बेवफ़ाई... इस पर बहुत कुछ कहा और लिखा जा चुका है... आख़िर क्या वजह हुआ करती है कि लोग बेवफ़ा हो जाते हैं...? वो उम्रभर साथ निभाने की सारी क़समों-वादों को भुला देते हैं...बेवफ़ाई की वजह जो भी हो, लेकिन यह एक साथ कई ज़िन्दगियों को तबाह कर डालती है... यह एक कड़वा सच है...और इसे किसी भी सूरत में नकारा नहीं जा सकता...
पति या पत्नी की बेवफ़ाई के लिए कई बार व्यक्ति ख़ुद भी काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार होता है...मसलन, अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी/प्रेमिका से ज़्यादा किसी और महिला को महत्व देता है तो ऐसे में पत्नी/प्रेमिका के मन में असुरक्षा की भावना पैदा होना स्वाभाविक है...अगर यह सिलसिला लंबे वक़्त तक चले तो पत्नी/प्रेमिका तनाव में रहने लगेगी... हो सकता है ऐसे में वो किसी ऐसे व्यक्ति को तलाशने लगे जिससे वो अपने मन की बात कह सके... और बाद में यही व्यक्ति उसके लिए भावनात्मक सहारा बन जाए... बाद में इसी पत्नी/प्रेमिका को बेवफ़ा क़रार दे दिया जाता है... ठीक यही हालत मर्दों के साथ भी है... इसके अलावा बेमेल विवाह भी इसके लिए काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार हो सकते हैं...
कोई भी व्यक्ति यह कभी पसंद नहीं करेगा कि उसका साथी उससे ज़्यादा किसी और को महत्व दे, ख़ासकर उस वक़्त, जो सिर्फ़ उनका अपना हो... एक-दूसरे पर विश्वास करना बहुत ज़रूरी है, लेकिन इसके साथ यह भी ज़रूरी है कि किसी भी ऐसे काम से बचा जाए, जिससे आपके प्रति आपके साथी का विश्वास डगमगाने लगे... आजकल महिला और पुरुष साथ काम करते हैं...ऐसे में उनके बीच बातचीत भी होती है, और इसमें कोई बुराई भी नहीं है... बुराई तो तब होती है, जब यह बाहरी रिश्ते आपके वैवाहिक रिश्तों को प्रभावित करने लगते हैं...
ज़िंदादिल होना अलग बात है और दिल फेंक होना दूसरी बात... और दिलफेंक व्यक्ति (महिला या पुरुष) ऐतबार के क़ाबिल नहीं होता...
अगर कोई स्त्री चाहती है की उसका पति केवल उसी का बन के रहे तो अपने पति की ज़रुरत बन जाए. वैसे बेवफाई के बहुत से कारण हुआ करते हैं, उनमें से एक है, रिश्ता दूसरों की पसंद से किया जाना. ना एक दूसरे को जानते , ना विचारों का मेल , ना ज्ञान एक जैसा, बाद मैं इसी फर्क के कारण रोज़ की चिक चिक . पहले विचारों को मिलाओ, पसंद देखो एक दूसरे की और तब शादी करो. बेवफाई के इमकानात कम होंगे.
ReplyDeleteमैं प्रेम विवाह का हिमायती नहीं, क्योंकि वोह भी सफल नहीं हुआ करता, कारण उसमें विचारों के मेल पे कम और सुन्दरता पे अधिक ध्यान दिया जाता है लेकिन शादी के पहले, एक दूसरे को समझना आवश्यक है, विचार मिले तो ही शादी करो. अब यह और बात है की एक तो लड़की का रिश्ता मिलता मुश्किल से है और फिर उसमें भी विचारों को मिलाने लगे तो हो गया कल्याण.
bahut see bar paristhitiyan aur bahut see bar vyakti ki nature hi use bewafa banati hain .
ReplyDeletelekhika ke taur par judna chahti hoon bataien kaisee judun?
अच्छा विचार है। परिवार के बारे में सोचने और स्वयं के बारे में ही सोचने पर ऐसे अधिकतर होता है। लेकिन रिश्ते हैं तो बेवफाई भी रहेगी ही।
ReplyDeleteजी हा जहा रिश्ते है वह बेवफाई तो रहेगी ही ...
ReplyDeleteफिर भी अगर एक दूसरे को अच्छे से समझे और रिश्तों में जादा बंदिशे न होतो शायद बेवफाई सर नहीं उठा पाए !
ये एक बहुत ही सामान्य होता जा रहा विषय है किन्तु विचारणीय है. आज समय और कार्य के अनुरुप ये सब होना स्वाभाविक है किन्तु दोनों ही पक्ष चाहते हैं कि सम्पन्नता भी रहे और कामकाजी होने के साथ साथी उनकी इच्छानुसार ही आचरण करे जो गलत है. अपनी सोच को बदलना होगा. किसी से बोलना या साथ काम करना बुरा नहीं है लेकिन हमें उसमें अपनी सामाजिक और नैतिक सीमाओं का पूरा ध्यान रखना चाहिए. हमें भी अगर हम बच्चों की शादी कर रहे हैं तो उनके स्वभाव और कार्य के प्रति आपस में क्या विचार रखते हैं इस बारे में जान लेना चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह के आरोप और प्रत्यारोपों के लिए कोई अवसर न रहे.
ReplyDeleteachcha aalekh haen firdaus
ReplyDeletejaha pati panti ya premi premika ek dusre ki bhavnao ko samjhenge waha bewfaai ka swal nahi aata .......par sathi ki or se berukhi samay na nahi milna , sonch ka na milna risto me duri lane lagta hai jise bewfaai ka rup ban jata hai .....
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