हमारे समाज मे एक अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री को हमेशा "हेय" द्रष्टि से देखा जाता है । उनके बारे मे कहा जाता हैं कि ये दूसरो का घर बिगाड़ती हैं । इनको हमेशा दूसरो के पति ही अच्छे लगते हैं ।
क्यो ऐसा कहा जाता हैं ?
और क्यो ऐसी बात को एक पत्नी कहती हैं ?
क्या पति पत्नी का रिश्ता इतना कमजोर हैं कि वह एक दूसरी महिला के कारण टूट जाता हैं ?
एक एक अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री अगर रिश्ता खोज रही हैं तो कहीं ना कहीं उसे अपनी जिंदगी मे कोई कमी लगती हैं जिसे वह पूरा करना चाहती हैं अतः निष्कर्ष मे वह किसी का पति नहीं खोज रही हैं अपितु अपने लिये एक साथी/पति खोज रही हैं ।
इस अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री से अगर , कोई पुरूष जो किसी का पति हैं , सम्बन्ध बनाता हैं तो गलती पति कि हैं या इस स्त्री की ?? अगर दोनों कि तो समाज मे दोषी केवल इस स्त्री को क्यो समझा जाता हैं । मै यहाँ समाज की मानसिकता की बात कह रही हूँ । क्यो उस पुरूष को हमेशा ये कह कर निर्दोष मान लिया जाता हैं कि "ये तो एक पुरूष कि आदत हैं" और "घूम घाम कर वह अपने घर वापस आ ही जायेगा " । क्या ऐसा पुरूष जब घर वापस आता हैं तो निर्दोष होता हैं ? क्यो हमारे समाज और कानून व्यवस्था मे ऐसे पुरुषो के लिये कोई सजा का प्रावधान नहीं हैं? जो एक महिला के साथ विवाह करता हैं और दूसरी महिला के साथ भी कुछ समय सम्बन्ध रखता हैं और फिर सामजिक दबाव के चलते वापस पत्नी के पास जाता हैं . क्यो नैतिकता कि कोई जिमेदारी इस पुरूष कि नहीं होती हैं ? क्या नैतिकता एक व्यक्तिगत प्रश्न हैं ?? जो समाज मे सुविधा के हिसाब से लागू किया जाता है ।
इसके अलावा भारतीये पत्निया जो हमेशा अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री को "हेय" नज़र से देखती हैं और गाहे बगाहे टिका टिप्पणी करती हैं उनका कितना अपना दोष हैं इस प्रकार के संबंधो बनने मे ? क्यो उनका पति किसी और स्त्री की और आकर्षित होता हैं ? ऐसी बहुत सी विवाहित स्त्रियो हैं जहाँ बच्चे होने के बाद पति पत्नी मे दैहिक सम्बन्ध ना के बराबर हो जाते है । कामकाजी पत्नी या घर गृहस्थी मे उलझी पत्नी अपने पति कि ज़रूरतों को भूल जाती हैं और फिर पति बाहर जाता हैं , तो क्या ऐसी पत्नी पर समाज मे अनैतिकता को बढ़ावा देने का दोष नहीं लगना चाहिए ??
और इस सब से जुडा सबसे अहम् प्रश्न हैं कि अगर पति ने दूसरी स्त्री से सम्बन्ध स्थापित किया है और पत्नी को पता हैं तो वह ऐसे पति के साथ आगे कि जिंदगी क्यो रहना चाहती हैं ? क्या बच्चो के लिये ? तो ऐसे घर मे जहाँ पति पत्नी केवल सामजिक व्यवस्था के चलते समझोता करते हैं वहाँ के बच्चो को संस्कार मे क्या मिलता हैं ? क्या पत्नी अपने आप को अलग करके दुबारा जिंदगी को स्वाभिमान के साथ नहीं जी सकती हैं ? कहाँ चला जाता हैं पत्नी का स्वाभिमान जब वह उसी आदमी के साथ फिर दैहिक समबन्ध बनाती हैं ? क्यो उसको उस पुरूष के साथ सम्बन्ध बनना अनैतिक नही लगता जो किसी और के साथ सम्बन्ध बना चुका हैं ?
और अगर उसको ये अनैतिक नही लगता हैं तो फिर उसे एक अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री का किसी पुरूष से दैहिक सम्बन्ध क्यो अनैतिक लगता हैं ? क्या " अनैतिक " शब्द कि परिभाषा व्यक्ति से व्यक्ति और समय से समय बदल जाती हैं ?
अगर पति पत्नी के लिये को नैतिकता अनैतिकता का प्रश्न नहीं हैं तो समाज मे नैतिकता का सारा जिम्मा केवल एक अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री का ही क्यो हैं ।
पति पत्नी और वो मे नैतिकता सिर्फ़ वो के लिये ही क्यो होती हैं ??
