आज कल एक १४-१५ साल की बच्ची हमारे साथ रहती हैं जो मेरे ऑफिस जाने के बाद माँ के पास रहती हैं और घर का काम करती हैं। सबसे जरुरी की दिन भर माँ का सिर खाती हैं और उनको प्यार से खाना खिलाती हैं।
मै बच्चो को नौकरी पर रखने के सख्त खिलाफ हूँ , लेकिन जब ये नौकरी के लिये आयी तो मुझे माँ के लिये किसी की बहुत जरुरत थी , कोई भी सही देेखभाल / साथ के लिये नहीं मिल रही थी। खाना तो मै सवेरे बना कर ही जाती हूँ पर माँ को दो गरम रोटी बना कर , चाय या दूध गरम कर के , दवा के लिये याद दिलाना और सबसे जरुरी उनके साथ रहना के लिये कोई भी नहीं थी।
अजीब बात हैं इस बच्ची की माँ ने मुझ से कहा था उसकी लड़की कर सकती हैं और मैने उम्र सुन कर कहा था नहीं मै नहीं रखूंगी और मै मिली भी नहीं। दो दिन बाद ये खुद शाम को घर आई और इसने { नाम रूबी } जिस कॉन्फिडेंस से बात की मुझे बड़ा अच्छा लगा।
उसको हर काम आता हैं उसने कहा यहां तक की खाना बनना भी और वो सब काम करेगी बस उसको नौकरी करनी हैं। मैने उसकी सैलरी पूछी और उसको उस से भी ५०० रूपए ज्यादा दे कर रख लिया। महिने में दो दिन की छुट्टी की बात तय हुई पर जब उसने कहा उसको छुट्टी नहीं चाहिये तो माँ ने कह दिया फिर उसके भी पैसे मिलेंगे।
उसकी माँ तो मिलने भी नहीं आयी , तब आई जब इसको १५ होगये। आज ३ महीने से रूबी हमारे साथ काम कर रही हैं।
घर नहीं जाना चाहती कहती हैं २४ घंटे के लिये रख ले हम उसको। घर पर ४ छोटी बहने हैं , एक छोटी बहिन नानी के पास हैं , एक भाई बुआ के पास रह कर पढ़ाई कर रहा हैं { दसवी में उसके बहुत अच्छे नंबर आये तो माँ ने उसको बुला कर आगे की पढ़ाई के लिये सहयता का आश्वासन दिया } माँ हैं वो भी काम करती हैं
एक पिता हैं जो केवल शराब पीता हैं और जो भी कमाई माँ , रूबी और उसकी छोटी बहिन चांदनी लाती हैं उसके लिये इनको मारता पीटता हैं।
इसकी माँ पिछले महिने इसके ऊपर बाकी बच्चो को छोड़ कर गाँव चली गयी और बाप भी दो दिन मार पीट करता रहा और फिर जब पैसा नहीं मिला तो गाव गया।
४ छोटी लडकिया घर में अकेली रह रही थी और ये माँ बनकर उनकी देखभाल कर रही थी।
अपनी ३ महिने की तनखा भी रूबी ने नहीं ली और कहा जमा करके अपने लिये कान की बाली ख़रीदेगी , कल उसकी माँ पूरा पैसा लेगयी क्युकी उसको अपने गिरवी रखे गहने छुड़ाने हैं और आज माँ इसको इसके शराबी बाप के पास अकेला छोड़ कर गाव चली गयी।
रूबी अब रात में पडोसी के घर सोती हैं , बाप और उसके दोस्त घर में बैठ कर शराब पीकर वहीँ सोते हैं। अगर ये खाना ना बनाये तो गाली देते हैं लेकिन घर में खाना बनाने का सामान नहीं हैं ये नहीं देेखते।
अजीब हैं ये दुनिया , हम अपनी तरफ से उसको रात का भी भोजन करवा कर भेजते हैं इन दिनों। अपने साथ रात में हम उसको नहीं रख सकते हैं।
उसको सही खाना मिले , और वो हमारे घर में हंसती बोलती रहे बस इतना ही हमारे वश हैं उसकी किसी भी समस्या का निदान करने में पूरी तरह से अक्षम हैं।
हफ्ते में माँ कुछ पैसे उसको अलग से देती हैं ताकि कभी वो मैगी , चिप्स इत्यादि अपनी पसंद से खा ले पर वो भी वो अपनी बहनो के लिए ले जाती हैं
हर दिन अपने बाप को गाली देती हैं और उसके मरने की कामना करती हैं , माँ ने बहुत समझाया हैं बाप से मुँह जबानी मत करना पर मै सोचती हूँ कितने दिन ये सब्र रख पाएगी
कभी कभी मन करता हैं उसको समझाऊ की अपने ही बाप से सावधान रहना पर नहीं कर पाती।
कब मेरे देश के बच्चे अपना बचपन जी पायेगे
और हम तैयारी मे हैं स्वतंत्रता दिवस मनाने के।
मै बच्चो को नौकरी पर रखने के सख्त खिलाफ हूँ , लेकिन जब ये नौकरी के लिये आयी तो मुझे माँ के लिये किसी की बहुत जरुरत थी , कोई भी सही देेखभाल / साथ के लिये नहीं मिल रही थी। खाना तो मै सवेरे बना कर ही जाती हूँ पर माँ को दो गरम रोटी बना कर , चाय या दूध गरम कर के , दवा के लिये याद दिलाना और सबसे जरुरी उनके साथ रहना के लिये कोई भी नहीं थी।
अजीब बात हैं इस बच्ची की माँ ने मुझ से कहा था उसकी लड़की कर सकती हैं और मैने उम्र सुन कर कहा था नहीं मै नहीं रखूंगी और मै मिली भी नहीं। दो दिन बाद ये खुद शाम को घर आई और इसने { नाम रूबी } जिस कॉन्फिडेंस से बात की मुझे बड़ा अच्छा लगा।
