तुम चली गयी , इस दुनिया से जहां तुम्हारे साथ अत्याचार की हर सीमा को पार कर दिया गया . मै हर दिन प्रार्थना कर रही थी की तुम ना बचो क्युकी मै नहीं चाहती थी की फिर कोई अरुणा शौन्बौग सालो बिस्तर पर पड़ी रहती .
तुम मेरी बेटी की उम्र की थी { काश कह सकती हो } तुम्हारी पीड़ा को मैने हर दिन अखबारों और खबरों के साथ जिया हैं . मन में उम्मीद थी शायद जीवन बचा हो पर नहीं तुम्हारे साथ बलात्कार के अलावा जो कुछ और हुआ उसने तुम्हारे शरीर से हर वो ताकत छीन ली जो जीवन को चलाती हैं
तुम्हारी पीड़ा को पढ़ कर जाना की डिजिटल रेप भी होता हैं कितना आसान हैं हर दुष्कर्म को एक नाम देदेना .
जानती हो तुम भारत की पहली प्राइवेट नागरिक हो जिसको सरकारी खर्चे से इलाज के लिये विदेश भेजा गया . तुमने मर कर भी एक इतिहास रच दिया और एक रास्ता खोल दिया उन बेसहारा औरतो / बच्चियों के लिये जिनके बलात्कार के बाद सरकार कोई हरकत नहीं करती हैं .
तुम्हारा नाम नहीं जानती पर ये जानती हूँ भारत देश महान कहने वाले , औरत को देवी मानने वाले , भारतीये संस्कृति में औरत का स्थान इत्यादि समझाने वाले भी आज कहीं ना कहीं शर्मिंदा हैं . शर्मिंदा हैं की देश की एक बेटी को इतनी पीड़ा मिली की मरने के लिये उसने अपने देश , अपनी जमीन को नहीं चुना .
क्या दिया इस देश ने तुमको जो तुम यहाँ मरती ?
बस अब यहाँ ना पैदा होना मेरी लाडो , ये देश लड़कियों के पैदा होने के लिये बना ही नहीं
ईश्वर तुम्हारी आत्मा को शांति दे और तुम्हारे भाई और माता पिता को शक्ति दे की वो तुम सी बहादुर काबिल बेटी को खोने का गम सह सके . तुम्हारे पिता ने घर की जमीन बेच कर तुमको पढ़ाया था आज वो किस मानसिक स्थिति मे होंगे ?? शायद अब वो कहेगे इस से तो घर में ही रहती , निरक्षर कम से कम रहती तो .
तुम मेरी बेटी की उम्र की थी { काश कह सकती हो } तुम्हारी पीड़ा को मैने हर दिन अखबारों और खबरों के साथ जिया हैं . मन में उम्मीद थी शायद जीवन बचा हो पर नहीं तुम्हारे साथ बलात्कार के अलावा जो कुछ और हुआ उसने तुम्हारे शरीर से हर वो ताकत छीन ली जो जीवन को चलाती हैं
तुम्हारी पीड़ा को पढ़ कर जाना की डिजिटल रेप भी होता हैं कितना आसान हैं हर दुष्कर्म को एक नाम देदेना .
जानती हो तुम भारत की पहली प्राइवेट नागरिक हो जिसको सरकारी खर्चे से इलाज के लिये विदेश भेजा गया . तुमने मर कर भी एक इतिहास रच दिया और एक रास्ता खोल दिया उन बेसहारा औरतो / बच्चियों के लिये जिनके बलात्कार के बाद सरकार कोई हरकत नहीं करती हैं .
तुम्हारा नाम नहीं जानती पर ये जानती हूँ भारत देश महान कहने वाले , औरत को देवी मानने वाले , भारतीये संस्कृति में औरत का स्थान इत्यादि समझाने वाले भी आज कहीं ना कहीं शर्मिंदा हैं . शर्मिंदा हैं की देश की एक बेटी को इतनी पीड़ा मिली की मरने के लिये उसने अपने देश , अपनी जमीन को नहीं चुना .
