नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

May 07, 2010

“ बताओ ना मम्मा “

मेरा मन आज बहुत विचलित है ! मेरी छोटी बेटी शलाका ने आज मुझसे जो सवाल पूछे उनके जवाब मेरे पास नहीं हैं ! आज यह पोस्ट मैं आप सभी प्रबुद्ध पाठकों के सामने इसी प्रत्याशा से रख रही हूँ कि आप शायद उसके प्रश्नों का समुचित जवाब दे पायें और उसके नन्हे मन की अनंत जिज्ञासाओं को शांत कर सकें ! उसके सवालों का रेपिड फायर राउण्ड तब शुरू हुआ था जब नव रात्रि के व्रत के समापन के अवसर पर अष्टमी के दिन उसके लिए पड़ोस के वर्माजी के यहाँ से कन्या पूजन का बुलावा आया था ! साल में दो बार कोलोनी की सारी छोटी छोटी बच्चियों के लिए यह अवसर सामूहिक पिकनिक की तरह हुआ करता है जब सबको एक साथ कई कई घरों से आमंत्रण मिलता है और उन्हें बड़े आदर मान के साथ खिला पिला कर रोली टीका करके भेजा जाता है ! और ऐसे ही अवसरों पर उनके ‘सामान्य ज्ञान’ में कितनी वृद्धि हो जाती है और हर परिवार की छोटी बड़ी सभी बातों की वे किस प्रकार संवाहक बन जाती हैं इसकी कल्पना भी करना मुश्किल है ! शलाका वर्माजी के यहाँ से लौट कर आयी थी !
“ मम्मा लड़कियों को क्यों बुलाते हैं पूजा के लिए ? “
मैंने बड़े प्यार से उसे समझाना चाहा , “ बेटा इसलिए क्योंकि लड़कियों को देवी का रूप माना जाता है और इसीलिये छोटी बच्चियों को बुला कर उनकी पूजा करते हैं, उन्हें भोजन कराते हैं और फल-फूल, वस्त्र उपहार आदि देकर विदा करते हैं ! “
बस यहीं गड़बड़ हो गयी ! शलाका की बैटरी चार्ज हो गयी थी !
“ मम्मा लड़कियों को देवी क्यों मानते हैं ?”
“ अगर लड़कियाँ देवी होती हैं तो वर्मा आंटी के यहाँ जब दिव्या की छोटी बहिन आयी थी तो उसकी दादी गुस्सा क्यों हो रही थीं और आंटी क्यों रो रही थीं ? “
“ मम्मा कल के अखबार में न्यूज़ थी ना कि कचरे के ढेर पर पडी हुई ज़िंदा लड़की मिली ! मम्मा क्या ‘देवी’ को कचरे में फेंक देते हैं ? “
“ मम्मा वो आंटी भी तो अष्टमी के दिन लड़कियों को अपने घर बुलाती होंगी ना पूजा के लिए जिन्होंने अपनी बेटी को कचरे में फेंका होगा ! फिर उन्होंने अपने घर की ‘देवी’ को क्यों फेंक दिया ? “
“ मम्मा अगर उस लड़की को कोई कुत्ता या बन्दर काट लेता तो ? “
“ मम्मा ऐसे बच्चों को कौन ले जाता है ? “
“ मम्मा क्या लड़कों को भी देवता मानते हैं ? “
“ मम्मा क्या लड़कों को भी ऐसे ही घूरे पर फेंक देते हैं ? “
“ मम्मा सब लड़कियों के हक की बात क्यों करते हैं ? क्या लड़कों का कोई हक नहीं होता ? “
“ मम्मा लड़कियां कमजोर कैसे होती हैं ? मेरे क्लास में तो लड़कियां ही फर्स्ट आती हैं !”
“ मम्मा टी वी पर लड़कियों को ही पढ़ाने के लिए क्यों कहते हैं ? क्या लड़कों को पढ़ने की ज़रूरत नहीं होती ? “
“ मम्मा वंश बढ़ाने का क्या मतलब होता है ? “
“ मम्मा क्या सिर्फ लड़कों से ही वंश बढता है ? “
“ मम्मा लड़कियाँ भी तो अपने मम्मी पापा की संतान होती हैं तो फिर उनसे वंश क्यों नहीं बढ़ता ? “
“ बस शलाका बस ! बाहर जाकर खेलो और मुझे काम करने दो ! “
मैं झुंझला कर बोली ! शलाका मेरा चेहरा देख कुछ सहम गयी और अपने अगले सवाल को मुंह में ही दबाये बाहर चली गयी ! मेरा धैर्य चुक गया था इसलिए नहीं कि शलाका एक के बाद एक सवाल दागे जा रही थी बल्कि इसलिए कि इन सवालों के जवाब मैं स्वयं ढूँढ रही हूँ वर्षों से ! मैंने उसकी जिज्ञासा पर अस्थाई ब्रेक ज़रूर लगा दिया था ! लेकिन मेरे मन मस्तिष्क में उसका हर प्रश्न हथौड़े की तरह चोट कर रहा था ! मेरे पास उसके किसी सवाल का यथोचित जवाब नहीं था जो उसके मन की शंकाओं का तर्कपूर्ण ढंग से निवारण कर पाता ! इसीलिये आज आप सबकी शरण में आयी हूँ सहायता एवं मार्गदर्शन की प्रत्याशा से कि शायद आप उसे समाज में व्याप्त इन निर्मम विसंगतियों के लिए कोई माकूल जवाब दे सकें ! अंत में इस क्षणिका के साथ मैं यह आलेख यहीं समाप्त करती हूँ ताकि आप इसके सूत्र को अपने हाथ में ले सकें !
बना देवी मुझे पूजा दिखाने को ज़माने को,
यह सब छल था तेरा बस एक झूठा यश कमाने को.
कहाँ थी तब तेरी भक्ति दिया था घूरे पे जब फेंक,
मैं तब भी थी वही ‘देवी’ उसे तू क्यों न पाई देख !

