आज क्या कहूं मन बहुत क्षुब्ध है कारण वही की आज भी ऐसी महिलाएं हैं जो अपने अधिकारों को जानते हुए भी दुःख सहती हैं और खुद ही रोती रहती हैं.महिलाओं के भाग्य में रोना केवल पुरुष वर्ग ने ही नहीं लिखा बल्कि ये रोना महिलाओं ने स्वयं भी लिखा है.अब आप ये सोचेंगी की आखिर आज में ये क्या लिखने बैठ गयी?मैं कानून जानती हूँ किन्तु क्या करूँ ऐसे महिला वर्ग को कानून बताकर जो सब कुछ जानकर भी अपने लिए दुःख ही बटोर रहा है.
मेरे पापा की एक मुवक्किल है जिसकी अभी पिछले वर्ष ही शादी हुई थी.वह धर्म से मुसलमान है और जिसे अपनी शादी से पहले ही पाता था कि उसके पति की एक पत्नी पहले भी है चूंकि इस्लाम धर्म में बहुविवाह का प्रचलन है ऐसे में उसे इससे कोई आपति नहीं थी ये बात उसने मुझे शादी के बाद बताई .शादी के बाद वह मेरे घर मिठाई लेकर भी आयी और बड़ी खुश भी दिखाई दी किन्तु लगभग २-३ महीने बाद से ही पता चला की वह अपने मायके में ही रह रही थी अभी हाल में ही जब वह आयी तो मैने उसके पति के बारे में पूछा तो वह कहने लगी "कि मैंने तो ये सोचा था कि उसका अपनी पहली पत्नी से कोई मतलब नहीं है और हमें बताया भी यही गया था कि वह साथ नहीं रहती है .इस पर भी मुझे उसके रहने पर कोई एतराज़ नहीं है किन्तु उसे मेरी तरफ भी तो कोई ध्यान देना चाहिए."केवल इतनी सी मांग भी उसकी पूरी नहीं होती जबकि इस्लाम में ये साफ-साफ लिखा है कि तुम चार बीवी रख सकते हो किन्तु तुम्हे सबको संतुष्ट रखना होगा.
उसका पति ये तो चाहता है कि वह वहाँ रहे किन्तु उससे कोई आशा न रखे.वह पूछ रही थी कि मैं क्या करूँ तो माने उसे गुज़ारा भत्ते की बात कही तो कुछ दिन तो वह नहीं आयी फिर जब आयी तो कहने लगी कि मैं क्या करूँ वह कहता है कि यहाँ आकर रह नहीं तो मैं तेरे खिलाफ रिपोर्ट लिखा दूंगा कि तू घर से जेवर पैसे लेकर भाग गयी है.वह कहने लगी कि आज तक उसने मेरे लिए कोई कपडा नहीं सिलवाया और मेरे भी जो कपडे हैं वह भी नहीं लाने देता इसलिए मैं भी यहाँ से जब जाती हूँ तो अपने कुछ कपडे यहीं छोड़ जाती हूँ.
इतने पर भी वह अपने पति पर गुजारे भत्ते की वसूली की कार्यवाही के लिए तैयार नहीं है और दिन दिन भर रो रोकर अपनी ऑंखें सुजा रही है.ऐसे में आप ही बताएं कि क्या कानून का कोई फायदा है जब सब कुछ जानकर भी महिलाओं को रोना ही मंजूर है.
मेरे पापा की एक मुवक्किल है जिसकी अभी पिछले वर्ष ही शादी हुई थी.वह धर्म से मुसलमान है और जिसे अपनी शादी से पहले ही पाता था कि उसके पति की एक पत्नी पहले भी है चूंकि इस्लाम धर्म में बहुविवाह का प्रचलन है ऐसे में उसे इससे कोई आपति नहीं थी ये बात उसने मुझे शादी के बाद बताई .शादी के बाद वह मेरे घर मिठाई लेकर भी आयी और बड़ी खुश भी दिखाई दी किन्तु लगभग २-३ महीने बाद से ही पता चला की वह अपने मायके में ही रह रही थी अभी हाल में ही जब वह आयी तो मैने उसके पति के बारे में पूछा तो वह कहने लगी "कि मैंने तो ये सोचा था कि उसका अपनी पहली पत्नी से कोई मतलब नहीं है और हमें बताया भी यही गया था कि वह साथ नहीं रहती है .इस पर भी मुझे उसके रहने पर कोई एतराज़ नहीं है किन्तु उसे मेरी तरफ भी तो कोई ध्यान देना चाहिए."केवल इतनी सी मांग भी उसकी पूरी नहीं होती जबकि इस्लाम में ये साफ-साफ लिखा है कि तुम चार बीवी रख सकते हो किन्तु तुम्हे सबको संतुष्ट रखना होगा.
