क्या हाऊस वाईफ का कोई अस्तित्व नहीं ?
क्या उसे financial decision लेने का कोई अधिकार नहीं ?
क्या हाऊस वाईफ सिर्फ बच्चे पैदा करने और घर सँभालने के लिए होती हैं ?
क्या हाऊस वाईफ का परिवार , समाज और देश के प्रति योगदान नगण्य हैं ?
यदि नहीं हैं तो
क्यों ये आजकल के लाइफ insurance , बैंक या mutual fund आदि से फ़ोन पर पूछा जाता हैं कि आप हाऊसवाईफ हैं या वर्किंग ?financial decision तो सर लेते होंगे ?
इस तरह के प्रश्न करके ये लोग हाऊस वाईफ के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा नहीं कर रहे ?
क्यों आज ये पढ़े लिखे होकर भी ऐसी अनपढ़ों जैसी बात पूछी जाती हैं और सबसे मज़ेदार बात ये कि पूछने वालीभी महिला होती हैं .
क्यूँ उसे पूछते वक्त इतनी शर्म नहीं आती कि महिलाएं वर्किंग हों या हाऊस वाईफ उनका योगदान देश के विकास मेंएक पुरुष से किसी भी तरह कमतर नहीं हैं . जबकि आज सरकार ने भी घरेलू महिलाओं के योगदान को सकलघरेलू उत्पाद में शामिल करने का निर्णय लिया हैं .................अपने त्याग और बलिदान से , प्रेम और सहयोग सेहाऊस वाईफ इतना बड़ा योगदान करती हैं ये बात ये पढ़े लिखे अनपढ़ क्यूँ नहीं समझ पाते ?
आज एक स्वस्थ और खुशहाल समाज इन्ही हाऊस वाईफ की देन हैं यदि ये भी एक ही राह पर निकल पड़ें तोपश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करने में कोई कमी नहीं रहेगी और उसका खामियाजा वो चुका रहे हैं तभी वो भी हमपूरब वालों की तरफ देख रहे हैं और हमारे रास्तों का अनुसरण कर रहे हैं . आज बच्चों की परवरिश और घर कीदेखभाल करके जो हाऊस वाईफ अपना योगदान दे रही हैं वो किसी भी वर्किंग वूमैन से काम नहीं हैं ---------क्याये इतनी सी बात भी इन लोगों को समझ नहीं आती ?
इस पर भी कुछ लोगों को ये नागवार गुजरता है और वो उनके अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं ..........पतिऔर पत्नी दोनों शादी के बाद एक इकाई की तरह होते हैं फिर सिर्फ आर्थिक निर्णय लेने की स्थिति में एक को हीमहत्त्व क्यूँ? क्या सिर्फ इसलिए क्यूंकि वो कमाता है ? ऐसा कई बार होता है कि कोई मुश्किल आये और पति न होतो क्या पत्नी उसके इंतज़ार में आर्थिक निर्णय न ले ? या फिर पत्नी की हैसियत घर की चारदीवारी तक ही बंद हैजबकि हम देखते हैं कि कितने ही घरों में आज और पहले भी आर्थिक निर्णय महिलाएं ही लेती हैं........पति तो बसपैसा कमाकर लाते हैं और उनके हाथ में रख देते हैं ..........उसके बाद वो जाने कैसे पैसे का इस्तेमाल करना हैजब पति पत्नी को एक दूसरे पर इतना भरोसा होता है तो फिर ये कौन होते हैं एक स्वच्छ और मजबूत रिश्तेमें दरार डालने वाले.............ये कुछ लोगों की मानसिकता क्या दर्शा रही है कि हम आज भी उस युग में जी रहे हैंजहाँ पत्नी सिर्फ प्रयोग की वस्तु थी ............मानती हूँ आज भी काफी हद तक औरतों की ज़िन्दगी में बदलाव नहींआया है तो उसके लिए सिर्फ हाउस वाइफ के लिए ऐसा कहना कहाँ तक उचित होगा जबकि कितनी ही वोर्किंगवुमैन भी आज भी निर्णय नहीं ले पातीं ...........उन्हें सिर्फ कमाने की इजाजत होती है मगर खर्च करने या आर्थिकनिर्णय लेने की नहीं तो फिर क्या अंतर रह गया दोनों की स्थिति में ? फिर ऐसा प्रश्न पूछना कहाँ तक जायज है किनिर्णय कौन लेता है ? और ऐसा प्रश्न क्या घरेलू महिलाओं के अस्तित्व और उनके मन सम्मान पर गहरा प्रहारनहीं है ?