साधना वैद

25 comments:

  1. बहुत माकूल और जलते सवाल साधना जी।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. आपकी सराहना के लिए धन्यवाद श्यामल जी ! लेकिन मुझे तलाश इन सवालों के जवाब की है ! कृपया मार्गदर्शन भी करें !

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  3. ladkiyaa in prashno kae uttar talashjti talshti budhii ho jataae haen par shyaad hi jwaab paati ho

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  4. बहुत सरल से सवाल हैं... पर जवाब उतने ही कठिन. हम सभी इन्हीं सवालों से जूझ रहे हैं... जवाब क्या देंगे?

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  5. आपकी बिटिया के इन मासूम सवालों का समाज क्या जवाब देगा ???

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  6. देवी इस लिए कि वो कभी किसी बात पर क्रोध नहीं करती वो हर गलतियों को हमेसा क्षमा करती है बदला नहीं लेती वह सहनशील होती है विद्रोह नहीं करती | वह जानते है कि वह हमेसा गलतिया करेंगे हम देवी बन कर हमेसा क्षमा करते रहे न कि उन्हें सजा देते रहे देवी बन कर सहते रहे न कि विद्रोह करते रहे | नारी को देवी से इन्सान बनाने का संघर्स तो बस कुछ दसक पुराना ही है इस पांच हजार साल पुरानी मानसिकता ख़त्म होने में अभी काफी समय लगेगा और यह इस पर भी निर्भर है कि क्या सारी नारियाँ देवी से इन्सान बनाने के लिए तैयार है |

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  7. साधना जी,

    ये शलाका के प्रश्नों का उत्तर न देकर हम इन उठाते प्रश्नों पर विराम तो नहीं लगा सकते हैं. अब जब ये सवाल बच्चियां उठने लगीं है तो उठाती ही रहेंगी. इसके लिए उत्तर हमको ही देना होगा. अपने घर में अपनी सोच बदल कर. जिनसे हम इस बारे में बता सकते हैं और समझा सकते हैं उनकी सोच बदल कर. सिर्फ कागजों पर लिखते हुए कुछ भी न होगा. इसको हम सभी को व्यवहारिक रूप देने के लिए कृत संकल्प होना पड़ेगा. काम से काम शलाका और किसी और शलाका के प्रश्नों की फेहरिस्त कुछ तो काम की ही जा सकती है. प्रयास करके देखेंगे तो सफल जरूर होंगे.

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  8. आपकी बेटी के सारे सवाल बेहद मौजूं हैं। एक बार को हम भी ठहर जाएंगे उसके इन सवालों का जवाब देते-देते। पर उसे उसके सवालों के जवाब मिलने ही चाहिए। यह जरूरी है। जो कुछ भी उसने देखा-जाना वो उसका प्रत्यक्ष अनुभव था। अनुभव से ही व्यक्ति जानता भी है समझता भी।
    मैं समझता हूं बिटिया के इन सवालों के जवाब एक मां से बेहतर कोई और नहीं दे सकता।

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  9. यह सवाल समाज की दोहरी मानसिकता को दर्शाते हैं...

