नारी को नारी की जगह दिखानी बहुत जरुरी हैं . और नारी को ये जगह केवल और केवल उसके शरीर को याद दिला कर ही दिखाई जा सकती हैं . विषय कोई भी हो , बहस किसी भी चीज़ के ऊपर हो लेकिन अगर बहस पुरूष और स्त्री मे होगी तो पुरूष बिना स्त्री के शरीर की बात किये उसको कैसे जीत सकता हैं क्युकी वो सोचता हैं की "नंगा कर दो फिर देखे साली क्या करती हैं , बहुत बोल रही हैं " इस लिये जरुरी हैं की हम अपनी बेटियों को "नंगा " किये जाने के लिये मानसिक रूप से तैयार कर दे ताकि आने वाली पीढी की बेटिया अपनी लड़ाई नंगा करने के बाद भी लड़ सके और ये समझ सके की जो उन्हे नंगा कर रहा हैं वो उन्हे नहीं अपने आप को "नंगा ' कर रहा हैं .
२ साल से हिन्दी ब्लोगिंग मे हूँ और यही देख रही हूँ सभ्य और सुसंस्कृत लोग कैसे अपने पुरूष होने को prove करते हैं .
लेकिन तारीफ़ करनी होगी ब्लॉग लेखन करते पुरुषों की क्युकी उनमे एका बहुत हैं और कहीं से भी एक दो आवाजो को छोड़ कर चन्द्र मौलेश्वर प्रसाद की टिपण्णी के विरोध मे कोई आवाज नहीं आयी हैं पुरूष समाज से . क्या मौन का अर्थ स्वीकृति हैं . रही बात ब्लॉग लिखती महिला के विरोध करने की और एक जुटता से इसके विरोध मे अपनी आवाज उठाने की तो दोष उनका उतना नहीं हैं जितना उनको "सिखाने और कन्डीशन " करने वालो का हैं ।
समय बदलेगा और जरुर बदलेगा उस दिन जिस दिन हर महिला उठ कर किसी भी नारी के प्रति कहे गए अप शब्दों मे पूरी नारी जाति का अपमान देखेगी । गंदगी को इग्नोर करना या ये कहना की कीचड मे पत्थर मारने से कीचड अपने ऊपर आएगा से ज्यादा जरुरी हैं गंदगी को साफ़ करना चाहे हमारे हाथ इस प्रक्रिया मे कितने भी गंदे क्यों ना हो जाए ।
लेकिन तारीफ़ करनी होगी ब्लॉग लेखन करते पुरुषों की क्युकी उनमे एका बहुत हैं और कहीं से भी एक दो आवाजो को छोड़ कर चन्द्र मौलेश्वर प्रसाद की टिपण्णी के विरोध मे कोई आवाज नहीं आयी हैं पुरूष समाज से . क्या मौन का अर्थ स्वीकृति हैं . रही बात ब्लॉग लिखती महिला के विरोध करने की और एक जुटता से इसके विरोध मे अपनी आवाज उठाने की तो दोष उनका उतना नहीं हैं जितना उनको "सिखाने और कन्डीशन " करने वालो का हैं ।
समय बदलेगा और जरुर बदलेगा उस दिन जिस दिन हर महिला उठ कर किसी भी नारी के प्रति कहे गए अप शब्दों मे पूरी नारी जाति का अपमान देखेगी । गंदगी को इग्नोर करना या ये कहना की कीचड मे पत्थर मारने से कीचड अपने ऊपर आएगा से ज्यादा जरुरी हैं गंदगी को साफ़ करना चाहे हमारे हाथ इस प्रक्रिया मे कितने भी गंदे क्यों ना हो जाए ।
सही लिखा और ज़रूरी लिखा । चोखेर बाली पर हुई व्याख्या मे इसे जोड़ दें तो शायद एक सटीक व्याख्या हो जाएगी, इरादों के नाम पर अब छिपाने को कुछ नही बचा रह गया !
ReplyDeleteसमय बदलेगा और जरुर बदलेगा उस दिन जिस दिन हर महिला उठ कर किसी भी नारी के प्रति कहे गए अप शब्दों मे पूरी नारी जाति का अपमान देखेगी
ReplyDeletethese lines are realy mindblowing
but what i need to say let we have transperent approach to resolve any issue irrespective of gender
Thanks Rachna for writing this. I agree with you and Sujatha on this matter.
ReplyDeleteआपने सही लिखा है, नारी को सदा नारी बना रखकर ही तो पुरुष शासन करता चला रहा है. नारी को नारी कि जगह दिखानी ही होगी और एक इस आवाज के साथ कई आवाजें साथ आ रही हैं तो कल यह एक जुलूस बन कर नारों में तब्दील होते देर नहीं लगेगी. अभिव्यक्ति सबका अधिकार है और हम तो उनकी बात को उचित स्थान दिख ही सकते हैं.
