आजकल नारी ब्लॉग में विवाह-संस्था पर चर्चा चल रही है. मुझे जब इस ब्लॉग पर लिखने के लिये आमन्त्रित किया गया तो मैंने सोचा कि मैं भी अपने कुछ अनुभव बाँटूं. विवाह भारत में एक पवित्र संस्था मानी जाती है. इस पर सभी सहमत होंगे कि समाज में व्यवस्था बनाये रखने के लिये विवाह आवश्यक है. पर स्त्रियों के संबंध में समस्या तब आती है जब विवाह को उनके जीवन का एक मात्र उद्देश्य बना दिया जाता है. हमारे यहाँ लड़कियों को बचपन से ही दुल्हन बनने के लिये बड़ा किया जाता है. उनको बार-बार यह अहसास कराया जाता है कि माता-पिता का घर उनका नहीं है. उन्हें तो एक दिन अपनी ससुराल जाना है. उन्हें किचेन सेट दिया जाता है जिसके साथ वे घर-घर खेल सकें, गुड़ियों का ब्याह रचायें. बच्चों की मालिश एक स्वाभाविक सी बात है, पर बच्चियों के लिये यह एक त्रासद अनुभव बन जाता है. उनकी रगड़-रगड़ कर मालिश की जाती है ताकि सारे रोयें समाप्त हो जायें. ऐसी बहुत सी बातें हैं, पर मैं यहाँ अपने साथ घटी कुछ घटनाओं का उल्लेख करना चाहुँगी. इन घटनाओं के कारण मैं बचपन में कभी-कभी अवसाद में आ जाती थी, पर अब उन पर हँसी आती है.
मेरा पालन-पोषण अन्य लड़कियों से कुछ अलग ढंग से हुआ है. इसका कारण मेरे पिताजी थे, जो एक बौद्धिक और आदर्शवादी व्यक्ति थे और लड़का-लड़की में बिल्कुल भेद नहीं करते थे. पर आस-पड़ोस के लोग और नाते-रिश्तेदार मुझे लेकर बहुत चिन्तित रहते थे क्योंकि मेरे अंदर बहुत सी ऐसी कमियाँ थीं जो कि आगे चलकर मेरे ब्याह में बाधक बनने वाली थीं. मैं थोड़ी सांवली थी, इसलिये जब मैं धूप में खेलती थी तो आँटियाँ अम्मा को समझाती थीं, "आपकी बेटी धूप में खेलकर काली हो जायेगी तो इसकी शादी कैसे होगी." जब मेरी लंबाई तेजी से बढ़ने लगी तो सुनने को मिला कि इसके बराबर का दूल्हा कैसे मिलेगा. जब और थोड़ी बड़ी हुयी तो मुझे साइकिल चलाने से रोका जाने लगा. साइकिल चलाने का शादी में समस्या आने से क्या संबंध है यह बहुत बाद में पता चला. मैं घरेलू कामों में रुचि नहीं लेती थी तो कहा जाता था कि ससुराल जाकर नाक कटायेगी यहाँ तक कि एक बार मेरी एक पड़ोसन आँटी मुझसे बोलीं, "अरे, तुम्हारी तो एक उंगली छोटी है, तुम्हारी शादी में तो इससे दिक्कत आ सकती है." ( मेरी बांये हाथ की एक उंगली जन्म से ही छोटी है) ये सारी बातें सुनने में अजीब लग सकती हैं, पर मैंने यह सब झेला है. यहाँ तक कि मेरी शैक्षिक योग्यता को भी मेरी शादी में एक बाधक के रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा. मेरी किस्मत अच्छी थी कि मेरे पिताजी ने इन सब बातों पर कभी ध्यान नहीं दिया और मेरे जीवन के निर्णय मुझे लेने की पूरी आज़ादी दी.
अब से तीन साल पहले मेरे पिताजी का देहांत होने पर सभी नाते-रिश्तेदारों को एक ही चिन्ता सता रही थी कि बाकी दो बच्चों को तो निपटा दिया यही बेचारी रह गयी. उन रिश्तेदारों में से कुछ तो कन्नी काट गये कि कहीं मेरी शादी का बोझ उनके सिर न पड़ जाये और कुछ लोग मेरे कन्यादान का पुण्य लेने बड़ी उदारता से आगे आ गये. मेरी योग्यता का, मेरे व्यक्तित्त्व का, मेरे एक मेधावी छात्रा होने का, मेरी डी.फिल. की डिग्री का कोई मोल नहीं क्योंकि मेरी शादी नहीं हो पायी.
मैं नहीं चाहती कि कोई मेरे संग सहानुभूति दिखाये. मैं अपनी स्थिति से संतुष्ट हूँ. पर लोगों को मेरी चिन्ता बनी हुई है. उनकी नज़रों में मैं बेचारी हूँ और मेरी नज़रों में वे बेचारे हैं.
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
November 02, 2009
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मुक्ति
ReplyDeleteनारी ब्लॉग पर लिखने के लिये थैंक्स । आप की हर बात से सहमति । आप अपनी जिंदगी को "जिये " क्युकी बहुत सी शादियाँ ऐसी भी होती हैं जहाँ जिंदगी "जी" नहीं " काटी जाती हैं "
विवाह कोई पवित्र संस्था नहीं। उस का उद्गम देखिए, जानने का प्रयत्न कीजिए।
ReplyDeleteबहुत वाजिब प्रश्न उठाया है आपने ...ये हमारी सामजिक व्यवस्था का एक बहुत ही अफसोसजनक पहलू है ..जहाँ आपकी सुन्दरता ..विद्वता ...चारित्रिक गुण ..कोई मायने नहीं रखते जब तक की शादी ना हो जाये ...इन गुणों पर नजर तब तक व्यर्थ ही मने जायेंगे जब तलक जैसे तैसे करके विवाह के लिए एक लड़के का जुगाड़ ना हो जाये ....!!
