नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

April 22, 2008

दहेज ...एक पुरानी दीमक

कलम चलाते वक्त याद नही रहता की मैं कौन हूँ , बस याद रहता है वो जो अपनी खुली आंखो से अपने आस पास होता देखती और महसूस करती हूँ

हम नारी होने का दावा करती हैं और नारी समस्या का अवलोकन भी साथ-साथ चलता है पर हम मैं से कितनी है जो हमेशा नारी अत्याचार के पक्ष मैं आवाज उठाती है

मैं दूर नही जाती, अपने घर अपनी ही छोटी बहिन की ही बात आज आपके साथ बाँटती हूँ १६ अप्रैल '०८ को उसके विवाह को आठ साल पूर्ण हुए है मात्र कहने के लिए अपने पति के घर इन आठ सालो में बस कुछ महीने ही बीताये है, कारन वही पुराना घीसा पीटा "दहेज"

अक्सर जब वो अपने सात साल के बेटे के साथ बैठी बाते करती है तों पति हूँ क्या पाया उसने इस विवाह के बदले
वूमेन सेल के चक्कर , कोर्ट और वकीलों की बहस या रिश्तेदरो की बाते ....

आसान नही ऐसी ज़िंदगी जंहा एक लड़की, हाथो में मेहँदी सजा, इक नए परिवेश में जाती है और नए सिरे से अपनी ज़िंदगी को उस माहोल में ढालती है कभी बहु तों कभी पत्नी बन कर , लेकिन क्या ससुराल वालो का फ़र्ज़ नही की उसके लाये समान को तोलने के जगह उसकी मदद करे
अरे, कम से कम औरत होने के नाते ही उसकी सास और ननद इक अच्छा वय्व्हार करे यह कौन सी रीत है की उसे भूखा , हाथ पैर तोड़ उसके, बंद काल कोठरी में मरने के लिय छोड दे

इन्साफ के लिए , औरतो के बचाव के लिए ४९८ नामक धारा तों कानून में है ..पर इन्साफ के लिए कितनी कोर्ट के चक्कर लगाने है यह कंही नही लिखा है ..कितना वकील और कब तक पैसा लेगा यह भी तए नही है

दिल्ली की पटियाला कोर्ट की बात करूँ तों हजारो ऐसे फैसले अभी भी कई सालो से सड़ रहे है और जाने कब वो वंही दम तोड़ देंगे

केवल नुकसान हो रहा है तों उन सताई औरतो का उनके बच्चो के भाविषेयो का जो शायद इसी आस में हर बार कानून के आगे इक अस लिए खडे रहते है की शायद अब आज उन्हे फ़ैसला मिल जाएगा........

फिलहाल इतना ही ओर लिख नही पाऊँगी ...उन बेबस औरतो के चेहरे मुझे रुला रहे है...

कीर्ती वैद्य ....

19 comments:

  1. ye dahez ki pratha kab khatam hogi,humane padhe likhe doctor logon ko dahez lete dekha hai,upar se kehte hai so what,its for her only,i will make new hospital for my wife to do practice after marriage,she will hv to look after the kitchen the house and children to but along with hospital,aur ye log sirf bahar ka kaam karenge,wah re mansikta,vahi kuch kam padhe likhe logon ko sirf ek jodi kapde mein dulhan le jate bhi dekha hai,shaadi bhi registar,koi tam jham nahi.
    but keerti ji i agree,padhi likhi narika jo dahez ke mare bura haal hai,waha gaon ki nari ka haal to kehna bhi mushkil.

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  2. कीर्ति जी
    यह एक नारी की पीड़ा नहीं है । बहुत सी नारियाँ इस तरह के ज़ुल्मों का शिकार होती हैं। नारी को स्वयं को मज़बूत बना कर अपने साथ हो रहे अन्याय का प्रतिकार करना चाहिए।

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  3. कहना आसान है कि नारी इस से ख़ुद लडे पर वही बात है कि जिसको यह लगती है वही इसका दर्द जानता है ..इस बारे में तो लड़के ख़ुद आगे आए ..कि दहेज़ नही लेंगे ..और इस बात पर कायम रहे ..शादी के वक्त कह दिया जाता है कि नही लेंगे और उसके बाद जब मागने का सिलसिला चलता है तो वह ख़त्म होने को नही आता है ..दुःख होता है जब बहुत पढे लिखे कहे जाने वाले परिवार भी यही मांग करते हैं ..इस प्रथा को खत्म होने में पता नही अभी कितना वक्त लगेगा ..

