नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

February 23, 2013

मै तुमको वुमन सेल में जाने की सलाह नहीं दे सकती . क्युकी इस निर्णय को लेने में तुमने बहुत देर कर दी

ये ईमेल दो तीन ईमेल में था इस लिये इसको "वार्तालाप " की तरह दे रही हूँ


मेरी परिचित महिला ब्लॉगर  "रचना क्या तुम्हारे पास वुमन सेल का नंबर है "


मै  " क्यूँ क्या हुआ , ये अचानक २ साल के अन्तराल के बाद मेल और वो भी वुमन सेल ? नारी ब्लॉग की पोस्ट का लिंक दे रही हूँ सारे पते और फ़ोन नंबर वहाँ उपलब्ध हैं "

मेरी परिचित महिला ब्लॉगर " क्या मै तुमको एक पत्र  भेज सकती हूँ , जिसको तुम अगर मुझे कुछ हो जाए तो सही जगह दे कर मेरे पति को सजा दिलवा देना " 

मै " तुम मुझे पत्र भेज सकती हो , लेकिन जिन्दगी के २५ साल किसी व्यक्ति के साथ बिताने के बाद ये फैसला कुछ अजीब हैं ? अपनी बात कहो हो सकता हैं कह देने मात्र से राहत हो " 

मेरी परिचित महिला ब्लॉगर " नहीं अब मेरी सेहन शक्ति की सीमा ख़तम हो चुकी हैं , मुझे लगता था ये कभी तो सुधर जायेगे , सिगरेट , शराब , मार पीट सब मैने इस लिये सहा क्युकी मेरी बेटियाँ थी और उनकी शादी होनी थी लेकिन आज जब शादी की बात करने जाओ तो सब को पिता चाहिये बात करने के लिये . बहुत से घरो में तो शादी की बाद वो माँ से करना ही नहीं चाहते . बेटियाँ नौकरी करती हैं लेकिन शादी नहीं करना चाहती क्युकी उनको लगता हैं शादी करके कहीं उनका जीवन भी नष्ट ना हो जाए . मेरे पास दहेज़ देने के लिये कुछ नहीं हैं क्युकी पति नौकरी नहीं करते . मेरी शादी इस लिये हुई थी क्युकी मेरी  माँ के पास अपनी सौतेली बेटी को  घर से निकालने का बस यही विकल्प था . मेरे पति कई बार आत्महत्या की कोशिश कर चुके हैं . अपने पिता की भी नहीं सुनते हैं . मै किसी भी स्थाई नौकरी में नहीं हूँ पर लिखने पढ़ने से कुछ कमा लेती हूँ . बेटियाँ अच्छा कमा लेती हैं लेकिन उनसे मै घर तो नहीं चलवा सकती " 

मै " अब इस समय तुम अगर वुमन सेल में जाती भी तो क्या हासिल होगा , अलग हो कर क्या कर सकती हो , पहले अपने लिये एक स्थाई नौकरी का तो प्रबंध करो . रहने के एक घर , खाने के लिये सामान इत्यादि सब चाहिये . मुझ से कोई मद्दत चाहिये हो तो कहो लेकिन मै तुमको वुमन सेल में जाने की सलाह  नहीं दे सकती . क्युकी इस निर्णय को लेने में तुमने बहुत देर कर दी " 


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अब ये समस्या मेरी मान ले और बताये क्या मैने गलत निर्णय लिया था , क्युकी उसके बाद उन्होने मुझ से बात करना ही बंद कर दिया . 

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21 comments:

  1. क्या कहा जाये सबकी अपनी सोच होती है

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  2. मुझे लगता है कि आपने कुछ ज्यादा ही हार्श वर्ड्स बोल दिए उनको. देर तो हो गयी है, लेकिन इतनी अधिक भी नहीं हुयी. विद्रोह न करने के बहुत से कारण होते हैं, लेकिन औरतें अक्सर अपने बच्चों की खातिर ऐसा नहीं करतीं. हमारे समाज में आज भी तलाकशुदा या पति से अलग रहने वाली औरतों की लड़कियों की शादी होने में बहुत दिक्कत आती है. तो जिसकी बेटियाँ हैं, उस औरत के लिए पति के विरुद्ध आवाज़ उठाना बहुत मुश्किल होता है.
    लेकिन अगर इस उम्र में भी वे ऐसा करना चाहती हैं, तो ठीक है. लेकिन ये भी कि ये काम उनको खुद ही करना होगा. उनके पति को सज़ा तो मिलनी ही चाहिए, ताकि उनके साथ ऐसे और लोगों को सबक मिले.

