- कोई भी महिला पात्र नौकरी करती नहीं दिख रही हैं ।
- बेटियों का विवाह बिना स्नातक हुए ही दिखाया जा रहा हैं ।
- हर बहू घर मे सुबह निर्जल रामायण का पाठ करती हैं ।
- हर बहू सारे टाइम सिर ढक कर रहती दिखाई देती हैं गहनों से लंदी ।
- हर बहू का काम अपने पति और बेटे की आरती करना होता हैं ।
- किसी भी निर्णय को लेने का अधिकार घर की बहू बेटी को नहीं हैं यही दिखाया जा रहा हैं ।
- खाना क्या बनेगा उसका निर्णय भी नहीं क्योकि जो पति और बेटे की पसंद का हो वही बनेगा ।
- नारी पात्र हर व्रत उपवास को करता दिखाया जा रहा हैं ।
- शादी मे दान दहेज़ की बात खुल कर होती हैं
- लड़की को रंग के आधार पर रिजेक्ट किया जाता हैं
अगर आप लोग गौर करेगे तो एक बदलाव जरुर महसूस करेगे इन सब धारावाहिक मे हर पुरूष पात्र बहुत प्रोग्रेसिव बाते करता दिखता हैं ।
- ससुर , सास को समझाता हैं की बहू बेटी होती हैं ,
- पिता माँ को समझता हैं बेटी पर सकती मत करो , कुछ ही दिनहमारे साथ हैं ।
- पति पत्नी की शिक्षा के लिये आतुर हैं और रात रात भर जग कर पढाई पूरी करवा रहा हैं ।
धारावाहिक पर ये श्रंखला कल खतम हो जायेगी उसके बाद विज्ञापनों मे नारी पात्रो पर बात होगी । नारी ब्लॉग के सदस्यों से अनुरोध हैं की समय निकाल कर अपनी पोस्ट नारी ब्लॉग पर दे और पाठको की राय जरुर चाहिये ।
आज पेपर में पढ़ा की एकता कपूर अब घर बसाना चाहती हैं, और वे ऐसा पति चाहती हैं जो उनपर शासन कर सके. अब इसे क्या कहेंगे?
ReplyDeleteनारी आज भी नारी है बस भूमिका बदल गई है। क्या आप आगरा की रहने वाली है क्योंकि मैं भी श्रीवास्तव हूं और आगरा के डा० आशीर्वादि लाल श्रीवास्तव जी की पोती हूं।
ReplyDeleteसुमन,
ReplyDeleteजीवन का यथार्थ यही है की घर में आनेवाली बहू सुसंस्कारी, कुशल गृहणी , सुन्दर और उच्च शिक्षित हो . अगर प्रोफेशनल योग्यता धारक हो तो और भी अच्छा लेकिन घर में उसको इसी रूप में दिखना चाहिए. वैसे अब ससुर का कम सास का शासन अधिक नजर आता है. थोक के बाजार से जैसे चीजें बटोर कर लाती हैं वैसे ही बहू के लिए लिस्ट बना कर एक एक कर देख कर निर्णय लेती हैं. जैसे वह कोई खरीदने वाली चीज है. दहेज़ तो चाहिए ही क्योंकि आप सब कुछ अपनी बेटी के लिए दे रहे हैं हमको तो कुछ चाहिए ही नहीं.
लड़कियाँ चाहे आत्मनिर्भर हों या फिर दूसरों को भी पालने की क्षमता रखती हों, उन्हें बहू बनाने के पहले ठोक बजा कर देखने की प्रथा अब भी है. वह बात और है कि अब लड़कियों ने भी अपनी पसंद जाहिर करना शुरू कर दिया है और गलत निर्णय पर शादी से इनकार भी करने लगी हैं. उनका अपना जीवन है , मान - बाप सिर्फ शादी करके अपने दायित्व कि इति श्री न समझें. उनकी पसंद और परिवार के संस्कार और जीवन शैली पर भी ध्यान दें. ऐसा न हो कि कल विषम स्थितियों का सामना करना पड़े. विवाह संस्कार की पवित्रता को कायम रखना दोनों पक्षों का काम है.
आपने धरावाहिको में दिखाई जाने वाली बातो पर खूब बारीकी से लिखा है और उसमे सबकी भूमिका निर्धरित है लेकिन लडकी की भूमिका एक मूक गुडिया सी होती है ऐसा ही एक धारावाहिक है भाग्य विधाता जिसमे बदूक की नोक पर शादी कराइ जाती है बहू जिस घर में रहती है वहां उसके चचेरे देवर द्वारा उसकी इज्जत लूटने का प्रयास किया जाता है जो की उसके पति को भी मालूम है क्योकि उसी की शह eहोती है कारन की पति को अपनी बीबी पसंद नही होती |यहाँ भी उस समय तो लड़की अपनी इज्जत बचा लेती है किंतु न तो वो किसी से इसका जिक्र करती है न ही उसे कोई करार जवाब देती है जबकि लडकी स्नातकोत्तर शिक्षा प्रप्त है |जब घर में ही भक्षक हो और इससे बड़ी ज्य्द्ती की लडकी कोई प्रतिवाद न kre येकैसी साहित्यिकी संस्क्रती है? और उस घर में दिन रात देवी माँ की पूजा होती है संस्कारो की बात होती है |
ReplyDeleteइस धरावाहिक में भी दहेज़ की लें देन की बात आम है |
सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस टी.आर.पी. में सबसे ज्यादा सहयोग इन्हें महिलाओं से ही मिल रहा है..
ReplyDeleteअब जी उकता गया है घर तोड़ते ...साजिशें और षडयंत्र रचते ..तो क्यों ना संस्कारों और नारी दमन पर कुछ धारावाहिकों का निर्माण कर लिया जाये ....
ReplyDeleteइनके लेखकों की यही सोच है शायद ..!!
क्यों जी उकता गया? क्या आप और हम नहीं जानते हैं की ये सारी गतिविधियाँ परिवारों में भी हुआ करती हैं. हर तरह से षडयंत्र रचे जाते हैं, बड़ों की नजर में छोटों को गिराने के लिए और या सही को गलत सिद्ध करने के लिए. घर में रहने वालों को नए नए विचार मिलते रहते हैं, इन धारावाहिकों से. ये बात और है की इसमें पिसने वाला कौन हो? कभी सास बहू के षड्यंत्रों के चंगुल में फंस जाती है और कभी ननद और भाभी . जो जितना चालाक और चतुर हो.
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