आज कल रश्मि एक कहानी लिख रही हैं जहां दहेज़ प्रथा का भी जिक्र हैं कहानी तो आप यहाँ पढ़ ही लेगे । रश्मि की कहानी के विपरीत मीडिया में कल से निशा की कहानी दिखाई जा रही हैं । क्या आप निशा को भूल गये ? वही निशा शर्मा जिन्होने अपनी बारात को दरवाजे से लौटा दिया था क्युकी लडके वालो ने दहेज़ की मांग की थी । भूल गये हो तो लिंक ये हैं ।
बारात लौटाई और लडके और उसके परिवार को दहेज़ मांगने के जुर्म में पुलिस हिरासत मे भी दिया । मनीष को बेळ मिल गयी लेकिन मुकदमा चलता रहा ।
कल ९ साल बाद मनीष और उसके परिवार के ऊपर से सब आरोप कोर्ट से ख़तम कर दिये गए और मुकदमा ख़ारिज कर दिया गया । दहेज़ मांगने के सबूत ही नहीं मिले । लिंक ये हैं
कल मनीष का इंटरव्यू देख एक चॅनल पर उसका कहना था उसके जिंदगी के नौ साल व्यर्थ गए । निशा को विवाह नहीं करना था इसलिये उसने बारात लौटाई ।
मनीष की माँ ने अपने इंटरव्यू में कहा की पिछले ९ साल से वो और उनका परिवार सामाजिक बहिष्कार की प्रतारणा झेल रहा हैं ।
दहेज़ विरोधी कानून के दुरूपयोग हो रहा हैं और इस केस का फैसला उनलोगों की साहयता करेगा जो दहेज़ विरोधी कानून के विरोध में हैं ।
अगर दहेज़ लेना अपराध हैं तो देना भी अपराध हैं फिर सजा केवल लेने वाले को क्यूँ , देने वाले को क्यूँ नहीं ??
जाट देवता (संदीप पवाँर) ने एक बार मुझ से कहा था की आप उन लोगो पर लिखो जो दहेज विरोधी कानून से फायदा उठाते हैं आप लिख सकती हो । पता नहीं मै लिख सकती हूँ या नहीं पर ये जरुर मानती हूँ दहेज़ की प्रथा के लिये केवल वर पक्ष जिम्मेदार नहीं । कन्या पक्ष भी उतना ही दोषी हैं ।
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Indian Copyright Rules
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
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रचना जी,
ReplyDeleteये खबर अभी आपसे ही पता चली.आपके दिए लिंक पर गया.लेकिन एक बात स्पष्ट नहीं हुई.क्या नवनीत राय नाम के उस लडके के बारे में साबित हो गया कि उसकी शादी निशा से हो चुकी है?
...खैर आपने जो विषय उठाया वह बहुत महत्तवपूर्ण हैं.कम से कम वहाँ तो लडकी वाले भी बराबर के ही दोषी हैं,जहाँ वे खुद आगे बढकर दहेज की पेशकश करते हैं केवल अपने सामाजिक रुतबे को बनाए रखने के लिए.
नवनीत राय से उसकी शादी का मुकदमा खारिज होगया हैं खबर ये कहती हैं
Deleteरचना जी आपका सबसे मजबूत पक्ष यही है कि आप बिना लाग लपेट के सिर्फ़ सच के बारे में लिखती है, आज अदालत में दहेज के लगभग ९०% केस झूठे मिलेंगे, निशा शर्मा वाले केस के बारे में मेरी राय यही है कि मनीष दलाल को सिर्फ़ यही चैन से नहीं बैठना चाहिए बल्कि ऐसे झूठे लोगों को मानहानि के केस में ऐसी सजा दिलानी चाहिए जिससे कि आगे कोई ऐसा कार्य/केस करने से पहले कई बार सोचे। भारतीय कानून अंधा होने के साथ बहरा भी है, अभी तीन दिन पहले की बात है कि हमारे पडोस में रहने वाले एक पहाडी परिवार को अपना दहेज का झूठा केस समाप्त करने के लिये 12 लाख रुपये देने की हाँ करनी पडी है, लडका एकलौता है जिसका फ़ायदा उठाकर तीन साल से कोर्ट में केस खीचा जा रहा था, लडकी को तो आना ही नहीं था कुछ साल मुकदमा चलता रहता फ़िर लडके की दूसरी शादी की भी उम्र ना रहती, इस कारण लडके वालों ने अपना घर बेचकर अपना पीछा छुडाया है। मुझे तो इनसे अच्छे वे लोग लगने लगे है जो सच में दहेज के लिये अपनी बहू को तंग करते है, गजब देखिये ऐसे लोगों के खिलाफ़ कोई शिकायत भी नहीं करता है। तब हमें पता चलता है हमारा कानून सच में अंधा है तो उठा लो फ़ायदा।
ReplyDeleteसंदीप आप जैसे पाठक किसी ब्लॉग को मिल जाए तो कमेन्ट की जरुरत महसूस नहीं होती हैं क्युकी लगता हैं कोई हमे पढ़ रहा हैं और हमारे सच को समझ भी रहा हैं
Deleteनारी सश्क्तिकर्ण का सबसे पहला पाठ हैं " तिकड़म और चाल बाज़ी " से नहीं अपने अधिकार से लो .