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    1. क्या सजा दी जा सकती हैं ऐसे व्यक्ति को जिसकी कोई आय भी नहीं ?? एक प्रकार का मानसिक रोगी हैं ये व्यक्ति जो खुद भी आत्म ह्त्या की कोशिश कर चुका हैं . कोई भी वकील इस को मानसिक रोगी कह कर दो मिनट में छुडवा सकता हैं या ईलाज के लिये पत्नी को बाध्य करवा सकता हैं
      जिन बेटियों के लिये इन्होने सहा हैं वो खुद इनके इस सहने के कारण विवाह नहीं करना चाहती . उनका विवाह ना करने का निर्णय उनकी इच्छा नहीं उनकी मज़बूरी हैं क्युकी उनको डर हैं की उनको भी कहीं ये सब ना भुगतना पड़े .
      आज उम्र के जिस पढाव पर वो हैं नौकरी मिलना क्या आसान हैं , अपने चारो तरफ एक सुखमय विवाहिता का पर्दा उन्होने ओढ़ रखा हैं . जबकि सुख और विवाह दो समान्तर रेखा हैं उनके लिये .

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  3. मुक्ति जी से सहमत हूँ लेकिन आपका कहना भी सही है कि पहले अपने बारे में आश्वस्त हो लें कि क्या करना है आगे का समय कैसा रहेगा ।उन्हें पहले अपनी बेटियों से बात करनी चाहिए ।उनके खिलाफ जाना सही नहीं होगा लेकिन ज्यादा संभावना हैं कि वे इनकी मदद करेंगी ही।अन्यथा मुश्किल हो सकती है।ऐसे केस में महिला पति से खर्चे का दावा भी कर सकती है।पर पति को एकदम से सजा नहीं होगी इसमें खासा समय लगेगा।हाँ इन्होने सोच ही लिया है तो मेरे हिसाब से इनको केस कर ही देना चाहिए।ठीक है कि थोड़ी परेशानी होगी लेकिन इतनी नहीं जितनी अभी है।

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  4. मुक्ति जी से सहमत हूँ लेकिन आपका कहना भी सही है कि पहले अपने बारे में आश्वस्त हो लें कि क्या करना है आगे का समय कैसा रहेगा ।उन्हें पहले अपनी बेटियों से बात करनी चाहिए ।उनके खिलाफ जाना सही नहीं होगा लेकिन ज्यादा संभावना हैं कि वे इनकी मदद करेंगी ही।अन्यथा मुश्किल हो सकती है।ऐसे केस में महिला पति से खर्चे का दावा भी कर सकती है।पर पति को एकदम से सजा नहीं होगी इसमें खासा समय लगेगा।हाँ इन्होने सोच ही लिया है तो मेरे हिसाब से इनको केस कर ही देना चाहिए।ठीक है कि थोड़ी परेशानी होगी लेकिन इतनी नहीं जितनी अभी है।

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  5. लेकिन उन्होंने ये क्यों कहा कि 'मुझे कुछ हो जाए तो...'? इसका मतलब ?

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    1. कई मतलब हैं
      एक अगर उनके पतिदेव आत्महत्या करले तो
      या उनके पतिदेव उनको मार दे तो

      या और भी बहुत
      मुझे वो इस लिये पत्र देना चाहती थी जिस से उनकी पुत्रियों को कभी थाना चोकी ना करनी पड़े लेकिन क्युकी दोनों पुत्रियाँ बालिग़ हैं इस लिये उस पत्र को मेरे पास होने से क्या फरक पड़ता . शायद एक मानसिक संतोष की बात होती

      पर इस सब की नौबत क्यूँ आनी चाहिये , क्या पति का व्यवहार एक दम से बदला नहीं , शुरू से था , तब इन्होने क्यूँ नहीं अपने को आत्म निर्भर बनाया ? आप कहेंगे कोशिश की होंगी
      मेरा मानना हैं की ये शादी कर के "सब ठीक होगा " , "सहना " और "सामंजस्य बिठाने" की व्यवस्था ही गलत हैं . लड़की के अभिभावक सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं मेरी नज़र में जो बेटियों के सुरक्षित भविष्य के लिये "शादी " को कवच मानते हैं और बिगड़ले लडको के लिये "शादी को "राम बाण औषधि " ये समाज मानता हैं

