दिल्ली गैंग रेप के एक दोषी को नाबालिग मान लिया गया हैं उसके स्कूल के सर्टिफिकेट के हिसाब से .
इस अपराधी की उम्र 17.5 साल हैं
किसी भी नाबालिग अपराधी को केवल और केवल 3 वर्ष की सजा ही हो सकती हैं
सजा पूरी होने से पहले अगर अप्रादी 18 वर्ष का हो जाता हैं तो सजा ख़तम हो जाती हैं
इस का सीधा मतलब हुआ की ये अपराधी जून के बाद फिर किसी का "रेप " करने के लिये खुला छोड़ दिया जाएगा . क्युकी जून तक ये असम्भव हैं की इसकी ओवर हौलिंग करके इसे पशु से इंसान बनाया जा सके
ये वो अपराधी हैं जिसने एक लड़की का बलात्कार किया
फिर उसके शरीर के अन्दर लोहे की छड डाली
फिर उसकी आंते उस छड से बाहर निकाली
इस घिनोने काम से बेहोश हो चुकी लड़की के साथ फिर बलात्कार किया
जुते से उसके अंगो को मसला
उसके बाद उसको "ले मर साली " कहा
फिर अपने साथियो को उस लड़की को कपड़े उतार कर उसके मित्र के साथ सड़क पर फेंक कर उनके ऊपर से बस ले जा कर उनको मारने के लिये उकसाया
क्या आप को लगता हैं ये सब काम एक " बच्चा " भी अगर करे तो वो माफ़ी के काबिल हैं .
क्या परिभाषा हैं बच्चे की ?? क्या महज नाबालिग होने से कोई बच्चा हो जाता हैं
क्या रेप यानि बलात्कार ये यौन से सम्बंधित अपराधी को बच्चा मानना सही हैं वो भी जब वो 17.5 साल का हो चुका हैं .
एक तरफ हम बाल विवाह को अपराध ,मानते हैं तो दूसरी तरफ हम इस अपराधी को "ना बालिग " मानते हैं .
क्यूँ बाल विवाह एक अपराध हैं और नाबालिग के द्वारा किया गया बलात्कार अपराध होते हुए भी उसको सजा का प्रावधान नहीं .
आप निष्पक्ष राय दे . कमेन्ट स्पैम में जा सकते इस लिये मुझे समय दे उनको बाहर लाने के लिये .
इस अपराधी की उम्र 17.5 साल हैं
किसी भी नाबालिग अपराधी को केवल और केवल 3 वर्ष की सजा ही हो सकती हैं
सजा पूरी होने से पहले अगर अप्रादी 18 वर्ष का हो जाता हैं तो सजा ख़तम हो जाती हैं
इस का सीधा मतलब हुआ की ये अपराधी जून के बाद फिर किसी का "रेप " करने के लिये खुला छोड़ दिया जाएगा . क्युकी जून तक ये असम्भव हैं की इसकी ओवर हौलिंग करके इसे पशु से इंसान बनाया जा सके
ये वो अपराधी हैं जिसने एक लड़की का बलात्कार किया
फिर उसके शरीर के अन्दर लोहे की छड डाली
फिर उसकी आंते उस छड से बाहर निकाली
इस घिनोने काम से बेहोश हो चुकी लड़की के साथ फिर बलात्कार किया
जुते से उसके अंगो को मसला
उसके बाद उसको "ले मर साली " कहा
फिर अपने साथियो को उस लड़की को कपड़े उतार कर उसके मित्र के साथ सड़क पर फेंक कर उनके ऊपर से बस ले जा कर उनको मारने के लिये उकसाया
क्या आप को लगता हैं ये सब काम एक " बच्चा " भी अगर करे तो वो माफ़ी के काबिल हैं .
क्या परिभाषा हैं बच्चे की ?? क्या महज नाबालिग होने से कोई बच्चा हो जाता हैं
क्या रेप यानि बलात्कार ये यौन से सम्बंधित अपराधी को बच्चा मानना सही हैं वो भी जब वो 17.5 साल का हो चुका हैं .
एक तरफ हम बाल विवाह को अपराध ,मानते हैं तो दूसरी तरफ हम इस अपराधी को "ना बालिग " मानते हैं .
क्यूँ बाल विवाह एक अपराध हैं और नाबालिग के द्वारा किया गया बलात्कार अपराध होते हुए भी उसको सजा का प्रावधान नहीं .
आप निष्पक्ष राय दे . कमेन्ट स्पैम में जा सकते इस लिये मुझे समय दे उनको बाहर लाने के लिये .
