महिला सशक्तिकरण के नाम लेते ही पुरूष समाज मे एक लहर दौड़ जाती हैं । ऐसा लगता हैं मानो एक संग्राम हैं महिला सशक्तिकरण पुरूष समाज के विरुद्ध । पर ऐसा क्यों लगता है पुरूष समाज को ? क्यों" महिला सशक्तिकरण की बात करने वाले पुरुषों पर हर तरह के हमले करते हैं " जैसी सोच पुरूष समुदाय से आती हैं । महिला सशक्तिकरण समाज की रुदिवादी सोच से महिला कि मुक्ति का रास्ता हैं । और समाज मे सिर्फ़ पुरूष नहीं होते , समाज केवल व्यक्ति से नहीं संस्कार और सोच से बनता हैं । समाज एक मानसिकता हैं जिस को हम सदियों से झेलते , ढ़ोते , काटते , जीते आ रहे हैं । वह परम्पराये जो न केवल पुरानी हैं अपितु बेकार थोपी हुई हैं उनसे मुक्ति हैं महिला सशक्तिकरण । महिला सशक्तिकरण का सीधा लेना देना पुरूष से नहीं हैं और ये भ्रम पलना किसी पुरूष के लिये भी सही नहीं हैं । इस भ्रम से पुरूष समाज जितनी जल्दी निकलेगा उसके लिये उतना ही अच्छा होगा क्योकि इसी भ्रम के चलते पुरूष को "अपने मालिक " होने का एहसास होता हैं जो गलत हैं । और बार बार महिला सशक्तिकरण को अपने विरुद्ध एक लड़ाई समझना ये दिखता हैं की " मालिक से बगावत , मसल दो " ।
महिला सशक्तिकरण के विरोध मे जो बोलते हैं उन्हे हर महिला एक "कॉल गर्ल " से ज्यादा नहीं लगती । मै तो कॉल गर्ल का भी सम्मान करती हूँ क्योकि वह तो अपना पेट भरने के लिये ये कृत्य करती हैं पर जो उसके पास जाते हैं वह क्या करते हैं ? और क्या हर काम काजी महिला यानी अल्फा वूमन लिव इन रिलेशनशिप मे रहती हैं ? उसी तरह "लिव इन रिलेशनशिप " कोई भी "आल्फा वुमन " अकेली नहीं रह सकती । पुरूष समाज को चाहिये ऐसी "आल्फा वुमन " के साथ ना रहे । "आल्फा वुमन " जो समाज मे अनेतिकता फेला रही हैं आप का समाज बच जायेगा । "लिव इन रिलेशनशिप " कोई आज की चीज नहीं हैं मन्नू भंडारी और राजेन्द्र यादव ३०-३५ साल से इस तरह रहे । इमरोज और अमृता प्रीतम को भी आप जानते ही होगे । भारतीये समाज मे एक बहुत बड़ी विशेषता हैं , यहाँ सब कुछ छुप के करने वालो को सही माना जाता हैं । सालो से पुरूष गन्धर्व विवाह करते रहे और पत्निया न चाहते हुए भी इसको स्वीकारती रही । किसी किसी घर मे तो बच्चे को बड़ी माँ और छोटी माँ का संबोधन करना भी सिखाया जाता रहा । पूजा पाठ घर के लिये पत्नी और घुमाने आने जाने के लिये प्रेमिका कब ऐसा नहीं हुआ ?? अगर किसी पत्नी ने कुछ कहा तो कहा गया हम पैसा कमाते हैं तुम को रहना हैं तो रहो जाना हैं तो जाओ , माँ \बाप ने समझाया तेरे लिये तो कमी नहीं करता फिर तुम मत बोलो । बदलते समय ने नारी को आर्थिक रूप से स्वतंत्र किया तो कुछ ""लिव इन रिलेशनशिप " भी बने जिनमे upper hand महिला का रहा क्योकि वहाँ पुरूष का आर्थिक स्तर महिला से कम था ।
महिला का धुम्रपान करना यानी एक और example महिला सशक्तिकरण का !!!!!!!!!!!!
