बलात्कार का हर्जाना क्यों नहीं मिलना चाहिये ?
बड़ी अजीब बात हैं एक ट्रेन एक्सीडेंट होता हैं , पुल गिर जाता हैं , गड्ढे मे एक बच्चा गिर जाता हैं और सरकारी खजाना खोल दिया जाता हैं और बलात्कार पर हर्जाने पर प्रश्न चिन्ह ? वो शील जिस पर सारी भारतीये सभ्यता टिकी हैं उसके भंग होने पर कोई हर्जाना ना दिया जाए । क्यूँ ??
बलात्कारी को सजा हो , बलात्कारी की प्रोपर्टी पर जिसका बलात्कार हुआ हो उसका बराबर का हिस्सा हो और सरकार को चाहिये की हर बेटी के पैदा होते ही उसका बीमा करवा दे की अगर इसका बलात्कार होगा तो इसको इतना हर्जाना मिलेगा । क्यूँ ऐसा क्यूँ नहीं हो सकता , अगर बेटी होने पर बिहार सरकार ५००० रुपए का अफ डी दे सकती हैं तो इस प्रकार की सहूलियत क्यूँ नहीं मुहिया करा सकती हैं ।
हमारे समाज मे बेटी होना ही ग़लत हैं और अगर खुदा ना खस्ता आप स्त्री हैं और आप ने विदेशी वस्त्र पहन लिये तो भारतीये संस्कृति धरातल मे चली जाती हैं , और आप का बलात्कार होना मेंडेटरी हो जाता हैं । इस प्रकार का बीमा आप की सुरक्षा तो नहीं कर सकता पर आप को आर्थिक रूप से सुरक्षा दे सकता हैं ।
राज किशोर जी बहुत आसन हैं कहना की हर्जाना नहीं होना चाहिये पर फिर हर चीज़ का हर्जाना बंद करवा दे ।
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
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हर्ज़ाना मिलने से पीड़ा कम तो नहीं होती परन्तु इसे भी न्याय प्रक्रिया का एक अंग मान कर थोड़ा सा सुकून
ReplyDeleteपीड़िता को अवश्य मिलेगा.......... और मिलता है । इसलिए हर्ज़ाना मिलने में किसी को हर्ज़ नहीं होना चाहिए।
परन्तु इसमे एक लोचा है इस लोचे को मैं यहाँ व्यक्त करूँ तो उचित नहीं होगा .........कल मेरे ब्लॉग पर इस विषय पर पोस्ट लिख कर स्पष्ट करूँगा
धन्यवाद !
खत्री जी जिस लोचे की ओर इशारा कर रहे है वह समझ मे तो आ गया है लेकिन.. इसमे भी बहुत पेंच है। बहरहाल हर्जाने का यह विचार स्वागतेय है शायद इससे कुछ असर पड़े ।
ReplyDeleteबिलकुल मिलना चाहिए।
ReplyDeleteहरजाना तो अवश्य मिलना चाहिये
ReplyDeleteअब क्या कहा जाये?
ReplyDeleteहम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है।
as per new Afghan law it is called 'blood money' , paying which the accused can get away. only this should not happen here !
ReplyDeleteसबसे बड़ी ज़रुरत ये है कि बलात्कारी को फांसी मिलनी चाहिये। इस तरह के मामलों की सुनवाई अदालत में हफ्ते भर में पूरी होनी चाहिये। चूंकि राष्ट्रीय महिला आयोग तो किटी पार्टी से ज़्यादा कुछ बचा नहीं है इसलिये इस तरह के मामलों में महिलाओं की मदद के लिये एक अलग से आयोग बनना चाहिये जिसमें महिलायें नहीं होनी चाहियें सिर्फ पुरुष होने चाहियें। मेरा सुझाव कुछ क्रूर हो सकता है लेकिन हकीकत ये है कि महिला के मामले में सबसे बढिया न्याय पुरुष ही कर सकते हैं क्योंकि वो किसी लड़की के पिता होते हैं किसी के भाई और किसी के बेटे। और लगे हाथ ये भी कि महिला आयोग जैसे संगठनों को खत्म कर देना चाहिये, ये जनता के पैसे पर कुछ लोगों को ऐश कराने से ज्यादा कुछ नहीं करते।
ReplyDeletethik hai.