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  6. अगर हम माध्यम वर्गीय परिवारों में जिनमें की आज बेटे और बेटियां बड़े हो चुके हैं तो उनमें भी महिलाएं इसा तरह के व्यवहार से दो चार हो रही है . यहाँ तो बात अलग है , अपने मजबूत करके ही विद्रोह की आवाज उठाई जा सकती है . लेकिन तब तक तो शायद ये जिन्दगी ही ख़त्म हो चुकी होगी . सब कुछ चुक जाता है इस तरह से झेलते हुए. ये हमारे समाज की त्रासदी है कि माँ से शादी की बात करने कुछ लोग अपनी तौहीन समझते हैं एक गैर जिम्मेदार पिता से एक जिम्मेदार माँ अधिक विश्वनीय होगी .

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  7. मुक्तिजी और रेखाजी की टिप्पणी से समस्या का समाधान की सम्भावना हो परन्तु समस्या झेल रहे व्यक्ति की मनस्थिति पर बहुत कुछ निर्भर करता है कभी समस्याएं जीवन की बाजी लगाकर सुलझानी पड़ती हैं। नारी स्वभाव सहनशीलता की प्रतिमूर्ति है तो वज्र साहस की मिसाल भी। धैर्य कब चुकता है बस इतनी ही तो बात है जीवन जीना सब के लिये इतना सरल भी नहीं होता जितना दीखता है नारी के लिए हमारे यहाँ समाज नाम की व्यवस्था बड़ी कठोर और वीभत्स है और क्षमा कीजियेगा उसमे नारी के एक वर्ग विशेष की भूमिका भी स्तुत्य तो नहीं ही है

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  8. She is the only one who can decide what she wants to do.

    If she wishes to separate at this stage ,it is her decision. On the other hand if she wants to continue the marriage, it is her decision once again.

    Woman cell can and will help in both cases to live better.

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  9. यही फर्क है समाज में ...और इस फर्क को मिटाने का एक बहुत बड़ा सुअवसर है ...
    आपकी मित्र के पति कुछ काम नहीं करते। आपकी मित्र के पास काबिल बेटियाँ हैं, फिर डर किस बात का है ? अपनी बेटियों को उन्होंने स्वावलंबी बनाया है, बेटियाँ अच्छा कमा रहीं हैं, अच्छी नौकरी कर रहीं हैं। ये लडकियां ज़रूर समझदार होंगी। अपनी परिवार की समस्या के बारे में आपकी मित्र अपनी बेटियों से खुल कर बात करें । जब लडकियां कमातीं हैं तो उनकी कमाई से परिवार का खर्च क्यों नहीं चल सकता ?? क्या लड़कियों का यह कर्तव्य नहीं है ? पिता ने कभी कुछ नहीं किया, वो करना भी नहीं चाहता फिर उससे उम्मीद भी क्यों करनी ? लडकियाँ खुद अपना जीवन साथी ढूँढें, शादी से पहले ही अपने भावी पतियों को साफ़ साफ़ बता दें सारी सिचुएशन और ये भी की माँ की देख-भाल की जिम्मेदारी भी उनकी ही है। ऐसे लड़कों को भी अब सामने आना चाहिए जो ऐसी जिम्मदारी लें। अगर ऐसे लड़के मिलते हैं, तो बहुत ही अच्छी बात होगी, वर्ना लडकियां वैसे भी शादी नहीं करना चाहतीं। पूरा परिवार पिता को दरकिनार करे और अपना जीवन चलाये। वीमेन सेल इस समस्या का समाधान नहीं है, इस समस्या का समाधान उनके, अपने ही हाथ में है, मुझे नहीं लगता सिचुएशन इतनी बुरी है, ज़रुरत है सिर्फ लड़का-लड़की का भेद मिटाने का। लड़कियों को अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाने का। भूलना होगा कि ये माँ का घर है, ये माँ का नहीं उनका अपना घर है।

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    1. :)ada great mathematics
      :) could be typing error shilpa , though not sure :)

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    2. स्वप्न मञ्जूषा जी---- आपकी बात शत प्रतिशत सही है। मैं पूरी तरह सहमत हूँ।