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  4. @ Mehak Ji

    Sahi kha apne pade likho ka ke haal burra hai to gaon ki aurto ka kya kehna...vo to bhed bakri ke tarah dowery ke sang ghar sey vida ke jati hai aur ghado ke tarah sasuraal mein kaam kar ke bhi ghado jitna samaan bhi nahi pa pati....

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  5. pahle baat hoti thi,ladki apne pairon par khadi ho to koi hal nikle.......kaha hai wo hal?
    sahi kaha tumne,nyaay ki baat hai,dhaara hai-chakkar kitne hain,iski charcha nahin......har ek ghar ke baad yahi dekhne ko milta hai.....mujhe nahin lagta shiksha se koi badlaaw aaya hai.mansikta wahin ki wahin hai,to badlaw laana sambhaw kaha?
    haan, naari ko majbuti khud lani hogi,jo naari is daur se -yun kahiye is aag se gujarti hai,wahi jaanti hai.
    kitni drishtiyaa peecha karti hain,kitne sawaal......anyaay ke virodh mein samajik saath ka hona zaruri hai.

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  6. @ shobha ji

    ji bhut se nariyo ka haal bura hai par vo akle nahi lad sakti yeh mera apna experience hai...hum sabhi aurto ko ekjut hona hoga tabhi kuch ho sakta hai..apni he soch ka dyara badhana aur khula karna hoga

    @ Ranju ji

    apki baat bilkul satik hai ke ladko ko bhi agey ana hoga par vo bechare kya karey akhir kaar paise ka laalch unhey iskey virudh khadey he nahi honey deta...jarrurat humari hai to humey he shurwat karni hogi apney beto aur betiyo ko acchey sankar deny ke ..tabhi agey ke pidi kuch naya aur acha karegi...


    thanxs both of u for valubale comments & time

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  7. @ Rashmi di..

    Bhut sahi aur suljhi baat kahi hai apney...sach

    thanxs didi

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  8. यथार्थ। दहेज रूपी रावण आज भी लिल रहा है पता नहीं कितनी नारियों को। और तो और आज का कथित सभ्य समाज ही इसको बढ़ावा दे रहा है।

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  9. @ Prabhakar ji

    Bas hum sabhi ko ek jut ho ise ravan ka samna karna ahi ..

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  10. आप सभी का आभार,
    इस लेख के लिये,

    बडी दु:खद है, एक बडा जबरन जुल्म है, हर नारी पर इसका कुछ न कुछ जख्म है …… पर

    नारायण की नारी
    क्यो बनी नर की नारी
    हर नियम बनते
    मौजूद थी, बहुत सी नारी
    दहेज मांगते लोगो मे भी
    खास कर मौजूद थी,
    कुछ ना कुछ तो नारी ।

    नारी जी, पहले बंद करो, अपने अंदर की माया ।
    आगे चलो बन एक ही काया

    तू ही तो सब जनती, रचती
    देवी माँ नारी

    अब और क्या लिखु,
    बस सुधर और सुधार हे नारी

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  11. ये मामला इतना सीधा नही जितना दिखाई देता है या जितना मान लिया जाता है
    अन्याय तो अन्याय है किसी के भी साथ हो उसका विरोध होना चाहिये
    यदि सब जान्ते है सब मान्ते है कि नारी के साथ अन्याय हो रहा है तो ये अन्याय कब का क खत्म हो गया होता कोई तो है जो नही मानता क्या केवल पुरुष या इस मे नारी स्वय भी शामिल है
    जिअतना दहेज पे लफ्फाजी हो रही है उतना ही
    दहेज दिन ब दिन बढता जा रहा है कहीं तो हम गलत जा रहे है शाय्द मनसिकता पुरानी है तो इअलाज मे समय लगेअगा पर कही हम इलाज गलत तो नही कर रहे मुश्किल ये है कि पुरुष को ही इसका जिम्मेवार ठहराया जाता है जब्कि मात्र ऐसा नही है खुद नारी भी इसके लिये कम जिम्मेवार नही है कौन सा घर है जहाँ नारी नही है कही माँ है तो कही सास कहीँ ननद जरा गौर से सोचिये आस पास देखिये क्या इस रूप मे नारी दहेज लेने के बारे मे क्या विचार रखती है । काफी मामलो मे आप पायेगे कि पुरुषो को दहेज लाने या लेने के लिये उकसाने मे भी नारी का भी हाथ होता है ये जरूर है कि इस पुरुश प्रधान समाज मे। पुरुष की जिम्मेवारी ज्यादा है कि वो कम से कम इस बहकावे मे ना आये प्रन्तू नारियो को पहले आपने अन्दर भी झाकना होगा charity begins at home
    yakiin maaniye mai purusho kaa bachaav nahii kar rahaa bas is tasviir kaa duusaraa pahaluu bhii dikhaane kaa pryatn kar rhaa huu. kripyaa anyathaa naa le kahane ko bahut kuchh hai parntu phir kabhii likhuunga

