क्युकी पुरुष से बेहतर पुरुष को क़ोई नहीं समझता ।
ये समय वो हैं जब एक पुरुष को चाहिये की वो दूसरे पुरुष को नैतिकता का पाठ पढाये ताकि एक पुरुष दूसरे पुरुष को अपनी बेटी का दुश्मन ना समझे ।
हर समय हर युग में नारी को नैतिकता का पाठ पढ़ा दिया जाता हैं और नारी को ही नारी का दुश्मन माना जाता हैं जब की हैं इसका उलटा ।
अगर आप गंभीर रूप से विचार करेगे तो पायेगे की नारी को नैतिकता का पाठ सब से ज्यादा उसके पुरुष अभिभावक ही देते हैं क्युकी वो दूसरे पुरुष को समझते हैं
ईश्वर हर घर में एक बेटी दे ताकि हर पिता समझे समाज को सुरक्षित करना कितना जरुरी हैं
समाज किस से बनता हैं ?
बेटे और बेटी से . सो बेटे और बेटी को सब अगर समान समझ देगे तो सुरक्षा खुद आयेगी
लोग बेटो को कभी ये नहीं समझाते, किसी भी वर्ग के लोग, की लड़की को मत छड़ो पर लड़कियों को सब पर्दे में रखना चाहते हैं । हर नियम कानून लड़कियों की सुरक्षा से सम्बंधित घरो में बनाये जाते हैं और लड़कियों को उन पर अमल करने के लिये कंडीशन किया जाता हैं और सुरक्षा के बहाने उनकी आजादी उन से छीन ली जाती हैं । बच्ची , लड़की ,बेटी , औरत , माँ , बहना , पत्नी , दादी , नानी , सास , बहू , नन्द , भाभी अनगिनत रिश्तो में नारी जिस जगह भी हैं हर पुरुष जो उस से सम्बंधित हैं वो उसकी सुरक्षा के लिये चिंतित हैं लेकिन सुरक्षा किस से कहीं ना कहीं एक पुरुष से ही ना ।
क्यूँ हर पुरुष को अपने आस पास अपनी करीबी नारी के लिये दूसरा पुरुष एक " दुश्मन लगता हैं " और अगर उसको ऐसा लगता हैं तो क्या वो पुरुष अपने भाई , बेटे , दोस्त को कभी भी ये समझता हैं की नैतिकता क्या हैं स्त्री पुरुष संबंधो की ।
क्यूँ पिता बनते ही हर पुरुष दूसरे पुरुष को अपनी बेटी के लिये असुरक्षित मानता हैं बेहतर होगा पुरुष एक दूसरे को इस और शिक्षित करे ताकि हर पुरुष की बेटी दूसरे पुरुष की भी बेटी ही हो
क्या ये इतना संभव कार्य हैं एक पुरुष से बेहतर दूसरे पुरुष को कौन समझ और समझा सकता हैं
समय हैं बेटियों को नहीं बेटो को नैतिकता का पाठ पढ़ाने का ।
मनाई , बंदिश और नियम
जहाँ भी मनाई हों लड़कियों के जाने की
लड़को के जाने पर बंदिश लगा दो वहाँ
फिर ना होगा कोई रेड लाइट एरिया
ना होगी कोई कॉल गर्ल ,ना होगा रेप
ना होगी कोई नाजायज़ औलाद
होगा एक साफ सुथरा समाज
जहाँ बराबर होगे हमारे नियम
हमारे पुत्र , पुत्री के लिये
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yahi hona chahiye tabhi ye des apni pahli chavi ko paa sakega ,,
ReplyDeletejai hind jai bharat
अभी हाल ही में एक कविता पर मैंने कुछ ऐसी ही बात लिखी थी की पिताओ को बड़े होने पर समाज से डरने और बेटी को भी डराने के बजाये उससे लड़ना सिखाना चाहिए | शायद पुरुष जानता है की किसी अन्य पुरुष को समझाना असंभव है या वो समझ ही नहीं सकता तो एक मुश्किल रास्ता अपनाने से अच्छा है की बेटी को ही पर्दे में रखा जाये | हर किसी को बेटी होने से समाज सुरक्षित हो सकता तो ये समाज कभी बेटियों के लिए असुरक्षित होता ही नहीं |
ReplyDeleteआपका कहना सही है... नैतिक शिक्षा जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत है वो ना तो विद्यालय में दी जा रही है ना परिवार में... यदि संस्कारों की शिक्षा ठीक से दी जाए तो बहुत सी उलझनें स्वत: ही हल हा जाएंगी
ReplyDeleteहिन्दी कॉमेडी- चैटिंग के साइड इफेक्ट
पोस्ट की एक दो बातों से असहमत होने के बावजूद इस संदेश से सहमत कि बेटों को ही सुधारना जरुरी है और वैसे भी बेटी को पर्दे में रखने से तो केवल वो ही सुरक्षित रहेगी लेकिन बेटे को सुधार दिया तो ये समस्या ही खत्म.इससे हमारे घर की महिलाएँ भी बहुत हद तक सुरक्षित हो जाएगी और जो अच्छे पुरुष भी इसी वजह से शक की निगाहों से देखे जाते है उनकी शिकायत भी दूर हो जाएगी.
ReplyDeleteजिस तरह हर पुरुष को इस धारणा के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता ठीक वैसे ही हर नारी निर्दोष नहीं है.
ReplyDeleteदर-असल यह बहस स्त्री-पुरुष की हद से ऊपर है.व्यक्तिगत लोग ऐसी विचारधारा के लिए दोषी हैं,वे पुरुष और स्त्री दोनों हो सकते हैं.कई जगह ऐसा होता है कि बेटी को उसके पिता की तरफ़ से अभयदान रहता है जबकि माँ कई तरह से बेटी को रोंकती-टोंकती है.
sachne par majboor kati post....sundar rachna...beton ko sudhar do ghar samaj sab sudhar jaega
ReplyDeleteनैतिकता का अर्थ है - जीवन जीने के तरीके | इसका पाठ बेटे और बेटियों " दोनों " को ही बराबरी से "बताया" जाना चाहिए - "पढ़ाया " ? पता नहीं |
ReplyDeleteयदि एक अच्छा समाज चाहिए - तो ज़रूरी है कि न सिर्फ बेटे, न सिर्फ बेटी, बल्कि " दोनों " ही सही राह पकडे | अभिभावक उन्हें सही राह दिखा सकते हैं - पर उन्हें जबरदस्ती चलाना ? शायद कुछ ठीक नहीं हो |