कल २५ नवम्बर को विश्व नारी उत्पीड़न दिवस मनाया गया और कल ही हैना फ़ॉस्टर{Hanaah Foster } का रेप और मर्डर करने वाले मनिंदर पल सिंह कोहली को २४ साल की सजा सुनाई गयी ।
हैना फ़ॉस्टर केवल १७ साल की थी जब ४१ के कोहली ने टूशन पढ़ कर रात को घर आते समय हैना फ़ॉस्टर को उसके घर के पास से जबरन अपनी संडविच डिलिवरी वैन मे खीच लिया । उसके बाद निर्ममता से उसका रेप और मर्डर किया और फिर उसके शरीर को एक जगह फ़ेंक कर कोहली अपने घर चला गया ।
कुछ दिन बाद पुलिस का शिकंजा जब कसने लगा तो बिना अपनी पत्नी को बताये कोहली इंडिया आगया और यहाँ नाम और भेष बदल कर अपनी जिन्दगी गुजारने लगा । हैना फ़ॉस्टर के माता पिता ने अपनी लड़ाई नहीं छोड़ी और कल पाँच साल बाद ठीक नारी विश्व नारी उत्पीड़न दिवस के दिन उनकी बेटी के कातिल को सजा सुनाई गयी । सजा यू के मे सुनाई गयी ।
कोहली को सजा दिलाने मे जो प्रूफ़ बहुत काम आये वो थे
सीसीटीवी का फुटेज जिसमे साउथ हैम्पटन की सडको पर संडविच डिलिवरी वैन चक्कर लगाती दीखी
हैना फ़ॉस्टर के मोबाइल का सिग्नल उसी जगह से उसी समय मिला
हैना फ़ॉस्टर के मोबाइल से की गयी कॉल ९९९ पर जिसमे कुछ बाते कंप्यूटर से रिकॉर्ड हुई ।
पूरी ख़बर पर मेरा ध्यान करीब दो साल से रहा हैं , कुछ दिन पहले मसिजीवी जी ने एक पोस्ट मे सीसीटीवी पर कुछ सवाल उठाये थे उसदिन टिपण्णी मे भी मै इस केस मे सीसीटीवी की भूमिका के बारे मे लिखना चाहती थी पर नहीं लिखा ।
कल जब इस के का फैसला आया तो लगा की न्याय हुआ ।
फिर दिमाग मे प्रश्न उठा क्या अगर ऐसा हादसा इंडिया मे होता तो भी यही फैसला होता ?
क्यों हमारी न्याय प्रणाली इतनी सशक्त नहीं हैं की इतना घिनोना अपराध करने वाले अक्सर bail पर खुले घुमते दिखाई देते हैं ।
क्यूँ हमारे समाज मे माता पिता केवल इस लिये लड़ाई नहीं लड़ते की अब तो बच्ची रही ही नहीं और रेप हुआ था ये नहीं बताओ { नॉएडा का चर्चित हत्या काण्ड ले ले } ।
भगवान् हैना फ़ॉस्टर की आत्मा को शान्ति दे और उसके माता पिता को आगे का जीवन जीने की ताकत दे । नमन हैं उनकी लड़ाई को जिसे उन्होने ६ साल तक निरंतर जारी रखा और तारीफ़ है ब्रिटइश न्याय प्रणाली और पुलिस की जिन के परिश्रम से ये केस सुलझा ।
आप क्या कहते हैं ??
आप ने सही कहा, भारत में माता-पिता को बेटी को न्याय दिलाने से अधिक महत्वपूर्ण अपनी मिथ्या इज्जत लगती है। फॉस्टर के मां-बाप भारत आ कर कोहली को तलाश नहीं कर लेते तो शायद यह न्याय भी नहीं हो पाता।
ReplyDeleteइस ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ। इसलिए पहले तो ब्लॉग के शीर्षक " जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " के लिए दाद देना चाहूंगी। सधी हुई क्रांतिकारी परिभाषा।
ReplyDeleteहॉना या हॉना जैसी कितनी ही लड़कियों के साथ जो हादसा हुआ। उसकी भरपाई के लिए कोई भी सजा काफी नहीं। और उस पर अगर दोषी खुले आम घूमते हुए दिखे तो इससे ज़्यादा शर्मनाक कुछ और नहीं। मंदिरों में बैठकर देवी की पूजा हमें छोड़ देनी चाहिए अगर उसकी अस्मिता की रक्षा नहीं की जा सकती तो।
रचना जी,
ReplyDeleteहमें साथ देना किसका है उन माँ-बाप का जो लड़ते लड़ते थक जाते हैं, पर न्याय नहीं मिलाता है या फिर मिलती हैं धमकियां. हर इंसान इतना मजबूत नहीं होता, और हमारे यहाँ जैसा न्याय कहीं बिकाऊ नहीं होता . यहाँ सब बिकता है, पुलिस , जज, डाक्टर और गवाह , जिसकी जेब में ताकत होगी खरीद लेगा. फिर किस दरवाजे को khatakhataayenge हम.
इस अन्याय कि लडाई में हम साथ है - जब भी इसके खिलाफ आवाज उठाई जायेगी. उनमें एक आवाज मेरी भी होगी.