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  12. कल ही मेरठ मे एक बरात लौटाई गई इसी कारन ,अब शायद ये ख़बर नही बनती ,क्यूंकि ये आम है .....फ़िर भी एक आम धारणा लड़कियों के मन मे ड़ाल दी जाती है शादी ही तुम्हारा परम लक्ष्य है ओर कई बार माँ बाप भी रिश्ता करते वक़्त कुछ चीक्जो को देखकर भी अनदेखा कर देते है ..आप किसी इन्सान से दो तीन बार मिलेगे तो उसकी नीयत साफ तो नही पर उसमे कही कोई गडबडी तो भांप संकते है ,ऐसे लोगो से रिश्ता ही न जोड़े ....ओर जब ख़ुद के घर मे किसी बेटे की शादी हो तो वैसा ही आचरण करे जैसा आप दूसरे से अपेक्षा रखते है ,कदम रखिये ...रस्ते बनते चले जायेंगे .....

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  13. दहेज से अकेले नही लडा ज सकता है, और ना ही ससुराल पक्ष की प्रताडना से, खासकर अगर लडकी आर्थिक रूप से आत्म निर्भर नही है.
    कुछ इस तरह का समाजीकरण हुया है कि माता-पिता और लडकिया खुद भी अपने जीवन का आदि अंत, विवाह को मान लेती है, और इस लिहाज़ से पढने-लिखने मे मेहनत नही क़रती. किसी तरह से डिग्री मिल भी जाती है तो रोज़गार के लिये उतने हाथ-पैर नही मारती, और जो मारती भी है, उन्हें मौज़ूदा हालात मे बहुत आसानी से नौकरी नही मिलती, पर इतना ज़रूर है, कि आत्म-निर्भरता, सही फैसले लेने की द्रिस्टी, आत्म्-विश्वास भी इसी ज़द्दो-जहद मे आता है.
    इसीलिये मै फिर से कहुंगी कि लडकियो को और उनके अभिवाहको को चाहिये की हर सम्भव प्रायास करें कि कम से कम आर्थिक आत्म-निर्भरता हासिल हो.
    दूसरा, लडकिया अपने माता-पिता के उपर अपने विवाह के लिये आश्रित न रहे. अपने विवाह मे वर चुनने से लेकर, शादी कैसे हो, और पिता की सम्म्पति मे उनके हिस्से का कैसे उपयोग हो, इस बारे मे सोचे, सक्रिय भागीदारी निभाये.
    जीवन एक ही बार मिलता है, और कोई दूसरा तुम्हे अपना जीवन उधार भी नही देगा. सो अपने जीवन मे प्रयोग ज़रूर करने चाहिये.

    माता-पिता को भी झूठे-वादे बनाकर लडकी का रिश्ता नही करना चाहिये, और किसी भी तरह लडकी को निपटाने की मांसिकता से बाहर आना चाहिये. अपनी संतान को हर हाल मे सक्षम बनाना चाहिये. और अगर दहेज़ प्रताडना की एक भी घटना होती है, तो अपनी बच्ची की सुरक्षा की खातिर फोरन उसे ससुराल से निकाल कर घर ले आना चाहिये. माता-पिता भी अगर लडकी को किसी तरह निभाने के लिये कहते रहेंगे, तो अत्याचार बढेगा ही.

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  14. सब से ज़्यादा दुःख की बात तो ये है की दहेज़ के लिए एक ओरत दूसरी ओरत ही ज़ुल्म करती है,आज भी दहेज़ रुपी दानव यदि पूरी आन बान से जिंदा है तो इसका सब से ज़्यादा जिम्मेदार ये समाज और इसमें रहने वाली ओरतें हैं,कितनी शर्म की बात है की एक ओरत ही ओरत को उसके लाये हुए धन के लिए ताना देती है उस पर ज़ुल्म करती है,सब से पहले उन ओर्तों को सोचना चाहिए,वो सुधर जाएं तो हालत आसानी से सुधर जायेंगे.