इन सारी परिस्थितियों के लिए पूरा समाज दोषी है। हम संविधान में स्त्रियों के लिए समानता का अधिकार देते हैं पर वह समाज में दूर दूर तक नहीं है। हम समझते हैं कि 18 वर्ष तक का होने तक बालक बालिका को उस के माता-पिता का सामाजिक संरक्षण मिलना चाहिए। लेकिन लाखों बच्चे इस से महरूम हैं। हम समझते हैं कि बच्चों को जब तक वे वयस्क नहीं हो जाते शिक्षा मिलनी चाहिए लेकिन लाखों बच्चे उस से महरूम हैं। किसी भी समस्या का एक तरफा कोई समाधान नहीं है। जिस बच्चे को माँ पाल नहीं सकी। बहुत छोटी उम्र में वह काम के लिए घर से निकल गया। असंस्कृत लोगों के बीच उसकी परवरिश जैसी हुई वैसी हुई। उस ने दुष्कर्म किया और हत्या की। वह दोषी है उसे सजा मिलनी चाहिए, पर क्या फाँसी मिलनी चाहिए? उस बच्चे को ऐसा बना डालने वाले समाज का कोई दोष नहीं है। क्या उस की सजा इस समाज के स्वयंभू ठेकेदारों और नेताओं को नहीं मिलनी चाहिए? क्या ऐसे समाज को नहीं बदल डालना चाहिए। सजाएँ मिल जाएँगी या सजाएँ नहीं मिलेंगी। लेकिन क्या यह वक्त सोचने का नहीं कि समाज जो अब जीने लायक नहीं है उसे बदलना चाहिए, कैसे बदला जाए? कौन सी शक्तियाँ हैं जो समाज को बदल सकती हैं? उन शक्तियों को कैसे समाज बदलने के लिए एकत्र किया जाए?
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Deleteद्विवेदी जी,आपने समाज को सजा की बात की ।सही है लेकिन प्रेक्टिकल नहीं।दोषी तो समाज है लेकिन सारे समाज को तो फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता न ।दरअसल कानून के पास इसका कोई खास इलाज नहीँ है वो केवल लक्षणों का इलाज कर सकता है।मेरी इसी ब्लॉग पर रचना जी व अन्य से कभी इसी विषय पर बहस हुई थी जब उन्होने कहा कि कानून ही सबसे पहले है।तो लीजिए करवा लिए कानून से समस्या का हल ।कानूनविदों ने तो तर्क दे दिया कि एक मामला तो अपवाद है और यदि पन्द्रह साल के ऊपर लडके को बालिग मान लिया तो बाल मजदूरी रोकने में बहुत समस्या आएगी।अब क्या करें उनकी बात मानकर चुप बैठ जाएँ?
Deleteअगर कोई अभिभावक अपने बच्चे को सही तरह से नहीं पाल सकते जैसा मेरी पिछली पोस्ट में भी कहा गया तो उनकी सजा का क्या प्रावधान हैं
Deleteक्यूँ नहीं 1 बच्चे के बाद ही नसबंदी / ओपरेशन का प्रावधान कानूनन लागू कर दिया जाये
क्यूँ 3 बेटी होने के बाद भी लड़का नहीं हैं तो नसबंदी नहीं होंगी ये उस समय कहा गया था जब संजय गाँधी ने नसबंदी का कानून बनाया था
क्यूँ विरोध नहीं होता ज्यादा संतान के होने का दिनेश जी , क्या इस दिशा में कोई कानून बनाना चाहिये की बेटा हो या बेटी अगर आप की आय { जो कानून बताये } कम हैं तो संतान उस अनुपात से हो फिर चाहे लड़का हो या लड़की
समाज को सजा देने तक क्या बेटियों की बलि देने वालो को चाहे वो नाबालिग क्यूँ ना खुले ही घुमने दिया जाये
क्यूँ नहीं फांसी दी जाए ताकि दुबारा अपराध ना हो
इस अपराधी की उम्र 17.6.24 साल(सोमवार 28 जनवरी) है
ReplyDeleteक्या आप को लगता हैं ये सब काम एक " बच्चा " भी अगर करे तो वो माफ़ी के काबिल हैं ...... बिलकुल नहीं .........
भारतीय परिवेश में 11 साल की लड़की और 13 साल के लडके में परिपक्वता आ जाती है .... ये सारा समाज जानता है .....
समय समय पर नियम कानून बदलने चाहिए ..........
समाज दोषी है ......... तो जब तक समाज बदले .... तब तक सारे नाबालिग जुर्म करने के लिए आजाद हों ??
तो जब तक समाज बदले .... तब तक सारे नाबालिग जुर्म करने के लिए आजाद हों ??