    कम से कम आपकी बिटिया को सवाल पूछने का हक़ तो हासिल है...
    हम अगर सवाल करते हैं तो जवाब में पत्थर ही मिलते हैं...

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  10. मैं झुंझला गई....??? क्यों?
    दादी नाराज़ हो गईं.!!!! "दादी"
    ======================
    सवाल उचित हैं पर जवाब बिना पूर्वाग्रह के खोजने होंगे..............कोशिश करेंगे कि वर्षों से चला आ रहा आपका प्रयास सफल हो....
    इसके बाद भी एक बात कहेंगे कि ................. आपका झुंझलाना आपकी बेटी के मन में सवालों के बवंडर को और बढ़ाएगा. अच्छा हो कि आप जो इस बारे में सोचतीं हैं वही बताएं............... ब्लोगर अपनी-अपनी राय देंगे और हमारा मानना है कि कम से कम आप वही राय अपनी बेटी को नहीं देंगीं????
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  11. Dear Shalaka,

    Just felt like talking to you today. Its a real pleasure talking to a cute, intelligent and beautiful girl like you. You talk like a matured and graceful person, so i am trying to be friendly with you. I will also try to answer your innocent questions as best of my knowledge and the way it was told to me by my mother.

    1-“ मम्मा लड़कियों को देवी क्यों मानते हैं ?”

    Because small girls below 12 are called as 'kanya' and are considered as pious as Goddess, hence they are worshiped . Enjoy it as feast and festival.

    2-“ अगर लड़कियाँ देवी होती हैं तो वर्मा आंटी के यहाँ जब दिव्या की छोटी बहिन आयी थी तो उसकी दादी गुस्सा क्यों हो रही थीं और आंटी क्यों रो रही थीं ? “

    Because her grandmother was uneducated and she doesn't have the calibre to think of equality between boys and girls.
    Her mother was crying out of sheer helplessness as she was failing to make everyone understand that girls and boys, both are boons for us. There should not be any discrimination.



    3-The baby girls were thrown because of their mother's helplessness.If she has not taken the decision to throw them out, her brutal husband and ignorant in-laws would have thrown her out of house. We women need to fight with such situation with courage and wisdom. And courage, awareness, wisdom, all comes by education. So study hard.Her mother was left with no option , so she opted for that unwillingly.

    4-मम्मा अगर उस लड़की को कोई कुत्ता या बन्दर काट लेता तो ? “

    Insensitive people cannot feel that pain. They themselves have not risen above kutta and billi.

    5-“ मम्मा ऐसे बच्चों को कौन ले जाता है ? “

    Such kids are taken to orphanage or they die before time depending on their fate and destiny. Rarely they meet good people who extend their love and services selflessly.

    6-“ मम्मा क्या लड़कों को भी देवता मानते हैं ? “

    Yes, There are certain occasions where boys get more importance..like 'Hal-shashthi' and 'karvachauth'.

    7-“ मम्मा क्या लड़कों को भी ऐसे ही घूरे पर फेंक देते हैं ? “

    No, Boys are never thrown as they are considered as boon in our male dominating society. But dear Shalaka, time is changing and people are realizing the significance of both the genders.

    8-“ मम्मा सब लड़कियों के हक की बात क्यों करते हैं ? क्या लड़कों का कोई हक नहीं होता ?

    Boys get all the rights without asking, so the focus is more on girls to be aware now and fight for their rights.

    "apna haq sang-dil zamane se chheen pao to koi baat bane...Sur jhukaane se kuchh nahi hota, sur uthaao to koi baat bane "

    9-मम्मा वो आंटी भी तो अष्टमी के दिन लड़कियों को अपने घर बुलाती होंगी ना पूजा के लिए जिन्होंने अपनी बेटी को कचरे में फेंका होगा ! फिर उन्होंने अपने घर की ‘देवी’ को क्यों फेंक दिया ? “

    It is their ignorance beta, They all will realize their mistake one day.

    Let us hope for a bright future for the daughters of India and everywhere on the universe.