      Rachna जी जैसा आपने कहा है कि-मेरा मानना हैं की ये शादी कर के "सब ठीक होगा " , "सहना " और "सामंजस्य बिठाने" की व्यवस्था ही गलत हैं . लड़की के अभिभावक सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं मेरी नज़र में जो बेटियों के सुरक्षित भविष्य के लिये "शादी " को कवच मानते हैं और बिगड़ले लडको के लिये "शादी को "राम बाण औषधि " ये समाज मानता हैं।

      आपने भी एकदम कांटे की बात कही है।

      हमारा समाज (जो किसी काम का नहीं, पैसे वाली की बीबी को दीदी/बहिनजी और गरीब की बीबी को भाभी कहता है।)और इसके कुछ घिसे-पिटे रीति रिवाज जब तक नहीं बदलते ऐसी वारदात सामने आती रहेगी। वूमैन सैल जाने पर सिर्फ़ दो काम हो सकते है पहला सुलह जो सिर्फ़ कुछ दिन या कुछ घन्टों तक ही चल पाने की सम्भावना होती है। क्योंकि कोई अपना स्वभाव/आदत कभी नहीं बदल सकता है।(अपवाद स्वरुप थोड़ी बहुत तबदीली आने की उम्मीद हमेशा रहती है। लेकिन ऐसा किस्मत वालों के साथ होता है।) दूसरा काम वूमैन सैल अदालत में केस करा सकती है, जहाँ पर पता नहीं कितने साल लगे (5-10-15) कोई नहीं जानता? उसके लिये भी कई सबूत चाहिए होंगे। बिना सबूत व गवाह वहाँ कोई काम नहीं बनने वाला?????????

      अन्त में एक बार फ़िर मैं स्वप्न मञ्जूषा जी बात से 100 % सहमती दर्शाता हूँ।

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  10. डर ....मायेके का,...ससुराल का,...बच्चों का,..अकेलेपन का,....और फिर समाज !!!!!
    बस इन्हीं के दर के साये में है हमारा जीना ....."लोग क्या कहेंगे "????

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  11. उनके पति मानसिक रूप से बीमार है उन्हें उनका इलाज करना चाहिए था , मुझे नहीं लगता है की अब भी उनकी कौंसलिंग नहीं की जा सकती है , ये नहीं किया तो जब वो उनको छोड़ कर जाने का या उनके खिलाफ कुछ भी करने का प्रयास करेंगी वो फिर से आत्महत्या का प्रयास करेंगे या उन्हें ऐसा करने की धमकी देंगे , जैसा की वो सोच रही है इस कारण उनको या उनकी बेटियों को परेशानी होगी , फिर इलाज का सभी को पता होंगा तो ऐसा कुछ भी होने पर उन्हें परेशानी कम होगी । दुसरे उनके फैसलों में उनकी बेटिया क्यों नहीं शामिल है , ये फैसला तो काफी पहले ही कर लेना चाहिए था पढ़ी लिखी और आत्मनिर्भर बेटिया क्या अपनी माँ की कोई मदद नहीं करती है चाहे पिता को ये सब करने से रोकना हो या उनको भावनात्मक मदद देने में , मुझे लगता है की वो बेटियो से भी ज्यादा खुली हुई नहीं है , ये गलत है पति ख़राब है तो क्या हुआ बेटियों के साथ तो खुल कर रहना चाहिए था । उसी की कमी है तभी उन्हें आप को ख़त लिखना पडा नहीं तो उनकी समस्या को सुलझाने के लिए उनकी बेटिया ही काफी थी । मुझे नहीं लगता है की किसी भी फैसले के लिए कभी कोई देरी होती है ऐसे फैसलों के लिए तो यही कहा जाता है की जब जागे तभी सवेरा , आत्मनिर्भर बेटियों के साथ वो कभी भी अलग हो सकती है और बेटियों का फर्ज है की वो अपने माँ का ख्याल रखे । ऐसे विवाह में रहने को कोई भी समाज नहीं कहता है ।

