyDeleteशत-शत नमन!
सराहनीय काम किया हर्षिता के माता पिता ने हम सभी को उनसे सीखना चाहिए |
ReplyDeleteसराहनीय कार्य !
ReplyDeleteअंग-दान की प्रक्रिया क्या है? नेत्रदान की घोषणा कहां और कैसे की जाती है? अभी यह केवल चुनिन्दा महानगरों तक ही सीमित है. छोटे कस्बों में डोक्टर रुचि नहीं लेते.
ReplyDeleteहर्षिता के माता पिता ने जिस अद्भुत सोच को प्रदर्शित किया है वह स्तुत्य है. हर्षिता को खोना निःसंदेह दुखद है.फिर भी हर माता पिता को चाहिए की ऐसे अप्रत्याशित प्रसंग जीवन में आने पर संवेदना से अधिक समाज के प्रति जवाबदेही की उद्दाम सोच का अनुकरण करें. हर्षिता के माता -पिता का हृदय से अभिवादन. युवाओं को ही नहीं वरन सभी को नेत्र दान और देह दान के लिए आगे आना चाहिए.
ReplyDeleteदेहान्त के बाद परिजन इतने दुखी हो जाते हैं कि किसी का ध्यान ऐसी पहलों पर जाता ही नहीं। कुछेक आध्यात्मिक मान्यताओं ने भी अंगदान की अवधारणा को नुकसान पहुंचाया है। ऐसी खबरें उस मिथक को तोड़ने में कारगर पहल हो सकती हैं।
ReplyDeleteसराहनीय कार्य
ReplyDelete