पति का कृत्य गलती / मिस्टेक , पत्नी का कृत्य बलिदान / सक्रीफईस और एक अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री का कृत्य व्यभिचार / प्रोमिस्कुइटी ????
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
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ReplyDeleteऐसा कतई नहीं है रचना जी , बल्कि इसके लिए पर्याप्त कानून बने हुए हैं , बशर्ते कि पहल उन दोनों में से ,,,,ध्यान दीजीए कि मैंने दोनों कहा है ..दोनों में से कोई भी यदि ऐसी कोई शिकायत दर्ज़ कराती है तो भारतीय कानून में इसके लिए वाजिब कानून बना हुआ है । बिना शिकायत के कुछ भी नहीं किया जा सकता ।
रहा सवाल मानसिकता का , तो उस पर बहस की गुंजाईश है , हां आज भी समाज में तलाकशुदा महिला के लिए समाज का नजरिया , कानून की असहाय सी स्थिति और सरकार की तमाशबीन सी हालत देखकर जरूर अफ़सोस होता है ।
ये ठीक है कि तलाकशुदा महिला को भी अपने लिए करने कहने का पूरा अधिकार है मगर फ़िर भी वरीयता देने की बारी आए तो मेरे विचार से किसी शादीशुदा पुरूष को अपना साथी चुनने के बनिस्पत ...किसी अविवाहित को साथी के रूप में पाना ज्यादा बेहतर साबित होता है ।
अच्छा मुद्दा उठाया है , देखें कि प्रतिक्रिया में ब्लॉग समाज क्या क्या कहता है ???
अजय तलाक शुदा स्त्री को तलाकशुदा पुरुष से विवाह करना चाहिये लेकिन विधुर तक का विवाह भी अविवाहित स्त्री से हो सब कि यही इच्छा होती हैं फिर ये दोयम भाव किसी तलाक शुदा स्त्री के लिए क्यूँ
ReplyDeleteनहीं रचना जी , बिल्कुल नहीं मेरी राय में विधुर के लिए भी वही पैमाना होना चाहिए और शायद मेट्रोमोनियल साइट्स में भी ऐसी व्यवस्था को ही तरज़ीह दी जाती है .,..एक साइट भी है ऐसी ही ...second marriage ..के नाम से संभवत: । वैसे भी मैंने कहा न कि समाज के नजरिए की बात तो बहस का विषय है और इस पर जम कर बहस होनी चाहिए
ReplyDeletesawal yeh nahi ki kaun galat hai. sawal yeh hai ki pati aur patni kaha tak ek dusare se discipline me bandhe hai , agar pati aur patni discipline me ho to n talak hogi n o.sab kuchh thik hi rahega.Galati dono taraf se hai.anusasan ka palan karane walo ke samane o ki paresani nahi hai.
ReplyDeleteरचना जी मैं सोचता हूँ की हमारा समाज नैतिकता के दो पैमाने लेकर चलता है एक पैमाना समर्थ के लिए और दूसरा गरीब, कमजोर और असहाय के लिए. समर्थ को सब कुछ माफ़ है. सभी उसका साथ देते हैं और असमर्थ के लिए समाज में हर बंदिश है और नैतिकता का सारा बोझ उसे अपने कन्धों पर ढोना पड़ता है. यहाँ मैं इन्सान को स्त्री पुरुष में नहीं बल्कि समर्थ और असमर्थ में बाट रहा हूँ.
ReplyDeleteमूल प्रश्न ये हैं कि पति और पत्नी तथा समाज अपने दोषों के लिये दोषारोपण हमेशा उस स्त्री का करता हैं जो single / widow /divorcee हैं ये नैतिकता का दोहरा मापदंड हैं और क्यूँ हैं
ReplyDeleteVICHAAR SHOONYA
ReplyDeleteआप सही कह रहे हैं लेकिन आज तक "दूसरी" का तमगा एक स्त्री को ही मिला हैं "घर तोडने के लिये वही जिम्मेदार मानी जाती हैं और हर वर्ग मे ऐसा ही हैं चाहे वो माध्यम हो या निचला या एलीट कही भी पत्नी या पति को उतनी प्रतारणा समाज नहीं देता जितनी उस स्त्री को जिसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं हैं और वो मातृ अपने लिये एक जीवन साथी खोज रही हैं । ये समस्या अब और बढ़ रही हैं क्युकी अब लडकियां ज्यादा उम्र तक अविवाहित हैं और नौकरी कर रही हैं ।
अच्छी पोस्ट है...
ReplyDeleteअच्छा मुद्दा उठाया है......
