मुझे लगता हैं हिम्मत इसे कहते हैं "शिक्षा पाने के लिये लड़ी और जीती "
औरंगा बाद की एक 11 वर्ष की बच्ची का विवाह एक मानसिक रूप से अक्षम 17 वर्ष के युवक से कर दिया गया . लड़की ने 6 महीने की शादी के बाद हिम्मत जुटाई और पुलिस चौकी गई . वहाँ जा कर उसने कहा की वो पढना चाहती हैं और उसके अभिभावक और ससुराल वालो ने उस से उसका ये अधिकार छीन लिया हैं .
पुलिस ने उस बच्ची को एक समाज सेवी संस्था को सौप दिया और उस संस्था ने उसका नाम स्कूल में लिखवा दिया हैं .
पूरी खबर यहाँ हैं
कितनी अजीब बात हैं की एक 11 वर्ष की नन्ही सी बच्ची अपने अधिकार के प्रति सचेत थी और अपने प्रति हुई गलत क्रिया/हिंसा के खिलाफ उसने आवाज उठाई और वही बहुत सी पढ़ी लिखी महिला हमेशा चुप रहने में ही अपनी भलाई समझती हैं .
औरंगा बाद की एक 11 वर्ष की बच्ची का विवाह एक मानसिक रूप से अक्षम 17 वर्ष के युवक से कर दिया गया . लड़की ने 6 महीने की शादी के बाद हिम्मत जुटाई और पुलिस चौकी गई . वहाँ जा कर उसने कहा की वो पढना चाहती हैं और उसके अभिभावक और ससुराल वालो ने उस से उसका ये अधिकार छीन लिया हैं .
पुलिस ने उस बच्ची को एक समाज सेवी संस्था को सौप दिया और उस संस्था ने उसका नाम स्कूल में लिखवा दिया हैं .
पूरी खबर यहाँ हैं
कितनी अजीब बात हैं की एक 11 वर्ष की नन्ही सी बच्ची अपने अधिकार के प्रति सचेत थी और अपने प्रति हुई गलत क्रिया/हिंसा के खिलाफ उसने आवाज उठाई और वही बहुत सी पढ़ी लिखी महिला हमेशा चुप रहने में ही अपनी भलाई समझती हैं .
यदि ये समाचार सच है तो ग्यारह वर्षीय बाल वधु ने आत्मोत्थान के लिए सही निर्णय लिया।
ReplyDeleteवैसे तो 17 वर्षीय नवयुवक के विवाह में भी जल्दबाजी की गई। उसका एक-दो वर्ष बाद उसके जैसी ही किसी कन्या से विवाह किया जाना ठीक रहता। तभी न्याय होता। ठीक है न?
प्रतुल
Deleteमेरी अपनी राय में उस १७ वर्ष के युवक का विवाह ना करना ही सब से उचित निर्णय होता पर ये मेरी अपनी व्यक्तिगत राय हैं और इस मे युवक और युवती दोनों से तात्पर्य हैं जो उस स्थिति मे हो . इसी ब्लॉग पर कुछ समय पहले इसी विषय पर एक पोस्ट भी हैं
@ जिस (युवक-युवती) में अपने बारे में अच्छे-बुरे निर्णय करने की समझ ही न हो तब तो बात परिस्थितियों पर निर्भर होती है।
Delete- एक संतानहीन दम्पति एक बालक या बालिका को इसलिए भी गोद लेते है कि वह बीमारी और वार्ध्यक्य में उनकी सेवा करे। एक असहाय बालक-बालिका को परवरिश मिलती है। निर्देशन के साथ शिक्षा के लिए परिस्थिति अनुकूल उचित अवसर भी मिलते हैं। बालक या बालिका को एक दम्पति भोजन, छत के अलावा यदि कुछ और न भी दे पायें तो भी बुरा नहीं।
- एक मानसिक विक्षिप्त वाली संतान के माता-पिता उसके भविष्य की चिंता के कारण ही उसके विवाह की ऎसी योजना बनाते हैं। मुझे मालूम है ऐसे ही एक धनाढ्य परिवार के बारे में ... जिनका एक बेटा जो सही है शिक्षा पाकर विदेश में जाकर बस गया है। दूसरा जो मानसिक विक्षिप्त है वह उनकी चिंता का कारण रहा। वे हमेशा अपने घर में एक ऐसा पेइंग गेस्ट रखते जो उनकी भी देख-रेख कर सके और उनके बेटे की निगरानी भी कर सके। लेकिन नौकर और पेइंग-गेस्ट हमेशा उनके भरोसे को तोड़ते रहे। इस कारण ही उन्होंने भी उसके साथ कुछ किया। लेकिन क्या, मुझे ज्ञात नहीं ...