ऐसी कम्पनियों पर लगाम नहीं लगाया जाना चाहिए ..........उन्हें इससे क्या मतलब निर्णय कौन लेता है .........वोतो सिर्फ अपना प्रयोजन बताएं बाकि हर घर की बात अलग होती है कि कौन निर्णय ले ...........ये उनकी समस्या हैचाहे मिलकर लें या अकेले........उन्हें तो इससे फर्क नहीं पड़ेगा न ........फिर क्यूँ ऐसे प्रश्न पूछकर घरेलू महिलाओंके अस्तित्व को ही सूली पर लटकाते हैं ?
क्या आप भी ऐसा सोचते हैं कि -----------
घरेलू महिलाएं निर्णय लेने में सक्षम नहीं होतीं?
उन्हें अपने घर में दायरे तक ही सीमित रहना चाहिए?
आर्थिक निर्णय लेना उनके बूते की बात नहीं है ?
जो ये कम्पनियाँ कर रही हैं सही कर रही हैं? ..........
क्या उसे financial decision लेने का कोई अधिकार नहीं ?
क्या हाऊस वाईफ सिर्फ बच्चे पैदा करने और घर सँभालने के लिए होती हैं ?
क्या हाऊस वाईफ का परिवार , समाज और देश के प्रति योगदान नगण्य हैं ?
यदि नहीं हैं तो
क्यों ये आजकल के लाइफ insurance , बैंक या mutual fund आदि से फ़ोन पर पूछा जाता हैं कि आप हाऊसवाईफ हैं या वर्किंग ?financial decision तो सर लेते होंगे ?
इस तरह के प्रश्न करके ये लोग हाऊस वाईफ के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा नहीं कर रहे ?
क्यों आज ये पढ़े लिखे होकर भी ऐसी अनपढ़ों जैसी बात पूछी जाती हैं और सबसे मज़ेदार बात ये कि पूछने वालीभी महिला होती हैं .
क्यूँ उसे पूछते वक्त इतनी शर्म नहीं आती कि महिलाएं वर्किंग हों या हाऊस वाईफ उनका योगदान देश के विकास मेंएक पुरुष से किसी भी तरह कमतर नहीं हैं . जबकि आज सरकार ने भी घरेलू महिलाओं के योगदान को सकलघरेलू उत्पाद में शामिल करने का निर्णय लिया हैं .................अपने त्याग और बलिदान से , प्रेम और सहयोग सेहाऊस वाईफ इतना बड़ा योगदान करती हैं ये बात ये पढ़े लिखे अनपढ़ क्यूँ नहीं समझ पाते ?
आज एक स्वस्थ और खुशहाल समाज इन्ही हाऊस वाईफ की देन हैं यदि ये भी एक ही राह पर निकल पड़ें तोपश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करने में कोई कमी नहीं रहेगी और उसका खामियाजा वो चुका रहे हैं तभी वो भी हमपूरब वालों की तरफ देख रहे हैं और हमारे रास्तों का अनुसरण कर रहे हैं . आज बच्चों की परवरिश और घर कीदेखभाल करके जो हाऊस वाईफ अपना योगदान दे रही हैं वो किसी भी वर्किंग वूमैन से काम नहीं हैं ---------क्याये इतनी सी बात भी इन लोगों को समझ नहीं आती ?