ReplyDeleteसहमत हूं आपसे। इग्नोर करना समस्या का हल कभी नहीं हो सकता।
ReplyDeleteरचना ....सुजाता .....मैं आपसे सहमत हूँ.....ये भी कोई बात हुई ........इसे अनदेखा नही किया जा सकता है...... किसी भी कीमत पर.....
ReplyDeleteमेरी टिप्पणी को लेकर कुछ गलतफहमी फैलाई जा रही है। जब गालियों की बात उठी और कुछ सशक्त महिलाओं ने कहा कि हम भी पुरुषों की तरह छूट ले सकते हैं तो मेरी प्रतिक्रिया थी कि उन्हें कौन रोक सकता है। ज़रूर कीजिए और आगे बढिए।
ReplyDeleteसुजाता जी के विचार हैं कि-
"जैसे स्वाभाविक इच्छा किसी पुरुष की हो सकती है -सिगरेट पीने ,शराब पीने , दोस्तों के साथ ट्रेकिंग पर जाने,अपने करियर मे श्रेष्ठतम मुकाम तक पहुँचने और उसके पीछे जुनून की हद तक पड़ने,या फ्लर्ट करने, या गाली देने, या लड़कियों को छेड़ने ,या गली के नुक्कड़ पर अपने समूह मे खड़े रहकर गपियाने ...............
ठीक इसी तरह ऐसे या इससे अलग बहुत सारी इच्छाएँ स्त्री की स्वाभाविक इच्छाएँ हैं।
"जब आप भाषा के इस भदेसपने पर गर्व करते हैं तो यह गर्व स्त्री के हिस्से भी आना चाहिए। और सभ्यता की नदी के उस किनारे रेत मे लिपटी दुर्गन्ध उठाती भदेस को अपने लिए चुनते हुए आप तैयार रहें कि आपकी पत्नी और आपकी बेटी भी अपनी अभिव्यक्तियों के लिए उसी रेत मे लिथड़ी हिन्दी का प्रयोग करे और आप उसे जेंडर ,तमीज़ , समाज आदि बहाने से सभ्य भाषा और व्यवहार का पाठ न पढाएँ। आफ्टर ऑल क्या भाषा और व्यवहार की सारी तमीज़ का ठेका स्त्रियों ,बेटियों ने लिया हुआ है?”
यह प्रसन्नता की बात है कि इस छूट को लगभग सभी लोगों ने नकारा है जिनमें सिधार्थ ने कहा है कि "उम्मीद के मुताबिक प्रतिक्रियाएं इस छूट के विरुद्ध रही। मनिशा जी ने भी कहा है कि महिलाओं को इस तरह का सशक्तिकरन नहीं चाहिए जिससे वो पुरुषों की बुराई को अपनाएं।
मैं आज की चिट्ठाकार विवेकजी का आभारी हूं जो उन्होंने इस संदर्भ के सभी चिट्ठे एक जगह जमा करके सुविधा पहुंचाया। संदर्भ से काट कर बात का बतंगड बना कर चरित्रहनन करना सरल है, बात को समझना अलग बात है।
आप ने जो कहा वो केवल और केवल एक गलत मानसिकता हैं स्त्री स्वंत्रता / सश्क्तिकर्ण के विरुद्ध.
ReplyDeleteआप ने चर्चा मंच का इस्तमाल अपनी गलत धारणा को फेलाने के लिये किया . सुजाता और सिदार्थ मे क्या वाद विवाद चल रहा था वो उनके ब्लॉग तक सिमित था उसका केवल और केवल सन्दर्भ ही चर्चा पर आया और आप की टिपण्णी उनके ब्लॉग पर ना आकर चर्चा ब्लॉग पर आई . आपने जो टिपण्णी दी वो नितांत ग़लत थी क्युकी आप ने सीधा सीधा "रेड लाईट " एरिया मे जाने को कहा उन महिला को जो पुरूष की बराबरी करती हैं गली देने मे .
अगर पुरूष गली देगा तो अब गली खायेगा भी हम अपनी बेटियों को यही बताना चाहते हैं की अगर तुम से कोई ग़लत जबान मे बोले तो उसका उत्तर उसी जबान मे दो जो तुम से बोली गयी हैं .
अगर आप वाद विवाद अगर आप वाद विवाद करते हैं तो कृपा करे नारी की शरीर संरचना को बीच मे ला कर अपने अहेम की तुष्टि ना करे . आप को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार हैं या तो अपने ब्लॉग पर अपनी बात कहे या वहा कहे जहाँ विवाद चार रहा हैं .
