जिस तरह से 'वंदे मातरम्' पर उलेमाओं के फ़तवे को लेकर इन दिनों हंगामा बरपा है, उसे देखकर यह कहना क़तई गलत न होगा कि "और भी गम है जमाने में 'वंदे मातरम् पर फ़तवे' के सिवा... सबसे ज़्यादा हैरत की बात यह है कि 'वंदे मातरम्' देश से जुड़ा गीत है (फ़िलहाल इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में जाने की ज़रूरत नहीं), इसलिए इसके खिलाफ फ़तवा जारी कर माहौल को खराब करने को किसी भी सूरत में जायज़ नहीं ठहराया जा सकता...
अगर फ़तवा जारी कर...मुसलमानों से अपने हर बच्चे को तालीम दिलाने की बात की जाती तो जाए तो... खुशामदीद...क्योंकि मुसलमान शिक्षा के मामले में बेहद पिछड़े हुए हैं...इस वजह से उनकी सामजिक और आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है...
अगर फ़तवा जारी कर...अगर मुस्लिम औरतों की हालत बेहतर बनाने पर ज़ोर दिया जाए तो...खुशामदीद...क्योंकि मुस्लिम औरतों की हालत बेहद दयनीय है...मर्द को यह हक़ हासिल है कि वो कभी भी चार निकाह कर सकता है...और कभी भी तलाक़ के तीन लफ्ज़ बोलकर अपनी बीवी को घर से निकाल सकता है...
अगर फ़तवा जारी कर...जेहाद से जुडी तथाकथित प्रचलित बातों पर लगाम लगाई तो...खुशामदीद...क्योंकि आम प्रचलन में जो बातें हैं उनके मुताबिक़ जेहादी मर्दों को जन्नत में हूरें, जन्नती शराब और एशो-आराम की ऐसी ही चीज़ें मिलेंगी...(जन्नत में औरतों को क्या मिलेगा इसका कोई ज़िक्र नहीं है, शायद जन्नत सिर्फ़ मर्दों के लिए ही होगी...औरतें यहां भी नर्क भोगें और वहां भी...औरत होने की यही सज़ा है...) इसमें क्या सही है और क्या ग़लत?...उलेमाओं को इस बारे में फ़तवे जारी कर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए...ताकि कंफ्यूज़न दूर हो...
आज देश के मुसलमानों को शिक्षा और रोज़गार की ज़्यादा ज़रूरत है... इसीलिए सवाल यह है कि मुसलमानों की इन बुनियादी ज़रूरतों की तरफ़ ध्यान दिया जाना चाहिए या फिर 'वंदे मातरम्' का मुद्दा उठाकर उन्हें देश के बहुसंख्यकों से अलग करने की कोशिश करनी चाहिए?
'वंदे मातरम्' पर देवबंद का रुख़ सबको मालूम है...इसके बावजूद 'वंदे मातरम्' के खिलाफ़ बार-बार फ़तवा जारी करने का मक़सद क्या है...? यह सवाल भी ख़ुद कई सवाल पैदा कर रहा है, जिसका जवाब सिर्फ़ फ़तवा जारी करने वाले ही बेहतर दे सकते हैं...
-फ़िरदौस ख़ान
पाठक ध्यान दे फिरदौस एक महिला हैं , कमेंट्स मे बराबर उनको भाई कह कर संबोधित किया जा रहा हैं ।
सुमन
नारी ब्लॉग मोडरेटर
पाठक ध्यान दे फिरदौस एक महिला हैं , कमेंट्स मे बराबर उनको भाई कह कर संबोधित किया जा रहा हैं ।
सुमन
नारी ब्लॉग मोडरेटर
thanks kae allawa koi alfaaz nahin haen itnae sadhey huae aalekh par
ReplyDeletejai hind vandaemaatrm aur jan gan man par jab koi duvidha hotee haen to lagtaa haen log kyun nahin samjhtey
फरदौस भाई बहुत सही लिखा है आपने। सलाम करता हूँ आपके जज्बे को। बहुत ही सटिक बात कही आपने
ReplyDeleteआपने बिल्कुल सही कहा है...एक-एक लफ्ज़ से सहमत...
ReplyDeleteमिथिलेश
ReplyDeleteनारी ब्लॉग पर केवल नारी की ही पोस्ट आती हैं
bahut sahi likha aur aapki kalam se to aur bhi achchha hua, kyonki hamari maansikata abhi badali nahin hai. agar main likhati to shayad kuchh logon ko bura lagata ki main alochana karane vali kaun hoti hoon. aap aur sab mere likhane ke ashay ko samajh rahe honge.
ReplyDeletesukriyaa sahi likha ek dum 100% aur unlogo ka bhi jo aapki baat se sahmat hain.
ReplyDeleteapas mai bhai bhai ko ladane pe tule hain ye loog
desh ki tarakki inhe pasand nahi
lagaan ka geet yaad aaya
baar baar haan bolo yaar haan apni jeet ho unki haar ho koi hamse jeet na paaye..baade chalo baade chalo....
aur jo badna jaante hai woh inki baat par nahi aate
bahut shi likha hai buniyadi jrurte hi jutana kathin ho rha hai to aise ftvo ka kya aouchity?
ReplyDeletebhukhe pet bhjan na hoy gopala .
kuch isi tarh ka hashra hoga kabhi .
फिरदौस भाई
ReplyDeleteआपका यह पोस्ट पढ्कर मै पूरी तरह से नतमस्तक हूँ ........आपके बहुत ही नेक ख्याल है !
बिल्कुल इन सब मुद्दाओ पर पहल होनी चहिये!