Deleteएक दम सही प्रशन हैं पर कौन उत्तर देगा विभा
ऐसे लोगों को चौराहे पर फांसी देनी चाहिए . अब समय आ गया कि हमारे कानूनों में बदलाव हो और उन्हें सख्ती से लागू किया जाए .
ReplyDeleteमाफी तो बिल्कुल नहीं मिलनी चाहिए बल्कि जितना हो सके उसे कडा दंड मिले।लेकिन मैं चाहता हूँ कि यदि वह छूट जाए तो उसकी पहचान सार्वजनिक कर दी जाए ताकि कदम कदम पर उसे दुत्कार मिले ।लेकिन लगता नहीं हमारे समाज में यह भी संभव है।बलात्कार जैसा गंभीर अपराध ऐसा नहीं है कि एक बारह तेरह साल से ऊपर का लड़का समझता न हो कि वह क्या कर रहा है।इस लड़के ने जो किया पूरे होशो हवास में किया बल्कि सुबूत मिटाने के लिए और भी ज्यादा दरिंदगी दिखाई।जाहिर है उसे पता था वो क्या कर रहा है।हाँ कुछ मामले ऐसे होते हैं जिनमें कम उम्र के बच्चे ये नहीं समझ पाते कि वो जो कर रहे हैं कितना गलत है और इसका क्या नुकसान है।
ReplyDeleteनाबालिग कोई भी अपराध करने के लिए आजाद छोड़ दिए जाएँ और हमारा क़ानून उन्हें कुछ दिन बाद छोड़ने का आदेश दे सकता है। लेकिन क़ानून ये तो कर सकता है कि रेपिस्ट चाहे किसी भी उम्र का हो उसकी सजा में एक सजा और शामिल करनी चाहिए - रेपिस्ट के चेहरे को इस तरह से चिन्हित किया जाय कि वो निशान जीवन में दुबारा मिटाया न जा सके और अपने उस कुकृत्य का दंड वे जीवन भर लिए घूमते रहें और उस निशान से उनको जो लोगों की वितृष्णा मिलेगी वही उनकी आजीवन सजा होगी।
ReplyDeleteचेहरा उजागर न करने का नियम भी गलत है क्योंकि वे ऐसे घिनौने काम को अंजाम दे सकते हैं तो वे सामाजिक तिरस्कार से बचाए क्यों जाते हैं? क़ानून उनको दंड नहीं बल्कि एक लाभ दे रहा होता है।
स मामले में आरोपी की उम्र सत्रह वर्ष छ; महीने से भी अधिक है यानि वो अठारह वर्ष से थोडा ही कम है और हैवानियत में बहुत ज्यादा । अब ये भी तय है कि वर्मा कमेटी की रिपोर्ट के बाद सरकार भी इसमें कोई फ़ेरबदल नहीं होने जा रहा है और मौजूदा कानूनों के रहते सर्वोच्च न्यायालय से कम किसी से भी कुछ अलग की उम्मीद नहीं की जा सकती है । कानून में अब भी बहुत से झोल हैं जिन्हें दूर किया जाना बहुत जरूरी है , बहुत ज्यादा जरूरी
ReplyDeleteबच्चा, इंसान जैसे विशेषण इस निकृष्ट प्राणी पर लागू नहीं होते ।
ReplyDeleteइस हैवान की पहचान होनी बहुत ज़रूरी है। अगर ये शैतान छूट गया तो बाहर आएगा ही, ये आह्वान करना होगा, कि जिस दिन वो बाहर आये उसे लडकियां/महिलायें बीच सड़क पर, अपने हाथों से ख़तम करें। अगर कानून कुछ नहीं कर सकता, तो हम करेंगे, ये सन्देश पहुँचना चाहिए, कानून के कानूनचीयों के कानों तक। कानून के रहमो-करम पर अब नहीं रहना, ये बताना होगा, ताकि क़ानून के मसीहों की नींद उड़े।
s manjusha...u r right...just kill him...minor?????????????????