इस पर भी कुछ लोगों को ये नागवार गुजरता है और वो उनके अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं ..........पतिऔर पत्नी दोनों शादी के बाद एक इकाई की तरह होते हैं फिर सिर्फ आर्थिक निर्णय लेने की स्थिति में एक को हीमहत्त्व क्यूँ? क्या सिर्फ इसलिए क्यूंकि वो कमाता है ? ऐसा कई बार होता है कि कोई मुश्किल आये और पति न होतो क्या पत्नी उसके इंतज़ार में आर्थिक निर्णय न ले ? या फिर पत्नी की हैसियत घर की चारदीवारी तक ही बंद हैजबकि हम देखते हैं कि कितने ही घरों में आज और पहले भी आर्थिक निर्णय महिलाएं ही लेती हैं........पति तो बसपैसा कमाकर लाते हैं और उनके हाथ में रख देते हैं ..........उसके बाद वो जाने कैसे पैसे का इस्तेमाल करना हैजब पति पत्नी को एक दूसरे पर इतना भरोसा होता है तो फिर ये कौन होते हैं एक स्वच्छ और मजबूत रिश्तेमें दरार डालने वाले.............ये कुछ लोगों की मानसिकता क्या दर्शा रही है कि हम आज भी उस युग में जी रहे हैंजहाँ पत्नी सिर्फ प्रयोग की वस्तु थी ............मानती हूँ आज भी काफी हद तक औरतों की ज़िन्दगी में बदलाव नहींआया है तो उसके लिए सिर्फ हाउस वाइफ के लिए ऐसा कहना कहाँ तक उचित होगा जबकि कितनी ही वोर्किंगवुमैन भी आज भी निर्णय नहीं ले पातीं ...........उन्हें सिर्फ कमाने की इजाजत होती है मगर खर्च करने या आर्थिकनिर्णय लेने की नहीं तो फिर क्या अंतर रह गया दोनों की स्थिति में ? फिर ऐसा प्रश्न पूछना कहाँ तक जायज है किनिर्णय कौन लेता है ? और ऐसा प्रश्न क्या घरेलू महिलाओं के अस्तित्व और उनके मन सम्मान पर गहरा प्रहारनहीं है ?
ऐसी कम्पनियों पर लगाम नहीं लगाया जाना चाहिए ..........उन्हें इससे क्या मतलब निर्णय कौन लेता है .........वोतो सिर्फ अपना प्रयोजन बताएं बाकि हर घर की बात अलग होती है कि कौन निर्णय ले ...........ये उनकी समस्या हैचाहे मिलकर लें या अकेले........उन्हें तो इससे फर्क नहीं पड़ेगा न ........फिर क्यूँ ऐसे प्रश्न पूछकर घरेलू महिलाओंके अस्तित्व को ही सूली पर लटकाते हैं ?
क्या आप भी ऐसा सोचते हैं कि -----------
घरेलू महिलाएं निर्णय लेने में सक्षम नहीं होतीं?
उन्हें अपने घर में दायरे तक ही सीमित रहना चाहिए?
आर्थिक निर्णय लेना उनके बूते की बात नहीं है ?
जो ये कम्पनियाँ कर रही हैं सही कर रही हैं? ..........
are bhaai hous wife hmari bahn bloging ki duniyaa ki sirmor he fir kya khen . akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteअत्यंत विचारणीय प्रश्न उठाए है आपने....घरेलू महिलाओं को अकसर फुरसतिया और निर्णय लेने में अक्षम मान लिया जकतक है...इस पर सभी को विचार करना चाहिए।
ReplyDeleteएक अत्यंत सार्थक मुद्दा उठाने के लिए बधाई।
घरेलू महिलाएं निर्णय लेने में सक्षम नहीं होतीं?
ReplyDeletehotee haen par unkae har niranay mae prathmiktaa unkae pati ki hi hotee haen kyuki wo paesa laataa haen
उन्हें अपने घर में दायरे तक ही सीमित रहना चाहिए?
unka dayra simit ho hi jataa haen kyuki ghar sae bahar kyaa ho rhaa haen yae wo daekhna nahin chahtee haen karan kuchh bhi ho
आर्थिक निर्णय लेना उनके बूते की बात नहीं है ?
aarthik nirnay wahi laetaa haen jo paesa laataa haen kamaa kar aur ghar mae rhane waali har patni kabhie naa kabhie yae jarur suntee haen " paesa kaesae kamaya jata haen tumko kyaa pataa
जो ये कम्पनियाँ कर रही हैं सही कर रही हैं?
company samaaj kaa darpana hae agr sab housewife jo sahii aur achchaa nahin haen us par turant apna virdoh phone par hi pragat kar dae aur phone karnae / karnae vaali ko kshma mangnae ko kahe to yae apnae aap sahii ho jayegaa
naari blog par vandana ji kaa swaagat haen
ReplyDeleteसबसे पहले तो वंदना दीदी का लेख नारी ब्लॉग पर देख कर अच्छा लगा :)
ReplyDelete@फिर ऐसा प्रश्न पूछना कहाँ तक जायज है किनिर्णय कौन लेता है ? और ऐसा प्रश्न क्या घरेलू महिलाओं के अस्तित्व और उनके मन सम्मान पर गहरा प्रहारनहीं है ?
