इस साल सिविल सर्विस में महिला वर्ग में टॉप पर रहने वाली महिला दिल्ली की हैं नाम हैं उनका आशिमा डीयू के दिल्ली कॉलेज ऑफ इकनॉमिक्स की स्टूडेंट रहीं अशिमा सफलता पाने वालो में सबसे छोटी उम्र की हैं और पहले अटेम्प्ट में ही उन्होंने इसको क्लेअर करा है ..कभी उनके जन्म पर उनकी नानी रोई थी पर उनके पिता ने मिठाई बांटी थी और आज उन्होंने साबित कर दिया की पिता की लाडली यह बिटिया किसी से कम नही है और उसने वह मुकाम हासिल कर लिया जो कभी उनका सपना था उनका कहना है कि आजादी के बाद सरकार ने देश में वुमन एम्पावरमेंट की दिशा में तमाम उपाय किए हैं, अब यह बात और है कि इसमें अभी पूरी सफलता मिलना बाकी है। वह कहती हैं, 'पिछले 60 सालों में महिलाओं ने कॉरपोरेट, एजुकेशन, स्पेस, आर्मी, पुलिस सहित तमाम क्षेत्रों में सफलता के झंडे गाड़े, लेकिन व्यापक तौर पर देखा जाए तो महिलाओं को अभी मुकाम हासिल करना बाकी है। तमाम कोशिशों के बावजूद महिलाओं को उनका उचित हक नहीं मिल पाया है। जरूरत इस बात की है कि महिलाओं को हर फील्ड में पर्याप्त अवसर दिया जाए, ताकि वह समाज की मुख्य धारा में शामिल हो सकें। एजुकेशन, पॉलिटिक्स, इकॉनमिक सभी क्षेत्रों में उन्हें पूरा मौका मिलेगा, तभी महिला सशक्तिकरण का लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा।'
अपने अनुभवों के आधार पर वह कहती हैं कि समाज को स्त्रियों के अपने नजरिए में बदलाव की जरूरत है। वह देश में ऐसा माहौल चाहती हैं, जो बालिका भूण हत्या को तुरंत रोकने में कामयाब हो।
अब जबकि आशिमा आईएएस बन गई हैं, वह अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारी पूरी करते हुए महिलाओं के सशक्तिकरण से जुड़े प्रोग्राम्स को आगे बढ़ाना चाहती हैं। वह कहती हैं, 'मुझे लगता है कि आईएएस के के पास काफी एडमिनिस्ट्रेटिव पावर होते हैं और जब ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं की संख्या बढे़गी, तो देश के लिए भी यह अच्छा होगा।'
महिलाओं के लिए संसद व विधानसभाओं में 33 परसेंट रिजर्वेशन को भी वह जरूरी मानती हैं। उनका तर्क है, 'जब तक महिलाओं को मौका नहीं मिलेगा, तब तक वह अपनी क्षमताओं को दिखा नहीं पाएंगी।'
अपनी सफलता के जरिए वह तमाम महिलाओं को यह संदेश देना चाहती हैं कि समाज में लड़कियों के प्रति लोगों का नजरिया बदले, इसके लिए जरूरी है कि लड़कियां अपनी मंजिल ख़ुद चुने और हर हाल में आत्मनिर्भर हों यही समय की मांग भी है और देश भी इस से आगे बढेगा
अपने अनुभवों के आधार पर वह कहती हैं कि समाज को स्त्रियों के अपने नजरिए में बदलाव की जरूरत है। वह देश में ऐसा माहौल चाहती हैं, जो बालिका भूण हत्या को तुरंत रोकने में कामयाब हो।
अब जबकि आशिमा आईएएस बन गई हैं, वह अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारी पूरी करते हुए महिलाओं के सशक्तिकरण से जुड़े प्रोग्राम्स को आगे बढ़ाना चाहती हैं। वह कहती हैं, 'मुझे लगता है कि आईएएस के के पास काफी एडमिनिस्ट्रेटिव पावर होते हैं और जब ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं की संख्या बढे़गी, तो देश के लिए भी यह अच्छा होगा।'
महिलाओं के लिए संसद व विधानसभाओं में 33 परसेंट रिजर्वेशन को भी वह जरूरी मानती हैं। उनका तर्क है, 'जब तक महिलाओं को मौका नहीं मिलेगा, तब तक वह अपनी क्षमताओं को दिखा नहीं पाएंगी।'
अपनी सफलता के जरिए वह तमाम महिलाओं को यह संदेश देना चाहती हैं कि समाज में लड़कियों के प्रति लोगों का नजरिया बदले, इसके लिए जरूरी है कि लड़कियां अपनी मंजिल ख़ुद चुने और हर हाल में आत्मनिर्भर हों यही समय की मांग भी है और देश भी इस से आगे बढेगा
aashima ko badhaaii . sahii tarika haen yae apne ko sashkta karney kaa aur jyaadatar mahilaa yahii kar rahee haen . samaj mae jo asmaajik tatav mahila ki is taraki sae jaley haen , bhaybheet haen woh hee mahila sashktikarn kae virodh mae boltey haen
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