क्या इन्हें पितृत्व या मातृत्व का अधिकार होना चाहिए?
कोई भी समाचारपत्र उठाओ तो बच्चों के साथ होते अत्याचार भी पढ़ने को मिल जाते हैं। क्या बच्चों के साथ अत्याचार संसार का सबसे जघन्य अपराध नहीं है? क्या ऐसा अत्याचारी संसार का सबसे निकृष्ट व्यक्ति नहीं है? क्या ऐसे अपराधियों को समाज में रहने का अधिकार होना चाहिए?आज ही पढ़ा कि एक नौ साल की बच्ची ने अपने दादा दादी की सहायता से अपने पिता के विरुद्ध पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई है कि उसका पिता व उसके दो मित्र दो साल से उसका बलात्कार करते रहे हैं। यह बच्ची एक कम्बोदियाई माँ व भारतीय पिता की संतान है। पिता कम्बोदिया में काम करता था। वहीं उसने एक कम्बोदियाई स्त्री से विवाह किया और तीन साल बाद उन्हें छोड़ भारत आ गया। एक साल बाद बच्ची की माँ ने बच्ची को भारत भेज दिया। यहाँ पिता बच्ची से भीख मंगवाता था। सात साल की बच्ची का स्वयं भी बलात्कार करता था और दो मित्रों से भी धन के लालच में यही करवाता था।
पिता को चाहे जो सजा हो जाए, प्रश्न यह उठता है कि क्या ऐसे पुरुष को पिता बनने का भी अधिकार होना चाहिए? कभी न कभी वह जेल से छूटेगा, शायद दोबारा विवाह करे और फिर से किसी बच्चे का पिता बन जाए।
पिता तो मनुष्य के नाम पर कलंक है ही किन्तु उस माँ ने कैसे अपनी अबोध बच्ची को ऐसे व्यक्ति के पास भेज दिया जो उसे पहले ही छोड़ चुका था? माँ की कई मजबूरियाँ हो सकती हैं किन्तु क्या ऐसे में बच्ची को किसी को गोद दे देना बेहतर विकल्प नहीं सिद्ध होता? कम से कम तब यह आशा तो की जा सकती थी कि बच्ची को उचित देखभाल व प्यार मिलेगा। जो पिता उसे पहले ही छोड़ आया था उससे ऐसी आशा करना मूर्खता है।
माता पिता बनना जितना सहज है उतना ही कठिन है इस दायित्व को निभाना। किसी बच्चे को इस संसार में लाने से बड़ी उत्तरदायित्व की बात कोई हो ही नहीं सकती। काश कि लोग ऐसा करने से पहले लाख बार विचार करते कि वे इस दायित्व को निभाने के योग्य भी हैं या नहीं। काश कि केवल मानसिक व भावनात्मक रूप से योग्य लोग ही माता पिता बनने के अधिकारी होते।
कुछ ही दिन पहले बच्चों का यौन शोषण करने वाले ६० से भी अधिक उम्र के एक फ्रांसीसी अपराधी ने स्वयं कहा कि सर्जरी द्वारा उसे बंध्या बना दिया जाए।(टेस्टोस्टेरोन की मात्रा कम करने वाला इंजेक्शन देने की प्रथा भी वहाँ है।) वह स्वयं स्वीकारता है कि वह अपने पर नियंत्रण नहीं रख पाता। यह व्यक्ति पहले भी इस अपराध के लिए कई बार जेल जा चुका है। इस बार भी जेल से छूटने के कुछ दिन बाद ही उसने एक चार पाँच साल के बच्चे को बंदी बनाकर यह अपराध किया। फ्रांस में यह सुझाव रखा गया था कि ऐसे अपराधियों को उनकी सजा की अवधि खत्म होने पर भी तभी रिहा किया जाए जब मनोचिकित्सक यह कहें कि अब वे समाज के लिए खतरा नहीं हैं। किन्तु मानवाधिकारों की दुहाई देकर ऐसा हो नहीं सका।
मानवाधिकार बहुत महत्वपूर्ण हैं। यह भी सच है कि संसार की कोई भी अदालत यह नहीं कह सकती कि उसने कभी निरपराध को सजा नहीं दी है। किन्तु क्या बच्चों के अधिकारों से बड़ा भी कोई अधिकार हो सकता है? क्या ऐसे लोगों को बच्चों को यातना देने के लिए खुला छोड़ा जा सकता है?
घुघूती बासूती
इस पोस्ट पर आप चाहे तो यहाँ या घुघूती बासूती जी के ब्लॉग पर दे सकते हैं
यदि आपको याद हो तो करीब 10-12 वर्ष पहले दिल्ली में एक आई इ एस महोदय अपनी बच्ची के साथ कई वर्षों से शारीरिक सम्बन्ध बनाने के आरोप में पकडे गए थे. उस समय समाज में हलचल सी हुई और शांत हो गई. उन महोदय ने तर्क दिया कि जैसे एक घोड़ा अथवा कुत्ता अपने संबंधों से उत्पन्न संतान के साथ भी सम्बन्ध बना लेता है, उसी तरह मनुष्य भी कर सकता है.
