बार बार जो नारी को अबला कहा जाता हैं क्या सही हैं ?? या ये कह कर महज उसको डराया जाता हैं
नारी का आज के समय में भी ये मानना की वो अबला हैं क्या सही हैं ?? या ये उसका लकीर पीटना मात्र हैं
विवाह नारी को के उत्थान में बाधक है आज भी क्या ये सही हैं ?? या ये एक मिथ्या भ्रम मात्र हैं
आज कि नारी का विद्रोह पुरूष से नहीं , समाज कि कुरीतियों से हैं जो नारी - पुरूष को एक अलग लाइन मे खडा करती हैं ।
६० साल पहले कि नारी विद्रोह कर रही थी शायद पुरूष से और इसीलिये वह बार बार कहती थी " हमें आजादी दो " लेकिन आज कि नारी अपने को आजाद मानती हैं और उसका विरोध हैं उस नीति से जो उसे पुरूष के बराबर नहीं समझती ।
आज की नारी ने समाज के बनाये नियम की पुरुष उसका भगवान् / दाता हैं से विद्रोह करना शुरू किया हैं
अगर भारतीय समाज को "परिवार " को बचाना हैं तो उसे ये मानना होगा कि नारी पुरूष बराबर हैं नहीं तो अब परिवार और जल्दी टूटेगे क्योकि आज कि पीढी कि स्त्री आर्थिक रूप से सक्षम हैं और उसे अकेले रहने और अकेले तरक्की करने से परहेज नहीं हैं ।
aaj ki naree sabla hai....
ReplyDeleteआज कि पीढी कि स्त्री आर्थिक रूप से सक्षम हैं और उसे अकेले रहने और अकेले तरक्की करने से परहेज नहीं हैं
ReplyDelete.
ऐसा आज नहीं हमेशा रहा है.
इस दिशा में भी काफी कोशिशों की जरूरत है ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबधाई |
और बधाई ||
sahi kaha aapne,naari abla nahi par ek pahlu ye bhi hai ki use sabla bol bolkar bhi usse jarurat se jyada ummidein lagai ja rahi hai. use bas barabar ka darja do aur apne nirnaya khud lene dena chahiye
ReplyDeleteDon't let someone become your priority when you are just an option in their life.
ReplyDeleteAaj ki nari ke chup rahne ka matlab ye nahi hai 'Mano sweekriti lakshanam' balki ye hai 'ek din jwalamukhi phatanam.' Banki aapsab samajhdar hain iska arth samjhte hi honge:-)
rgds.
@६० साल पहले कि नारी विद्रोह कर रही थी शायद पुरूष से और इसीलिये वह बारबार कहती थी " हमें आजादी दो " लेकिन आज कि नारी अपने को आजाद मानती हैं और उसका विरोध हैं उस नीति से जो उसे पुरूष के बराबर नहीं समझती
ReplyDeleteहाँ ये अंतर तो आया है.महिलाएँ कर्तव्यों से मुक्ति नहीं चाहती बल्कि तमाम तरह के कर्तव्यों अधिकारों संसाधनों व अवसरों का समान व न्यायपूर्ण बँटवारा चाहती है.यदि ये हो जाता है तो महिलाओं को इस संबंध में आवाज उठाने की जरूरत ही नहीं रह जाएगी.
जहाँ तक बात है विवाह की तो विवाह या मातृत्व महिला की प्रगति में बाधक नहीं है यदि इन्हें महिला की नियति नहीं मान लिया जाए यानी कि इस संबंध में उसकी इच्छा या अनिच्छा को महत्तव नहीं दिया जाए या इस तरह के निर्णय लेने के बाद तमाम तरह की जिम्मेदारियाँ व समझौते केवल महिला के खाते में डाल दिये जाएँ तो ये सचमुच उसकी प्रगति में बाधक है.
जो समझदार है वो इस बात को समझ चुके है की अब बराबरी की बात किये बिना कोई काम नहीं चलेगा जो नहीं समझने के लिए तैयार है वो अपने घरो के दरवाजो पर सौ ताले लगा रहे है की ये हवा उनके घर की महिलाओ को ना बिगाड़े पर वो भूल रहे है ज्यादा बंधन अपने आप विद्रोह को जन्म देती है जिस हवा को वो अंदर आने से रोक रहे है एक दिन वो हवा वही अंदर ही पैदा हो जाएगी और तब वो किसी की भी नहीं सुनेगी |
ReplyDeleteकल शाम, धनबाद में कई पुरुष-पार्लर्स में पुलिस रेड हुई और सभी पार्लरों से महिला कर्मचारी पकडे गए ||
ReplyDeleteधनबाद की पूर्व एस पी सुमन गुप्ता ने हजारीबाग जिले से कहा कि मैं तो ऐसी रोक धनबाद में लगा कर आई थी कि पुरुष पार्लर में महिला कर्मचारी न रखे जाएँ ||
कृपया इस घटना पर प्रतिक्रिया दे ||