अभिजीत मुख़र्जी ने बयान "dented painted " लड़कियां / औरते छात्रा नहीं हैं और वो बलात्कार की घटना के बाद फैशन की तरह मोमबती ले कर विरोध प्रदर्शन करती हैं
जब उनके इस बयान पर विवाद हुआ , विरोध हुआ तो दूसरा बयान आया की उन्हे पता नहीं था ये सब भाषा बोलना " sexiest remarks " माना जाता हैं
एक दम सही
सदियों से जो लोग औरतो को "कुछ भी " कहने के आदि रहे हैं वो कैसे समझ सकते हैं की ये सब गलत हैं .
अब अभिजीत मुख़र्जी की क्या बात करे हमारे आप के बीच में ही ना जाने कितने ऐसे हैं जो निरंतर ब्लॉग पर ख़ास कर हिंदी ब्लॉग पर ऐसे ना जाने कितने शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करते रहे हैं .
उनकी नज़र में ये सब होता आया हैं तो "गलत कैसे " हुआ .
जेल में बंद गैंग रेप के दोषी भी यही कह रहे हैं की उनको समझ नहीं आ रहा हैं की "इतनी ज़रा सी बात का इतना हंगमा कैसे बन गया . औरत के खिलाफ क्रिमिनल एसोल्ट तो वो करते ही रहे हैं , इस मे इतना गलत क्या हैं "
जो सब होता आया हैं वो गलत होता आया हैं , महिला को उसके अधिकार , समानता के अधिकार से हमेशा वंचित किया गया हैं . उसको सुरक्षित रहने की शिक्षा दे कर रांड , छिनाल , कुतिया , और भी ना जाने कितने नाम दे कर "यौन शोषण " उसका किया गया हैं .
लोग ये समझना ही नहीं चाहते की ये किसी भी महिला का मूल भूत अधिकार हैं की वो कुछ भी करे कुछ भी लिखे कैसे भी रहे
आप को ना पसंद हो तो आप उसका विरोध करे लेकिन आप को ये अधिकार नहीं हैं की आप उसको "sexist" रिमार्क्स दे . आप को किसी की भी निजी पसंद ना पसंद पर ऊँगली उठाने का अधिकार हैं ही नहीं . कानून और संविधान के दायरे मे रह कर बात करे और विगत में क्या होता था इसको ना बताये क्युकी विगत गलत था हैं और रहेगा . महिला के कपड़े , सहन , बातचीत इत्यादि को सुधारने की जगह अगर ये ध्यान दिया जाए की आप की भाषा में कभी भी कही भी "सेक्सिस्ट टोन " तो नहीं हैं
कल खुशदीप की एक कविता थी की अगर नगर वधु का अस्तित्व ना होता तो समाज में और दरिन्दे होते जो और बलात्कार करते इस लिये नगर वधु को सलाम
बड़ी ही खराब सोच हैं अपनी जगह { कविता ख़राब हैं मै ये नहीं कह रही } , नगर वधु यानी वेश्या इस लिये चाहिये ताकि पुरुषो की कामवासना तृप्त होती रहे , इस से विभत्स्य तो कुछ हो ही नहीं सकता . समाज में कोई वेश्या ना बने कोशिश ये होनी चाहिये .
कल की पोस्ट पर एक स्टीकर बनाया हैं संभव हो तो उसका उपयोग करे और नारी के प्रति हिंसा का विरोध करे
जब उनके इस बयान पर विवाद हुआ , विरोध हुआ तो दूसरा बयान आया की उन्हे पता नहीं था ये सब भाषा बोलना " sexiest remarks " माना जाता हैं
एक दम सही
सदियों से जो लोग औरतो को "कुछ भी " कहने के आदि रहे हैं वो कैसे समझ सकते हैं की ये सब गलत हैं .
अब अभिजीत मुख़र्जी की क्या बात करे हमारे आप के बीच में ही ना जाने कितने ऐसे हैं जो निरंतर ब्लॉग पर ख़ास कर हिंदी ब्लॉग पर ऐसे ना जाने कितने शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करते रहे हैं .
उनकी नज़र में ये सब होता आया हैं तो "गलत कैसे " हुआ .
जेल में बंद गैंग रेप के दोषी भी यही कह रहे हैं की उनको समझ नहीं आ रहा हैं की "इतनी ज़रा सी बात का इतना हंगमा कैसे बन गया . औरत के खिलाफ क्रिमिनल एसोल्ट तो वो करते ही रहे हैं , इस मे इतना गलत क्या हैं "
जो सब होता आया हैं वो गलत होता आया हैं , महिला को उसके अधिकार , समानता के अधिकार से हमेशा वंचित किया गया हैं . उसको सुरक्षित रहने की शिक्षा दे कर रांड , छिनाल , कुतिया , और भी ना जाने कितने नाम दे कर "यौन शोषण " उसका किया गया हैं .
