सेंट्रल गवर्मेंट , राज्य सरकारों के साथ मिल कर एक कानून बनाए जाने पर विचार कर रही हैं जिसके तहत "एक विवाहिता " अगर अपने पति के अलावा किसी गैर पुरूष से सम्बन्ध बनाती हैं तो वो कानून दंडनिये अपराध होगा । लेकिन वूमन सैल इस का विरोध कर रहा हैं { क्यूँ इसका कोई जिक्र अखबार की सूचना मे नहीं था सो नहीं बता सकती } ।
अभी तक ये कानून केवल "विवाहित पुरुषों" पर लागू था । अगर कोई विवाहित पुरूष , अपनी पत्नी के अलावा किसी भी पर स्त्री से शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करता हैं तो वो कानून दंडनिये अपराध होता हैं ।
हमारे देश की त्रासदी ये हैं की यहाँ कानून मे तो गुनाहगार को सजा देने का प्रावधान हैं पर समाज मे सजा उसको दी जाती हैं जो गुनाह नहीं करता हैं।
जैसे एक विवाहित पुरूष / स्त्री जो विवाह के बाहर शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं कानून उन्हें दोषी मानता हैं और सजा का प्रावधान रखता हैं
लेकिन हमारा समाज दोषी मानता हैं उस स्त्री या पुरूष को जो विवाहित नहीं हैं पर जिसके साथ एक विवाहित पुरूष /स्त्री सम्बन्ध बनाते हैं ।
एक अविवाहित पुरूष या स्त्री को दोषी माना जाता हैं किसी की शादी के बीच मे आने के लिये जबकि शादी को बनाए रखने की जिम्मेदारी केवल और केवल पति - पत्नी की होती हैं । जिस दिन कोई भी पति या पत्नी अपनी शादी से बाहर जा कर मानसिक या शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करते हैं शादी उसी दिन ख़तम हो जाती हैं लेकिन उसको ख़तम होने का दोष समाज कभी उनको नहीं देता बल्कि इसे केवल और केवल एक गलती माना जाता हैं ।
क्यूँ हमारे समाज के नियम हमारे कानून के नियम से अलग हैं । क्यूँ हम दंडनिये अपराध को केवल "एक गलती कह कर छोड़ देते हैं ।
अब आप अगर आप का मन कह रहा हैं की परिवार भी तो बचाना हैं , बच्चो का भी तो सोचना हैं तो आप इस आलेख को भी पढ़े लिंक १
और कैसे एक ख़बर भ्रान्ति और मजाक बनती हैं जानना हो तो ये पढ़े लिंक २ ये उन लोगो के विचार हैं जो लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी तोर से मान्यता देने के सख्त खिलाफ हैं ।
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
December 15, 2008
हमारे देश की त्रासदी ये हैं की यहाँ कानून मे तो गुनाहगार को सजा देने का प्रावधान हैं पर समाज मे सजा उसको दी जाती हैं जो गुनाह नहीं करता हैं।
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यह खबर मैंने भी पढ़ी । चोरी, डाके, रिश्वत, काले धंधों को तो हम रोक नहीं सकते परन्तु व्यक्ति के नितान्त निजी मामलों में तो टाँग अड़ा ही सकते हैं । पुरुष को यदि किसी अन्य से सम्बन्ध बनाना हो और उसे कानूनी तौर पर सही भी ठहराना हो तो धर्म तो बदल सकता है । स्त्री द्रोपदी, कुन्ती के देश में ही यह सब नहीं कर सकती । उसे कटघरे में खड़ा किया जा सकता है । वैसे क्या यही बहुत नहीं है कि इस समाज में उसे जन्म दिया गया और पाल पोस कर बड़ा किया गया क्योंकि यह भाग्य भी बहुत सी स्त्रियों को नहीं मिलता । खैर, जो भी हो, मुझे लगता है कि निजी नैतिकता निजी ही होनी चाहिए । यदि पति पत्नी को आपत्ति न हो तो जब तक बड़े गुनहगारों के लिए अदालतों के पास समय नहीं है तब तक तो इस पर कार्यवाही करने को स्थगित किया ही जा सकता था । कानून बनाना सबसे सरल काम है, उसपर चलना व चलाना सबसे कठिन है । अभी तो देश की अदालतें करोड़ों टंगे हुए मामलों को ही निपटा लें तो बहुत होगा ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
निजी नैतिकता निजी ही होनी चाहिए ...घघूति जी के इस कथन से सहमत
ReplyDeleteइस कानून का छिद्रान्वेषन करने की जरूरत ही क्या है? निजी और सावॆजनिक नैतिकता की बात भी समझ से परे है। नैतिकता अपने आप में एक दायित्व है, जिसे घर बाहर दोनों जगह निभाना ही चाहिए। इस दायित्व का निवॆहन न करने से अगर कोई प्रताड़ित होता हो तो यह सजा योग्य अपराध भी माना जाना चाहिए। और समानता के इस युग में किसी भी मामले में स्त्री-पुरुष का भेद तो नहीं होना चाहिए।
ReplyDeleteमुझे लगता है इस सम्बन्ध में वर्तमान कानून और प्रस्तावित कानून को गलत समझा गया है। वैसे विवाह संबंधी अपराधो में आईपीसी की धारा 493 से 498 तक में से केवल 493 और 495 में सात वर्ष तक से अधिक की सजा है, और केवल 493 के अलावा सभी जमानतीय अपराध हैं।
ReplyDeleteजहाँ तक परिवार और समाज जिस तरीके से देश में व्यवहार कर रहा है उस के अनेक स्तर हैं। कोई एक सामान्य मान्यता और व्यवहार नहीं है। हम जब बात करते हैं तो सामान्यतः मध्यवर्ग की बात करते हैं।
क़ानून तो स्त्री और पुरुष दोनों के लिए ही समान होना चाहिए.जीवन साथी (स्त्री/पुरुष ) के अनैतिक संबंधों के बाद भी विवाह को बनाए रखना भारतीय समाज की खूबी है और इसे बनाए रखा जाना चाहिए,लेकिन एक सीमा निर्धारित करते हुए. मैंने अपने व्यक्तिगत जीवन में एक ऐसा उदाहरण देखा है जहाँ इन्हीं कारणों से विवाह टूटने के कगार पर था,किंतु पति पत्नी के बीच हुए खुले सम्वाद और समझदारी से न केवल परिवार बचा अपितु वह अब खुशहाल परिवार है. इस केस में विवाह टूटने पर वे दो अबोध बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते जो निर्दोष थे.
