आइये इस बार मिलते हैं, महिला दिवस पर हिन्दी ब्लॉगजगत में इस विषय पर कलम चलाने वाले कुछ साथियों से -
माँ है, वो भीहज़ारों साल का इतिहास बताता है, कि औरतों को एक वस्तु ही समझा गया। मर्दों ने अपनी इच्छाओं के अनुरुप औरत की एक तस्वीर बनाई। और फिर औरत उसी रास्ते पर चल पड़ी। वो रास्ता कौन सा था ? वो रास्ता था, मर्दों को खुश करने का। मर्द जैसा कहता, औरत वही करती। ...... हज़ारों साल से ऐसा ही होता रहा है।.... और आज भी बदकिस्मती कहें, ये जारी है। जो मर्द के बताए रास्ते पर नहीं चलता तो फिर उसके लिए दूसरे रास्ते हैं... उनके पास। .......... मर्दों का सबसे बड़ा हथियार स्त्रियों के खिलाफ..... चरित्र हरण।
औरत के गर्भ में नौ महीने खून चूसने वाला शिशु... जब भी सोचने समझने के काबिल होता है..... सबसे पहले किस पर हमला करता है ? वो औरत ही होती है।
मैं पवित्रता की कसौटी पर पवित्रतम हूँ
क्योंकि मैं तुम्हारे समाज को
अपवित्र होने से बचाती हूँ।
आज का महिला दिवस इन्ही को समर्पित।
मिलिए फैबुलस फाईव ऑफ़ माई होम
ऐ वूमेन विद माइंड
किसी भी चित्रकार ने औरत को एक जिस्म से अधिक कुछ नहीं सोचा था। जिस्म के साथ केवल सोया जा सकता है, अगर औरत को औरत माना जाता तो उसके साथ जागने की बात भी होती। ऐसा किसी पेंटिंग में दिखायी नहीं दिया इमरोज को। अगर औरत के साथ जाग के देखा होता औरत की जिंदगी बदल गई होती। जिंदगी जीने लायक हो जाती। अमृता ने जिस औरत की पेंटिंग करने के लिये कहा था, वह पेंटिंग इमरोज 1966 में बना पाए।
घूघूती बासूती
क्या कोई उस असहाय किशोरी की मनोदशा की कल्पना कर सकता है? कैसे वह तिल तिलकर प्रतिदिन अन्दर ही अन्दर थोड़ा थोड़ा मरती होगी। कैसे वह अगले दिन उनकी कक्षा में जाने का साहस जुटा पाती होगी। जिस अध्यापन को उसने अपने जीवन का लक्ष्य बनाया था उसी में इतनी क्रूरता व गंदगी देख उसके हृदय पर क्या बीतती होगी।
प्रश्न अनेक हैं। क्या छात्राओं के कॉलेज में कुछ अध्यापिकाएँ नहीं होनी चाहिएँ थीं? क्या हमारे प्रदेश में अध्यापिकाओं की कमी है? यदि है तो देश के अन्य भागों से उनकी नियुक्ति करना क्या असंभव था? क्या हमारी बच्चियों को आदमखोरों के हवाले इतनी सुगमता से किया जा सकता है?