यकीनन आजकल यह क़ानून तो हथियार बन गया है लड़कीवालों के लिए भी......
ReplyDeleteसामाजिक वहिष्कार -- ज़रूरी है।
ReplyDeleteयदि पता चल जाए, तो दहेज लेने वालों की शादी में मैं नहीं जाता।
देने वाले .. यानी बेटी का पिता शौक से यदि यह काम करे तो लिखिए, लेकिन यदि मज़बूरी हो तो ... सिर्फ़ यह कर दायित्व की इतिश्री मत समझिए कि बेटी को योग्य बना दो और वह खुद जूझ लेगी।
हमने देखा है आज भी पढ़ी लिखी लड़कियों और काम करती लड़कियों से दहेज मांगा जाता है।
निशा ... एक मिसाल है। इस घटना के बाद उस पर एक कविता लिखी थी। आपकी इस पोस्ट ने मुझे प्रेरित किया है कि उसे एक बार फिर पोस्ट करूं। ‘विचार’ पर अगली पोस्ट वही होगी।
मनोज जी निशा ने झूठ बोल कर किसी की जिंदगी के ९ साल बर्बाद कर दिये हैं और आजीवन उसकी मानसिकता को ख़राब कर दिया हैं
Deleteहो सकता हैं कल सुप्रीम कोर्ट से निशा फिर जीते पर ये सब क़ानूनी दाव पेच हैं
दहेज़ देना और कन्यादान करना कानून अपराध घोषित हो कन्या का विवाह जरुरी नहीं हैं
किसी भी कारण और मजबूरी से दिया हुआ दहेज़ कन्या को खुशियाँ और समानता नहीं दिला सकता हैं . दहेज़ दे करकन्या के अभिभावक किसी की मजबूरी का फायदा भी उठाते हैं
मैं अपनी टिप्पणियों में हमेशा से यही कहती रही हूँ ...
ReplyDeleteप्रताड़ना लिंग आधारित नहीं होनी चाहिए . अभिभावक पहले लालच में तमाम मांगों को स्वीकार करते हुए विवाह की हामी भर देते हैं , फिर असंतुलन तो आना ही है !
शुक्रिया रचना जी,
ReplyDeleteआपने मेरी कहानी का जिक्र किया....
लड़के वाले या लड़की वाले किसी भी पक्ष को सिर्फ दोष देने से किसी समस्या का हल नहीं होगा..मानसिकता बदलनी चाहिए. और इसके लिए जरूरी है कि हर लड़की को आत्मनिर्भर बनाया जाए. क्यूंकि अब तक ९५% मानसिकता यही है कि लड़की की किसी अच्छे कमाने वाले लड़के से शादी कर दी जाए जो माता-पिता के बाद अब उसकी देखभाल करे. और लड़का और उसके घर वाले इसकी कीमत चाहते हैं...भले ही जिंदगी भर के लिए एक केयर टेकर उन्हें मिल जाती है...जो घर की देखभाल करती है..बच्चे भी पालती है और उनका फ्रस्ट्रेशन भी झेलती है.
लड़के वाले जबतक यह सोचते रहेंगे कि वह शादी करके कोई अहसान कर रहे हैं और लड़की वाले भी उनका ये अहसान क़ुबूल करते रहेंगे .तब तक दहेज़ समस्या हल नहीं होने वाली. जरूरत है लड़कियों के आत्मनिर्भर बनने की और अपनी शादी में दिए गए दहेज़ के एक पैसे का भी विरोध करने की..लडकियाँ भी इसलिए मुहँ नहीं खोल पातीं..विरोध नहीं कर पातीं क्यूंकि कोई आधार नहीं होता...वे पहले अपने पिता पर निर्भर रहती हैं..और फिर पति पर.