क्या दिया इस देश ने तुमको जो तुम यहाँ मरती ?
बस अब यहाँ ना पैदा होना मेरी लाडो , ये देश लड़कियों के पैदा होने के लिये बना ही नहीं
ईश्वर तुम्हारी आत्मा को शांति दे और तुम्हारे भाई और माता पिता को शक्ति दे की वो तुम सी बहादुर काबिल बेटी को खोने का गम सह सके . तुम्हारे पिता ने घर की जमीन बेच कर तुमको पढ़ाया था आज वो किस मानसिक स्थिति मे होंगे ?? शायद अब वो कहेगे इस से तो घर में ही रहती , निरक्षर कम से कम रहती तो .
काश! प्रलय की भविष्यवाणी सच होती और यह दिन न देखना पड़ता।
ReplyDeleteदेवेन्द्र पाण्डेय जी, जब ऎसी झूठी सृष्टि-विनाश की भविष्यवाणियाँ हुईं .... तब कुछ लोग ऐसे भी थे जो उस मौके पर हर तरह के दुष्कर्म कर लेना चाहते थे ... गुटका खाते हुए वे एक भद्दी से हँसी में इस तरह की चाहना प्रकट करते थे। ...आज भी राह चलते हुए न जाने कैसी-कैसी मानसिकता वाले लोग दिख जाते हैं। बहुत-सी बातें तो बताते हुए शर्म आती है इसलिए सार्वजनिक चर्चाओं में चुप हो जाते हैं। मेरा मानना है ... ऎसी भविष्यवाणियों से दुष्कर्मों में इजाफा ही होता है। पूजा-पाठ और यज्ञ-हवन के दिन तो लड़ लिए।
Deleteedit :
Deleteपूजा-पाठ और यज्ञ-हवन के दिन तो लद लिए।
@बहुत-सी बातें तो बताते हुए शर्म आती है इसलिए सार्वजनिक चर्चाओं में चुप हो जाते हैं।
Deleteसार्वजानिक सड़क पर , बस में सब हो रहा हैं और हम देख रहे हैं , अब तो कम से कम शर्म की बात ना हो , अब तो कम से कम उन सब के बहिष्कार की बात हो
असीम वेदना से लिखी पोस्ट .... ईश्वर उस अनाम लड़की की आत्मा को शांति प्रदान करें और परिवार को यह दुख सहने की शक्ति .... आपकी इस पोस्ट के जरिये डिजिटल रेप के बारे में जानकारी मिली ...आभार
ReplyDeleteजी इतना उदास है कि क्या कहूं .... : ( आज शर्म आ रही है कि मैं इस देश की नागरिक हूँ, जहां स्त्री सिर्फ शरीर है .....
ReplyDeleteजी में आता है श्राप दे दूं इस भारत की धरती को , कि यहाँ अगले 80 साल तक सिर्फ बेटे जन्म लें, बेटियां आयें ही नहीं, जिससे यह वीभत्स मानवजाति ख़त्म ही हो जाए, कि इसे जारी रखने को माँ ही न हो ।
पर नहीं दे सकती, हर एक का दोष नहीं है न , इससे तो निर्दोष भी पिस जायेंगे । .....