"घर में यदि पुरुष इस बुरी आदत का शिकार होता है, तो स्त्री द्वारा इसकी बुराई को समझाते हुए बच्चों को इससे दूर रखा जा सकता है, किंतु जब घर की स्त्री ही इस बुरी आदत से लिप्त हो जाती है, तो बच्चों को समझाने का एकमात्र द्वार ही बंद हो जाता है।"क्या मोरल कि जिम्मेदारी सिर्फ महिला कि हैं ??"गर्भवती स्त्रियों के द्वारा तम्बाखू या सिगरेट का सेवन करने से इसका प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ना स्वाभाविक है। "रिसर्च कहती हैं गर्भ मे शिशु पर सिगरेट के धूये का असर होता हैं और बहुत से पिता धुम्रपान करते हैं ?? । "ऐसा नहीं है कि हमारे देश की ये आधुनिक युवतियाँ जो कि इस बुरी आदत का शिकार हो रही हैं, ये पढ़ी-लिखी नहीं है। शिक्षित होने के कारण इस आदत से होने वाले नुकसान को जानते हुए भी ये इसे छोड़ने में स्वयं को असमर्थ पाती हैं। केरियर के क्षेत्र में पुरुषों से प्रतिस्पर्धा की दौड़ में ये युवतियाँ सफलता के दोनों किनारे छू लेना चाहती हैं। ऑफिस में काम का दबाव और घर में गृहस्थी की जवाबदारी। दो पाटों के बीच पीसती आज की आधुनिकाएँ सिगरेट के एक कश में पल भर का सुकून महसूस करती हैं। "
स्त्रियों की केरियर सम्बन्धी महत्वकंक्षा को प्रतिस्पर्धा मानना है सब प्रोब्लेम्स कि जड़ हैं । स्त्री करे तो प्रतिस्पर्धा पुरूष करे तो केरियर का दबाव । जब तक ये सोच रहेगी , लड़किया उन सब बेडियों को तोड़ना चाहेगी जो समाज नए उन पर लगाई हैं ?? अगर सिगरेट बुरी हैं तो सामाजिक बुराई हैं बंद करवा दीजिये , दण्डित करिये लड़को को जब वो सिगरेट पी कर घर आए , तब ये मत कहे "बेटा बड़ा हो रहा हैं " । समाज पुरुषो कि व्यसन कि आदत को दंड दे कोई लड़की फिर उस व्यसन को नहीं अपनायेगी । बुराई सिगरेट , शराब मे हैं फिर चाहे महिला ले या पुरूष ।
महिला को सदियों से शोषित किया गया हैं , कभी परमपरा के नाम पर तो कभी समाज के नाम पर , तो कभी व्यवस्था के नाम पर । उनको बार बार चुप कराया जाता हैं । आज कि नारी जब हर जगह अपने काम से नाम कमा रही हैं तो पुरूष समाज मै हलचल हैं । अब उसकी काबलियत { आकडे देखे } पर उंगली नहींउठा सकते तो चरित्र हनन करना बंद कर दे क्यों कि आज कि माँ अपनी बेटी को जिन्दगी जीने कि शिक्षा दे रही हैं घुटने की नहीं ।
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
May 21, 2008
महिला सशक्तिकरण के विरोध मे जो बोलते हैं उन्हे हर महिला एक "कॉल गर्ल " से ज्यादा नहीं लगती
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
copyright
All post are covered under copy right law . Any one who wants to use the content has to take permission of the author before reproducing the post in full or part in blog medium or print medium .Indian Copyright Rules
Popular Posts
-
आज मैं आप सभी को जिस विषय में बताने जा रही हूँ उस विषय पर बात करना भारतीय परंपरा में कोई उचित नहीं समझता क्योंकि मनु के अनुसार कन्या एक बा...
-
नारी सशक्तिकरण का मतलब नारी को सशक्त करना नहीं हैं । नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट का मतलब फेमिनिस्म भी नहीं हैं । नारी सशक्तिकरण या ...