उसको हर काम आता हैं उसने कहा यहां तक की खाना बनना भी और वो सब काम करेगी बस उसको नौकरी करनी हैं। मैने उसकी सैलरी पूछी और उसको उस से भी ५०० रूपए ज्यादा दे कर रख लिया। महिने में दो दिन की छुट्टी की बात तय हुई पर जब उसने कहा उसको छुट्टी नहीं चाहिये तो माँ ने कह दिया फिर उसके भी पैसे मिलेंगे।
उसकी माँ तो मिलने भी नहीं आयी , तब आई जब इसको १५ होगये। आज ३ महीने से रूबी हमारे साथ काम कर रही हैं।
घर नहीं जाना चाहती कहती हैं २४ घंटे के लिये रख ले हम उसको। घर पर ४ छोटी बहने हैं , एक छोटी बहिन नानी के पास हैं , एक भाई बुआ के पास रह कर पढ़ाई कर रहा हैं { दसवी में उसके बहुत अच्छे नंबर आये तो माँ ने उसको बुला कर आगे की पढ़ाई के लिये सहयता का आश्वासन दिया } माँ हैं वो भी काम करती हैं
एक पिता हैं जो केवल शराब पीता हैं और जो भी कमाई माँ , रूबी और उसकी छोटी बहिन चांदनी लाती हैं उसके लिये इनको मारता पीटता हैं।
इसकी माँ पिछले महिने इसके ऊपर बाकी बच्चो को छोड़ कर गाँव चली गयी और बाप भी दो दिन मार पीट करता रहा और फिर जब पैसा नहीं मिला तो गाव गया।
४ छोटी लडकिया घर में अकेली रह रही थी और ये माँ बनकर उनकी देखभाल कर रही थी।
अपनी ३ महिने की तनखा भी रूबी ने नहीं ली और कहा जमा करके अपने लिये कान की बाली ख़रीदेगी , कल उसकी माँ पूरा पैसा लेगयी क्युकी उसको अपने गिरवी रखे गहने छुड़ाने हैं और आज माँ इसको इसके शराबी बाप के पास अकेला छोड़ कर गाव चली गयी।
रूबी अब रात में पडोसी के घर सोती हैं , बाप और उसके दोस्त घर में बैठ कर शराब पीकर वहीँ सोते हैं। अगर ये खाना ना बनाये तो गाली देते हैं लेकिन घर में खाना बनाने का सामान नहीं हैं ये नहीं देेखते।
अजीब हैं ये दुनिया , हम अपनी तरफ से उसको रात का भी भोजन करवा कर भेजते हैं इन दिनों। अपने साथ रात में हम उसको नहीं रख सकते हैं।
उसको सही खाना मिले , और वो हमारे घर में हंसती बोलती रहे बस इतना ही हमारे वश हैं उसकी किसी भी समस्या का निदान करने में पूरी तरह से अक्षम हैं।
हफ्ते में माँ कुछ पैसे उसको अलग से देती हैं ताकि कभी वो मैगी , चिप्स इत्यादि अपनी पसंद से खा ले पर वो भी वो अपनी बहनो के लिए ले जाती हैं
हर दिन अपने बाप को गाली देती हैं और उसके मरने की कामना करती हैं , माँ ने बहुत समझाया हैं बाप से मुँह जबानी मत करना पर मै सोचती हूँ कितने दिन ये सब्र रख पाएगी
कभी कभी मन करता हैं उसको समझाऊ की अपने ही बाप से सावधान रहना पर नहीं कर पाती।
कब मेरे देश के बच्चे अपना बचपन जी पायेगे
और हम तैयारी मे हैं स्वतंत्रता दिवस मनाने के।
प्राय: गरीबी का कारण ऐसे लोग स्वयं होते हैं. इन शराबी पिताओं पर मेरे पास लिखने को एक कहानी संग्रह लायक सामग्री है.
ReplyDeleteमैं भी कभी बच्चों को काम पर नहीं लगाती. एक बार जाई नामक एक लेख मैंने अपने ब्लॉग पर लिखा था. किन्तु सौभाग्य से उस कहानी का सुखांत हुआ.
http://ghughutibasuti.blogspot.in/2008/07/blog-post_09.html
सच रचनाजी यही कहानी है हमारे आसपास कितने ही घर है jinke aise halat hai aur kbhi lgta hai hm vivsh hai
ReplyDeleteऐसी कितनी ही रूबी हमारे आसपास मिल जाएँगी...आशा और उम्मीद से भरी...
ReplyDeleteबहुत कष्टकर जीवन जीते हैं ये बच्चे ...
ReplyDeleteकरुण गाथा है इन बच्चों की। स्वावलम्बी होकर भी मजबूर , आप इनकी अधिक मदद कर भी नहीं सकते। कोशिश की तो पिता पुलिस लेकर आ जाएगा अधिकार जताने !
ReplyDeleteयदि उसकी माँ का समझा बूझकर बच्ची की शिक्षा और अपनी छत्रछाया के लिए मना लिया जाए तो कुछ बात बन सकती है। बड़ी कसमसाहट होती है ऐसे में , क्या किया जाए !
@ वाणी जी
Deleteमाँ को समझाया जब पिछली बार अकेला छोड़ गयी थी बच्चियों को। कोई फायदा नहीं होता , माँ ने स्कूल में दाखिल भी करवाया पर स्कूल में इन बच्चियों मन नहीं लगता हैं। रूबी खुद कहती हैं की नौकरी की वजह से दो वक्त का खाना मिल जाता हैं।
अजीब लगता हैं सब कुछ