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  15. ये मामला इतना सीधा नही जितना दिखाई देता है या जितना मान लिया जाता है
    हाँ एक बात तो तय है कि अन्याय तो अन्याय है किसी के भी साथ हो उसका विरोध होना चाहिये
    मुख्य प्रश्न ये है कि 1} क्या अन्याय हो रहा है 2}। अन्याय कौन कर रहा है 3} क्यों कर रहा है 4} और इस का उपचार क्या है
    यदि सब जानते या सब मान्ते कि नारी के साथ अन्याय हो रहा है तो ये अन्याय कब का क खत्म हो गया होता कोई तो है जो नही मानता कि ये अन्याय है क्या केवल पुरुष या इस मे नारी स्वय भी शामिल है
    जितना दहेज पे लफ्फाजी हो रही है उतना ही
    दहेज दिन ब दिन बढता जा रहा है मतलब कहीं तो हम गलत जा रहे है आप कह सकते है कि शायद मनसिकता पुरानी है तो इलाज मे समय लगे पर पहला प्रश्न ये है क्या हम ने निदान ठीक से कर लिया है यदि हाँ तो दूसरा प्रश्न है कि कही हम इलाज गलत तो नही कर रहे
    क्यों ऐसा हो रहा कि ये दहेज बढता ही जा रहा है कभी ऐसा होता है क्या कि निदान भी ठीक हो , इलाज भी ठीक हो और बिमारी बढती ही जाये
    मुश्किल ये है कि पुरुष को ही इसका जिम्मेवार ठहराया जाता है और जो उठता है दो गालियों की गोलिया उस के दे देता है सोचता है उसने अपना काम कर दिया । जबकि सच ये है कि मात्र पुरुष ही नही खुद नारी भी इसके लिये कम जिम्मेवार नही है कौन सा घर है जहाँ नारी नही है कही माँ है तो कही सास कहीँ ननद जरा गौर से सोचिये आस पास देखिये अपने इस रूप मे नारी दहेज लेने के बारे मे क्या विचार रखती है । काफी मामलो मे आप पायेगे कि पुरुषो को दहेज लाने या लेने के लिये उकसाने मे नारी का भी हाथ होता है। घरो मे ताने उलहाने सास या ननद ही देती है ससुर नही ये जरूर है कि इस पुरुश प्रधान समाज मे पुरुष की जिम्मेवारी ज्यादा है कि वो कम से कम इस बहकावे मे ना आये प्रन्तू नारियो को पहले आपने अन्दर भी झाकना होगा किसी भी दहेज प्रताड़ित स्त्री से पूछिये तो पता चलेगा कि प्रताड़ना में सास या ननद का ज्यादा हाथ है पति या ससुर का कम ।दहेज विरोधी मुकदमों मे क्या नारी का नाम नही होता॥ इस लिये नारियो को अपने अन्दर भी झाकने की जरूरत है उन्हे स्वये को भी बदलना होगा । एक और बात कई मामलों मे लडकी वाले भी दहेज का लालच देकर लडकी कि योगयता से अधिक अच्छा वर पाने की कोशिश करते है और दहेज को बढावा देते है ये समस्या बहुआयामी है इसे केवल पुरुशो को जिम्मेवार बता कर हल नही किया जा सकता हमे याद रखना चाहिये कि charity begins at home खुद सुधरो दुसरो को सुधारो
    मै इस लेख के लेखक से अपनी टिपप्णी पर प्रतिक्रिया की अपेक्षा रखता हूँ ताकि जहा मै गलत हू वहाँ अपनी सोच मे बदलाव ला सकूँ

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  16. दहेज़ जब शुरू हुआ होगा तो शायद माँ बाप को लगता होगा बेटी दुसरे घर जा रही हैं , संकोच मे कैसे उनसे कुछ मांग सकेगी {नयी जगह संकोच स्वाभाविक हैं } सो माँ पिता ने उसकी जरुरत की चीजे उसके साथ रख दी और राजा महाराजा तो दास दासी भी भेजने लगे यानी जितनी सामर्थ उतनी सहूलियत बिटिया के लिये । उस समय बाल विवाह की परम्परा थी । लड़की के पास संदेश भेजने के साधन और मिलने के साधन भी कम ही थे सो कैसे पता चलता बेटी को क्या चाहिये ? पहाडी परिवार मे मुझे बताया गया कि लड़की के हाथो मे जेवर के साथ मखाने की माला भी पहनाई जाते थी ताकि बच्ची को अगर भूख लगे तो वह उसमे से वक्त जरूरत खा भी ले !!!!

