आज़ादी के पावन पर्व की सबको बधाई।
आज प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने पहली बार लाल किले पर तिरंगा लहराया। मोदी जी ने अपने पहले भाषण में जो " बेटो " पर लगाम कसने की बात कहीं है वो बात इसी नारी ब्लॉग की हर पोस्ट में अनगिनत बार कहीं गयी हैं। ११५६ पोस्ट पब्लिश करके निरंतर यही कहा गया हैं की समानता तभी आ सकती हैं जब बेटे पर पाबंदियां लगाई जाए। जो नियम घर में हो वो बेटे और बेटी के लिये एक से हो। ये पुरुष विरोधी होना या नारीवादी होना नहीं हैं ये समाज को याद दिलाना हैं की आप अगर "पाबंदियों में समानता का व्यवहार" नहीं करेगे तो कभी ना कभी आप को आने वाली पीढ़ी की " उछ्रंखलता में समानता को " स्वीकार करना ही होगा .
नरेंद्र मोदी जी ने बिलकुल सही कहा अभिभावक अपने बेटो से डरते हैं और इसीलिये उन से कभी प्रश्न करने की हिम्मत ही नहीं करते।
बेटो के प्रति मोह और बेटियों के प्रति निष्ठुरता का परिणाम हैं ये असमानता जो आज भी हर परिवार में व्याप्त हैं। हर नियम हर कानून केवल बेटी के लिये और कारण "उसकी सुरक्षा " .
किस से समाज अपनी बेटी की सुरक्षा उस से जो रिश्ते में उसका पिता , भाई , चाचा , मामा , ताऊ या एक पुरुष हैं जिसको वो नहीं जानती पर ये समाज जानता हैं , क्युकी वो इसी समाज का वो हिस्सा हैं जिस पर पाबंदी लगाना ये समाज भूल गया।
नतीजा क्या हुआ आज समाज हर प्रकार की उछ्रंखलता को स्वीकार कर रहा हैं। हर घर में पोर्न , शराब , सिगरेट ब्लू मूवी और भी बहुत कुछ आज की पीढ़ी जिसमे लड़के और लड़की दोनों हैं के लिये उपलब्ध हैं। बहुत से अभिभावक समझते हैं इस बात को पर इग्नोर करते हैं।
असमानता को ले कर लड़कियों के मन में जो रोष हैं वो लावा बन चुका हैं और विस्फोट की तैयारी में है इस लिये जरुरी हैं की कानून और संविधान को माना जाए। लड़को और लड़कियों में बराबरी हो प्रतिबंधों पर। जो लड़की के लिये गलत हो उसे लड़को को भी ना करने दिया जाये।
सोचने का समय खत्म हो रहा जागृति का मशालवाहक नरेंद्र मोदी अपनी हर संभव कोशिश करने को प्रतिबद्ध दिख रहा हैं तो आप और हम भी कोशिश करे
आज प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने पहली बार लाल किले पर तिरंगा लहराया। मोदी जी ने अपने पहले भाषण में जो " बेटो " पर लगाम कसने की बात कहीं है वो बात इसी नारी ब्लॉग की हर पोस्ट में अनगिनत बार कहीं गयी हैं। ११५६ पोस्ट पब्लिश करके निरंतर यही कहा गया हैं की समानता तभी आ सकती हैं जब बेटे पर पाबंदियां लगाई जाए। जो नियम घर में हो वो बेटे और बेटी के लिये एक से हो। ये पुरुष विरोधी होना या नारीवादी होना नहीं हैं ये समाज को याद दिलाना हैं की आप अगर "पाबंदियों में समानता का व्यवहार" नहीं करेगे तो कभी ना कभी आप को आने वाली पीढ़ी की " उछ्रंखलता में समानता को " स्वीकार करना ही होगा .
नरेंद्र मोदी जी ने बिलकुल सही कहा अभिभावक अपने बेटो से डरते हैं और इसीलिये उन से कभी प्रश्न करने की हिम्मत ही नहीं करते।
बेटो के प्रति मोह और बेटियों के प्रति निष्ठुरता का परिणाम हैं ये असमानता जो आज भी हर परिवार में व्याप्त हैं। हर नियम हर कानून केवल बेटी के लिये और कारण "उसकी सुरक्षा " .
किस से समाज अपनी बेटी की सुरक्षा उस से जो रिश्ते में उसका पिता , भाई , चाचा , मामा , ताऊ या एक पुरुष हैं जिसको वो नहीं जानती पर ये समाज जानता हैं , क्युकी वो इसी समाज का वो हिस्सा हैं जिस पर पाबंदी लगाना ये समाज भूल गया।
नतीजा क्या हुआ आज समाज हर प्रकार की उछ्रंखलता को स्वीकार कर रहा हैं। हर घर में पोर्न , शराब , सिगरेट ब्लू मूवी और भी बहुत कुछ आज की पीढ़ी जिसमे लड़के और लड़की दोनों हैं के लिये उपलब्ध हैं। बहुत से अभिभावक समझते हैं इस बात को पर इग्नोर करते हैं।
असमानता को ले कर लड़कियों के मन में जो रोष हैं वो लावा बन चुका हैं और विस्फोट की तैयारी में है इस लिये जरुरी हैं की कानून और संविधान को माना जाए। लड़को और लड़कियों में बराबरी हो प्रतिबंधों पर। जो लड़की के लिये गलत हो उसे लड़को को भी ना करने दिया जाये।
सोचने का समय खत्म हो रहा जागृति का मशालवाहक नरेंद्र मोदी अपनी हर संभव कोशिश करने को प्रतिबद्ध दिख रहा हैं तो आप और हम भी कोशिश करे
उनका आव्हान एक व्यवहारिक और सार्थक आव्हान है | परिवार और समाज का भी सहयोग मिले उनकी इस सोच को.... बेटा हो या बेटी .... देश का हर बच्चा संस्कारित हो, हम आगे बढ़ें ... सशक्त बने
ReplyDeleteनशे की बात हो या उच्छृंखलता की बात हो, बेटे-बेटियों दोनों पर समान रूप से लागू होनी चाहिये।
ReplyDeleteबदलाव की उम्मीदअब की जा सकती है..
ReplyDeleteबदलाव की आशा हमें करना ही चाहिए और अपना पूर्ण सहयोग भी देना चाहिए तभी परिवर्तन आपाएगा |
ReplyDeleteप्रधानमन्त्री का भाषण समाज को आइना दिखाता है अब समाज को बदलना ही होगा
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