ReplyDeleteहाँ "उलटे सीधे प्रश्न" .. आजकल तो सब पूछ रहे हैं .. (आप भी.... मैं भी .... वो भी )
एक सिंपल सा प्रश्न मेरा भी लाइफ insurance , बैंक या mutual fund आदि से फ़ोन पर पर ये जो पूछा जाता है (अक्सर महिला द्वारा) ..........एक कोमन सेन्स वाली बात क्या है ?????
(आज के "टाइम इज मनी" वाले सिद्दांत पर चलने वाले समाज (स्त्री पुरुष दोनों शमिल ) + कोमन सेन्स को ध्यान में रखते हुए + जेंडर को ध्यान से हटा कर सोचियेगा )
~~~मतलब उसे क्या पूछना चाहिए ???
~~~फोन ही रख देना चाहिए ????
~~~स्कीम बतानी चाहिए ??(ये काम उनका समय लेता है )
~~~क्या ये इस बात का प्रतीक नहीं है की पूछने वाली (वाला ) कन्फ्यूज है आपके निर्णय लेने के स्टेटस के बारे में जो एक अच्छी बात है (यही बात दो भाइयों को ध्यान में रख कर भी सोचियेगा , एक कमाता है.... एक नहीं )
मुझे लगता है हमें इन बातों से ज्यादा उस विचार बिंदु पर चिंतन करना चाहिए जिसके चारों हमारी सोच गोल गोल घूमती रह जाती है ....क्योंकि परिवर्तन आ नहीं रहा है ......मुझे ऐसे कईं बुद्धिजीवी (स्त्री पुरुष) मिलते हैं जो कभी तो परिवर्तन (धारा के विपरीत) की बात करते हैं कभी "परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेने में बुद्दिमानी है" समझाते है
ReplyDeleteएक और बात .....
ReplyDelete" रूढ़िवादी पुरुष" मेरी नज़रों में वो है जो हर बात को अपने पुरुष होने से जोड़ कर देखते हैं.... मैंने कईयों से कहा है और इस कमीं के दूर होने पर व्यवहार/सोच में सुधार आता है .. ये विकास की दिशा है
अब यही बात स्त्रियों पर लागू होती है .. माना ये चुभने वाली बात है (साइकोलोजी क एंगल से ) पर इस एंगल (गृहणियों का अपमान) से देखना मुझे सही नहीं लगा .. ये किसी के भी साथ हो सकता है, बाकी ऊपर के कमेन्ट में उदाहरण से स्पष्ट कर दिया है
(कोई कमेन्ट गैर जरूरी लगे तो अनुरोध है "हटा दीजियेगा" पर इस बात पर सोचियेगा जरूर )
शेष तो पता नहीं, ये हाउस-वाइफ न हो तो कम-से-कम हमजैसों का तो एक मिनट जीना दुश्वार हो जाये....!!
ReplyDeleteवंदना जी नारी ब्लॉग पर आप का स्वागत है | अभी कंपनिया समाज के बनाये पुराने ढांचे और चलन के हिसाब से ही चल रही है जल्द ही वो भी समझ जाएँगी की गृहणी भी अब घर के हर मामले में निर्णय लेने लगी है ,कुछ ये बात समझ चुकी है, विज्ञापनों को देख कर आप समझ सकती है की वहा पर अब गृहणियो को एक बड़े उपभोक्ता के रूप में देख जा रहा है |
ReplyDeleteवाह गौतम , तब भी आज तक तुम्हारी की हुई चिटठा चर्चा मे इस ब्लॉग का जिक्र नहीं आया हैं . तुमको यहाँ देख कर खुश हूँ उम्मीद पर दुनिया कायम हैं
ReplyDeleteअंशुमाला जी सही कह रही हैं…
ReplyDeleteकम्पनियाँ सुधर रही हैं, लेकिन बहुत धीरे-धीरे…
वंदना जी,
ReplyDeleteबहुत ज्वलंत प्रश्न उठाया है. हॉउस वाइफ का जो दर्जा है वह कमाने वाले पुरुष भी नहीं ले सकते हैं. पूछने वालों को शायद ये नहीं मालूम है की कमाने वाले को आते डाल का भाव भी मालूम नहीं होता घर के अर्थशास्त्र को सिर्फ यही हाउस वाइफ ही ले पाती है. जो ऐसा सोचते हैं उनकी सोच पर तरस आता है. आर्थिक निर्णय लेने का अधिकार तो कभी कभी पति से अधिक कमाने वाली पत्नियों को भी नहीं होता तो क्या सिर्फ कमाने भर से स्त्री का ओहदा बढ़ जाता है.