लोग ये समझना ही नहीं चाहते की ये किसी भी महिला का मूल भूत अधिकार हैं की वो कुछ भी करे कुछ भी लिखे कैसे भी रहे
आप को ना पसंद हो तो आप उसका विरोध करे लेकिन आप को ये अधिकार नहीं हैं की आप उसको "sexist" रिमार्क्स दे . आप को किसी की भी निजी पसंद ना पसंद पर ऊँगली उठाने का अधिकार हैं ही नहीं . कानून और संविधान के दायरे मे रह कर बात करे और विगत में क्या होता था इसको ना बताये क्युकी विगत गलत था हैं और रहेगा . महिला के कपड़े , सहन , बातचीत इत्यादि को सुधारने की जगह अगर ये ध्यान दिया जाए की आप की भाषा में कभी भी कही भी "सेक्सिस्ट टोन " तो नहीं हैं
कल खुशदीप की एक कविता थी की अगर नगर वधु का अस्तित्व ना होता तो समाज में और दरिन्दे होते जो और बलात्कार करते इस लिये नगर वधु को सलाम
बड़ी ही खराब सोच हैं अपनी जगह { कविता ख़राब हैं मै ये नहीं कह रही } , नगर वधु यानी वेश्या इस लिये चाहिये ताकि पुरुषो की कामवासना तृप्त होती रहे , इस से विभत्स्य तो कुछ हो ही नहीं सकता . समाज में कोई वेश्या ना बने कोशिश ये होनी चाहिये .
कल की पोस्ट पर एक स्टीकर बनाया हैं संभव हो तो उसका उपयोग करे और नारी के प्रति हिंसा का विरोध करे
आज के लेख में सच्चे व भयंकर शब्दों का प्रयोग किया गया है अत: मेरे कुछ कहने से कोई बेवजह का विवाद पैदा करे इसलिये चुप रहना ही ठीक है।
ReplyDeleteअत: मेरे कुछ कहने से कोई बेवजह का विवाद पैदा करे इसलिये चुप रहना ही ठीक है।
Deletesahi kaha jaat devta...
jai baba banaras...
मोमबत्ती तो प्रतीक मात्र है .... प्रकाश करने के छोटे प्रयास का।
ReplyDeleteअराजकता अन्याय के फैले गहन अन्धकार में कोई इतना भी न करे तो क्या करे .... अस्त्र-शस्त्र लेकर घूमना जब वर्जित हो तब मोमबत्ती फैशन का हिस्सा होती है। वाह रे पोल्टू नंदन!! वाह!!!
जनाब, आप क्यों काला चश्मा लगाकर घूमते हैं? मानने को तो वो भी फैशन के दायरे में रखा जा सकता है। आँखों की मक्कारी न झलक जाए ,... क्या इस कारण ही???
सुन्दर प्रस्तुति,
ReplyDeleteजारी रहिये,
बधाई !!
एक स्टीकर बनाया हैं ....
ReplyDeleteस्टीकर kahaan hai .......... ??
http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2012/12/blog-post_26.html
Deleteyou can find the sticker here and also on the top right of the template of this blog
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteपता नहीं ये देश कब सुधरेगा और नारी को कब पहचानेगा।
ReplyDeletethis is what mr abhijit mukherji - son of mahamahim - is saying.
ReplyDeletethat
i am apologising BECAUSE PEOPLE WERE HURT , and despite the reporters asking him REPEATEDLY that are you just apologising for "hurt sentiments" but not about the THOUGHT PROCESS - he refuses to reply, he sticks to his VIEW, but takes back the WORDS....
whether people speak dirt or not does not matter much when inside their heads they THINK those things. because when they THINK dirty, they will definitely act dirty whenever they get a chance, though they may not show their true colors in places where they are going to be ridiculed for their dirty mindsets
एक ट्रेंड सा हो गया है , कुछ भी कह लो , फिर माफ़ी मांग लो ..
ReplyDeleteमैं आपके इस कथन से एकदम सहमत हूँ कि कोई नगरवधू ना बने , ना बनाई जा सके , समाज की आवश्यक जिम्मेदारी होनी चाहिए !
विचारोत्तेजक पोस्ट .. मैं आपके ब्लॉग पर ये देखने आया था की एक महिला वैज्ञानिक के दिए विवादित बयान के बारे में कोई पोस्ट आई है या नहीं, यदि है तो कृपया मुझे उसका लिंक दें
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट .... पोस्टिंग रखना
ReplyDeleteबधाई !!