"मेरा
डॉ बनने का जूनून उड़ान भरने लगा ,पर होनी कुछ और थी , मुझे दसवीं के बाद
उस जगह से दूर विज्ञान के कॉलेज में दाखिला के लिए पापा ने मना कर दिया |
ये कह कर की दूर नहीं जाना है पढने|
जो है यहाँ उसी को पढो , और पापा ने मेरी पढ़ाई कला से करने को अपना फैसला
सुना दिया | मैं कुछ दिल तक कॉलेज नहीं गयी | खाना छोड़ा और रोती रही , पर
धीरे -धीरे मुझे स्वीकार करना पड़ा उसी सच्चाई को | "
"सपने देखने शुरू कर दिए मेरे मन ने .कई बार खुद को सरकारी जीप मे हिचकोले खाते देखा पर भूल गयी थी कि मैं एक लड़की हूँ ,उनके सपनो की कोई बिसात नही रहती ,जब कोई अच्छा लड़का मिल जाता हैं |बस पापा ने मेरे लिय वर खोजा और कहा कि अगर लड़की पढ़ना चाहे तो क्या आप पढ़ने देंगे बहुत ही गरम जोशी से वादे किये गये ."
"जब बी ए ही करना है तो यहीं से करो .. मैंने बहुत समझाया ...मुझे बी
ए नहीं करना है वो तो एक रास्ता है मेरी मंजिल तक जाने का पर उस दिन एक
बेटी के पिता के मन में असुरक्षा घर कर गई ..घर की सबसे बड़ी बेटी को बाहर
भेजने की हिम्मत नहीं कर पाए ...और मैं उनकी आँखे देखकर बहस "
"मुझे
हमेशा से शौक था .... विज्ञान विषय लेकर पढ़ाई पूरी करने की क्यों कि कला
के कोई विषय में मुझे रूचि नहीं थी ..... लेकिन बड़े भैया के विचारों का
संकीर्ण होना कारण रहे .... मुझे कला से ही स्नातक करने पड़े ..... ऐसा
मैं आज भी सोचती हूँ .... कभी-कभी इस बात से खिन्न भी होती है...."
"उन्हीं दिनों मेरे दादाजी घर आये हुए थे।
कॉलेज खुलने ही वाले थे, मेरे पिताजी ने दादा जी से भी विचार विमर्श
किया और दादाजी ने निर्णय सुना दिया गया कि कॉलेज नहीं बदलना है . उसी
कॉलेज में आर्ट विषय लेकर पढ़ना है , मानो दिल पर एक आघात लगा था। कुछ दिन
विद्रोह किया लेकिन बाद में उनका फैसला मानना ही पड़ा। "
"न्यायाधीश की बेटी, और हर अन्याय के खिलाफ लड़ने का संकल्प धारण करने वाली
लड़की अपने
प्रति होने वाले इस अन्याय का प्रतिकार नहीं कर पाई और जीवन भर अपनी हार का
यह
ज़ख्म अपने सीने में छिपाये रही !"
रेखा श्रीवास्तव अपने ब्लॉग पर एक सीरीज अधूरे सपनों की कसक पढवा रही हैं .
आप
भी पढिये और सोचिये नर - नारी समानता आने में अभी कितनी और देर आप लगाना
चाहते हैं . कितनी और बेटियों को आप अधूरे सपनों के साथ अपना जीवन जीने के
लिये मजबूर करना चाहते हैं और कितनी बेटियों से आप ये सुनना चाहते हैं की
नियति के आगे सब सपने अधूरे ही रहते हैं .
बेटी
के लिये विवाह कब तक कैरियर का ऑप्शन बना रहेगा . कब तक आप विवाह करके
लडकियां सुरक्षित हैं हैं ये खुद भी मानते रहेगे और लड़कियों से भी मनवाते
रहेगे .
बढिया प्रस्तुति
ReplyDeleteवो सभी अपने सपनों को कहना चाहती है कह कर अपने मन का बोझ हल्का करना चाहती है , तो बिलकुल कहना चाहिए ये ब्लॉग है ही अपने मन की कहने के लिए , ये कह कर वो और मजबूत बनेगी अपनी बेटियों के सपने पुरे करने के लिए , ताकि उनमे अपने अधूरे सपनों की कोई कसक न हो। मेरा ध्यान उन लेखो पर गया किन्तु मैंने उन्हें पढ़ा नहीं वो सारी बाते बीते समय की है , अब हमारी बेटियों का भविष्य किसी पिता के नहीं हमारे हाथ में है , मै पीछे मुड़ कर क्यों देखू मै आगे नहीं देखू , जहा सायना , मेरी कॉम , सानिया , चावला और न जाने कितनी ही उदहारण दिख रहे है । एक गाना याद आ रहा है " छोडो कल की बाते कल की बात पुरानी नए दौर में लिखेंगे हम मिल कर नई कहानी "
ReplyDelete(:(:(:
Deletepranam
जो दर्द मेरा था उसमें मैं तनहा नहीं थी ...वो कहानी बस किरदार बदलती रही ...सोनल ,नीलिमा रजनी साधना ....क्रमश:
ReplyDeleteअभी बहुत समय लगेगा. महिलाओं को स्वयं साहस करना होगा क्योंकि इस समाज में पुरुष आसानी से अपना वर्चस्व नहीं छोड़ने वाले.
ReplyDeleteji - lekin yah us umr me hota hai jab ve abhi "mahila" nahi , maasoom bacchiyan hoti hain |aur maata pita ka har faislaa hi "sahi faisla" hota hai : ( : ( : (
Deleteये सच है कि हमारी पीढी के लड़कियाँ इसा त्रासदी की शिकार रही हैं लेकिन इससे दर्द जो हुआ उसने इतना मजबूत बना दिया है कि अपनी बेटी के लिए वो रोड़े न अटकाएंगे और न अटकने देंगे . हाँ पुरुष वर्ग इसा बारे में कुछ अधिक ही सोचता है . लेकिन उनको समर्थ और सक्षम बनाने में अब माँ भी उतनी दृढ़ता से निर्णय लेने में पिता को सहमत कर लेती हैं और पिता भी अब उतने पुराने विचारों के नहीं रहे।
ReplyDelete--
ham badlenge ...tabhi jag badlega ....
ReplyDeleteWe see such stories even today. I know of a daughter who was 'allowed' to do an MBA but is not allowed to work by her in laws, who would rather she taught in a primary school. She lives in a joint family.
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