निर्वस्त्र क्यों हुआ असूर्यपश्या का तन देखो बीच बाजार
क्यों दे न सका तन ढंकने को एक टुकडा वस्त्र उसे
अबला नारी थी बेचारी दानवों ने कर दिया त्रस्त उसे
हिन्दी ब्लोगिंग मे कमेन्ट मे अभद्र होने की परम्परा को निभाया जा रहा हैं । भारतीय संस्कृति की चिंता में दुबले होने वाले अपनी टिप्पणियों में कितने अभद्र हो जाते हैं की यही भूल जाते हैं की लगता हैं की जो वो लिखते हैं वो केवल एक ब्लॉग पोस्ट ही हैं । उनकी नज़र मे भारतीय संस्कृति का मतलब केवल और केवल पुरूष प्रधान समाज की एक व्यवस्था हैं जिस मे अगर नारी प्रश्न भी करे तो वो उपहास की पात्र हैं ।
महिला दिवस , कन्यादान ,दहेज़ और भारतीय सभ्यता
आकांक्षा
इन वीरांगनाओं के अनन्य राष्ट्रप्रेम, अदम्य साहस, अटूट प्रतिबद्धता और उनमें से कइयों का गौरवमयी बलिदान भारतीय इतिहास की एक जीवन्त दास्तां है। हो सकता है उनमें से कइयों को इतिहास ने विस्मृत कर दिया हो, पर लोक चेतना में वे अभी भी मौजूद हैं। ये वीरांगनायें प्रेरणा स्रोत के रूप में राष्ट्रीय चेतना की संवाहक हैं और स्वतंत्रता संग्राम में इनका योगदान अमूल्य एवं अतुलनीय है।
बदले समय में भारतीय महिलाओं में भी स्तन का कैंसर सबसे आम हो गया है। हर 22 वीं महिला को कभी न कभी स्तन कैंसर होने की संभावना होती है। शहरी महिलाओँ में यह संख्या और भी ज्यादा है।
खुद पहचानें
स्तन कैंसर के सफल इलाज का एकमात्र सूत्र है- जल्द पहचान।
संक्षेप में जो आप जानना चाहते हैं स्तन कैंसर के बारे में
स्त्रियाँ क्या चाहती हैं
सिंगमण्ड फ्रॉयड ने कभी कहा था कि स्त्रियां क्या चाहती हैं, यह बहुत बड़ा प्रश्न है और “मैं इसका उत्तर नहीं दे सकता”।
यह एक बड़ी सच्चाई है कि पुरुष या पति यह जानता ही नहीं कि स्त्री (या उसकी पत्नी) उससे किस प्रकार के सहयोग, स्नेह या सम्मान की अपेक्षा करती है। पर यही सच्चाई स्त्रियों के सामने भी प्रश्न चिन्ह के रूप में खड़ी है कि क्या उन्हें पता है कि उन्हें अपने पति से किस तरह का सहयोग चाहिये? हमें पहले अपने आप में यह स्पष्ट होना चाहिये कि हम अपने पति से क्या अपेक्षा रखते हैं। बहुत गहराई में झांक कर देखें तो स्त्रियां भी वह सब पाना चाहती हैं जो पुरुष पाना चाहते हैं – सफलता, शक्ति, धन, हैसियत, प्यार, विवाह, खुशी और संतुष्टि। पुरुष प्रधान समाज में यह सब पाने का अवसर पुरुष को कई बार दिया जाता है, वहीं स्त्रियों के लिये एक या दो अवसर के बाद रास्ते बन्द हो जाते हैं। कहीं कहीं तो अवसर मिलता ही नहीं।
अब जानिए कुछ तथ्यइनकी कैसी साँझ?
इनकी ज़िंदगी में तो
हर वक्त है साँझ का धुँधलका
साँझ का क्यों रहे इन्हें इंतज़ार
क्या करें इस वेला में, यही सवाल लेकर आती है हर शाम
काश इस साँझ में ये भी करें ता-थया
उछलें-कूदें, मचाएँ धमाल
पर कहाँ हैं ये शाम
कोई इनके दिल से पूछे
ये तो चाहती जितनी दूर हो साँझ
उतना ही हो अच्छा
पर बिना शाम गुज़रे
नई सुबह भी तो नहीं आती
इसलिए गुज़ारनी होगी शाम हौसले से
लड़ना होगा अँधेरे से ताकि कदम बढ़े
एक नई सुबह की ओर
द स्टार डॉट कॉम के अनुसार
10 of the worst countries in the world to be a woman today:
Afghanistan
Democratic Republic of Congo:
Iraq:
Iraq
Nepal
Sudan
अन्य देशों में गुएतमाल , माली, पाकिस्तान,सऊदी अरब,सोमाली आदि हैं
INCOME GAPS
Poverty means pain for both men and women, but throughout the world it's women who suffer the most from lack of income. In these countries, women earn less than 50 per cent of men's incomes:
Benin 48 per cent
Bangladesh 46 per cent
Sierra Leone 45 per cent
Equatorial Guinea 43 per cent
Togo 43 per cent
Eritrea 39 per cent
Cape Verde 36 per cent
Yemen 30 per centSOURCE: UNDP Human Development Report
बहुत सुंदर चर्चा की है कविता जी ने... होली की ढेरो शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसुंदर चर्चा
ReplyDeleteरंगों के पर्व होली पर आपको हार्दिक शुभकामना.
आपको होली की बहुत सी शुभकामनायें....
ReplyDeletegood ideas...Happy Holi...
ReplyDeleteशुभकामनायें....
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