-
Women empowerment in India is a challenging task as we need to acknowledge the fact that gender based discrimination is a deep rooted s...
-
लीजिये आप कहेगे ये क्या बात हुई ??? बहू के क़ानूनी अधिकार तो ससुराल मे उसके पति के अधिकार के नीचे आ ही गए , यानी बेटे के क़ानूनी अधिकार हैं...
-
भारतीय समाज की सामाजिक व्यवस्था के अनुसार बेटी विदा होकर पति के घर ही जाती है. उसके माँ बाप उसके लालन प...
-
आईये आप को मिलवाए कुछ अविवाहित महिलाओ से जो तीस के ऊपर हैं { अब सुखी - दुखी , खुश , ना खुश की परिभाषा तो सब के लिये अलग अलग होती हैं } और अप...
-
Field Name Year (Muslim) Ruler of India Razia Sultana (1236-1240) Advocate Cornelia Sorabji (1894) Ambassador Vijayalakshmi Pa...
-
नारी ब्लॉग सक्रियता ५ अप्रैल २००८ - से अब तक पढ़ा गया १०७५६४ फोलोवर ४२५ सदस्य ६० ब्लॉग पढ़ रही थी एक ब्लॉग पर एक पोस्ट देखी ज...
-
वैदिक काल से अब तक नारी की यात्रा .. जब कुछ समय पहले मैंने वेदों को पढ़ना शुरू किया तो ऋग्वेद में यह पढ़ा की वैदिक काल में नारियां बहुत विदु...
-
प्रश्न : -- नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट {woman empowerment } का क्या मतलब हैं ?? "नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट " ...
सोते हुये को जगाना आसान है, सोते रहने का बहाना करने वाले को जगाना मुश्किल।
ReplyDeleteमहिला सशक्तिकरण की तंद्रा पर स्वयंमुग्ध होने वालों पर कोई टिप्पणी नहीं।
नारी’ कमजोर ना थी, ना है! ‘नारी’ पर कॉमेंट करने के पहले हर एक पुरुष अपनी पुरुष जाति को आईना दिखाए, तब समझ मे आएगा कि “बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलिया कोय, जो मन खोजा आपना, मुझ-सा बुरा न कोय!’
ReplyDeletergds.
Rewa Smriti
www.rewa.wordpress.com
महिला सशक्तिकरण का एक सरल सुझाव मैने किसी ब्लाग पोस्ट पर ही पढा था (शायद मनीषा पांडेय के ब्लाग पर )। हर महिला को अपने आप में आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने का प्रयास करना चाहिये लेकिन इसके साथ ही अपना दोहन न होने देना चाहिये । आजकल जिस प्रकार से लोग सीना ठोंक कर कहने लगे हैं कि हमारी बहू तो नौकरी करती है, हमे कोई ऐतराज नहीं । ऐतराज क्यों हो, ऐतराज तब हो जब घर का काम न करती हो । बहुत खोल हैं हमारे समाज के और कष्ट होता है जब जान पहचान के पढे लिखे समझदार लोग वक्त आने पर इन्ही खोलों में दुबके नजर आते हैं ।
ReplyDeleteपरिमलजी की लगभग हर पोस्ट में यही रोना होता है । कभी महिला सशक्तिकरण से डर तो कभी स्वतन्त्र होते युवाओं से समाज भ्रष्ट होने का खतरा । कितनी अजीब बात है कि समाज केवल बात करने वाले की जैनरेशन तक ठीक रहता है और उसके बाद एक्दम खराब हो जाता है ।
हमारा जमाना ठीक था, अब तो जमाने में आग लग गयी है । यही बात दादाजी ने पिताजी को कही होगी, पिताजी ने मुझे कही और सम्भवत: मैं अगली पीढी को कहूँगा ।
अब तक उन्हें समझ आ गई होगी जो हमे बदनाम करने चले थे.अगर नही आई है तो भी ख़ुद को अलग महसूस तो कर ही रहे होंगे सभ्य इंसानों से
ReplyDeleteVery well written!
