लो दशहरा आया और चला भी गया। खूब पूजा-पाठ व्रत-उपवास किये गए, मौज-मस्ती भी खूब हुई और अंत में लंका दहन के नाम पर रावण के पुतले को जला कर पूरा समाज आत्म-संतुष्टि के भाव से भर गया। रावण-दहन केवल बुराई पर अच्छाई, असत्य पर सत्य, अनीति पर निति की विजय का प्रतीक नहीं बल्कि हमारे समाज के सकारात्मक सोच की पराकाष्ठा का भी ज्वलंत उदाहरण है। हर रोज़ नज़रों के सामने बुराई, असत्य, अनीति को जीतता हुआ देख कर भी हर साल सदियों पूर्व मिले एक जीत की ख़ुशी में हम जश्न मनाना नहीं भूलते इससे बेहतर सकारात्मक सोच का उदहारण क्या हो सकता है भला?
क्यूँ भूतकाल को पीछे छोड़ कर हम वर्तमान में नहीं आ पा रहे? आखिर कबतक हम पुतले को जला जला कर अपनी बहादुरी जताएंगे? क्यूँ नहीं समाज के असली रावणों को पहुंचा पा रहे हम उनके अंजाम तक? क्या इसलिए की हम सब बैठ कर फिर से उस राम के जन्म की प्रतीक्षा कर रहे हैं या फिर इसलिए की रावण की कमजोरी बता कर लंका दाहने वाले विभीषण अब जन्म नहीं ले रहे?
राम के जन्म का तो पता नहीं लेकिन अगर विभीषण का इंतज़ार है तो वो अब कभी नहीं आने वाला क्यूंकि अब कोई भी रावण किसीको विभीषण बनने नहीं देता, उस रावण के पास कमसकम इतना आत्म-स्वाभिमान तो था कि अगर सीता से उसकी वासना पूर्ति होती तो वो उसकी साम्रागी होती पर आज का रावण 'साम्रागी' नहीं 'सामग्री' मानता है वो भी सार्वजनिक, जिसका भोग वो मिल बाँट कर कर सकता है तभी तो गैंग रेप की प्रथा सी चल पड़ी है और इसलिए अब कोई विभीषण भी रावण के खिलाफ खड़ा नहीं होता। इन विभीषण-प्रिय-रावणों से थोडा नज़र हटायें तो और भी ऐसे एक से एक दुराचार-विभूतियाँ मिलेंगी जिन्हें अगर मैं रावण की संज्ञा दूँ तो अपना अपमान समझ कर रावण भी मुझपर मानहानि का दावा ठोंक देगा। जी हाँ मैं वैसे ही पिताओं की बात कर रही हूँ जो अपनी ही मासूम बेटियों को नहीं बख्शते चाहे वो छः माह की हो तीन या फिर चौदह वर्ष की इन लोगों के लिए तो शायद अब तक कोई शब्द किसी भी भाषा में बना ही नहीं।
जिस प्रकार त्रेता युग में रावण का वध करने के पूर्व उसके सारे सहायकों का वध करना पड़ा था ठीक उसी तरह समाज से रावणों का समूल नाश करने के लिए उन विकृत सोच वाले लोगों को भी उचित दण्ड मिलना ही चाहिए जो गाहे बगाहे मेघनाद सा गर्जन करते हुए न सिर्फ सारा दोष स्त्री जाती पर मढ़ देते हैं बल्कि रावण का वेष धरे कामी पुरुषों को संरक्षण के साथ-साथ ये तसल्ली भी दे देते हैं कि जब तक मैं हूँ तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। जब तक रेप के कारणों को ढूंढने के नाम पर सारा दोष लड़कियों की पढाई, कभी उनके खुले विचार, कभी कपडे, कभी विवाह का उम्र, तो कभी बेबुनियादी तरीके से चाउमीन जैसी चीजों पर मढ़ने की छुट देते रहेंगे हम रावणों के पिछलग्गू मेघ्नादों को तबतक इनके पीछे छिप कर रावण अपनी कुकृत्यों को अंजाम देता रहेगा। हम सब बस परंपरा के नाम पर रावण का पुतला जलाएंगे और समाज में असली रावणों की संख्या बढती जायेगी, दहन होगा तो बस सीता और उसके परिजनों का।
याद रखो ये त्रेता नहीं कलयुग है और कलयुग में अब तक रावण-दहन नहीं हुआ .........
राम और विभीषण हनुमान किसी का भी इंतज़ार क्यों किया जाये क्यों न हर नारी को इतना शसक्त बनाये की समाज के रावण से वो खुद ही मुकाबला कर सके , अपनी भी रक्षा करे और अपनी बहन बेटी का भी ।
ReplyDeleteदशहरे के आने और जाने से रावण का अंत होने लगा तो फिर अब ये समाज रामराज में जी रहा होता . हम सबमें एक न एक रावण (बुराई ) पल रहा है . हमें उस पर विजय पाने का संकल्प लेकर उसे मिटाने का काम करना होगा तो हम सब राम और हनुमान जैसे काम कर सकेंगे .
ReplyDeleteघोर अनैतिक लोगों से नैतिकता की उम्मीद!
ReplyDeleteरचना जी,
ReplyDeleteसही प्रश्न उठाया है आपने ...
हमारी संस्कृति बस प्रतीकों पर यकीन करती है। फिर चाहे वो सिन्दूर हो, मंगलसूत्र हो या रावण।
दशहरे में माँ दुर्गा की प्रतिमा क्यूँ बिठायी जाती है, आज तक नहीं समझ पायी हूँ, और जितनी श्रद्धा उस मिटटी की मूर्ती को दी जाती है, उसका अंशमात्र सम्मान भी रास्ते या घर पर बैठी देवीरूपा को नहीं मिलता।
उसी महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा के नीचे बैठे अनगिनत तथाकथित भक्तों की लोलुप नज़रें बस पहले मौके की तलाश में होतीं हैं।
निदान सिर्फ एक है, दुर्गा बनना होगा, काली बनना होगा, अपने लिए और अपनी बहु बेटियों के लिए। कोई राम नहीं आयेंगे, न कोई विभीषण, खुद ही रणचंडी बनना होगा ....यही एक मात्र उपाय है।
अदा जी ये पोस्ट अलोकिता की हैं जो नारी ब्लॉग की उम्र में सब से छोटी और सोच में बहुत बड़ी सदस्या हैं
Deleteज़रा फिर पढिये एक २० साल से कम आयु की बिटिया के विचार और तारीफ़ करिये क्यूँ करेगी ना
Rachan ji,
Deletemujhe nahi maloom tha ye post aapki nahi hai...
agar ye 20 varsheey aalokita ke hain to nisandeh prashansneey hai..kyumki itni paripakw soch bade bade vidwaanon ki bhi nahi hoti..
BRAVO Alokita !
चाहे राम विभीषण काली दुर्गा कोई भी आ जाए ये केवल किसी राक्षस को ही खत्म कर सकते हैं लेकिन उस महिला विरोधी राक्षसी मानसिकता को ये भी खत्म नहीं कर सकते।ये काम तो केवल नारी ही कर सकती है और वही करेगी भी।
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