ReplyDeleteआज ऐसी घटनाओं से समाज अटा हुआ है. घर में ही रिश्तों की पावनता के बीच शारीरिक सम्बन्ध बन रहे हैं, इसके पीछे के मनोविज्ञान को समझने के लिए शोध की जरूरत है.
हम मानव क्यों हैं? अगर हम अपने अपराध को वैधता का जमा पहनने के लिए पशुओं का उदाहरण दे रहे हैं. इस समाज में नीचता कि कोई सीमा नहीं है. और हम बेवश से सब सहने के लिए मजबूर हैं.
ReplyDeleteलड़की होना एक बहुत बड़ा अभिशाप है, ये समाज तो उसको देखता ही सिर्फ एक दृष्टि से है लेकिन अगर जनक या सहोदर भी अपने रिश्तों कि पवित्रता को अहमियत नहीं देते हैं तो अब माँ का दायित्व बढ़ रहा है. बेटी को बचपन से ही अपने और अपने ही साए में रखना होगा. एक प्रश्न चिह्न तो बहुत पहले ही लगता आ रहा है. ऐसे पिता या पिता तुल्य सम्बन्धी मानसिक रोगी ही कहे जा सकते हैं. जहाँ माँ और बहन के रिश्ते के लिए लोग जान देने में पीछे नहीं हटते वहाँ इन पशुओं से सावधान रहने कि आवश्यकता है. नारी पुरुष कि नजरों से पहचान लेती है कि उसकी दृष्टि में क्या है? बच्चे को ऐसे लोगों से दूर रखने का काम अब माँ का ही होगा.
ReplyDeleteमानवाधिकार कि दुहाई लेकर अपराधी को बाहर किया जा सकता है लेकिन क्या उन लोगों के कोई मानवाधिकार नहीं है जिनको ऐसे लोगों से खतरा हो सकता है. ऐसे अपराधियों को जेल में न सही कम से कम मनोचिकित्सक के देखरेख में तो रखा ही जाना चाहिए.
वाकई बच्चो के साथ किया गया अपराध सबसे जघन्य अपराध है.
ReplyDeleteरेखा जी की टिप्पणी से असहमति है. (लड़की होना एक बहुत बड़ा अभिशाप है) वास्तव में वह समाज अभिशाप है जो लडकी को उस्का हक और अधिकार नही दे पाता. (क्षमा याचना सहित)
ऐसे समाचार रोंगटे खड़े कर देते हैं. मासूम बच्चों के साथ छेड़छाड़ और उनका यौन-शोषण एक जघन्य अपराध है. ऐसे नरपशुओं को कड़ी सज़ा देनी चाहिये. मैं रेखा जी की इस बात से सहमत हूँ कि अपने बच्चों को इन कुत्सित मानसिकता वाले लोगों से बचाकर माँ को ही रखना होगा. सभी पुरुषों से वे चाहे घर के हों या बाहर के. इसके साथ ही बच्चों विशेषतः छोटी लड़कियों को सावधान भी रखना होगा उन्हें सावधानी से ऐसी शिक्षा देनी होगी कि वे किसी के भी पास अकेले न जायें और न अधिक देर तक किसी के भी पास बैठें. इस विषय में अतिरिक्त सावधानी इसलिये बरतनी होगी जिससे उनके कोमल मन में कहीं समाज के प्रति कटुता न भर जाये.
ReplyDeleteसिनेमा , मीडिया ,tv,वगेरह में बढती अश्लीलता,जनसँख्या विस्फोट से पैदा हुई गलाकाट स्पर्धा/बाज़ार की संस्कृति और उसमें बेरोज़गारी,लिंगानुपात में भारी कमी, विवाह की औसत आयु में वृद्धि ....तमाम ऐसे कारक हैं जो कुंठा को चिंताजनक वीभत्स स्तर तक ले जाते हैं।हमें समस्या के मूल में देखना चाहिए ...
ReplyDeleteश्रीमती के नाम ghazal
यौन शोषण, खासकर बच्चों का सबसे घृणित अपराध है और इससे बच निकलने वाले जानवरो को समाज मे खुला छोड़ना दूसरे किसी बच्चे को खतरे मे डालना है।मानवाधिकार पर ज्यादा कुछ नही कहना चाहता लेकिन इस बात से सहमत हूं उसे मनोचिकित्सकों से क्लीन चिट मिलने के बाद ही खुला छोड़ना चाहिये अन्यथा पशुवत व्यवहार करने वाले नरपशुओं को समाज मे रहने का कोई हक़ नही है।
ReplyDeleteपूरे विश्व में जानवरों की संख्या में कमी आई है ...आनी ही है ...जानवरों जैसे कर्म इंसान के जो हो गए हैं ...!!
ReplyDeleteऐसे कुकृत्यों कि जितनी निंदा कि जाय कम है ,दोषी के दोष को छुपाना और उसे समाज में फिर से खुला छोड़ देना ऐसी ही और दुर्घटनाओ को जन्म देता है अतः उन्हें सार्वजनिक करे जिससे ऐसी दुर्घटना कि पुनरावृति न हो|
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