नौकरी वाली लड़कियों को भी इस दहेज़ के दानव का सामना करना पड़ता है....पर वो इसलिए कि उनका प्रतिशत ज्यादा नहीं है...और पुरानी रीत ही निभाई जा रही है...जबतक बहुसंख्यक लडकियाँ आत्मनिर्भर नहीं होतीं...उनके माता-पिता दहेज़ दे कर बेटी ब्याहते रहेंगे और लड़के वाले का मुहँ सुरसा की तरह खुला रहेगा.
अगर निशा वाली कहानी में सच्चाई है तो यह निंदाजनक है...पर फिर भी कहूँगी..ऐसे उदहारण बहुत कम हैं..जबकि दहेज़ के लिए प्रताड़ित किए जाने के उदहारण अनगिनत हैं.
agree
Deleteरचना जी
ReplyDeleteजब ये केस टीवी पर दिखाया गया था तब मुझे नहीं पता की आप ने तब इसे टीवी पर देखा था की नहीं शादी के दिन और उसके दूसरे ही दिन सभी चैनलों पर दिखाया गया था की कैसे दहेज़ का सामान बाकायदा एक कमरे में सजाया गया था और वो लड़की वाले अपन इच्छा से नहीं दे रहे थे इसका सबूत ये था की सारे सामान १ नहीं दो दो रखे गए थे टीवी से ले कर वाशिंग मशीन तक वह दो रखे थे क्योकि लड़को वालो ने कहा था की चुकी उनके बड़े बेटे की शादी १०-१२ साल पहले ही हो चुकी थी और उसे वो सारे आधुनिक सामान नहीं मिले थे तो वो सारा सामान उन्होंने निशा के घरवालो से माँगा था मनीष के साथ ही अपने बड़े बेटे के लिए भी और वो निशा के घरवाले दे भी रहे थे । आप उसे फ़साने की चालबाजी नहीं कह सकती क्योकि कोई भी इतनी जल्दी वो भी रात के १२ बजे के आस पास २ सामान ला कर नहीं रख सकता है वो भी बाकायदा रिबन लगा कर गिफ्ट पैक के साथ । मामला अंत समय में कार या मोटी रकम कैश को लेकर हुआ था । अब आप कहेंगी की निशा या उसके घरवाल ने पहले ही क्यों नहीं इंकार किया , आज हर लड़की का पिता जानता है की दहेज़ की परम्परा का सामना उसे करना ही है और और लडके वालो की मांग माननी ही है लोग मांग को मन जाते है और अपनी क्षमता के अनुसार देते है किन्तु लडके वाले जब देखते है की लड़की वाला उनकी नाजायज मांगो को भी मांगने लगता है तो वो और उसे डिमांड करने लगते है ( अरे इसके पास अभी बहुत है और चापो सालो को यही मौका है बाद में तो कुछ नहीं देने वाला है , ये आम जुमले है जो मै खुद कई लड़को वालो के मुंह से सुन चुकी हूँ ) कुछ शादी के दिन उनकी नाजायज मांगो को मान भी जाते है और कुछ समझ जाते है की ये लडके का परिवार आम भारतीय की तरह दहेज़ नहीं ले रहा है बल्कि ये लालची लोग है जो कल को मेरी लड़की के साथ या मेरे साथ गलत व्यव्हार करेंगे और चीजो की मांग करेंगे अब इसके आगे हमें इस रिश्ते को नहीं बढ़ाना चाहिए क्योकि उनकी असली सोच सामने आ जाती है । निशा ने भी वही किया जब तक सब कुछ समाज के रिवाजो के मुताबिक था वो सहती गई किन्तु जब शादी के दिन पानी सर से ऊपर चला गया तो उसने इंकार कार दिया । म,उझे कम से कम इस केस में कोई चालबाजी नहीं दिखती है । और ये जानकर अच्छा लगा की लडके वालो को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा था जो की ज्यादातर होता नहीं है ।