आज न प्रार्थना की, न मंदिर गयी । मन ही नहीं हो रहा । जिस इश्वर से प्रार्थनाएं करती हूँ - वह इतना क्रूर कैसे हो गया ?? : :
विश्वास बनाने में युग लग जाते हैं .... विश्वास टूटने में क्षण मात्र।
Deleteशिल्पा जी, स्त्री-वेदना के अम्बार के समक्ष आज पौरुषीय अहंकार सिर झुकाए खड़ा है।
बहुत कठोर वचन बोलें हैं आपने ... इस पीड़ा के सामने हम सब निरुत्तर हैं।
जब तक हर उस व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार नहीं होगा जो "एक शब्द भी " सेक्सिस्ट टोन , से बोलता हैं तब तक कोई बदलाव संभव नहीं हैं शिल्पा . कोई महिला "कितना भी उंचा / गलत / अपशब्द " क्यूँ ना बोले लेकिन पुरुष जब उस महिला को कुछ कहता हैं तो रांड , छिनाल और कुतिया तक कह जाता हैं और उसके शरीर , विवाहित जीवन और परिवार तक को गाली देता हैं . यहाँ तो उस से भी ज्यादा हो चुका हैं , इस लिये उन लोगो का बहिष्कार जरुरी हैं ना की ये बताना की उन्होने किन परिस्थितियों में ये सब कहा था और वो महिला कितना गलत थी
Deleteआप को शाप देते समय भी निर्दोष की चिंता हैं कौन यहाँ निर्दोष हैं ???? क्या मे और आप नहीं हम भी नहीं क्युकी अपनी बेटियों को मरने के लिये हम ही उकसाते हैं , हम ही उनको पढ़ा लिखा कर समाज में लाते हैं
अपनी बेटियों को एक बंद कमरे में रखिये अगर उनका बहिष्कार नहीं कर सकते हैं जो एक शब्द भी स्त्री के खिलाफ बोलते हैं
@ बस अब यहाँ ना पैदा होना मेरी लाडो...
ReplyDeleteहम सब जिम्मेवार हैं, इस बच्ची को तडपा कर मारा गया और ६ पुरुषों को यह कार्य करते समय इस बच्ची पर कोई दया नहीं आई ! यह ६ पुरुष विभिन्न परिवारों से संबंद्धित थे, इन परिवारों में महिलायें कैसे रहती होंगी इन दरिंदों के साथ ...?
भारतीय समाज में बैठा, हैवानियत का नया चेहरा सामने आ चुका है हम यह नहीं कह सकते कि यह लोग भारतीय घरों का नेतृत्व नहीं करते , कैसे जियेंगी लडकियां ??
उन्हें शक्तिशाली बनना होगा ...
हम यहीं पैदा होंगे, जियेंगे और लड़ेंगे. उसकी मौत एक युद्धघोष है. एक शहादत है. हम रोयेंगे नहीं. दुखी नहीं होंगे. हम लड़ेंगे. हम रोज़ उसके दुःख को महसूस करेंगे और लड़ने के लिए प्रेरणा लेंगे. हम लड़ेंगे.
ReplyDelete"काश! प्रलय की भविष्यवाणी सच होती और यह दिन न देखना पड़ता।" !!!!!!!!
ReplyDeleteअब भी प्रलय आये! इस तरह की जघन्यता क्या कम होती हैं किसी व्यवस्था के विनाश के लिए!
जब तक वह अस्पताल में भर्ती थी तब तक न्यूज चैनल खोलते हुए भी डर लग रहा था कि कहीं कोई बुरी खबर न सुनने को मिले।वो चली गई और हमें इस डर से छुटकारा दे गेई।लेकिन बलात्कार की खबरें और भी आती रहती हैं पर वो हमें नहीं डराती।क्योंकि हम इनके अभ्यस्त हो चुके हैं।वैसे ही जैसे महिलाओं को गाली देने के अभयस्त हो चुके हैं जैसे उनके चरित्र पर उँगली उठाने जैसे छेड़छाड़ और बलात्कार के लिए औरतों को ही जिम्मेदार ठहराने के आदी हो चुके हैं।ऐसा करने और कहने वाले हम न जाने कितने बलात्कार रोज करवा रहे हैं।इनमेँ अप्रत्यक्ष रूप से हमारा ही हाथ है।
ReplyDeleteवे हमें कुछ कहती नहीं,कोई शिकायत नहीं करती हमारी ज्यादतियों को भूल हमारे लिए अच्छा ही अच्छा करने को तत्पर रहती हैं।न बदले में कुछ विशेष चाहती हैं न श्रेय लेने की होड में रहती हैं।और दूसरी तरफ हम गंदे अहसानफरामोश और कमीने लोग,साथ देना तो दूर उनकी तकलीफ को तकलीफ मानने को तैयार नहीं?
सच ये हैं कि हम तो माफी माँगने लायक भी नहीं।
राजन जी, आपकी सभी बातें पूरी तरह सही। ........