    10-मम्मा लड़कियां कमजोर कैसे होती हैं ? मेरे क्लास में तो लड़कियां ही फर्स्ट आती हैं !”
    “ मम्मा टी वी पर लड़कियों को ही पढ़ाने के लिए क्यों कहते हैं ? क्या लड़कों को पढ़ने की ज़रूरत नहीं होती ? “

    No, they are not weak nor meek. They are usually brighter than boys of their age. They are more understanding and forgiving, so they tend to withdraw. Both the gender need to be equally educated.

    11-“ मम्मा वंश बढ़ाने का क्या मतलब होता है ? “
    12-“ मम्मा क्या सिर्फ लड़कों से ही वंश बढता है ? “
    13-“ मम्मा लड़कियाँ भी तो अपने मम्मी पापा की संतान होती हैं तो फिर उनसे वंश क्यों नहीं बढ़ता ? “

    Both are complementary. Both are equally significant for 'vansh-vriddhi'.Time is changing.Girls are proving their worth in all spheres.

    Dear Shalaka...am hungry now...Let's dine together.

    with love,
    Your aunt,
    Divya.

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  12. आज इतने वर्षों से हम इन्हीं सवालों से तो जूझ रहे हैं, मिल सका जवाब? न अभी मिला है, न भविष्य में मिलेगा क्योंकि कमोवेश स्थितियां यही रहेंगी. आज इतने सालों में इस बीमार मानसिकता को हम कितना बदल पाये? आगे भी कितना बदल पायेंगे? सिवाय उम्मीद रखने के, कि कभी तो समय बदलेगा!

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  13. आप सभी महानुभावों का ह्रदय से धन्यवाद ! शलाका के प्रश्नों का उत्तर उसकी माँ अपनी प्रगतिवादी सोच के अनुसार ज़रूर दे सकती है और शलाका की माँ की तरह उदार एवं आधुनिक विचारधारा की माँएं हमारे समाज में और भी हैं जिन्हें शायद उँगलियों पर गिना जा सकता है ! मैं अंशुमाली जी की इस बात से सहमत हूँ कि जो कुछ शलाका ने देखा जाना और समझा वह उसका प्रत्यक्ष अनुभव था ! जीवन की पाठशाला में बच्चे इन्हीं अनुभवों से बहुत कुछ ऐसा भी ग्रहण कर लेते हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए ! शलाका की माँ की झुँझलाहट अपनी इसी निरुपायता को लेकर है ! वह क्या करे कि समाज में व्याप्त इन विसंगतियों का प्रभाव शलाका जैसे नाज़ुक मन के बच्चों पर नकारात्मक ना पड़े ! अपना घर तो वह सम्हाल ही लेगी ! लेकिन क्या बच्चों का घर से बाहर निकलना रोका जा सकता है ? उसके पास जादू की छड़ी तो नहीं कि उसकी बेटी जहाँ जाए सब कुछ उसके मन के अनुकूल ही उसे वहाँ मिले !

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  14. ज्वलंत प्रश्न हैं जी
    शायद ही कोई इनके संतुष्टिदायक जवाब दे पाये।
    देवी बनाने वाला कौन है।
    ज्यादातर स्त्रियां ही बनाती हैं। मगर अब बदलाव आ रहा है।
    बेटी के पहले ही प्रश्न पर आपने जो जवाब दिया उसने बेटी को देवी बना दिया।
    क्यों नहीं बताया कि यह पर्व लडकियों के लिये, उनके सम्मान में होता है। और कुछ पर्व लडकों के लिये भी होते हैं।