दहेज़ का कोई भी केस साबित करना बहुत ही मुश्किल है क्योकि उसकी कोई लिखित दस्तावेज नहीं होता है और अब तो लोग सामान लेने की जगह कैश पैसा लेते है उसे तो साबित करना और भी मुश्किल है इसलिए अदालत में दहेज़ लेन देन साबित नहीं हुआ इस आधार पर हम ये नहीं कह सकते है की ये केस झूठा था। इस आधार पर तो रुचिका, जेसिका , मट्टू सभी केस झूठे हो जाते है । ९० के दसक में कितनी ही लड़किया या तो जला दी गई या खुद परेशान हो कर जल मरी कितने केस में साबित हो सका की मामला दहेज़ का था । लोग बड़ी आसानी से कह देते है की ९० % केस झूठे होते है किस आधार पर कहते है जरा मुझे बता दे । मै यू पी के बनिया परिवार से हूँ और जानती हूँ की हमारे यहाँ आज भी शादी का सबसे बड़ा आधार दहेज़ होता है और एक बार शादी में दे देने से मुक्ति नहीं मिलती है ( क्या आप को पता है केवल बनिया ही क्या लगभग सभी बिरादरियो में लड़की लडके को कपडे सामान देने के साथ ही पुरे खानदान के लोगो को कपडे और नगद देना पड़ता है जो कभी कभी १०० लोगो के भी पार हो जाता है, जैसे निशा के केस में उसके बड़े भाई के लिए भी सामान देना पड़ रहा था और ये बहुत ही आम बात है ) साडी जिंदगी लडके वालो के देना ही पड़ता है कभी त्यौहार के नाम पर तो कभी बच्चे होने के नाम पर पुरे खानदान को कुछ न कुछ देना ही पड़ता है । शादी के सालो बाद यदि पति अपने व्यापार के लिए मकान के लिए कर्ज से छुटकारे के लिए लड़की को उसके घर से पैसे लाने को कहता है तो क्या वो दहेज़ नहीं है तो उसे क्या कहेंगे । दहेज़ सिर्फ वो नहीं है जो शादी में लिया दिया जाता है कही कही ये प्रक्रिया तो सालो साल चलती ही रहती है और न करने पार लड़कियों को प्रताणित किया जाता है कही केवल शब्दों से तो कही मारपीट कर और कभी कभी खुद उसे ही मौत को गले लगाने के लिए मजबूर कर दिया जाता है ।
ReplyDeleteफिर भी ये मानती हूँ की कुछ मामले जरुर झूठे होते है उसकी वजह है की अभी तक घरेलु हिंसा का कोई कानून नहीं था दहेज़ नहीं लेकिन अन्य कारणों से लड़कियों को मारपीट जाता उन्हें घर से निकल दिया जाता या लडके का दूसरा विवाह तक कर दिया जाता । ऐसे में उनको न्याय दिलाने का कोई शसक्त कानून नहीं था सिवाए दहेज़ कानून के अगर वो मामूली मारपीट का केस दर्ज करती तो आप जानती है की इसमे कुछ भी नहीं होने वाला था इसलिए सभी दहेज़ कानून का ही सहारा लेती थी ( शायद कानून के जानकर ही उन्हें यही सलाह देते होंगे ) । अब देखिएगा कुछ दिन में लोग ये भी कहेंगे की घरेलु हिंसा में भी ९९% केस झूठे होते है पति तो परमेश्वर और उसके घरवाले तो देवता गण होते है ये महिलाए असंतोषी होती है और पति को परेशान करने के लिए ये सब करती है पति है पुरुष है गुस्सा तो उसकी प्रकृति है उन्हें उसे सहना आना चाहिए ।
अंशुमाला बस एक प्रश्न
Deleteये लडकियां और उनके माँ पिता कब तक "मजबूर " रहेगे .
कितनी सदियाँ और चाहिये इस मजबूर बने रहने के लिये
अंशुमाला जी जैसा की आप कह रही है कि टीवी पर उस समय दिखाया गया था, कि इस शादी में हर सामान डबल मंगाया गया था मुझे आश्चर्य है कि मैंने किसी भी जगह बल्कि अखबार तक में भी यह समाचार नहीं सुना/देखा था। मुझे तो बल्कि अब तो कोर्ट ने भी साबित कर दिया है कि यह केस झूठा था, मैं तो कहना चाहूँगा कि यह एक सोची समझी चाल रही थी जिसमें लडके वालों को फ़ंसाया गया था।
