नौकरी नारी पुरुष से तुलना करने के लिये करती हैं ये कहना भ्रान्ति हैं
मेरा कमेन्ट
"खुद की तुलना के लिए नौकरी करना, क्या ठीक है ???"
पोस्ट पर आप भी पढिये और संभव हो तो अपनी राय दे
नौकरी करने के लिये एक काबलियत की आवश्यकता होती हैं , विदेशो में भारतीये महिला , काबिल होते हुए भी अपनी क़ाबलियत के अनुसार नौकरी इस लिये नहीं कर पाती हैं क्युकी उनके पति किस वीजा पर वहाँ गये हैं ये उस पर निर्भर होता हैं . यानी एक पत्नी को नौकरी करनी हैं या नहीं ये पति के वीजा पर निर्भर हैं { वहाँ ये स्पाउस के लिये कहा जाता हैं यानी अगर कोई पत्नी पहले आयी हैं और नौकरी कर रही हैं तो ये उसके वीजा पर निर्भर हैं की पति को नौकरी मिलेगी या नहीं } इस लिये वहाँ आप को बहुत सी महिला उन जगह नौकरी करती मिलती हैं जो पार्ट टाइम जॉब होती हैं और कयी बार इललीगल भी
आपने सही कहा तुलना करना गलत हैं लेकिन आप ने ये गलत समझा हैं की नौकरी करना केवल पुरुष के अधिकार क्षेत्र मे आता हैं . आप ने लिंग विभाजित वर्गीकरण खुद कर दिया हैं काम का यानी पुरुष का काम और स्त्री का काम . लिंग विभाजन के आधार पर काम का वर्गीकरण करना गलत हैं .
क्या आप कोई कानून बता सकती हैं जहां ये लिखा हो पुरुष और स्त्री बराबर नहीं हैं और काम का आधार लिंग आधारित हैं
नौकरी करना , पैसा कमाना इत्यादि अपनी इच्छा और जरुरत से होता हैं . बराबर तो स्त्री पुरुष हैं ही इस लिये किसी स्त्री को भी बराबर बनने की लालसा नहीं रहती हैं वो महाजा अपने बराबर होने के अधिकार को नौकरी करने में प्रयोग करती हैं .
जो पत्नी बन कर भी नौकरी करती हैं वो अपने घर में आर्थिक सहयोग भी देती हैं .
नारी सिर्फ इसलिए नौकरी करे कि वह पुरुष की बराबरी कर सके निरर्थक बयान है क्यों कि नारी नर से हर मायने में भारी है। वह नौकरी करती है क्योंकि वह किसी कार्य को करने के लिए पात्रता रखती है या फिर घर में आर्थिक सहयोग से जीवन को और अच्छा बनाया जा सके , कभी कभी परिवार में पति के ऊपर इतनी जिम्मेदारियां होती है कि उस बोझ को बांटने के लिए वह नौकरी करती है। उसकी बराबरी नर ही नहीं कर सकता है क्योंकि अगर वह नौकरी करती है तो पारिवारिक दायित्वों से मुक्त नहीं होती हैं बल्कि घर के साथ साथ उसको नौकरी की जिम्मेदारी भी निभानी पड़ती है। परिवार के साथ अपने बच्चे के लिए गर्भ धारण करने पर भी आने वाली परिशानियों को वह झेलते हुए नौकरी बरक़रार रखती है . उसके माँ बनाने के बाद के दायित्वों को भी अकेले ही पूरा करना होता है फिर पुरुष से बराबरी के लिए वह क्यों इतने कष्ट उठाएगी। नर और नारी दोनों बराबर हैं लेकिन दायित्वों और परिवार में उसकी भूमिका अधिक श्रेष्ठ है। अतः इसा बात को उठना ही गलत है।
ReplyDeleteआपकी बात से सहमत हूँ।मैं इस बहस को तो बकवास मानता हूँ कि कौन किससे बेहतर है।मैं तो ये कहना भी उतना ही गलत मानता हूँ कि महिला पुरुष से श्रेष्ठ है।खैर छोडिए इन बातों को अभी व्यर्थ बहस बढ़ जाएगी।पल्लवी जी की पोस्ट में ये कहा गया है कि महिला आजकल बेमन से भी काम करती है तो ये पूरी तरह गलत नहीं है।क्योंकि अब महिला का नौकरी करना भी एक जरूरत बन चुकी है जैसा कि अभी तक पुरुष के लिए था।बहुत से पुरुषों को भी कई बार कमाने के लिए बेमन से काम करना पड़ता है और वो काम करना पड़ता है जिसमें रुचि नहीं है क्योंकि दूसरा विकल्प नहीं है और पैसे की जरूरत है वर्ना घर नहीं चलेगा।मैं तो एक छोटे शहर में रहता हूँ लेकिन यहाँ भी महिला का नौकरी करना इतनी कोई असामान्य बात नहीं रह गई।
ReplyDeleteक्या मेरी टिप्पणी स्पैम में है?
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