जब भी नारी की बात होती हैं तो अबला - सबला की बात होती हैं । क्या जरुरी हैं की हम नारी को इन दो शब्दों मे ही परिभाषित करे । हर व्यक्तित्व मे कहीं सख्ती होती हैं , कहीं नरमी होती हैं और वही उस व्यक्ति की पूर्णता होती हैं । मजबूती और कमजोरी दोनों हर इंसान मे साथ साथ ही होती हैं । फिर क्यूँ अबला और सबला की बात होती हैं । मनुष्य क्यूँ नहीं मानी जाती नारी ।
और
अबला और सबला के लिये पुल्लिंग शब्द क्या प्रयोग होते हैं ?? अगर होते हैं तो ज़रा बता दे और अगर नहीं होते हैं तो क्यों नही हैं ।
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अबला और सबला के लिये पुल्लिंग शब्द क्या प्रयोग होते हैं ?? अगर होते हैं तो ज़रा बता दे और अगर नहीं होते हैं तो क्यों नही हैं ।
विचारणीय बात
ReplyDeleteकही यह जाल तो नही है
निर्बल और बली!
ReplyDeleteनिर्बल और सबल
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यहाँ भी विमर्श की गुंजाइश है??????
रचना जी, सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा पुरुष थे, और वैदिक काल में वर्णाश्रम की व्यवस्था और समस्त मानव जाति के पद निर्धारक भी पुरुष ही थे. लेकिन ये तमाम नियंता स्त्री की ताकत को पहचानते थे. जानते थे कि स्त्री के बिना उनका अस्तित्व ही अधूरा है.सृष्टि की रचना स्त्री के बिना कैसे हो सकेगी? लिहाजा आरम्भ से ही पुरुषों ने खुद को सर्वोच्च पद दिया और स्त्री को दोयम दर्जे में डाल दिया. ये अबला-सबला भी उन्हीं की देन है ताकि स्त्री अपनी ताकत को पहचान के आवाज़ न उठा सके.वरना क्या पुरुष निर्बल और सबल नहीं होते? सारे पुरुष केवल बलबान ही होते हैं?
ReplyDeleteहमारे समाज में सभी नियम-उपनियम, आचार-संहिताएँ, संस्कार और यहाँ तक कि भाषा और शब्दावलियाँ भी पुरुषों की बनायी हुयी हैं. अब उन्होंने कह दिया कि नारी या तो अबला होती है या सबला, तो होती है. प्रश्न तो यह भी है कि हमारे देश में राष्ट्रपति क्यों होते हैं? इसके स्थान पर अधिक तटस्थ शब्द "राष्ट्रप्रमुख" क्यों नहीं प्रयुक्त होता? "न्यायमूर्ति" यदि कोई महिला हो तो उसे क्या कहेंगे? हर राष्ट्र का एक राष्ट्रपिता होता है राष्ट्रमाता क्यों नहीं होती? यदि राष्ट्रपति की पत्नी प्रथम महिला होती है तो क्या महिला ’राष्ट्रपति’ के पति प्रथम पुरुष कहलायेंगे?
ReplyDeleteवंदना जी ने मेरीबात कह दी है .
ReplyDeleteइन्तेज़ार करिए ,और प्रतिरोध भी .सब मुहावरे बदल जायेंगे .
इसके पुर्लिंग मे हम इस्तेमाल करते हैं: फलाना ढिकाना!!
ReplyDeleteउ प्र कोर में:
उ फलनवा कहिस!!....उ ढिकनवा कहिस!!
हमारे समाज में मौजूद भेदों और अन्तरो की वजह से यह शब्द प्रचलित है जिस दिन यह भेद ही ख़त्म हो जाएगा ये शब्द भी मिट जायेंगे, मगर क्या यह होगा कभी ? नारी भी कहीं न कहीं इसके लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है !जो बाते एक नारी युवावस्था में कहती, करती है, प्रौडावस्था में सब भूल जाती है !
ReplyDeleteये तो विशेषण हैं, इनको कहीं भी प्रयोग कर सकते हैं. पुरुष के लिए भी हैं न, निर्बल और सबल. लेकिन सिर्फ नारी के लिए ही प्रयुक्त किये जाते हैं, इन्हें उसी तरह से बदलना होगा जैसे कि किसी समय में "चेयरमैन" शब्द प्रयोग किया जाता था. चाहे वह महिला हो या पुरुष. 'चेयरपर्सन" को लाया गया. अगर चेयरमैन है तो चेयर-वूमन भी प्रयोग किया जा रहा है. आवाज उठी है तो गूँज बन कर इसका निर्णय करने के लिए भी कुछ लोग आगे आयेंगे. हाँ स्वीकार करने में समय लग सकता है लेकिन ये लेबल तो हट जाएगा.
ReplyDelete"मनुष्य बलि नहीं होत समय होत बलवान"
ReplyDeleteइस मे बलि और बलवान मनुष्य के लिये हैं नारी भी मनुष्य ही हैं { शायद }
अबला - सबला या निर्बल - बली ,शारीरिक शक्ति के हिसाब से निर्धारित होने वाले शब्द नहीं...बल्कि इसे यूँ कह सकते हैं कि
ReplyDeleteप्रताड़क/प्रताडिका = सबला / बली
पीड़ित /पीडिता = अबला / निर्बल...
समाज में नजरें घुमा कर देखिये....चारों तरफ ऐसे असंख्य पात्र मिल जायेंगे दोनों ही लिंगों में.....
दुनिया संसार केवल एक लिंग से नहीं चल सकता ...दोनों की ही आवश्यकता है...
दोनों ही लिंगों के लिए आवश्यकता यह है कि वह अपने अंतस के शोषक प्रताड़क का नाश करें,तभी जिंदगियां सुन्दर सुखद हो पाएंगी.....
मनुष्य क्यूँ नहीं मानी जाती नारी ।
ReplyDeleteइस वाक्य को पढ़ कर मुझे एक लेख की कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं...लिखा था की नारी अधि मनुष्य होती है और आधी कल्पना ..क्यों की उसे दया ममता, करुना की मूर्ति कहा जाता है..जन्म से ही ये भावः उसमें आरोपित किये जाते हैं.