Deleteअब शुक्र है अदालत का जिसने सबकुछ साफ़-साफ़ कर दिया है अभी तो यह केस हाई-कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक भी जाने वाला है। जैसा कि आपने कहा है कि दहेज देना मजबूरी है मैंने अपनी शादी में कोई सामान ऐसा नहीं लिया था बल्कि अगर मैं कहूँ कि कुछ भी नहीं लिया था तो ज्यादा सच है मैंने अपनी शादी में पत्नी के अलावा उतना सामान लिया था जितना की मेरी पत्नी अपने एक हाथ से उठा सकती थी, यह मत समझना कि कोइ नकद नारायण ले लिया होगा। अगर आपको विश्वास नहीं हो रहा हो तो कभी भी मेरी पत्नी से बात कर सकती है ताकि आपको आपकी बात का उत्तर मिल सके। हमारे समाज में ज्यादातर लडकी वाले( मेरी बुआ भी उनमें शामिल है) अपने पैसे के दम पर लडका यानि दामाद तलाश करना चाहते है। लडकी वालों की पहले से ही यह तमन्ना रहती है कि लडके का परिवार पैसे वाला हो सबसे गजब तो आजकल तो इकलौता लडका तलाशने की परम्परा शुरु हो चुकी है। ताकि शादी के बाद बल्कि शादी के मौके से ही इसे फ़ंसाने का कार्यक्रम चालू हो सके। इस दुनिया ऐसे बहुत से लडके है जो बिना दहेज के शादी करने को तैयार रहते है लेकिन हाय रे सामाजिक हैसियत और घटिया सोच जिससे लडकी वाले अपने से कम गरीब घर में अपनी लडकी देना ही नहीं चाहते है।
अंशु माला जी दहेज का केस भी साबित करना आसान है अगर सच्चा हो तो आजकल लगभग हर सामान का बिल मिलता है अगर कोई सरकार को उस सामान का टैक्स चुकाये तो, सामान टीवी, सोना, जेवर, कार सब कुछ, रही बात कैस देने की, चैक से या ड्राफ़्ट दिया जा सकता है, जहाँ नकद नारायण यानि नोटों की गडडियाँ माँगी जाती है तो वहाँ शादी ही क्यों की जाती है। क्या भगवान ने या किसी ने जबरद्स्ती कहा है कि यही करनी पडेगी। आपने लिखा है कि लोग कहते है कि 90% केस झूठे है इस लेख में सिर्फ़ मैंने कहा है अत: आपके अति उतम ज्ञान के बता दूँ कि मैंने स्वयं अदालत में पाँच वर्ष कार्य करते हुए बिताये है। साथ ही मेरा छोटा भाई व मेरे चाचा का लडका दोनों क्रमश: यूपी व दिल्ली पुलिस में लगभग दस वर्ष से कार्य कर रहे है और संयोग से दोनों ही महिला सैल में कार्य कर चुके है हम तीनों ने उपरोस्त बताये गये प्रतिशत में यानि सौ में से मात्र दस% ही सच्चे मुकदमे पाये थे ज्यादातर मुकदमे इसलिये किये गये थे ताकि कोर्ट में जाकर समय खराब किया जा सके, जिससे कि फ़ैसला होने में मोटा लाभ लडकी वालों को मिल सके। जो कि लडके वाले परेशान होकर दे भी रहे है। गजब देखिये कि कोई लव मैरिज कर ले तो यहाँ भी सबसे ज्यादा लडकी वाले ही फ़ुनफ़ुनाये फ़िरते है दहेज से लेकर बलात्कार व अपहरण तक की धारा लडके वाले के खिलाफ़ लगवा दी जाती है,
दहेज लेने व देने वाले दोनों बराबर के अपराधी है मैं तो दहेज को एक तरह से रिश्वत का रुप मानता हूँ जिसके बल पर अमीर लडका दामाद बन जाता है जिससे कि लडकी सारी जिंदगी मौज करे, बल्कि होना तो चाहिए कि लडकी को इस काबिल बनाया जाये कि वह अपने पैरों पर खडी हो सके खुद कमा सके, लेकिन आपकी बनिया वाली सोच देखकर मजा आया है, जिस प्रकार बनिया हर जगह फ़ायदा देखता है उसी प्रकार लडकी वाले भी रिश्ता करते समय एक तरह से सौदेबाजी करते है क्या इस दुनिया में सही लडके नहीं है अगर नहीं मिलते है तो ऐसी मानसिकता क्यों बनायी हुई है कि लडकी की शादी करनी जरुरी है क्या बिना शादी किये कुछ घट जायेगा, वैसे इस जवाब से मेरा आपके मान सम्मान को नुकसान पहुँचाने का कोई इरादा नहीं है अगर आपको मेरी कोई बात बुरी लग गयी हो तो मैं माफ़ी चाहता हूँ, लेकिन सच का साथ देना चाहिए यह हमेशा याद रहना चाहिए ना कि दुनिया में प्रचलित झूठे प्रचार का।
रचना जी,
ReplyDeleteआपने सच ही कहा है, आज कल समाज में जो भी नियम बने है उनका उपयोग कम दुरुपयोग ज्यादा होता है, मैंने भी ऐसे कई मामले अपने पड़ोस में देखा है जिसमे गरीबो को ज्यादा परेशां किया जाता है.