Deleteलेकिन उसे एक ही बार में मारने से क्या होगा ?ऐसी घटनाएँ पहले भी कई बार हो चुकी हैं कुछ समय पहले बिहार में एक बलात्करी युवक को गाँववालों ने मार डाला था।पर लोग सब भूल जाते हैं।मुझे लगता है उसे मौत तो मिले लेकिन किश्तों में।और ये भी ध्यान रखना चाहिए कि इस दौरान वह आत्म हत्या न कर ले।पर पहचान तो हर हाल में सार्वजनिक होनी ही चाहिए।
Deleteसबसे पहले उसकी पहचान की डिमांड की जाए। सरकार को बाध्य किया जाए कि अगर आप इतने ही पंगु हैं और सजा नहीं दे सकते तो, आपको उसकी पहचान सार्जनिक करनी होगी। ये भविष्य में भी महिलाओं की सुरक्षा के लिए ज़रूरी है। इसके लिए अनशन, धरना जो भी करना पड़े, महिलाएं करें।
Deleteबिहार में जो घटित हुआ था और अब जो होगा, उसमें फर्क होगा ....अब किसी कानून-वानून का इंतज़ार नहीं करना है, बस मिडिया का साथ चाहिए। लाखों की तादाद में नारियां सामने आयें, उस कमीने को बीच सड़क पर तब तक घुसे लगाए जाएँ, जब तक उसकी जान ना निकल जाए। इसका सीधा प्रसारण होना चाहिए ...और कोई कह भी नहीं सकेगा कि किसके घूसे से वो मरा है। इस का सीधा प्रसारण हर तरह से हो, ताकि देखने वाले देखें और जान जाएँ अब कुछ भी हो सकता है।
बिल्कुल किशोर नहीं है. यह परिपक्व अपराधी है.
ReplyDeleteनाबालिग को शिक्षा संस्कार देना समाज का दायित्व है लेकिन यदि समाज ने किन्ही कारणो से भी दायित्व का निर्वहन नहीं किया तो क्या इसका मतलब यह हो जायेगा कि जो नाबालिग है वह कैसा भी अपराध करने के लिए स्वतंत्र है? ऐसे अपराधों को अपवाद की श्रेणी में रखकर दंड देने पर विचार किया जा सकता है। विशेष रूप से बलात्कार जैसे अपराध तो नाबालिग के लिए दंडनीय हो ही जाने चाहिए। माफी नाबालिग के नाम पर, अपराध बलात्कार! यह तो माफी योग्य नहीं होना चाहिए।
ReplyDelete"हद हो गई! इससे ज्यादा दुःख भरी खबर पिछले एक अरसे से मैंने नहीं सुनी कि दिल्ली दुष्कर्म का छठा आरोपी नाबालिग करार दिए जाने के कारण जल्द ही रिहा हो जाएगा।
ReplyDeleteमतलब 18 साल होने से एक दिन पहले तक हमारा कानून उसे, बल्कि उसके जैसे अन्यों को भी केवल एक दूध पीता बच्चा ही मानता है, जिससे कोई अपराध हो नहीं सकता और अगर हो गया है तो उन्हें सुधरने के लिए वापिस समाज में भेज दिया जाना चाहिए। ऐसे लोगों के किसी भी तरह के जघन्य अपराध करने पर भी बहुत थोड़ी सी ही सजा दी जाती है, मतलब सज़ा ना देने के बराबर।
इस कानून को बदलने के लिए इन्साफ मिलने तक आन्दोलन चलाया जाना चाहिए...
यही विडम्बना है तभी तो ये कहा है इस लिंक पर मैने भी
ReplyDeletehttp://vandana-zindagi.blogspot.in/2013/01/blog-post_29.html
एक लावा उबल रहा है अन्दर जब पढा कि वो नाबालिगता के कारण सिर्फ़ 2 साल की सज़ा का ही हकदार होगा और उसकी हड्डियों की जाँच भी हमारे देश में विशेष परिस्थिति मे दी जाती है तो उनसे पूछा जाये अब इससे ज्यादा विशेष और शर्मनाक घटना क्या होगी जिसने सारे देश के मूँह पर कालिख पोत दी और हम अभी तक् कानून की आड ले रहे हैं जबकि दूसरे देशों मे ऐसी स्थिति मे कडी सज़ा का प्रावधान है।यही तो हमारे देश की सबसे बडी समस्या है जहाँ कभी वक्त रहते कोई सही निर्णय नहीं लिया जाता सब अपनी कुर्सी की फ़िक्र में लगे रहते हैं जनता के साथ क्या हो रहा है उससे उन्हें कोई मतलब नहीं ………क्या कानून बनाने वालों को नही दिख रहा आज का घिनौना सत्य ,क्या अब कानून मे त्वरित तौर पर बदलाव नहीं किया जा सकता जो सबके लिये एक मिसाल बने और कोई भी ऐसा जघन्य कर्म करने से पहले करोडों बार सोचे …………क्या उसे नाबालिग कहेंगे जिसने इतने घिनौने कृत्य को अंजाम दिया …………शर्म आ रही है आज इस देश के कानून पर और कर्णधारों की सोच पर…………खरपतवार को तो जड से उखाडना ही बेहतर होता है ये बात हमारे देश के कर्णधार कब समझेंगे यही एक अफ़सोस जनक बात है……जागरुकता भी है मगर उपाय के आगे कानून नाम का प्रश्नचिन्ह लग गया है्……………आखिर इतनी संवेदनहीन कैसे हो गये ये ?इतनी नृशंसता देख तो असंवेदनहीन भी रो पडे …………क्या इनके दिल , दिमाग , भावनायें कुछ नहीं हैं …………इंसान भी हैं या नहीं शक हो रहा है अब …………मै यही सोच रही हूँ कि जब आम जनता के एक एक इंसान की राय एक है तो क्यों हमारे देश के कर्णधारों और कानून निर्माताओं की राय भिन्न हो जाती है वो भी ऐसे घृणित कुकर्म पर ………जिसके खिलाफ़ क्या छोटा और क्या बडा, क्या खास और क्या आम सबकी एक राय है वहाँ अगर उसके खिलाफ़ रियायत की जाती है तो ये तो देश, समाज और जनता सबके प्रति अन्याय नहीं होगा क्या?
