किसी और घर के अलग वातावरण में पली नन्ही सी बच्ची को , उसकी इच्छा के विपरीत दिए गए आदेशों के कारण, हमेशा के लिए उस बच्ची के दिल में अपने लिए कडवाहट घोलते,सास ससुर यह समझने में बहुत देर लगाते हैं कि वे गलत क्या कर रहे हैं ?
अपनी बहू को,आदर्श बहू बनाने के विचार लिए, अपने से कई गुना समझदार और पढ़ी लिखी बहू को होम वर्क कराने की कोशिश में, लगे यह लोग, जल्द ही सब कुछ खोते देखे जा सकते हैं ! "सतीश सक्सेना
सतीश सक्सेना ने अपने ब्लॉग पर अपने लिये संकल्प की चर्चा की हैं , उसके पूरा होने की चर्चा की हैं और अपनी बेटी यानी अपने बेटे की नव विवाहिता पत्नी की चर्चा की हैं ।
सतीश जी का संकल्प पूरा हुआ इसके लिये उनको शुभकामना और बधाई । संकल्प लेना आसन हैं पर समय आने पर उसको निभाना और पूरा करना भी जरुरी हैं ।
सतीश सक्सेना ने अपने ब्लॉग पर अपने लिये संकल्प की चर्चा की हैं , उसके पूरा होने की चर्चा की हैं और अपनी बेटी यानी अपने बेटे की नव विवाहिता पत्नी की चर्चा की हैं ।
सतीश जी का संकल्प पूरा हुआ इसके लिये उनको शुभकामना और बधाई । संकल्प लेना आसन हैं पर समय आने पर उसको निभाना और पूरा करना भी जरुरी हैं ।
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Indian Copyright Rules
— भारत देश के जब डॉ. अबुल कलाम जी राष्ट्रपति बने और उन्होंने अपना पहला उदबोधन दिया तो लगा कि अब भारत देश का भाग्य बदलने वाला है...
ReplyDelete— जब वर्ल्ड बैंक के कभी सेकेट्री रहे और भारतीय सरकार में वित्तमंत्री रहे डॉ.(?) मनमोहन सिंह जी प्राइममिनिस्टर मनोनीत हुए तो लगा कि शायद अब देश से गरीबी की विदाई हो जायेगी...
........ जब भी कोई नयी पारी की शुरुआत करता है तो उसे नये पद व दायित्व संभालने की बधाई, और भविष्य में सदाचरण बनाए रखने की शुभकामनाएँ दी जाती हैं...यह हमारी संस्कृति है...अनुभवहीन और कमतर अनुभवियों को परिवार में उनके बड़े कुछ होमवर्क कराते ही हैं...लेकिन इसका भी ध्यान रखना चाहिए कि रिमोट से संचालित होने के बाद उनके पुत्र और पुत्रवधू सामाजिक प्रतिष्ठा खो बैठते हैं. ताज़ा उदाहरण हमारे सबके सामने हैं.
आभार !
ReplyDeleteरचना को यह पोस्ट पसंद आई यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है ....
शादी के पहले दिन से, जब लड़की नए उत्साह से अपने नए घर को स्वर्ग बनाने में स्वप्नवद्ध होती है तब हम उसे डांट डपट और नीचा दिखा कर अपने घर का सारा भविष्य नष्ट करने की बुनियाद रख रहे होते हैं !
पुरानी पीढ़ी, अपने जमाने की सारी परम्पराएं, इन घबराई हुई लड़कियों पर निर्ममता के साथ लादने की दोषी है ! मैंने कई जगह प्रतिष्ठित ओहदों पर बैठे लोगों के सामने भी यह परम्पराएं होती देखीं ! इन परम्पराओं के जरिये बहू को "शालीनता" के साथ बड़ों का सम्मान करना सिखाया जाता है ! कॉन्वेंट एजुकेटेड इंजिनियर और मैनेजर बहू , घूंघट काढ कर, बैठी रहे ...थकी होने पर भी सास को काम न करने दे आदि आदि
और अफ़सोस यह है कि शालीनता के पाठ को पढ़ाने में उस घर की महिलायें सबसे आगे होती हैं ऐसा करते समय उन्हें अपनी बेटी की याद नहीं रहती जिसे यही पाठ जबरदस्ती दूसरे घर पढाया जाना है !
अपनी बच्ची के आंसू और घुटन महसूस होते हैं मगर दूसरों की बच्ची के आंसू हमें अपने नहीं लगते, २० साल बाद इसी बच्ची से, जो उस समय, घर की शासक होती है, हम प्यार और सपोर्ट की उम्मीद करते हैं !
हमें अपने घर में विरोध करना आना चाहिए ....