संदीप जी
ReplyDeleteजीतनी बनिया बुद्धि है उसी हिसाब से आप के सवालो का जवाब देने का प्रयास कर रही हूँ शायद मेरा जवाब आप की उच्च श्रेणी की बुद्धि के समझ में आ जाये ।
मै भी नहीं मानती की ताजमहल से ले कर पिरामिड तक किसी का भी अस्तित्व नहीं है , क्योकि उन सब को मैंने निजी रूप से नहीं देखा है किसी और ने देखा है तो मुझे क्या जब मैंने नहीं देखा तो मेरे लिए दुनिया में उनका कोई भी अस्तित्व नहीं है कोई और कुछ भी बकता रहे मुझे क्या, इस हिसाब से आप की बात सही है की आप ने टी वी पर नहीं दिखा तो उस घटना का कोई अस्तित्व नहीं है :)
क्या निचली कोर्ट के फैसले किसी घटना को सही ये गलत साबित करने के लिए काफी है तो फिर तो रुचिका से ले कर जेसिका और मट्टू तक के केस में निचली अदालतों ने अपराधियों को बाइज्जत बरी कर दिया था तो क्या माना जाये वो सब निर्दोष थे और बाद में जो उपरी अदालतों ने फैसलों को पलटा वो सब चालबाजिया थी झूठ के बल पर केस जीते गएऔर इस तरह के हजारो केस होते है ।
आप ने दहेज़ के बिना विवाह किया बहुत ही अच्छा काम किया सभी युवाओ को आप से प्रेरणा लेनी चाहिए किन्तु क्या आप के मना करने के बाद भी आप के ससुराल वालो ने आप को जबरजस्ती दहेज़ दे दिया था । निश्चित रूप से उन्होंने आप को उपहार के रूप में सामान लेने की पेशकश की होगी और आप के मना करने पर नहीं दिया होगा या आप ने दृढ़ता से मना कर दिया होगा । क्या आप को लगता है की लडके वाले दहेज़ न मागे और लड़की वाला जबरजस्ती लोगो को दहेज़ देता है ।
रही बात पैसे वाला लड़का खोजने की तो हर व्यक्ति अपनी लड़की के वर के लिए दो चीजे ध्यान में रख कर चलता है एक तो दोनों परिवारों की सामजिक हैसियत एक बराबर हो और ये केवल बनिया परिवारों में ही नहीं होता है बल्कि समाज के हर तबके में यही रिवाज है की सम्बन्ध हमेसा अपने बराबर वालो से ही बनाया जाता है ( विवाह तो बहुत बड़ी चीज है कई जगह तो मित्रता का सम्बन्ध और परिचय तक बराबर वालो या खुद से बड़े सामाजिक हैसियत वालो से ही बनाया जाता है ) ये समाजका एक रूप है आप ख़राब कहे या अच्चा पर समाज में यही प्रचलित है । विवाह के लिए दूसरी बात होती है वर की योग्यता जिसे देखा कर कई बार लोग लडके से जुडी दूसरी बातो को अनदेखा कर देते है ।
आप की इस बात से कोई भी सहमत नहीं होगा की यदि कोई गरीब लड़का दहेज़ न ले रहा हो तो किसी को भी अपनी लड़की का विवाह उससे कर देना चाहिए, क्यों कर देना चाहिए किस आधार पर , बस इसलिए की वो दहेज़ नहीं ले रहा है विवाह का ये आधार नहीं होता है सबसे बड़ा आधार होता है की लड़का मानसिक , शारीरिक और आर्थिक रूप से विवाह से जुडी जिम्मेदारियों को निभा सके । हर व्यक्ति देखेगा की दहेज़ तो नहीं ले रहा है कितु वह लड़की से विवाह करने के कितने योग्य है तीनो ही रूप में यदि योग्य हुआ तो कोई भी इंकार नहीं करता है जैसे की आप के ससुराल वालो ने अपनी लड़की से आप का विवाह किया । हम सभी तो सब्जी लेने भी जाते है तो सस्ता की जगह अच्छी सब्जी को महत्व देते है भले वो महँगी मिले तो फिर कोई भी अपनी लड़की के विवाह के लिए दहेज़ नहीं लेना कैसे आधार बना सकता है ।