अब तो ना कानून पर भरोसा है ना समाज पर?
ReplyDeleteऐसे घृणित दुष्कृत्य के लिये जिम्मेदार हर अपराधी को कठोर से कठोर दंड मिलना चाहिये और इस दंड का सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन होना चाहिये।
ReplyDeleteबच्चे की परिभाषा सुनकर तो हँसी आती है.. रेलवे के अनुसार १७ साल से कम बच्चा, भारतीय दण्ड संहिता के अनुसार १२ साल या उससे अधिक उम्र के व्यक्ति पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाया जा सकता है और ये बाल अपराध के मामले में १८ साल.
ReplyDeleteमाना कि बच्चे को सुधार गृह भेजा जाना चाहिए. लेकिन क्या पॉकेटमारी और इस घृणित अपराध को एक ही श्रेणी में रखा जा सकता है!! जब देश का क़ानून रेयरेस्ट ऑफ द रेयर मामले में फँसे की सज़ा दे सकता है तो इस तरह के भयानक रेयरेस्ट ऑफ द रेयरेस्ट मामले में बाल अपराध की रेयरेस्ट व्याख्या और सज़ा क्यों नहीं?????
सलिल जी
Deleteउन बच्चो का क्या होगा जो बाल सुधर गृह में छोटी छोटी नादानियो के चलते सुधार की प्रक्रिया के लिये वहाँ रखे जाते हैं क्या प्रभाव होगा उन पर जब ये अपना जुर्म उनके साथ बांटेगा . क्या होगी उन बच्चो की मानसिकता इस के साथ बात करके .
रचना जी,
Deleteसुधार गृह में भेजकर लोग सिर्फ अपने दायित्व की पूर्णाहुति समझ लेते हैं.. जबकि उसके पीछे की सचाई यह भी है कि जब वहाँ से वो बाहर निकलता है तो ग्रैज्युएट होकर निकलता है..
अदा जी की बात से सहमत।
ReplyDeleteऐसे आततायी का ऐसा ही हश्र हो ।
अदालत और कानून व्यक्तियों द्वारा ही बनाये जाते है फिर ये "जड़ता "क्यों ???
ReplyDeleteyadi nabalig hota to aisa kretye na karta , kanoon ke haath rokhne wale , khud iske suraksha karmi hi hote hai . kanoon ki kurshi par baithane wale bina karan hi badnaam ho jate hai
Deleteनिर्णय मौजूदा व्यवस्था के अनुसार लिए जाते हैं और इस लिहाज़ से अपराधी नाबालिग ही है। अलबत्ता,उसके अपराध ने व्यवस्था की समीक्षा की आवश्यकता ज़रूर पैदा कर दी है क्योंकि बालिग होने का सीधा अर्थ यौन-सक्रियता ही होता है।
ReplyDeleteइसे जल्दी मरना गलत होगा . इस को दो साइकोलोजिस्ट (एक पुरुष और एक महिला ) के पास भेजना चाहिए .
ReplyDeleteजो ये पता लगा सके की ये इंसान से जानवर कैसे बना . वो कौनसी सामाजिक परिस्थिति और संगति थी जिसने इसे ऐसा बनाया .
एक बार उस कारण का पता लगाकर उससे समाज को छुटकारा दिलाने का कार्य शुरू किया जा सकता है .
तभी ये वृत्ति और इस तरह के कृत्य पर रोक लगेगी और वही उस लड़की का असली बदला होगा .
ReplyDeleteजो कानून अपना अर्थ खो चुके हो , उन्हें अवश्य बदला जाना चाहिए !