
व्हाइट हाउस ने इस बार ऐसे मनाया अक्टूबर 2008 स्तन कैंसर जागरूकता माह
स्तन कैंसर के मरीजों, उनके इलाज और रिसर्च में अपना आर्थिक, भावनात्मक, मॉरल सहयोग जताने के लिए लोग इस माह के किसी एक दिन या पूरे महीने ही कुछ न कुछ गुलाबी पहनते हैं। कपड़े, रुमाल, कड़े, जूते, रिबन, कॉफी मग, घड़ी का पट्टा... कुछ भी। और इसमें पुरुष भी पीछे नहीं। गुलाबी रंग स्तन कैंसर से कैसे जुड़ा, यह किस्सा अलग है।
फिलहाल एक और किस्सा आपके साथ बांटना चाहती हूं कि गुलाबी सिर्फ महिलाओं का रंग नहीं है। पुरुष भी उससे गहरे जुड़े हुए हैं।
एक अधेड़ उम्र का सुदर्शन पुरुष कैफे में पहुंचा और शांति से कोने की एक टेबल पर बैठ गया। कुछ देर में उसका ध्यान बगल वाली टेबल पर बैठे कुछ नौजवानों की तरफ गया जो उसे ही देख कर हंस रहे थे। फिर अचानक उसे कुछ ख्याल आया और वह समझ गया कि वे क्यों हंस रहे हैं। उसे याद आया कि उसने कोट के कॉलर वह गुलाबी रिबन टांका था, जिसे देख कर वे नौजवान उसका मज़ाक उड़ा रहे थे।

वह लड़का बोला,- “माफ करें, लेकिन नीले कोट पर यह गुलाबी रिबन बिल्कुल नहीं जंच रहा है।“
उस अधेड़ ने उसे इशारे से बुलाया और पास बैठने का न्यौता दिया। नौजवान असहज होकर उसके पास वाली कुर्सी पर बैठ गया। उस अधेड़ ने धीमी आवाज़ में कहा- “मैं स्तन कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए, अपनी मां के सम्मान में इसे पहनता हूं।”
“मुझे अफसोस है। क्या स्तन कैंसर ने उनकी जान ले ली थी?”
“नहीं, वह मरी नहीं हैं। लेकिन शैशवकाल में उनके स्तनों से मेरा पोषण हुआ, और लड़कपन में जब भी मैं डर या अकेलापन महसूस करता था तो अपना सिर उन पर रख कर आश्वस्त हो जाता था। मैं उनका शुक्रगुज़ार हूं।”
“अच्छा!।”
“मैं यह रिबन अपनी पत्नी के सम्मान में भी पहनता हूं।”
“उम्मीद है, अब वे भी ठीक हो गई होंगी?”
“हां, उन स्तनों ने 23 साल पहले मेरी प्यारी सी बेटी को पोषित किया, दिलासा दिया। वे हमारे स्नेहिल संबंधों में खुशी का स्रोत रहे हैं। मैं उनका भी आभारी हूं।”
“और आप इसे अपनी बेटी के सम्मान में भी पहनते होंगे?” नौजवान ने उकता कर कहा।
“नहीं। उसके सम्मान में इसे पहनने के लिए बहुत देर हो चुकी है। मेरी बेटी एक माह पहले स्तन कैंसर से मर गई। उसका ख्याल था कि इस कम उम्र में उसे स्तन कैंसर नहीं हो सकता। इसलिए जब एक दिन अचानक उसने गांठ महसूस की तो भी वह चैतन्य नहीं हुई, उसे नज़रअंदाज़ करती रही। उसे लगा कि चूंकि उसे दर्द नहीं होता है, उसलिए चिंता की कोई बात नहीं है।”
इस कहानी से विचलित नौजवान बरबस बोल उठा- “ओह, मुझे बहुत दुख हुआ जानकर।“
अधेड़ बोला- “अब मैं अपनी बेटी की याद में गर्व से यह रिबन लगाता हूं। यह मुझे, दूसरों को इस बारे में सतर्क और जागरूक करने में मदद करता है। अब घर जाकर अपनी पत्नी, मां, बेटी, रिश्तेदारों और मित्रों को इस बारे में बताना।
और यह लो ”- कहते हुए उस अधेड़ ने अपनी कोट की जेब से एक गुलाबी रिबन निकाल कर उसे थमा दिया।
बहुत सुंदर रचना !
ReplyDeleteजानकारी के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना है. आँखें भर आईं उनकी बेटी के बारे में पढ़ कर.
सुंदर तरीके से उपयोगी सूचना!
ReplyDeleteसुंदर तरीके से उपयोगी सूचना, धन्यवाद!
ReplyDeleteyah lekh bahut hi achha hai..bahut saari jankariyan bhi milti hai isse.
ReplyDeleteइस रचना और इसके सबक सब तक पहुंचे, इसकी मुझे खुशी है। ऐसे, कैंसर से जुड़े लेख, जानकारियों और दूसरी सामग्री के लिए मेरे ब्लॉग ranuradha.blogspot.com पर आ सकते हैं, सभी का स्वागत है, पढ़ने और लिखने के लिए भी।
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