रही बात पैसे वालो के घर शादी करने की या लड़की वालो के पैसे के बल पर लड़का खोजने की तो ये बात तो केवल पैसे वालो के घर होता है जरा माध्यम वर्ग और गरीब तबके की और देखिये जिसके घरो की लड़कियों के जन्म के साथ ही उसके दहेज़ की चिंता सर पर आ जाती है जन्म के साथ पैसा जुटा रहा पिता ये विवाह के समय देखता है की सालो से जुटाया पैसा भी विवाह के समय लड़को वालो की मांग के आगे कम पड़ रहा है चप्पले घिस जाती है उसकी एक लड़की के विवाह में फिर उनकी सोचिये जिनकी कई लड़किया होती है माध्यम वर्ग तो फिर भी मरते जीते कर लेता है गरीब तबके की हालत तो और बुरी है योग्य से अयोग्य लड़का भी भारी दहेज़ मांगता है उनके हैसियत के हिसाब से । माध्यम और गरीब घरो में तो घरो में महंगे सामान ही लडके के विवाह में मांगने के लिए छोड़ दिया जाता है । कोई भी माध्यम या गरीब वर्ग की लड़की का पिता आप को नहीं मिलेगा जो योग्य वर होने के बाद भी दहेज़ न लेने वाले लड़को को इंकार कर दे ।
ReplyDeleteअब आते है दहेज़ केस को साबित करने की तो कोई भी लड़की वाला ये सोच कर विवाह नहीं करता है की कल को उसकी लड़की को सताया जायेगा और दहेज़ माँगा जायेगा और मै इन पर केस करूँगा तो मुझे अभी से दहेज़ देने के सरे साबुत जुटा लेना चाहिए हा एक लिस्ट होती है सादे कागज पर उसे भी ज्यादा दिन संभाल कर नहीं रखा जाता है और न ही क़ानूनी रूप से उसका ज्यादा महत्व नहीं होता है । रही बात दहेज़ के पैसो को चेक या ड्राफ़ के रूप में देने की तो मै बस इतना ही कहूँगी हा हा हा हा हा हा हा इस बात पर मै बस हंस सकती हूँ :) ।
अब निशा के केस पर आते है वो ये केस किस आधार पर हारी मुझे नहीं पता है मै कानून की जानकर नहीं हूँ किन्तु जब ये केस हुआ था तो तभी जानकारों ने बताया था की ये केस साबित करना बहुत ही मुश्किल होगा क्योकि भारतीय कानून के मुताबिक दहेज़ केस विवाह के बाद ही बन सकता है विवाह के पूर्व नहीं, जबकि निशा ने कहा है की मनीष के साथ विवाह नहीं हुआ है और कुछ दिन बाद ही उसने दूसरा विवाह कर लिया था, यदि अब वो कहती है की विवाह हुआ था तो उसकी दूसरी शादी गलत और अपराध साबित हो जायेगा और विवाह नहीं कहने पर मजबूत केस नहीं बनेगा । इसके साथ ही ये भी कहना चाहूंगी की कानून का दुरुपयोग आम लोग नहीं कानून के जानकर, क़ानूनी सलाह देने वाले और केस को अदालत में लड़ने वाले कर्त६ए है आप आदमी नहीं जनता की उसे इंसाफ के लिए किस धरा के तहत केस करना चाहिए वो तो कोई जानकारी ही बताता है हा एक दो केस जरुर हो सकते है जहा जबरजस्ती वकील को अपने बताये केस पर लड़ने को कहा जाता है ।
९०% वाली बात मैंने इसलिए कही क्योकि जब आप कही पर कोई आंकड़े देते है तो आप को उसका स्रोत भी बताना चाहिए वरना "ज्यादातर" या " बहुत सारे " जैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए । आप किस आधार पर कह रहे है की ९०% केस झूठे होते है ।
लड़कियों को विवाह ही नहीं करनी चाहिए ये क्या बात हुए ज्यादातर नेता चोर है इसलिए वोट देने मत जाओ , ज्यादातर पुलिस वाले भ्रष्ट है तो कोई शिकायत पुलिस वाले के पास मत ले जाओ आदि आदि क्या समाज में इस तरह से रहा जाता है ऐसा नहीं होता है । लड़कियों के विवाह नहीं करना इस समस्या का समाधान नहीं है और ना ही उनके कमाने से ये समस्या जाएगी क्योकि दहेज़ कमाने वाली लड़कियों से भी माँगा जाता है ये बात आप टिपण्णी में दूसरो ने भी कही है ।
" अमीर लडके से शादी करके लड़की मौज कर सके "