    प्रणाम

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  15. प्रिय साधना जी ,
    मुझे आज भी याद है ,मेरी एक परीचिता की बेटी उनसे हमारे सामने अक्सर इसी तरह के अनेकों बाल प्रश्न अपनी माँ से पूछती रहती कि
    "माँ तुम मेरे भैया के लिए इतने सारे व्रत-उपवास करती हो .मेरे लिए क्यों नहीं ? भाई का जन्म-दिन इतने धूम धाम से मानती हो मेरा क्यों नहीं ? भैया तो बाहर जब चाहे जा सकते हैं ,मैं क्यों नहीं ? भाई तो कोचिग में हर जगह जा सकते है और मेरा क्या ?
    इस तरह के अनेकों प्रश्न."
    बच्ची का जन्म-दिन तो ख़ुशी से मनाया जाने लगा पर बाकी बातों का जवाब तो सदियों से हर माँ ढूढती आई है. हम और आप सब.
    *सत्य वृतांत बता रही हूँ* कुछ वर्षों उपरान्त पता लगा कि उनकी बेटी शेफ़ाली ने आई .ए.एस. में सफलता पाई है और आज वो एक सफल अधिकारी है.
    हम यदि कुछ कर सकते हैं तो अपनी बेटियों को बिना कोई भेद-भाव किये उनकी योग्यता के अनुसार क्षमतावान बना देने में पूर्ण सहयोग प्रदान करें.
    यही हमारी-आपकी बेटी के हर प्रश्न का उत्तर है व *हमें बेटी की माँ होने का गर्व है.*
    दूसरों को दोषारोपित न करके हम सब नारी-शक्ति को अपनी सोच बदलना है.
    बिना विचलित हुए अपनी ही नहीं अपने हर परिचित की बेटी के लिए सदाशयता बनाते चलें ,बस हर प्रश्न का उत्तर अच्छा बनता चलेगा ," विश्वास करें."
    आशा है हमारी नन्ही *शलाका* को अपने प्रश्नों का उत्तर उसके माँ-पिता-परिवार-समाज की हर सकारात्मक सोच में अवश्य मिल जायेगा. शुभकामनाएँ .
    अलका मधुसूदन पटेल ,लेखिका+साहित्यकार

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  16. जैसी की उम्मीद थी ...zeal ने बहुत बुद्धिमत्तापूर्वक हर प्रश्न का जवाब दे दिया है ...!!

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  17. ab to hamare kahne ko kuch bacha hi nahi zeal ne sab kah diya.
    vaise prashn bahut hi sarthak aur jwalant uthaye hain magar jawab kisi ke pass nahi milega.
    abhi ek post maine bhi lagayi thi to logo ki tyoriyan chadh gayi ki aisa kyun kah diya jabki wo prashn bhi utna hi jwalant hai.
    http://redrose-vandana.blogspot.com

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  18. साधना जी , बेटी को कभी कुछ समझाने की ज़रूरत नहीं पड़ती , हमारी दिनचर्या को देख देख कर ही वे सब समझ जाती हैं कि ये प्रश्न ही निरर्थक हैं ...इनके कोई मायने नहीं हैं .. जितने आसान सवाल नज़र आते हैं उतने ही मुश्किल इनके जवाब हैं .. आप और हम भी इन सवालों का हल ढूँढ़ते ढूंढते बड़े हो गए और अब अपनी बच्चियों को हर बार एक नया पाठ पढ़ा देते हैं ...
    फिर भी zeal ने बहुत अच्छा एक्सप्लेन किया है ....

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  19. एक सशक्त ,समस्या मूलक रचना के लिए बधाई |
    आशा

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  20. "apna haq sang-dil zamane se chheen pao to koi baat bane...Sur jhukaane se kuchh nahi hota, sur uthaao to koi baat bane " यह सशक्त भाव हर नारी में हो तो कोई बात बने .
    ज़ील की टिप्पणी में लगभग सभी सवालों के बेहतरीन जवाब हैं...

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  21. साधना जी 'नारी' ब्लॉग में स्वागत है...

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  22. @हर माँ दिव्या जी जैसी हो जाए तो प्यारी शलाकाएँ अपना परचंम लहरायें !
    बहुत प्यारा और बुद्धिमानी से भरा संवाद !

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  23. दिव्याजी व आप सभी महानुभावों की मैं ह्रदय से कृतज्ञ हूँ कि आपने मेरी शंकाओं के समाधान के लिए सार्थक पहल की लेकिन यह सवाल अभी भी अनुत्तरित ही है कि जिसे समाज समय विशेष पर देवी बना कर पूजता है उसे हर पल हर रोज हज़ारों जिल्लतें झेलने के लिए क्यों विवश करता है ? उसके आत्म सम्मान को कुचलने के लिए अपने तीक्ष्ण हथियार लेकर क्यों सदा तत्पर रहता है ? उसे देवी ना बनाए लेकिन कम से कम एक इंसान की तरह स्वाभिमान से जीने तो दे ! उसे क्यों अपनी हर इच्छा, हर ज़रूरत को पूरा करने के लिए पुरुषों की मुखापेक्षा करनी पडती है ? शायद समय के साथ लोगों की सोच में भी बदलाव आएगा इसी उम्मीद पर सब टिका है ! वैसे आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद !

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  24. हम बात करते हैं नारी की तो क्यों?हमे कहना नही है,होकेर दिखाना है।वरना तो सब बाते ही हैं।

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  25. शायद ही कोई इनके संतुष्टिदायक जवाब दे पाये।

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