कपिल सिब्बल जब से मानव संसाधन मंत्री बने हैं तब से शिक्षा में सुधारों को लेकर बहुत सारी बातें हो रही हैं. ये बातें कागजों पर तो अच्छी है पर हकीकत की कसौटी पर ये खरी नहीं उतर पा रही है। बस्ते का बोझा कम करना अच्छी बात है. पर शिक्षको की मानसिकता में परिवर्तन लाए बिना शिक्षा व्यवस्था में लाया गया कोई भी परिवर्तन सफल नहीं होगा।
बच्चे पर हाथ उठाना कानूनन अपराध है. शहरों में बच्चो के साथ मार-पीट की घटनाओं में कमी भी आई है, परंतु अभी भी बहुतायत में हमारे देश के शिक्षक उसी मानसिकता में जी रहे हैं, जिसमें ये माना जाता है कि बिना भय के ज्ञान प्राप्त नहीं होता। इसी हिटलरी मानसिकता के कारण रांची के लोहरदगा के शीला अग्रवाल सरस्वती विद्या मंदिर के छात्र आकाश को होमवर्क न करके लाने के जुर्म में उसकी शिक्षिका अनिता वर्मा ने इतनी निर्ममता से पीटा की कि उसकी बांई आँख 96% क्षतिग्रस्त हो गई। डॉक्टरों का कहना है कि बच्चे को इलाज के लिए दिल्ली या चेन्नई ले जाना चाहिए, परंतु गरीब मां-बाप के लिए बच्चे को दिल्ली या चेन्नई ले जाना संभव नहीं है।
स्कूल ने अपने अपराध को छुपाने के लिए बहाना गढ़ा कि स्कूल में खेलते समय गिर जाने से उसे आँख में चोट लगी है, यही नहीं बच्चे के पिता को इस बात का लालच भी दिया गया गया कि यदि वे पिटाई के बारें में किसी को नहीं बताएगें तो उन्हें तो आकाश के इलाज का खर्चा भी स्कूल वाले उठाएगे, लेकिन बात फैल जाने के बाद शिक्षक महोदय अस्पताल से गयाब हो गए और प्राचार्य जी ने तो अस्पताल आकर अपने शिष्य को देखने तक की आवश्यकता नहीं समझी।
बच्चे के साथ मार-पीट कानूनन अपराध है. भारतीय पीनल कोड के अनुसार डंडे या हथियार से किसी की आँख फोड़ने या टांग तोड़ने की सजा अधिकतम दस वर्ष है. और भारतीय दण्ड संहिता की धारा 326 के तहत उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
एक तरफ सर्व सिक्षा अभियान की बात हो रही है। शिक्षा प्राप्त करना कानूनी अधिकार बना दिया गया है, दूसरी तरफ इस तरह की घटनाएं हो रही है। इस अपराध के लिए शिक्षिका को दण्ड मिलेगा की नहीं पता नहीं. पर यह सच है कि एक मासूम की जिंदगी बर्बाद हो गई, इसमें दो राय नहीं। यहां इस बात पर ध्यान दिया जाना जरूरी है कि मारपीट से बच्चे के मानसिक विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता।
आज बच्चो को शिक्षित करने से ज्यादा जरूरी है शिक्षको को शिक्षित करने की, ताकि वे अपना फ्रेशट्रेशन बच्चो पर न निकालें।
-प्रतिभा वाजपेयी.
बच्चे के साथ मार-पीट कानूनन अपराध है. भारतीय पीनल कोड के अनुसार डंडे या हथियार से किसी की आँख फोड़ने या टांग तोड़ने की सजा अधिकतम दस वर्ष है. और भारतीय दण्ड संहिता की धारा 326 के तहत उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
एक तरफ सर्व सिक्षा अभियान की बात हो रही है। शिक्षा प्राप्त करना कानूनी अधिकार बना दिया गया है, दूसरी तरफ इस तरह की घटनाएं हो रही है। इस अपराध के लिए शिक्षिका को दण्ड मिलेगा की नहीं पता नहीं. पर यह सच है कि एक मासूम की जिंदगी बर्बाद हो गई, इसमें दो राय नहीं। यहां इस बात पर ध्यान दिया जाना जरूरी है कि मारपीट से बच्चे के मानसिक विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता।
आज बच्चो को शिक्षित करने से ज्यादा जरूरी है शिक्षको को शिक्षित करने की, ताकि वे अपना फ्रेशट्रेशन बच्चो पर न निकालें।
-प्रतिभा वाजपेयी.
प्रतिभा जी ,
ReplyDeleteये स्कूलों में आये दिन की घटनाएँ बन चुकी हैं. स्कूल चाहे सरकारी हों या फिर प्रायवेट इनमें काम करने वाले शिक्षक किस हद तक कुंठाएं पाले हुए हैं कि उनका गुस्सा बच्चों पर निकालने लग है. ये एक घटना है - रोज कोई न कोई घटना होती रहती है. लेकिन अपनी कुंठाएं जिसके प्रति हैं उनके सामने निकालने का साहस तो नहीं जुटा पाते हैं बच्चों पर निकल देते हैं. ऐसे स्कूलों और शिक्षकों के प्रति कार्यवाही होनी चाहिए.
प्रतिभा जी, मैं आपकी इस बात से सौ प्रतिशत सहमत हूँ कि हमारे देश के शिक्षकों को सही शिक्षण की ज़रूरत है. इसके अभाव में ही इस प्रकार की हरकतें करते हैं शिक्षक. आज हालत ये है कि लाखों रुपये देकर लोग बी.एड. की डिग्री खरीद लेते हैं और शिक्षक बन जाते हैं. यहाँ दिल्ली के कुछ प्राइवेट स्कूलों में तो हालत बड़ी खराब है, छोटे शहरों और गाँवों के तो कहने ही क्या? जहाँ एक ओर सरकारी स्कूलों में टीचर पढ़ाना ही नहीं चाहते, वहीं प्राइवेट स्कूलों में इतना ज्यादा पढ़ा देते हैं कि बच्चा कवर ही नहीं कर पाता और वो भी सिर्फ़ ब्लैकबोर्ड पर लिख देंगे या बोल देंगे बच्चा लिख पाये या नहीं. मैं मानती हूँ कि अच्छे स्कूलों में ऐसा नहीं होता, पर कितने लोगों की हैसियत है अच्छे स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने की.
ReplyDeleteऐसे में सरकार को अपनी तरफ़ से कदम उठाकर शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिये.
इस बात से सौ प्रतिशत सहमत हूँ
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