ReplyDeleteनिहायत ही घटिया और बकवास बात लिखी है आप ने ये "मौज" करना क्या होता है । लड़की वाले मोटी रकम दे कर अमीर लडके से अपनी लड़की की शादी करते है ये आप को ख़राब लगता है किन्तु अमीर हो कर भी पैसा ले कर किसी से भी शादी कर लेने वाला लड़का आप को अच्छा लगता है मुझे तो लगता है की ऐसे केस में यदि कोई घटिया है तो लड़का ही ज्यादा घटिया है , क्योकि लड़की का पिता तो जो कर रहा है वो अपनी बेटी के अच्छे और आर्थिक रूप से अच्छे भविष्य के लिए ऐसा कर रहा है ।
और मैंने अपने बनिया और बनिया बिरादरी की बात इसलिए की क्योकि मै केवल अपने आस पास, अपने आँखों देखी और करीब हुए घटनाओ के बारे में ही बताना चाह रही थी ना की समाज में बस प्रचलित किसी बात का दोहराने का प्रयास कर रही थी ताकि लोगो को लगे की मै सच बात कर रही हूँ ना की बस यु ही कोई आंकड़े फेक रही हूँ । हा पर जिस तरह आप ने उस पर अपने पैजामे से निकल कर टिपण्णी की है उसके आप की सोच समझ और बुद्धि किस बिरादरी की है ये जरुर पता चला गया । आप की बिरादरी तो मुझे नहीं पता क्योकि बनिया कभी किसी की बिरादरी नहीं देखता है उसे तो बस अपना लाभ देखना है सामने कोई भी बिरादरी का जाति का व्यक्ति हो हा आप की उच्च कोटी की बुद्धि से ही मुझे पता चला की अपना लाभ देखना तो केवल हम बनियों को ही आती है बाकि दुनिया तो संत होता है । :))))
रचना जी
ReplyDeleteये मज़बूरी तब तक रहेगी जब तक की पूरी सामाजिक व्यवस्था ही नहीं बदल जाती है और आप जानती है की ये कितना मुश्किल है । एक निवेदन है की यदि कोई मेरी टिपण्णी पर कोई बात कहता है कोई सवाल उठता है तो मुझे इसकी जानकारी दे दे ताकि मै आ कर जवाब दे सकू ब्लॉग जगत से बाहर रहने के कारण हो सकता है उस पर नजर ना जाये और मै जवाब ना दे सकू । और जवाब जल्दी में लिखा है शब्दों में त्रुटी हो तो माफ़ी सभी लोग उसे सुधर कर पढ़ ले :) ।
पखवाड़े भर के प्रवास के बाद,कुछ घंटे पहले ही लौटा हूं। लिहाजा,खबर मैंने देखी नहीं है।
ReplyDeleteबारात को लौटाना या ऐन वक्त पर दहेज की मांग रखना जितनी बड़ी ख़बर बनती है,दहेज के मुकदमे से वरपक्ष का बेदाग बरी होना उतनी बड़ी ख़बर नहीं बनती। लिहाज़ा,आपने यह मुद्दा उठाकर अच्छा किया। मीडिया को भी चाहिए वह जिस उत्साह के साथ बारात लौटाते समय वरपक्ष के लोगों की तस्वीर दिखा रहा था,उसी उत्साह के साथ अब कन्यापक्ष की तस्वीरें सार्वजनिक करे और बार-बार दिखाए ताकि ऐसे लोगों के खिलाफ भी एक आंदोलन खड़ा हो सके।
जिन कानूनों की तत्काल समीक्षा की ज़रूरत है,दहेज कानून उनमें प्रमुख है। दहेज एक वास्तविक समस्या है। बहुत से परिवार इससे पीड़ित हैं,लेकिन इस कानून के दुरूपयोग की सारी हदें पार हो गई हैं। इसलिए,वरपक्ष को बाइज्जत बरी करना पर्याप्त नहीं है; कड़ी सज़ा ही नज़ीर बन सकती है। ऐसे मुकदमों में वरपक्ष की तत्काल गिरफ्तारी भी बंद होनी चाहिए।
रचना जी - आप जो कह रही हैं - बात सही है | परन्तु - इसका solution क्या हो सकता है ? यह भी सच है की दहेज़ के नाम पर बहुत क्रूरता होती है - क़ानून के आवश्यकता है | और यह भी उतना ही सच है की कई लड़कियां / लडकी के परिवार इन कानूनों का फायदा उठा कर लड़के के परिवार को torture करते हैं | solution निकलना ज़रूरी है, but ऐसा solution की फिर से ऐसा न हो की ज़रूरतमंदों को ही suffer करना पड़े ?
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