आपके इस प्रयास और कदम की हम सराहना करते हैं बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDelete...आज एक स्वस्थ और खुशहाल समाज इन्ही हाऊस वाईफ की देन हैं यदि ये भी एक ही राह पर निकल पड़ें तोपश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करने में कोई कमी नहीं रहेगी और उसका खामियाजा वो चुका रहे हैं ...
ReplyDeleteWao, that is a pretty absurd explanation of what is happening in the west. When women in west struggled to come out of homes to make a living they did not abandon domestic duties, but gradually their jobs became demanding and they started asking their male partners to step up. When men did not step up to do their share of domestic chores women felt if they could make a living and run a household at the same time why do they need to serve men. It is male failure to change and accomodate not just women stepping out of homes.
...जब पति पत्नी को एक दूसरे पर इतना भरोसा होता है तो फिर ये कौन होते हैं एक स्वच्छ और मजबूत रिश्तेमें दरार डालने वाले...
If their is mutaul trust and respect in a relationship then do you realistically say someone stranger can disintegrate it in 2 minute phone call.
If a phone call asks a housewife (who is not making any financial decisions in the household) who makes those decisions then it should rather wake her up and she should start asking that question and why he makes the decisions.
Please be reasonable.
Your post raises valid points but the line of reasoning is weak.
Peace,
Desi Girl
वंदनाजी, हाऊस वाइफ के कारण ही यह दुनिया सहजता से चल रही है। देश की उन्नति में दिए जा रहे योगदान के लिए भारतीय समाज सदैव उनका ऋणी रहेगा। हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत उन देशों की सूची में सबसे ऊपर है जो महीने के लिए निर्धारित किए गए बजट के अनुसार ही चलटा है और घर को चलाता कौन है यह तो सब को मालूम है....एक अच्छी पोस्ट के लिए धन्यवाद...सादर।
ReplyDeleteशुक्रिया दोस्तों जो कहा उसे समझने और अपने सुझाव देने का………यही कोशिश है कि जो गलत चल रहा है उसे बदला जाये और उसके लिये आवाज़ उठायी जा सके ताकि उन्हे पता चल सके आज की नारी अब अबला नही रही …………पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चलने मे सक्षम है तो फिर आर्थिक निर्णय इतनी बडी बात नही है………हर नारी को उसके अधिकारो का पता चले और उसका कैसे ्मानसिक शोषण किया जा रहा है उसका पता चल सके इसलिये ये आहवान किया गया है जो काफ़ी हद तक सफ़ल है ।
ReplyDeleteक्यों आज ये पढ़े लिखे होकर भी ऐसी अनपढ़ों जैसी बात पूछी जाती हैं और सबसे मज़ेदार बात ये कि पूछने वालीभी महिला होती हैं .
ReplyDeleteजबकि हम देखते हैं कि कितने ही घरों में आज और पहले भी आर्थिक निर्णय महिलाएं ही लेती हैं........पति तो बसपैसा कमाकर लाते हैं और उनके हाथ में रख देते हैं ..........उसके बाद वो जाने कैसे पैसे का इस्तेमाल करना हैजब पति पत्नी को एक दूसरे पर इतना भरोसा होता है तो फिर ये कौन होते हैं एक स्वच्छ और मजबूत रिश्तेमें दरार डालने वाले.............ये कुछ लोगों की मानसिकता क्या दर्शा रही है
aawashyakata aawiskar ki janani hai , agar kisi ko shikayat hai to house hasbend ki byawastha apanaya jay jaise meghalay rajy ,nepal desh me kuchh jatiyon me laagu hai kampalen kis bat ka ,lokatantr hai koi bhi byawastha apnaai ja sakati hai ?
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