कमेन्ट को यहाँ बिना मकसद और बीच मे नहीं डाला गया हैं
और आप की अपनी कही हुई बात की
"संदर्भ से काट कर बात का बतंगड बना कर चरित्रहनन करना सरल है, बात को समझना अलग बात है। "
को आप अपनी ऊपर भी लागू करे . और रह गयी बात विवेक जी की तो चर्चा मंच पर जहाँ उन्होने सब लिंक एक साथ दिये हैं वही ये भी कहा हैं की वो गाली प्रकरण से "साधू साधू " कह कर निकल गए हैं .
पर मै ऐसा नहीं कर सकती
मेने सन्दर्भ सहित यहाँ लिखा हैं और चर्चा पर भी कहा हैं .
नारी का शरीर कोई खिलौना नहीं हैं और शरीर की क्या दुर्दशा कोई कर सकता उस से बहुत ऊपर उठ चुकी हूँ
सी एम परशाद जी
ReplyDeleteआपने जो कहा वह बहुत स्पष्ट कहा , वहाँ गलतफहमी की कोई गुंजाइश नही छोड़ी आपने।अब आप कुछ भी करके रेड लाइट एरिया खोलने के अपने सुझाव का स्पष्टीकरण नही दे सकते।बस अफसोस कर सकते हैं कि आपसे अभद्रता हुई।
बहुत बढ़िया पोस्ट पढ़कर अच्छी लगी. धन्यवाद. नववर्ष की ढेरो शुभकामनाये और बधाइयाँ स्वीकार करे . आपके परिवार में सुख सम्रद्धि आये और आपका जीवन वैभवपूर्ण रहे . मंगल्कामानाओ के साथ .
ReplyDeleteमहेंद्र मिश्रा,जबलपुर.
'लेकिन तारीफ़ करनी होगी ब्लॉग लेखन करते पुरुषों की क्युकी उनमे एका बहुत हैं और कहीं से भी एक दो आवाजो को छोड़ कर चन्द्र मौलेश्वर प्रसाद की टिपण्णी के विरोध मे कोई आवाज नहीं आयी हैं पुरूष समाज से।'
ReplyDeleteयदि किसी टिप्पणी का विरोध न हो तो इसका अर्थ यह नहीं है कि सभी चिट्टाकार उस टिप्पणी से ठीक समझते हैं।
हिन्दी चिट्ठजगत में, टिप्पणी पर कुछ लिखने पर, अक्सर बेकार का विवाद खड़ा हो जाता है। इसीलिये मैं इससे बचता हूं। उस टिप्पणी का सन्दर्भ ने देते हुए अपनी बात अलग से लिखता हूं। जो अपने परिपेक्ष में उस टिप्पणी को नकारती है। जहां तक मैं समझता हूं, बहुत सारे चिट्टाकार इसी नीति पर विश्वास करते हैं।
हां यह भी सच है कि मैंने एक दो बार टिप्पणी का जवाब दिया, जैसे कि ' एक शब्द, एक हीरो, एक जीरो' या ' डकैती, चोरी या जोश या केवल नादानी' या ' बनेगे हम सुकरात या फिर हो जायेंगे नील कण्ठ' पर यह तब हुआ जब सर से पानी ऊपर से जाने लगा और लगा कि हिन्दी चिट्ठजगत टूट जायगा।
नारी ब्लाग से जुड़े सभी सदस्यों को नववर्ष की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteअगर इस प्रकरण का पटाक्षेप ''वर्ष 2008 के अवसान'' के साथ करते हुए , ब्लागीवूड '' सब की मंगल कामना की आकांक्षा एवं भावना के साथ नववर्ष 2009 '' को खुश-आमदीद कहे तो क्या ज़्यादा आनन्ददायक नही होगा | ज़ेर-ए-बहस विषय की भाषा के सन्दर्भ में मेरा जो अध्ययन है ,उसी के आधार पर मेरा कहना है कि उक्त भाषा के कुछ शब्दों का भाव एवं अर्थ दोनो [ दोनों शब्दों की संधि ना कर अलग अलग जानते बूझते लिखा है ] सापेक्षिक होता है ,केवल और केवल किसी विवाद या वास्तविक झगड़े में ही उनके भावार्थ जीवंत होते हैं वारना वे केवल और केवल '' एक'तकिया कलाम '' से अधिक नही होते |
ReplyDelete" सभी को नववर्ष मंगलमय हो "
सहमत हूं आपसे। इग्नोर करना समस्या का हल कभी नहीं हो सकता।
ReplyDelete