Deleteये खबर पता चलने के बाद हुए दुःख को बयान करना मुश्किल है। और भी पीड़ा देने वाली बात ये है की हर सुबह अखबारों में इसी तरह की घटनाएं पढने को मिल रहीं हैं। अब और कितना नैतिक पतन बाकी है ?
ReplyDeleteगौरव जी
Deleteबहुत बहस हुई हैं इस ब्लॉग जगत में भारतीये संस्कृति को लेकर , वो संस्कृति जो नारी का कन्यादान करती हैं , उसको नथ पहना कर , नथ उतारती हैं , जो चूड़ी बिंदी और साडी ना पहने वालो को असभ्य कहती हैं अब कितना भी दुःख मना ले कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्युकी दो दिन बाद फिर वही सब होगा
भारतीये संस्कृति के अनुसार पुरुष की कामवासना की पूर्ति के लिये स्त्री पुरुष पूरक हैं बनाया गया हैं , इस लिये पुरुष को अधिकार हैं की वो हर स्त्री को अपनी पूरक मान कर उसके साथ डिजिटल बलात्कार कर सकता हैं जहा और जब चाहए
मैं इसी बारे में कुछ भी कहने से बचना चाहता था लेकिन जब आपने कहा है तो मैं भी बताना चाहूँगा की उन्ही बहसों में मुझे भी ये पता चला की भारत के सुशिक्षित नागरिकों को भारतीय संस्कृति के बारे में कोई जानकारी नहीं है लेकिन आधे-अधूरे ज्ञान से लम्बे-लम्बे लेख लिख कर पहले से अधमरी संस्कृति को कोसने का अद्भुद सामर्थ्य प्राप्त है। दुःख की बात तो ये है की इस समय भी इतनी दुखद घटना को आधार बना कर वही काम जारी है। सही कहा आपने फिर वही सब होगा ...कुछ नहीं बदलेगा|
Deleteबहुत मार्मिक ..बस मूक कर दिया है उसकी मौत ने और इस लेख ने भी ...
ReplyDeleteदुःख को बया करना मुश्किल
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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यह 'नारी' के मिजाज का आलेख नहीं लग रहा मुझे...
"हम यहीं पैदा होंगे, जियेंगे और लड़ेंगे. उसकी मौत एक युद्धघोष है. एक शहादत है. हम रोयेंगे नहीं. दुखी नहीं होंगे. हम लड़ेंगे. हम रोज़ उसके दुःख को महसूस करेंगे और लड़ने के लिए प्रेरणा लेंगे. हम लड़ेंगे!"
आराधना'मुक्ति' जी के स्वर में स्वर मिलाना चाहता हूँ मैं तो...
...
सही कह रहे हैं प्रवीण आप , नारी का अस्तित्व तो इस दुनिया में केवल लड़ कर मरने के लिये ही हुआ हैं क्यूँ सही कह रही हूँ ना , नारी समानता की बात करना और सहनशीलता से गलियाँ खाना , रांड और छिनाल कहलाना , बहुत देख लिया हैं यहाँ और जिस प्रकार से ये बेटी गयी हैं , शर्म आती हैं अपने पर की हम अपनी लड़कियों को लडने की सीख देते हैं पर उनको मरने से नहीं बचा सकते
Deleteनारी के लिये बना ये ब्लॉग कैसे लोगो की आँख का कांता बना हैं और कितने अपशब्द हमने सुने हैं वो सब "सभ्य" होने की ही निशानी हैं . जब तक हर उस व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार नहीं होगा जो "एक शब्द भी " सेक्सिस्ट टोन , से बोलता हैं तब तक आप की बेटियाँ भी इस समाज में सुरक्षित नहीं हैं इस लिये उनको घर में ही रखिये अब मुझे भी ऐसा ही लगता हैं , उनकी सुरक्षा के समय कोई डिक्शनरी काम नहीं आयेगी .
क्या कहूं ...इस पीड़ा को शब्दों में कह पाना मुश्किल है......रचनाजी आपके लेखने उस पीड़ा को ज़ुबां दे दी....
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