ReplyDeleteविषय ज्वलंत है और इस पर बहस होना भी अनिवार्य और सार्थक है. समाज किससे बना है ? स्त्री और पुरुष से , इसकी संरचना में पुरुष को अधिक अधिकार और छूट दे दी गयी थी और उसके लिए सब जायज माना गया था. लेकिन अब स्थिति बदल रही है. ये सारे नियम और क़ानून सिर्फ और सिर्फ मध्यम वर्ग के लिए बने हैं. उच्च वर्ग में ऐसा कुछ भी नहीं है - कई तलाक और कई विवाह देखे जा रहे हैं और तलाकशुदा से अविवाहित भी विवाह करने में गुरेज नहीं करते हैं. निम्न वर्ग के अलग नियम है उनमें भी तथाकथित समाज की दखलंदाजी कम ही होती है.
ReplyDeleteपति का दूसरी स्त्री से सम्बन्ध अंतर से कोई भी स्त्री स्वीकार नहीं कर पाती है लेकिन पता नहीं वे कौन सी परिस्थितियां होती हैं कि इसके बाद भी वह उस पति को पति का अधिकार लेने से रोक नहीं पाती है. इसमेंकमजोरी स्त्री की ही है. उसको विरोध और जम कर विरोध करना चाहिए. उस स्त्री पर दोष क्यों? पति पर क्यों नहीं? आप एक पत्नी के बाद दूसरी से भी सम्बन्ध रखना चाहते हैं और वह अगर अविवाहित है या तलाकशुदा है तो दोषी वह ही क्यों? इस सोच को तो हमें ही बदलना है. नहीं तो कानून तक कोई जाना नहीं चाहता और समाज इसके लिए खामोश रहता है. अगर स्त्री का मामला तो व्यंग्य जरूर होगा और उस पर फब्तियां कसी जाएँगी और पुरुष तो इसके लिए समाज में कई किवदंतियां प्रचलित है और वही सुनने को मिलती रहती हैं.
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यह बहुत अफसोसजनक है की समाज में आज भी बडी से बडी गलती करने पर भी पुरुषों को कोई सजा नहीं मिलती ........ जहाँ तक बात वो की है कभी कभी अपने रिश्ते की दरारे छुपाने के लिए दूसरी महिला पर आक्षेप लगाये जाते हैं..... यह महिला कोई विधवा, परित्यक्ता या अविवाहित महिला हो तो लोग आसानी से इन बातों का विश्वास भी कर लेते हैं...... ना जाने क्यों.....
ReplyDeleteकौन ... नैतिकता से वास्ता रखता है भारत में. हर व्यक्ति की नैतिकता की परिभाषा अपनी सुविधानुसार तोड़-मरोड़-बदल ली जाती है. हम ढ़ोंग करते हैं, दिखावा करते हैं और गाली देते हैं पश्चिमी देशों को, लेकिन कई मायनों में वे अधिक नैतिक हैं बनिस्बत हमारे... आजादी के बाद नैतिकता नाम की चिड़िया लुप्त हो गयी है...
ReplyDeleteनैतिक मूल्य समाज व्यवस्था के साथ बदलते हैं। हमारा समाज आज भी पुरुष प्रधान ही है। पुरुष प्रधानता को नष्ट होना चाहिए।
ReplyDeleteपुरुष प्रधान होने के कारण हमारे समाज में नैतिक मूल्य सदा से एकतरफा रहे हैं ...
ReplyDeleteघर टूटने में जिस भी पक्ष की जिम्मेदारी हो , दोषी स्त्री ही कहलाती है ...कटु सत्य है ..
विचारणीय पोस्ट !
आदरणीय सभ्य समाज के नागरिक जन,
ReplyDeleteसबको मेरा प्रणाम,
मुद्दा बहुत ही बढ़िया हैं मगर सिर्फ पुरुष ही दोषी क्यों। अगर एक विवाहित पुरुष किसी महिला ( चाहे वो विवाहित हो या अविवाहित) से सम्बन्ध बनाता हैं तो क्यों बनाता हैं, और महिला इसके लिए राजी ही क्यों होती हैं, गलती दोनों कि ही हैं और मेरे समझ से दोनों को ही ऐसा करने से बचना चाहिए।
इसी विषय पर मैंने एक पोस्ट भी लिखी हैं, तू बेवफा क्यों ? - तारकेश्वर गिरी.
सच्चाई तो यही है कि पुरुष प्रधान इस समाज में आज भी नारी को उसका स्थान नहीं मिल पाया है ,हाँ बहुत हद तक सुधार अवश्य हुआ है!
