अपने अजीब-ग़रीब फ़तवों के लिए (कु)ख्यात दारूल उलूम देवबंद ने एक नया फ़तवा जारी कर मुस्लिम महिलाओं के नौकरी करने को ग़ैर इस्लामी और उनकी तनख्वाह को हराम की कमाई क़रार दिया है. जो महिलाएं विधवा, तलाक़शुदा या अकेली रह रही हैं और नौकरी करके अपना/अपने बच्चों को पालन-पोषण कर रही हैं, अगर वो काम नहीं करेंगी तो उनका ख़र्च देवबंद उठाएगा...?
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
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nahin ji char biwiyaan rakhnae ki aazadi ko badhaa kar 6 kar diyaa jaa saktaa haen
ReplyDeletejaved akhtar ko dhamki mil chuki haen aap ko bhi milagi
saawdhaan
सभी धार्मिक कानून अप्रासंगिक हो चुके हैं। जावेद साहब ने सही कहा कि इन फतवों को मानते कितने लोग हैं?
ReplyDeleteनहीं जी खर्चा उठाना हिन्दूओं की जिम्मेदारी है क्योंकि उन्होंने ही तो अपने मुसलिम भाईयों को विभाजन के बाद भारत में रखने की जिद की थी ।अब जब रखें हैं तो फिर खर्चा तो उठाना ही पड़ेगा ।नहीं उटाओगे तो फिर वो बम्म फोड़ेंगे।अपने जान माल की रक्षा की खातिर खर्चा तो उठाना ही पड़ेगा
ReplyDelete@सुनील दत्त
ReplyDeleteशायद आपने पोस्ट ठीक से नहीं पढ़ी...
यहां मुस्लिम महिलाओं और उनके परिजनों के ख़र्च की बात की जा रही है...
दीदी, आपका सवाल जायज़ है
ReplyDeleteजो लोग समाज को रास्ता दिखाने का दावा करते हैं उन्हे अपनी बातों और कार्यकलापों मे अतिवाद से बचना चाहिए, सामाजिक बदलाव व जरूरतों को ध्यान मे रखना चाहिए , चाहे वे मौलवी हों या नेता । मैं तो जब भी इतिहास से और माइथॉलोजी से भी कई कहानियां और घटनाएं पढ़ता हूं तो लगता है कि उस समय समाज मे कहीं ज्यादा स्वतंत्रता थी , हम आज ज्यादा संकीर्ण होते जा रहे हैं । फ़िरदौस जी का सवाल हमेशा की तरह सटीक और उचित है ।
ReplyDeleteसार्थक प्रश्न और चिन्ता....ना जाने कब समझेंगे लोग कि नारी में असीम शक्ति होती है....और इस तरह के फतवे उनका शोषण दर्शाते हैं
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletefirdaus ji, aurton ki tarakki se duniya me koi naya jaljalaa aa gaya to? bechare deoband walon ki chinta ko koi samajhta hi nahi. gg
ReplyDeleteआपका सवाल जायज़ है
ReplyDeleteरचना जी से सहमत!
ReplyDeleteफ़िरदौस जी, कहीं आपके खिलाफ भी फतवा जारी न हो जाए!
ReplyDeleteIt is curse to be a slave of such phatva.
ReplyDeleteAsha
पोस्ट तो ठीक से पढ़ी शायद समझने में गलती हुई
ReplyDeleteलो जी गलती सुधार लेते हैं
आपने बहुत ही विचारणीय लेख लिखा बधाई स्वीकार करें साथ ही जल्दवाजी में की गई प्रतिक्रिया के लिए क्षमा भी
क्योंकि ऐसा करना लेख के साथ अन्याय करने जैसा है हम ऐसा करने के पक्षधर नहीं
@सुनील दत्त
ReplyDeleteशुक्रिया, सुनील जी...
ये फतवे भी समाज में पहले से ही संघर्षशील तबके के लिए दिए जाते हैं ! जो लोग रुतबे वाले हैं, धनी हैं और उच्च वर्ग से सम्बन्ध रखते हैं वे चाहे जितने भी धार्मिक नियमों और आदेशों की अनदेखी करें कोई उनके खिलाफ चूँ भी नहीं करता !
ReplyDeletevery touching mayam really its touched my soul..
ReplyDeleteप्रशंसनीय ।
ReplyDeleteक्या कहा जाय....ऐसे बेसिर पैर के फतवों को...
ReplyDeleteफ़िरदौस जी का सवाल सटीक और उचित है ।
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