उसका पति ये तो चाहता है कि वह वहाँ रहे किन्तु उससे कोई आशा न रखे.वह पूछ रही थी कि मैं क्या करूँ तो माने उसे गुज़ारा भत्ते की बात कही तो कुछ दिन तो वह नहीं आयी फिर जब आयी तो कहने लगी कि मैं क्या करूँ वह कहता है कि यहाँ आकर रह नहीं तो मैं तेरे खिलाफ रिपोर्ट लिखा दूंगा कि तू घर से जेवर पैसे लेकर भाग गयी है.वह कहने लगी कि आज तक उसने मेरे लिए कोई कपडा नहीं सिलवाया और मेरे भी जो कपडे हैं वह भी नहीं लाने देता इसलिए मैं भी यहाँ से जब जाती हूँ तो अपने कुछ कपडे यहीं छोड़ जाती हूँ.
इतने पर भी वह अपने पति पर गुजारे भत्ते की वसूली की कार्यवाही के लिए तैयार नहीं है और दिन दिन भर रो रोकर अपनी ऑंखें सुजा रही है.ऐसे में आप ही बताएं कि क्या कानून का कोई फायदा है जब सब कुछ जानकर भी महिलाओं को रोना ही मंजूर है.
bahut afsos hota hai nari kee yah dasha dekhkar par sahas to use hi karna hoga tabhi aur sab bhi uska saath de sakte hai .achchhi post .
ReplyDeleteयही कमी है भारत की नारियों में..
ReplyDeleteमानवीय जीवन के ऐसे पहलू मुझे हमेशा स्तब्ध अवाक /निःशब्द कर देते हैं ..ओह !
ReplyDeleteसही कहा हैं शालिनी आपने । ना जाने कितनी ऐसी महिला हैं जिनको मे व्यक्तिगत रूप से जानती हूँ , उनमे से कुछ को दोस्त भी कहती हूँ , जो "रो " सकती हैं पर कुछ करने के लिये आगे नहीं आती । वो सब झूठ बोलती हैं जो कहती हैं हम परिवार , बच्चो के लिये "सहते " हैं । असलियत ये हैं वो अपनी कुछ ना करने कि कमजोरी को छिपाती हैं ।
ReplyDeleteलिखती रहे ।
स्त्रियाँ स्वयं को अबला समझती हैं, यह समझ टूटनी चाहिए। जहाँ वे चाहती हैं सबला ही नहीं बला साबित होती हैं।
ReplyDeleteनारियों में यह जागरण आवश्यक है।
शालनी जी
ReplyDeleteबिल्कुल सही बात कही ऐसी महिलाओ को कोई क़ानूनी सहायता देना बेकार है अक्सर महिलाए ये बात खुद ही मान कर चलती है की की उन्हें समाज में तभी सम्मान मिलेगा जब वो हर हाल में पति के साथ रहे वरना तलाक शुदा या अपने पति से अलग रह रही महिला को लोग अच्छा नहीं मानते है पर वास्तव में ऐसा है नहीं आज समाज के एक बड़े वर्ग ने इस बात को स्वीकार कर लिया है की यदि पति और ससुराल में आप के साथ बुरा व्यवहार हो रह है तो आप उससे अलग हो जाये | वैसे महिलाओ की इस बुद्धि पर भी तरस आता है की वो क्या सोच कर एक विवाहित व्यक्ति जो पहली पत्नी के साथ रह रह है उससे शादी कर लेती है धोखे से किया जाये तब भी कई बार महिलाए पति के खिलाफ रिपोर्ट नहीं लिखाती है |
रो रोकर अपना जी हल्का करके सहानुभूति पाने की कोशिश करती है ऐसी महिलाये |एक तो शुरू में ही गलत काम एक शादीशुदा आदमी से शादी करना, फिर अपने अधिकारों के लिए कोई भी प्रयत्न न करना ,सदा बेचारी बने रहना अपने पैरो पर खुद कुल्हाड़ी मारने जैसा ही है |
ReplyDeleteआम स्थिति है यह।
ReplyDeleteकेवल मुसलिम समाज में नहीं बल्कि हिन्दू समाज में भी।
कई पीढियाँ लगेंगी समाज में सुधार आने में।
जब तक नारी शिक्षित और स्वावलंबी नहीं होती उसका यही हाल होता रहेगा।
पर कभी कभी तो शिक्षित नारी भी इन मुसीबतों से जूझती हैं।
क्या करे कोइ? मेरी भी समझ में नहीं आता।
जी विश्वनाथ
bhartiye naari ke man mein sanskar ke naam par har dukh sah jana aur chup rah jana yahi dala gaya hai. rag rag mein sanskaar ki hi duhai bhari hui hai
ReplyDeleteजब तक हम खुद को कमजोर समझेंगे स्थितियां नहीं सुधरेंगी. अगर जीना है तो लड़ना भी सीखना होगा।
ReplyDeletemai bahut mushkil aur pareshani me hoo.......
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