ReplyDeleteसंवाद के लिहाज से अहम पोस्ट है हालांकि बहुत से मुद्दों पर दोहराव है पर वह भी जरूरी है। ब्लॉग फेमिनिज्म के रास्ते के शुरुआती झटके आप लोगों ने सह लिए हैं न कोई पैटरानाइज कर सका न एप्रोप्रिएट इसके लिए बधाई- आपसी अंतर्विरोध हैं, होने भी चाहिए पर उसके बावजूद एक दूसरे को समर्थन विचार के स्तर पर स्तुत्य है।
ReplyDeleteबाकी जब इतना होगा तो लोग बिलबिलाएंगे ही...होने दें।
कुमारेन्द्र की पोस्ट आज पढ़ी जिसके जवाब में ये पोस्ट लिखी गयी है। पढ़ कर खून खौल उठा। वो लेकचरर हैं और अगर भविष्य के कर्णधारों को यही सब पढ़ा रहे है तो भगवान बचाए हमारे समाज को।
ReplyDelete"वह इस बात में संतुष्टि पाती है की वह अविवाहित रह कर प्रत्येक रात कितने अलग अलग पुरुषों का भोग कर सकती है, "
ये बात किस आधार पर कह रहे हैं, क्या कोई सर्वे किया उन्होनें। और कितने ही पुरुष है जो यही करते हैं अगर किसी औरत ने किया तो इन्हें किस बात का बुरा लग रहा है जब भोगित होने वाले पुरुषों को खराब नहीं लग रहा तो इन्हे किस बात का दुख है?
" गे-कल्चर, स्पर्म बैंक, सरोगेत मदर्स, ह्यूमन क्लोनिंग की संभावनाओं ने स्त्रियों की आजादी को नया आयाम दिया है तो उसे भयाक्रांत भी किया है."
गे-कलचर क्या स्त्रियों की देन है? बाकी जितने भी फ़ील्ड इन्हों ने गिनाए हैं अगर तथ्य उठा कर देखें तो उन फ़ील्ड्स को आगे बढ़ाने वाले वैज्ञानिक सब मर्द हैं। और इन सब से नारी क्यों डरने लगी, हमें तो लगता है कि डर तो मर्दों को लग रहा है।
अगर नारी इतनी तुच्छ लगती है तो दुनिया में कैसे आए?
well, there are so many many things to be considered. i don't know whic post this was a reaction to - this is as long back as 2008.
ReplyDeleteBUT i am sure "sashaktikaran" does not mean playing with one's own health to prove oneself "swatantr" i would never consider "right to smoke" as one of my demands for being shaktivant
भारत में महिला सशक्तिकरण एक विषय है जिस पर चर्चा करना अधिक महत्वपूर्ण होता है और मनीषा बापना जी अपने लिए महिलाओं के लिए हर संभव मदद देते हैं और प्रत्येक कल्पनीय प्रस्ताव सहायता के साथ उन्हें सहायता करती हैं। जायदा जानकारी के लिए आप हमारी वेबसाइट पर देख सकते है भारत में महिला सशक्तिकरण
ReplyDeleteविशेष रूप से महिलाओं के लिए दुनिया के लोगों की सहायता करने के लिए एक अच्छा पोस्ट है | मनीषा बापना मनीषा बापना प्रदान कर रहे हैं। वह महिलाओं, बच्चों और जरूरतमंद व्यक्तियों के लिए सामाजिक सेवाएं कर रही है
ReplyDeleteहमारे साथ ऐसी जानकारीपूर्ण जानकारी साझा करने के लिए धन्यवाद इस तरह ब्लॉग को साझा करते रहें। मनीषा बापना मध्यप्रदेश में महिला सशक्तिकरण के लिए काम कर रही हैं। वह बच्चों, युवा लड़कियों और महिलाओं को अच्छे स्पर्श और बुरा स्पर्श के बारे में भी जानकारी प्रदान करती है। महिलाओं को लिए बेहतर स्थिति प्रदान करने के लिए डॉ. मनीषा बापना महिला सशक्तिकरण के लिए काम करती हैं।
ReplyDelete