ReplyDeleteइस दिशा में आपके ब्लॉग का योगदान सराहनीय है ! दुनियाँ को एक दिन अपनी आँखे खोलनी ही पड़ेगी !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
विचार शून्य जी की ये बात सही है की चाहे समाज के नियम हो या कानून के वो सिर्फ कमजोरो के लिए होते है और रेखा जी की बात भी सही है की नैतिकता के सारे नियम केवल माध्यम वर्ग पर ही लागु होते है और आप से भी सहमत हु की चाहे समाज के नियम हो या नैतिकता की बात सब कुछ व्यक्ति अपने हिसाब से प्रयोग करता है | एक सर्वे में पढ़ा था की ८०% पत्निया पति के एक बार की गई नैतिक भूल को वो बड़े आराम से माफ़ कर देंगी | यही वजह है की पति इस तरह के सम्बन्ध बानाने में थोडा कम हिचकते है क्योकि उन्हें पता है की वह जब चाहे वहा से लौट कर अपने घर आ सकते है पर इसका उल्टा सोचे कोई पत्नी इस बात का ख्याल भी दिमाग में लाये तो वो पाप बन जाता है | कोई झुटा आरोप भी लगा दे तो भी उसे अपनी पवित्रता साबित करनी पड़ती है सभी के सामने |
ReplyDelete@ऐसी बहुत सी विवाहित स्त्रियो हैं जहाँ बच्चे होने के बाद पति पत्नी मे दैहिक सम्बन्ध ना के बराबर हो जाते है । कामकाजी पत्नी या घर गृहस्थी मे उलझी पत्नी अपने पति कि ज़रूरतों को भूल जाती हैं और फिर पति बाहर जाता हैं , तो क्या ऐसी पत्नी पर समाज मे अनैतिकता को बढ़ावा देने का दोष नहीं लगना चाहिए ??
बस आप की इस बात से सहमत नहीं हु | मेरे नजर में किसी भी अनैतिक सम्बन्ध को कभी भी किसी भी कारण से सही नहीं ठहराया जा सकता है ये सारे बहाने दूसरो को धोखा देने के लिए होते है ये सम्बन्ध पति पत्नी में से कोई भी बनाये वो गलत है | ये संभव है की पति या पत्नी के रहते किसी दूसरे के प्रति आकर्षण हो ऐसे स्थिति में या तो खुद को नियंत्रित कीजिये या फिर अपने जीवन साथी से अलग हो कर उससे कोई सम्बन्ध बनाइये |
vichaarneey...badhiya mudda uthaya hai aapne.
ReplyDeleteयहाँ रेखा जी से सहमति बनती है की बहुत सी महिलाएं पता लगने के बाद दिल से तो कभी स्वीकार नहीं कर पाती होंगी.परन्तु विरोध नहीं कर पाती है.फिर भी जो महिलायें शिक्षित है,आर्थिक रूप से समर्थ है,इस तरह के कानूनों की जानकारी रखती है कम से कम उनसे तो उम्मीद की जानी चाहिए की वे क्षमताभर विरोध करे इस सम्बन्ध में क़ानून की मदद लें ऐसे में वे भी यही कहें की हमारे समाज का ढांचा ही स्त्री विरोधी है,पुरुष की मानसिकता ही ऐसी है,कोई साथ ही नहीं देता सब ठीक है परन्तु हे देवियों ये सारी समस्याएँ है इसीलिए ही तो कानूनों की जरुरत पडी है.अब आप क्या ये इन्तेजार कर रही है की जब ये सभी समस्याएँ दूर हो जायेंगी तब आप कोई कदम उठाएंगी.वैरी गुड.अब ज्यादा नहीं कहेंगे वरना भाई लोग कहेंगे की परिवार तोड़ने की बात कर रहे हो.वैसे भी परिवार हर हाल में बने रहने चाहिए प्रेम और विश्वास के मजबूत धागों से जुड़कर न सही समझोते (केवल पत्नी द्वारा ) के फेविकोल से ही.'वो' तो कुछ करे न करे तो भी चारों तरफ से लानत मलानत झेलती ही रहती है.पत्नी भी ऐसे रिश्ते में घुट घुट कर जीती रहती है.हो सकता है कोई सुहानी सुबह आये और सब कुछ ठीक हो जाये लेकिन इससे पहले इस तरह की सोच रखने वाले पतियों की तो........हा हा हा ...हुण मौजा ही मौजा.
ReplyDeletevicharniy post
ReplyDeletehamara samaj stri aur purush se milkar to jarur baba hai ,par sare adhikar purushon ne le liye jinme unke kukritya ke bhi adhikar maaf me aa gaye aur ek stri jo kisi bhi krity ke liye kisi tarah se samaj ke nazron me najayaj ho kamjor hone ke karam bhugnbhogi thahraaai jati hai jisme ek stri hi stri ko dosh deti ha jiska sabse bada karan hai mansikta ka sahi vikash ka na hona.....aaj bhi ek stri yadi har galat kaam ke liye vidroh par aa jaye to jarur badlega samaj ...
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