ReplyDeleteबेचारी 'रह' जाने से नहीं कभी कभी 'ब्याह' जाने के बाद भी होती है और उसके बाद अधिक होती है. विवाह एक संस्था है जिसे कि प्रकृति के नियमों के अनुसार परिवार संस्था के लिए बनाया गया है. अभी बहुत सफर बाकी है, आपका आत्मविश्वास काफी है, उसके लेकर अपने पथ पर बढे. सुयोग्य साथी किसी के ढूढने से नहीं बल्कि खुद ब खुद मिल जाया करते हैं.
ReplyDeleteआपके आलेख ने छू लिया....
ReplyDeleteस्वयं से लेकर अपने आस पास ऐसे ही घटनाक्रमों,परिस्थितियों को घटित होते देखा सदैव.....सच कहूँ तो जबतक मन मस्तिष्क कोमल संवेदनशील था,इन बातों से बड़ा ही कष्ट हुआ करता था...क्षोभ से मन भरा रहता था....
परन्तु उम्र के इस तीसरे पड़ाव पर आकर जब उन घटनाओं का पुनर्मूल्यांकन करती हूँ तो लगता है कि इन सब ने दिल को जितना तोडा ,उससे न जाने कितना गुणा धैर्य और हिम्मत को परिपुष्ट किया...
यदि वह सब न सहा होता तो जीवन के बड़े बड़े विषम परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता भी न रही होती...
यह नहीं कहूंगी कि लड़कियों के प्रति भेद भाव का यह भाव किंचित भी सराहनीय या उचित है...पर इससे मुक्ति की युक्ति मुझे यही दीखती है कि लड़कियां हर प्रकार से स्वयं को दृढ व सक्षम करें और अपने जीवन से जुड़े प्रत्येक स्त्री में भी प्रतिकूल परिस्थितियों में न डिगने का साहस भरते हुए उनके प्रति सम्मान का भाव रखें...जब स्वयं माता बने तो सतत सजग रहें अपनी पुत्री को सबला बनायें....
दुनिया को बदलने की अपेक्षा रखने से पहले हमें स्वयं को बदलना होगा.....
आपके आलेख ने जेहन में सोयी बहुत सारी यादें जगा दीं....जिन गुणों के लिए लड़कों की तारीफ करते ,लोग नहीं अघाते...वही गुण लड़कियों के अवगुण बन जाते हैं...इतना पढ़ कर क्या करेगी...घर ही तो संभालना है....ऐसी पढाई किस काम की,खाना बनाना भी नहीं आता और फिर दूसरी लड़कियों की सुगढ़ता के किस्से बढा चढा कर सुनाये जाते हैं...पढाई के साथ साथ अगर समाज द्वारा परिभाषित स्त्रियोचित गुण ना हों...फिर तो उसका फर्स्ट क्लास क्या गोल्ड मैडल लाना भी व्यर्थ है.
ReplyDeleteलेकिन समाज के यही व्यंग्बान उनकी इच्छाशक्ति को और मजबूत करते हैं...उनकी आलोचनाओं में तप उनका व्यक्तित्व और भी खरा बनता है.जब उनके निखरे व्यक्तित्व की आंच नहीं सही जाती तो एक बेचारी का तमगा लगा देते हैं.
क्या समाज संयोजित परिणय ही अंतिम अभीष्ट है ?
ReplyDeleteजब एक लड़का कुवारा रह जाता है तो कहा जाता है कि वो खुद शादी नही करना चाहता है ,और कोई लडकी अगर अपनी इच्छा से अविवाहित जीना चाहती है तो समाज में उसके अवगुण प्रचारित किये जाते है
ReplyDeleteकिन्तु लड़के कि शारीरिक कमियों को या उसके अवगुणों को उसका आदर्श बताया जाता है |
शादी की नियति का तो पता नहीं होता और लोग शादी को लड़की की नियति मानते हैं । शादी करना या ना करना अपना फैसला होना चाहिये लेकिन यहाँ तो शादी जो नहीं करते उनको बहिष्कृत किया जाता हैं । ना जाने कितने अविवाहित लोग पुरूष और स्त्री दोनों बहुत से सामाजिक उत्सवो मे केवल इस लिये नहीं शामिल होते क्युकी उनसे बस एक ही सवाल पूछा जाता हैं "शादी " ?? हाँ जो पुरूष अविवाहित होते हैं "वो करते नहीं " !!और जो स्त्री अविवाहित होती हैं "उसकी होती नहीं " !!
ReplyDeleteबालीबोड के रजकुमार और राजनीति के राजकुमार की भी हो नही रही है शादी
ReplyDeleteअब क्या करे?
लेख के अंतिम वाक्य में:
ReplyDelete"उनकी नज़रों में मैं बेचारी हूँ और मेरी नज़रों में वे बेचारे हैं"
आपने जो कहा है उसी पर द्रढ़ रहें - वह दिन दूर नहीं जब बेचारे आपके आगे नतमस्तक होंगे, ईश्वर आप पर कृपा बनाये रखें - दिल से दुआ और शुभकामनाएं.