ReplyDeleteघुघूती बासूती का यह तर्क मेरी समझ में नही आया " मुझे लगता है कि निजी नैतिकता निजी ही होनी चाहिए । यदि पति पत्नी को आपत्ति न हो तो जब तक बड़े गुनहगारों के लिए अदालतों के पास समय नहीं है तब तक तो इस पर कार्यवाही करने को स्थगित किया ही जा सकता था।"
ReplyDeleteनैतिकता निजी नही होती सदैव सामाजिक होती है ; कोई भी अनैतिक कार्य जिसमें पति -पत्नी किसहमति होगी अदालत में आयेगा कि क्यों ? समाज सदैव निज -निज लोगों को मिल कर ही बनता है , इससे अच्छा होगा कि जिन समाज को दूसरी विवाह /शादी कानूनन प्रतिबंधित है वहाँ दूसरे विवाह कि अनुमति देदी जाए '| दूसरा विवाह आज के क़ानून से गैर कानूनी है , पर इन कानूनों के आने से पूर्व तो होते हिथे , और इसमं अनैतिक क्या है मैं नही समझ पाता पतनी को धोखा अविश्वास के कुहासे से जीना से तो यही अच्छा है ,|मानसिक तनाव में जीने से तो समाज मुक्त होगा , लोगों को आपणे आप को ही धोखा देने के लिए झूठा धर्म परिवर्तन तो नही ही करना पडेगा ,[ इस विषय पर नारी पर नही सामान्य स्तर के ब्लॉग पर खुली चर्चा होनी चाहिए और इसमे एक चार्चा तय कर लें कि आरम्भ किस के ब्लॉग से हो फ़िर जिस क्रम में लोग उस पर संक्षिप्त टिप्पणी दें उसी क्रम में वे अपने ब्लॉग पर विस्तार से उस पर चर्चा करें शीर्षक एक ही रहेगा -[डैश] के साथ क्रम संख्या बदलती रहे ]
घुघूती बासूती का यह तर्क मेरी समझ में नही आया " मुझे लगता है कि निजी नैतिकता निजी ही होनी चाहिए । यदि पति पत्नी को आपत्ति न हो तो जब तक बड़े गुनहगारों के लिए अदालतों के पास समय नहीं है तब तक तो इस पर कार्यवाही करने को स्थगित किया ही जा सकता था।"
ReplyDeleteनैतिकता निजी नही होती सदैव सामाजिक होती है ; कोई भी अनैतिक कार्य जिसमें पति -पत्नी किसहमति होगी अदालत में आयेगा कि क्यों ? समाज सदैव निज -निज लोगों को मिल कर ही बनता है , इससे अच्छा होगा कि जिन समाज को दूसरी विवाह /शादी कानूनन प्रतिबंधित है वहाँ दूसरे विवाह कि अनुमति देदी जाए '| दूसरा विवाह आज के क़ानून से गैर कानूनी है , पर इन कानूनों के आने से पूर्व तो होते हिथे , और इसमं अनैतिक क्या है मैं नही समझ पाता पतनी को धोखा अविश्वास के कुहासे से जीना से तो यही अच्छा है ,|मानसिक तनाव में जीने से तो समाज मुक्त होगा , लोगों को आपणे आप को ही धोखा देने के लिए झूठा धर्म परिवर्तन तो नही ही करना पडेगा ,[ इस विषय पर नारी पर नही सामान्य स्तर के ब्लॉग पर खुली चर्चा होनी चाहिए और इसमे एक चार्चा तय कर लें कि आरम्भ किस के ब्लॉग से हो फ़िर जिस क्रम में लोग उस पर संक्षिप्त टिप्पणी दें उसी क्रम में वे अपने ब्लॉग पर विस्तार से उस पर चर्चा करें शीर्षक एक ही रहेगा -[डैश] के साथ क्रम संख्या बदलती रहे ]