मुंबई मे मरने वालो की संख्या २०० . शहादत का दर्जा मिला केवल ३ पुलिस कर्मियों को जो मुंबई के थे । ऐसा क्यूँ । क्यूँ केवल उनके ही परिवारों को आर्थिक सहायता दी जा रही रही हैं । वो आम आदमी जो स्टेशन पर , सडको पर , अस्पताल मे , होटल के अंदर और बाहर मरा हैं क्या उसकी जिन्दगी की कोई कीमत नहीं हैं ? क्यों बराबर के मुआवजे का अधिकारी वो नहीं हैं । सरकारी खजाने एक आम आदमी के टैक्स से भरे जाते हैं । हर विपदा आपदा मे प्रधान मंत्री कोष मे दान एक आम आदमी करता हैं फिर केवल और केवल सुरक्षाकर्मी को क्यूँ "ओन ड्यूटी " माना जाता हैं ।
हम हर शहीद को नमन करते हैं और दिल से आभारी हैं की उन्होने अपनी जान पर खेल कर लोगो की जान बचाई पर एक आम आदमी की जान की क्या कोई कीमत नहीं हैं । जो ड्यूटी पर थे वो अपना फ़र्ज़ निभा रहे थे पर जो आम आदमी मरा वो किसी की लापरवाही से मरा ?
अगर "ओन ड्यूटी " मरने पर मुआवजा हैं तो ड्यूटी मे कोताही पर कोई आर्थिक दंड क्यूँ नहीं हैं ? किस की ड्यूटी हैं की देश सुरक्षित हैं , देश की सीमाए सुरक्षित हैं ये जानकारी रखने की ? क्यूँ उनको दण्डित नहीं किया जाता ? क्यों उन पर आर्थिक दंड नहीं होता ?
और सब से बड़ी बात क्यूँ आम आदमी की जिंदगी की कोई सरकारी इंश्योरंस नहीं होती ??
मुंबई पुलिस के तीन आफ़ीसर और आम आदमी एक ही जैसी मौत मरा लेकिन वो शहीद है जिनकी गलतियो की वजह से मुंबई ने झेली ये जख्म और जिसने भोगी इनकी लापरवाहियो की सजा वो शहीद छॊडिये लावारिसो मे पडा अपने अंतिम संसकार की बाट जोह रहा है . बस कुछ रौश्न लालो को शहीद शहीद गाने की जो आदत पडी है वही है जिम्मेदार इन हादसो की .
ReplyDeleteआप के सवाल महत्वपूर्ण हैं। लेकिन जिस रास्ते पर देश जा रहा है वहाँ सामाजिक सुरक्षा कंम ही होती जा रही है।
ReplyDeleteham sheedon koi nman karte hai....
ReplyDeletelekin jaan to har aadmi ki baraber hai......ye baat sachmuch sochne ki hai
मैं यही मुद्दा अपनी पोस्ट में उठाने वाला था, आपने लपक लिया।
ReplyDeleteमुझे भी यही लगता है कि जो ड्यूटी पर अपनी जान देता है, उसे पता होता है कि क्या कुछ हो सकता है। लेकिन उन निर्दोष लोगों ने तो सोचा भी नहीं होता जो अपनी जान ऐसे हादसों में खो देते हैं।
अभी सहारा की ओर से घोषणा हुयी है कि मासिक वेतन का पाँच गुना दिया जायेगा, 10 वर्ष तक उनको, जो ड्यूटी पर जान दे बैठे थे, जिनकी एक निश्चित आमदनी थी, जिन्हें सरकार भी क्षतिपूर्ति देगी। जिनके टैक्स की बदौलत ड्यूटी वालों को वेतन मिलता था, उन्होंने तो जान गवांई थी, उन्हें क्या मिला या मिलेगा? दो लाख-पाँच लाख का मुआवजा!
आप देख सकते हैं कि ऐसे मुआवजों को अब ठोकर मारने लग गये हैं नागरि्क। जान देने और जान गवांने में बहुत अंतर है, यदि समझा जाए तो।
सही और महत्वपूर्ण सवाल.
ReplyDeleteहम तो जी पहले ही दिन से ये सवाल उठा रहे है और गालिया खा रहे है अफ़लातून जी के रोशन ख्यालो से
ReplyDelete