हम सब उन बयानों पर भड़क जाते हैं जो नेता इत्यादि देते हैं जैसे
लड़को से गलतियां , या लड़कियों के कपड़े , या लड़कियों का देर से आना जाना
लेकिन क्या ये सब महज नेता कहते हैं किस घर में ये सब नहीं कहा जाता
कोई
माँ जिसके पुत्र और पुत्री दोनों हैं क्या दोनों के लिये समान मानसिकता
रखती हैं ? क्या कभी वो अपनी बेटी को ये नहीं कहती तुम रात को नहीं जाना
भाई की बात मत करो वो लड़का हैं ?
क्या पिता अपनी बेटी के लिये फ़िक्र मंद होता हैं तो अपनी पत्नी से नहीं कहता लड़को का क्या हैं वो लड़की हैं उसका ज्यादा ध्यान रखना हैं
हम दूसरे के बयानों को महज इसलिये गलत कहते हैं क्युकी वो एक जिम्मेदारी की जगह पर बैठ कर बयान दे रहे हैं पर
क्या हमारे घरो में हमारे दिये गए बयान हमारी दोहरी मानसिकता को नहीं दिखाते
क्या घर एक जिम्मेदार जगह नहीं हैं
कब बदलेगी हमारी मानसिकता जहां स्त्री का बलात्कार हो सकता और उस बलात्कार की वजह से बदनामी भी उसकी ही मानी जाती हैं
लोग और कानून दोनों कहते हैं रेप विक्टिम का नाम और चित्र मत डालो
क्यों
क्युकी समाज उनको जीने नहीं देगा
तो बदलना चाहिये हमे अपनी मानसिकता को
मुझे
तो लगता हैं विक्टिम और रेपिस्ट दोनों का फोटो डालना चाहिये और हम सब
को मानसिकता सही करके इस सच को स्वीकार करना चाहिए की जो दुभांत हम अपने घर
से शुरू करते हैं वो हमेशा कहीं ना कहीं मुखर रहती हैं
जितना समय इन नेता के बयानों पर हम नष्ट करते हैं उतने समय में मानसिकता सही करने पर काम हो " अपनी अपनी मानसिकता " तो आगे आने वाले समय में हमारी बेटियां एक स्वस्थ समाज का हिस्सा होंगी।
सही कहा है, दोहरी मानसिकता ने ही समाज में इतनी बुराइयों को जन्म दिया है
ReplyDeleteबिल्कुल सही। अगर हम अपनी मानसिकता सुधारें और अपने बच्चों पर खासकर बेटों की परवरिश पर ध्यान दें, तो कम से कम अगली पीढ़ी से ऐसी घटनाएं कुछ कम तो होंगी। मुझे अब भी याद है कि रामसिंह के तिहाड़ में मौत के बाद एक टीवी चैनल पर आए उसके मां-बाप किस तरह की बातें कर रहे थे। साफ लग रहा था कि रामसिंह एक खराब माहौल में पल कर उस तरह का इनसान बना था।
ReplyDeleteबिलकुल। मानसिकता बदलने का आरम्भ घर से ही होना चाहिए।
ReplyDeleteसही कहा आपने
ReplyDeleteपर किसी पीड़ित की निजता की रक्षा भी होनी चाहिए।
सहमत हूँ
DeleteRachana ji, sahi kaha apane. hame pahale hamari khud ki mansikata badlani hogi.
ReplyDeleteस्वस्थ समाज बनाने में परिवार का सबसे बड़ा हाथ होता है, परिवार में माता-पिता दोनों की बराबर की ज़िम्मेदारी है कि लड़का-लड़की दोनों के लिए समान चिंता और विश्वास हो तभी दोनों में एक सा आत्मविश्वास पैदा होगा.अपने अनुभव से कह सकती हूँ कि बेटों के लिए उतनी ही चिंता होती है जितनी किसी बेटी के लिए हो सकती है. बलात्कार समाज की विकृति है उसे दूर करने के लिए स्वस्थ चर्चा की ज़रूरत है. ऐसी चर्चा की शुरुआत घर से हो जिसमें बच्चे (बेटा-बेटी) अपनी कमज़ोरियों और कुंठाओं पर भी बेबाक बेझिझक बात कर सकें.
ReplyDeleteसही है ।
Deleteबात कहने की और कहे को करने की में जमीन आसमान का फर्क है. आपको तकलीफ दायक हो तो पहले से क्षमाप्रार्थी हूँ...क्या वे, जो नारी को शिक्षा देती हैं कि कंधे मिला कर नहीं रगड़ कर चलो.. खुद ऐसा करती हैं... बाहर कुछ और तथा घर पर कुछ और, तो दोहरी मानसिकता ही हुई ना.. यदि ऐसा नहीं हो पा रहा है तो मंच से दिया गया संदेश कितना प्रभावी होगा...मैं कहना चाहूँगा कि कोशिश में और गंभीरता आनी चाहिए... तब आप जो कह रहीं हैं ...सामने आएगा और समाधान भी मिलेगा. साथ ही साथ पुरुष को सभ्य या और भी सभ्य ( जो सभ्यहैं) होना पड़ेगा.
ReplyDeleteक्या में भी अपनी रचना यहाँ भेज सकती हु अगर हाँ तो किस पते पर ?
ReplyDeletejarur aap blog join karkae yahaan likh saktee haen apna email id dae dae , dhyaan rakhae is blog par kavita kahani itydi nahin chhaptey haen
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