ReplyDeleteये गलत है... u r making a victim, a prostitute...paying money for sumone's respect...rape does nt hurt the body but the mind n soul...does it make ne sense to pay money for rape? how can one be so rubbish.. u ppl talk abt women's right n dnt even knw the psychology of a woman's mind...dats ridiculous...the whole idea is ****
ReplyDeletePROSTITUTE कौन होती हैं कैसे बनती हैं
ReplyDeleteकौन बनाता हैं ? और आप की जानकारी
के लिये बता दूँ आप जिन्हे PROSTITUTE कहती हैं
वो इसीलिये बनती हैं क्युकी उनके पास
कोई आर्थिक सुरक्षा नहीं हैं अगर बलात्कार
की भुक्त भोगी को भी कोई आर्थिक
सुरक्षा नहीं मिलेगी तो कल आप के पास
ना जाने कितनी PROSTITUTE बकोल आप के
बढेगी कभी इस पर भी विचार करे
अपनी मानसिकता को ऊपर उठाये और
समाज के हर वर्ग मे शोषित औरत के प्रति
सम्मान रखे तभी आप औरत होने के
धर्म को निभायेगी मौली जी . PROSTITUTE कहकर आप औरत का अपमान करती हैं
क्युकी वो मजबूर हैं शरीर बेच कर अपना
पेट भरने के लिये . बहुत कम औरते ये
रास्ता अपनी वासना पूर्ति के लिये अपनाती
हैं और उससे भी कम मौज मस्ती के लिये
बाक सब मजबूर हैं समाज मे पहली
विद्रूपता से जो उनको रोटी देने से पहले
उनके शरीर को नोच कर अपनी
भूक मिटाती हैं . कभी इनकी जिंदगी की कहानियाँ
नज़दीक से पढे आप को खुद पता चल जायेगा
नमस्कार
ReplyDeleteबात हर्जाने की हो रही है अर्थात क्षतिपुर्ती दिलाने की . किसी महिला का बलात्कार होने पर इस क्षति का अंदाजा आप कैसे लगा सकते है ? या फिर हर्जाने देनेवाला यह कह सकता है - हर्जान दे तो दिया या ....अगर एक और बलात्कार का मुझ पर अभियोग चला जाएं तो एक और हर्जान देदो ....... यह समाधान नहीं . एक महिला की इज्ज़त का आंकलन चन्द पैसे नहीं कर सकते . और अगर हर्जाने का दूसरा पहलुं देखे तो यह भी हो सकता है कोई महिला अपनी सहमती से शारीरिक सम्बन्ध बनाए और जब बात हर्जाने की हो तो वह यह साबित कर दे की मेरी सहमति नहीं थी.
माँ की ममता , बहन का प्यार , अर्धांग्नी का समर्पण , पुत्री का स्नेह ....को हर्जाने की तराजुं मैं तोलना आसान नहीं होगा . आज जरुरत है सख्त कानून बनाने और कानून का सख्ती से पालन करने की.
To compensate some one financially by the goverment is because of lapse on part of the goverment . the financial compenstaion is not for the crime committed against the woman or in lieu of something its the compensation because the goverment was unable to protect the victim . the logic behind compesation is the inability to provide the service .
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण
ReplyDeleteआपका बहुत अच्छा प्रयास है कि नारी का महत्व बढें लेकिन दोस्त आपको पता है कि जिस लङकी का शील भंग हो जाता है वो ऐसा कलंक है जिसे ना कोई हर्जाना धो सकता है ना कोई आरक्षण गंगाजल भी उसको पवित्र नही कर सकता। हम भी चाहते हैं कि नारी को सम्मान मिले। आप तो हर्जाने की बात करके इस अपराध को और बढावा दे रही हो। मेरी बात आपको बहुत कङवी लग रही होंगी। लेकिन सत्यता को देखने का प्रयत्न करो। अभी तालिबान में एक कानुन बनाया की अगर कोई लङकी या महिला रेप को दोरान लहु लुहान हो जाती तो दोषी उसका हर्जाना भरकर बरी हो सकता। लेकिन आपको मालुम है जिस पीङा को जिस कष्ट को उस मासुम ने सहा है उसकी क्षति कोई पुरी कर सकता है। दोस्त आज हमारी माता बहनों को ना कोई हर्जाना चाहिए ना कोई आरक्षण उन्हे चाहिए सुरक्षा और सम्मान। जब जब धरती पर महिला पर अत्याचार हुआ हो तो बहुत बङा नाश हुआ है।
और आप एक बात और मेरी ध्यान से सुनो जो आज इतनी चरित्रहीनता हो रही उसमें महिलाओं का बहुत बङा योगदान है। अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने का काम महिला ही सनातन काल से करती आयी है। मैंने इस सब पर बहुत गहरा चिंतन किया है। जो खजुरी खास स्कुल में 5 मासुम बच्ची जो अब इस दुनिया में नही हैं कोई हर्जाना पुरी कर सकता है उनकी कमी को। आप अपने ब्लोग के माध्यम से ऐसा संदेश दो जिससे हमारे बच्चे संस्कारवान हो चरित्रवान हों जो कि किसी भी लङकी को वो हर्जाना ना लेना पङे।
आपसे से अनुरोध है कि एक बार मेरा ब्लोग पढकर देखना और क्या हम भी कुछ आपके अभीयान में साहयक हो सकते हैं।
http://jatshiva.blogspot.com/