अब मैं सोचता हूँ - उसके साथ क्या हुआ होगा -
- क्या उसका किसी अन्य मानसिक मंदन वाली युवती से विवाह किया गया होगा? यदि ऐसा हुआ होगा तो भी उन दोनों को ही किसी तीसरे की ज़रूरत रहेगी। ऐसे में विवाह होना व्यर्थ गया।
- क्या उस विक्षिप्त बेटे का विवाह ज़रूरतमंद गरीब परिवार की किसी लड़की से किया गया होगा, जो उसके प्रति सेवाभावना रखती हो? यदि ऐसा हुआ होगा तो इसे कैसे गलत कहा जा सकता है जिसमें लड़की अपने माता-पिता के हित के लिए अपने को होम करती हो।
- क्या धन-दौलत उस लड़के के नाम करके उसे अकेला छोड़ गए होंगे?
.... आखिर ऐसे धनाढ्य परिवारों के मानसिक विक्षिप्त बच्चे किस तरह का जीवन जियें?
.... यदि कोई बालिका-वधु बनकर कन्या अपने भविष्य को सँवार सकती है तो क्यों नहीं ऐसा हो? भारतीय समाज में एक अनजान बालक (पुरुष) के साथ एक कन्या 'बालिका-वधु' रूप में ही तो रह सकती है। या फिर कोई अन्य विकल्प भी है? एक कम्युनिस्ट परिवार ने अपनी दो पुत्रियों की अच्छी परवरिश के लिए एक बालक को गोद लिया। उसे भविष्य का अच्छा और समझदार सेवक बनाने के लिए उसे जरूरी यथोचित स्कूली शिक्षा भी दिलायी और आज वह पुत्रियों के विवाह होने के बाद उस वृद्ध दम्पति का वफादार सेवक भी है। उनका कुशल ड्राइवर और कुशल रसोइया भी है। वह बेटे की तरह ही पारिवारिक मामलों में साथ रहता है लेकिन संपत्ति के बँटवारे में वह केवल व्यवस्थापक है।
.... ऐसे आदर्शवादी सेवकों को कौन नहीं चाहता? वे भी चाहते हैं जो बाल-मजदूरी और बंधुआ मजदूरी पर लम्बे-चौड़े बयान देते हैं और वे भी चाहते हैं जो असहाय हैं, निरुपाय हैं, निर्विकल्प हैं।
रचना जी,
Deleteमुझे अपनी उस पोस्ट का लिंक दीजिएगा जिसका उल्लेख आप कर रहे हैं। उसे भी पढ़ लूँ।
http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2011/09/blog-post_07.html
Deletehttp://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2011/09/autistic.html
वो बच्ची थी इसीलिए आवाज उठाई ,बडी होती तो चुप रह जाती।
ReplyDeletesach kah rahe hain aap
Deleteवो बच्ची थी इसीलिए आवाज उठाई ,बडी होती तो चुप रह जाती।
ReplyDeleteसत्यवचन!
ReplyDeleteआज लड़कियाँ अपने भविष्य निर्धारण के प्रति सजग होकर कदम उठा रही हैं लेकिन समाज उनके पीछे घर वालों और और उस लड़की की आलोचना ही करता है क्योंकि ये समाज किसी को छोड़ ही नहीं सकता है . कौन है ये समाज और क्या चाहता है? इसके विषय में निर्धारण हो सके तो बहुत अच्छा है . आज भी ये समाज यही चाहता है की लड़कियाँ अपने माँ बाप की आज्ञाकारी लड़की की तरह से जिस खूँटे से वह बाँध रहे हैं बंध जाए या फिर उसके माता पिता उन्हें आगे बढ़ने के लिए साथ न दें अगर लड़कियाँ उच्च शिक्षा पाकर आगे बढ़ गयी तब भी आलोचना और न बढ़ पायीं तब भी आलोचना। उचित वर मिला तब भी आलोचना और न मिला तब भी।
ReplyDeleteआज इस समाज को ऐसी ही हिम्मत की जरूरत है ,अनुकरणीय और प्रभावित करने वाला ।
ReplyDeleteउस लड़की में हिम्मत रही होगी, उसका सही मार्गदर्शन हुवा होगा इसलिए वो समाज के सामने खड़ी हो गयी ... आज के समय में हिम्मत ओर साहस के साथ सही मार्गदर्शन भी जरूरी है ...
ReplyDeleteप्रभावित करती है इस लड़की हिम्मत ...