    धीरे धीरे इस "दहेज़ " ने रूप बदला और माँ पिता शिक्षित हुए उनको लगा कि लड़के तो उनके पास रहता हें सो लड़की को ज्यादा से ज्यादा दहेज़ के समय ही दे दो पर जितनी सामर्थ उतनी सहूलियत वाला हिसाब नहीं बदला । इस सब के बीच जो बात सबसे ग़लत थी वो समाज का ये सोचना की लड़की भार हैं और लड़का अस्सेट हैं । बस इस सोच ने दहेज़ को दनाव बना दिया ।

    अब लडकियां शिक्षित हैं कानून जानती हैं सो अपना हिस्सा चाहती हैं पर दहेज़ को एक सामाजिक परम्परा मानती है । और आज भी एक शिक्षित लड़की कि शादी माँ बाप अपने कर्तव्य की इती समझते हैं और इसके लिये वह दहेज़ देते हैं क्योकि कुवारी बेटी यानी अपनी असफलता ।

    बेटी सुंदर , बेटी शिक्षित बेटी आर्थिक रूप से स्वतंत्र पर फिर भी बोझ ?? शादी बहुत जरुरी । क्यों पता नहीं ??

    दहेज़ कम लाने पर सास प्रतारित करती हैं क्योकि बहु और ससुर का संवाद हमारे समाज मे कम ही होता हैं ? और हमारे समाज मे पत्नी को आज भी इतनी स्वतंत्रता नहीं हैं कि वह पति से बिना पूछे निर्णय ले सके सो सास के निर्णय मे ससुर का निर्णय भी जुडा ही होता हैं ।

    सास बहु दोनों हमेशा बाहर की ही रहती हैं उस जगह जो उनकी ससुराल हैं क्योकि दोनों बाहर से आयी हैं अब अगर वो दोनों मिल जाये तो जो घर के मुखिया हैं उनकी सता का क्या होगा ?

    दहेज़ एक इसी परम्परा हैं जिसके लिये समाज कि सोच की बेटी बोझ और बेटा asset हैं जिमेदार हैं पर क्योकि इसकी वज़ह से ज्यादा तकलीफ पीड़ा महिला को मिलती हैं वह समाज के बाकि ५०% भागेदारी यानि पुरूष को अपनी इस तकलीफ का कारण समझती हैं ।

    मे अपने ४७ वर्षो मे यही निष्कर्ष निकाल सकी हूँ
    Krishan lal "krishan" ji shyaad aap ko is mae kuch saar lagey
    keerti bhi jarur jwaab daegii
    aap ki email ka jwaab bhi dae diya haen

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  17. शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है...
    अत्याचार गरीब के साथ ही होता है.. धनवान हमेशा गुल खिलाता है...
    दहेज एक वास्तविक बुराई है... लेकिन आभी मैने महिला सशक्तिकरण पर गायत्री परिवार के एक कार्यक्रम में भाग लिया था... वहां एक प्रसिद्ध महिला वकील ने यह भी बताया कि बहुत सी लडकियां खुद दहेज लेकर जाना चाहती हैं..क्यों कि वह बाद में कई बार ठगी सी महसूस करती हैं जब मां बाप की सारी संपत्ति भाई हथिया लेते हैं और वह ठगी सी महसूस करती हैं..और उअनके हिस्से कुछ नही आता। क्योंकि समस्या का सिर्फ एक पहलू देखने से यां उस पर लड़ाई करने से कभी समस्या हल नही होती.. सभी पहलुओं को साथ लेकर एक साथ गौर किया जाए और हल ढ़ूंढे़ जाए तो अवश्य हम समाधान खोज सकते हैं...

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  18. sabsey pehley sabhi mitro ka dhanyabad.

    Krishan Lal Ji ke baat sey mein purn roop sey sehmat hun...kabhi kabhi ek aurat he dusri aurat ke samsya badati hai ....kabhi saas ke rup mein kabhi nanad ke roop mein ...agar ise burayi ko sach mein door karna hai to pehley hum aurto ko he apne bacho ke sanskaar achey karney hogey tabhi kuch baat ban sakti hai.

    @ Rachna Di...

    Apney sahi kha ..dowery kab aurkasey start hue par ab iska bigadta roop na janey kisti aurto ko andhey kyunye mein gira reha hai....

    @ Kulwant ji

    Thanxs for ur valuable comment...apki baat bhi kuch had tak sahi hai..meri ek rishety ke bahan ne kuch asa he drama kiya tha apni shaadi mein..aap he apney maa-baap ke agey jidd pakdi the ke mujhey shaadi mein car chahye warna susraal waley kya sochnegey..

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  19. दहेज़ समाज की एक ऐसी बीमारी हो गई है जिसे ख़त्म करने मे स्त्री और पुरूष दोनों की भागीदारी होनी चाहिए । पढी-लिखी लड़कियां और लड़के ही जब दहेज़ का विरोध करेंगे तभी समाज को इस बीमारी से छुटकारा मिलेगा। ये काम है बड़ा मुश्किल पर नामुमकिन नही।

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