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    1. लेकिन एक बार इलाज करवाना शुरु किया तो घरेलू हिंसा का केस कभी नहीं कर पाएँगी।उनका पक्ष कमजोर हो जाएगा।ये बात तो वही बता सकती हैं कि वह मानसिक रोगी है या नहीं।बाकी लोगों के साथ पति का व्यवहार कैसा है आदि ।हालाँकि ये कोई जरूरी नहीं कि कोई मानसिक रोगी है तो उसका व्यवहार सभी के साथ खराब ही हो पर हाँ आत्महत्या के प्रयास का तो नाटक भी किया जा सकता है ।डराने के लिए कई लोग ऐसा करते हैं।घरेलू हिंसा के किसी भी केस में यदि मनोचिकित्सक से यदि परामर्श लिया जाए तो मुझे लगता है ऐसे ज्यादातर लोग मनोविज्ञान की दृष्टि से मानसिक रोगी ही मान लिए जाएँगे।जो इलाज नहीं करवा सकते वो फिर कुछ कर नहीं पाएँगे।

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    2. तो क्या हुआ राजन जी ? यदि वे चिकित्सक के पास जायंगे तो ही जान पायेंगे की वह यक्ति मानसिक रोगी है भी या नहीं । हमार उद्देश्य पुरुष को घरेलु हिंसा का अभियुक्त साबित करना होना चाहिए या सत्य के साथ होना ?

      यदि कोई व्यक्ति मानसिक रोगी है, तो उसे चिकित्सिकीय सुविधा मिलनी ही चाहिए । पहले से कुछ भी मान कर चलना शायद उचित नहीं होगा । मानसिक रोगी को जानते बूझते चिकित्सिकीय सहायता से दूर रखना जिससे उसे गुनाहगार साबित किया जा सके - सिर्फ इसलिए कि वह पुरुष है - क्या यह भी घरेलु हिंसा नहीं है ? यदि वह रोगी नहीं है, तो यह भी साबित हो जाएगा चिकित्सक की जांच से ।

      स्त्री आत्महत्या कर ले तो पति दोषी, और पुरुष आत्महत्या कर ले तो भी पति दोषी ? यह तो न्याय नहीं हुआ ?

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    3. राजन जी

      जो व्यक्ति अपने पत्नी को रोज पीटता हो और बार बार आत्महत्या का प्रयास कर रहा है, डराने के लिए ही सही, वो मानसिक रोगी ही है और उसे इलाज की जरुरत है । दुसरे यदि वो चिकित्सक के पास लेगी और उनका इलाज शुरू हो गया तो दो बाते होगी या तो वो ठीक हो जायेंगे और किसी को कई परेशानी नहीं होगी या फिर ठीक न होने पर पति को छोड़ कर जाती है और पति आत्महत्या कर ले तो दोष उन पर नहीं आएगा की उन्होंने उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर किया , जिससे वो डर रही है की उनकी बेटियों को बाद में परेशानी न हो । और इलाज हर बार चिकित्सक ही करे जरुरी नहीं होता है कभी कभी कुछ एन जी ओ के लोग भी ऐसे लोगो की काउंसलिंग करते है, वो उसी से ठीक हो सकते है या ये भी कह सकते है की उनका दिमाग ठिकाने लग जाता है की ज्यादा पत्नी को परेशां किया तो वो मेरे खिलाफ कड़े कदम उठाएगी ।

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  12. स्वप्न मंजूषा जी की बात से पूरी तरह से सहमत हूं....आपने भी सही राय दी की जिसकी कोई आय न हो उससे क्या हर्जाना मिलेगा..क्या गुजारा भत्ता मिलेगा...उल्टा अब तो बेटियों को मां की साथी बनकर रहना चाहिए...आखिर वो भी औऱत हैं...अगर वो अपनी मां का दर्द नहीं समझेंगी तो कौन समझेगा...हां मां वही पुरातन प्रथा वाली हों कि बेटी की कमाई नहीं खानी हैं तो कोई क्या कर सकता है। प्रेक्टिल बात तो यह है कि अब बेटियों को मां का साथ निभाना चाहिए। और ये भी नहीं सोचना चाहिए कि हर पुरुष उनके पिता की तरह होगा....। आज भी कई लड़के हैं जो शादी करने को राजी हो जाएंगी..ठीक उसी तरह जैसे हर लड़की अपने ससुराल को दहेज कानून में झूठा नहीं फंसाती...जाहिर है कि समझदारी दिखाने का समय है...ऐसे में समाज और बेटियां क्या रुख लेती हैं ये ही आने वाला कल होगा

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