ओम आर्य
ReplyDeleteनारी ब्लॉग पर केवल नारी की ही पोस्ट आती हैं
Bahut Achha Likha Hai ! Badhaai !!
ReplyDeleteये हमारे देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ पर येन केन प्रकारेण जरूरी चीजों से हमेशा लोगों का ध्यान भटकाया जाता है। और बेवकूफ जनता आपस में सिर फुटौवल करने पर तुल जाती है।
ReplyDelete------------------
और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।
बिलकुल सही सवाल उठाया आपने. धन्यवाद. ऐसी ही लौ जगाए रखें.
ReplyDeleteइस थकेले विवाद को आज हवा देने की कोई ज़रूरत नहीं थी, और न ही ऐसा कोई प्रसंग बन रहा था. पर
ReplyDeleteधार्मिक झगड़े क्यों उठाए जाते हैं? लोग जानने लगे हैं कि उन की रोटी महंगी हो गई है यह बात शोर में दब जाए।
आपने जितने सुझाव दिए उनको अमली जामा पहनाने के लिए हिम्मत की ज़रुरत भी है और मुसलामानों के प्रति प्यार की भी. हम सब जानते हैं की इन फतवाचियों में कितना प्यार और कितना साहस है.
ReplyDeleteबेरीढ़ के लोग क्रान्ति नहीं कर सकते वे पहले अमरीकी हथियारों से रूस के नाम पर अफगानों को मार सकते हैं और बाद में चीनी हथियारों से अमरीका के नाम पर पर. चाहे छुरा तरबूज पर गिरे चाहे तरबूज छुरे पर आखिर में दोनों बार मरा गरीब अफगान मुसलमान ही.
माफी चाहूगाँ रचना जी ऐसा गलती से हो गया, मुझे पता नहीं था।
ReplyDeleteखुशआमदीद...।
ReplyDeleteअफ़सोस इस बात का है कि इन मुल्ला हजरात को मुस्लिम समुदाय की तरक्की, औरतों के मानवाधिकार, बच्चों की शिक्षा आदि के बारे में कुरआन शरीफ़ में कुछ लिखा हुआ दिखाई ही नहीं देता है। उन्हें सिर्फ़ एक यन्त्र हाथ लगा है जो बताता है कि अल्ला मियाँ किन बातों से नाराज हो जाते हैं और इस्लाम को किन बातों से नापाक होने का खतरा है।
बाकी बातों के लिए कुछ पढ़े लिखे लोगों से उम्मीद करिए। इन मूढ़ देवबन्दियों से नाहक उम्मीद पाल रही हैं।
firdos ji
ReplyDeletebahut sahi farmaya hai aapne.but u know what is the problem with we people of india we wright, we debate but never try to put our affort to root out this problem. how many of those who r here participate in social cause, we always think that Ashfaq ullah khan gar paida hon to padosi ke ghar me. do u know why i took this name becoz everybody says bhagat singh paida hon par ashfaq bhai bhi utane hi bhartiy the jitne bhagat singh.
aaj hame bhagat singh se jyada ashfaq bhai jaise log chahiye jo apnai com ko samjhaye unhe bataye ki bhrtiyata kya hoti hai deshprem kya hota hai jo rah se bhatake muslim yuvao ke liye ek role model bane.
shayad kuch jyada hi likh diya. sahi hai na
एक ओर वन्देमातरम् पर फतवा और दूसरी ओर वन्देमातरम् विरोधियों का पुतला जलाया जाना - ये दोनों ही सरासर गलत हैं। सही तरीका यह है जो फिरदौस जी ने अपनाया है। जिस दिन इन कौम के ठेकेदारों को पता चल जायेगा कि जनता में अपनी खुद की भी समझ है और वह उनके फतवों से न तो प्रभावित होती है और न ही उनकी कोई कद्र करती है उस दिन ये इस प्रकार से सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कवायद छोड़ देंगे। अपने अनुयायियों को भेड़-बकरी सदृश हांकना तब ही बन्द हो सकता है जब जनता शिक्षित हो जाये। पर ये लोग तो अंग्रेज़ी, गणित, विज्ञान,हिन्दी व संस्कृत पढ़ाने का भी विरोध करते हैं! इस लिये ऐसे लोगों की बातों की क्या परवाह की जाये !
ReplyDeleteफ़िरदौस जी, आपने सही कहा है यही सही तरीका है... मुस्लिमों की सबसे बडी कमज़ोरी यही है कि उन्होने सारे इस्लाम का ठेका मुल्लाओं को दे दिया है उन्हे किसी चीज़ से कोई मतलब नही है... जो मुल्ला जी ने कह दिया वो सही है चाहे उसका कुछ भी मतलब हो हम तो उसी को मानेंगे....
ReplyDeleteतलाक की बात पर मैं आपसे सहमत नही हूं मैं नही जानता की आपको इसके बारे में पुरी जानकारी है या नही...
लेकिन सिर्फ़ तीन बार तलाक कहने से तलाक नही हो जाता है इसका पुरा एक तरीका है====
जिसका खुलासा मैं हदीसों और कुरआन की आयतों के साथ करूगां बहुत जल्द....
वैसे इस लेख का ज़िक्र मैनें अपने लेख में किया है...
http://qur-aninhindi.blogspot.com/2009/11/no-indian-muslim-is-patriostic.html
firdaus saheba,asa,sahi mauqe se bilkul sahi baat kahi aapne.jab logon ko thodi khhamoshi mahsoos hoti hai to aatishbaazi ki tayyari shuru ho jaati hai.
ReplyDeletemaaf keejiyega main talaq wali baat par kaashif sahab se sahmat hoon.allah pura mauqa deta hai ke insaan apni ghhalti sudhar le.
bahar haal is lekh ke liye mubarakbad qubool karen.