महिलाएं न तो देवी बनना चाहती हैं और न ही ग़ुलाम... वो तो बस समाज से इंसानी हक़ चाहती हैं... जीने का हक़, वो हक़ है, जो मर्दों को हासिल हैं... दुनियाभर में सभी संप्रदायों ने महिलाओं का हमेशा शोषण किया है... महिलाएं कहीं शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ न उठाने लगें, इसलिए उन्हें घर की चारदीवारी तक महदूद (सीमित) कर दिया गया... उन्हें पर्दे में रहने के लिए मजबूर किया गया... बुर्क़े के ख़िलाफ़ लिखे हमारे लेखों से प्रभावित होकर हेल ही में भाई परम आर्य जी, ने हमें हिन्दू धर्म अपनाने की दावत दी है... इसके लिए भाई का आभार...
हिन्दू धर्म में भी महिलाओं की स्थिति पुरुषों के बराबर कम ही रही है... महिलाओं को जहां देवी बनाकर उनकी पूजा की गई तो वहीं उन्हें देवदासी भी बनाया गया. लेकिन यह हिन्दू धर्म की महानता है कि इसमें निरंतर सुधार होता गया... लेकिन मुस्लिम समाज (मज़हब के ठेकेदार ) आज भी महिलाओं के शोषण के ही पक्ष में है... हैरत की बात यह भी है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक और 'धर्मनिरपेक्ष' देश में भी महिलाओं के शोषण का सिलसिला बदस्तूर जारी है... अंग्रेज़ भारत से सती प्रथा तो मिटा गए, लेकिन बुर्क़ा नहीं...
मज़हब के ठेकेदारों के खौफ़ से हम हिन्दू धर्म अपना लें, ऐसा कभी हो नहीं सकता...क्योंकि
पलायन हमारी फ़ितरत में शामिल नहीं है... यानि 'न दैन्यम न पलायनम'
हमने कट्टरपंथियों के विरोध से घबराकर हिन्दू धर्म अपना लिया तो...हमारी कौम की बहनों का क्या होगा...???
हम बेशक मज़हब के लिहाज़ से मुसलमान हैं, लेकिन सबसे पहले हम इंसान हैं... और मज़हब से ज़्यादा इंसानियत और रूहानियत में यक़ीन करते हैं... हम नमाज़ भी पढ़ते हैं, रोज़े रखते हैं और 'क़ुरआन' की तिलावत भी करते हैं... हम गीता भी पढ़ते हैं और बाइबल भी... क़ुरआन में हमारी आस्था है, तो गीता और बाइबल के लिए भी हमारे मन में श्रद्धा है... हमने कई बार अपनी हिन्दू सखियों के लिए 'माता की कथा' पढ़ी है... और यज्ञ में आहुतियां भी डाली हैं...
अगर इंसान अल्लाह या ईश्वर से इश्क़ करे तो... फिर इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि उसने किसी मस्जिद में नमाज़ पढ़कर उसकी (अल्लाह) इबादत की है... या फिर किसी मन्दिर में पूजा करके उसे (ईश्वर) याद किया है...
हम बचपन से ही सूफ़ियों से मुतासिर रहे हैं... और धार्मिक कट्टरता के विरोधी रहे हैं... वो किसी भी मज़हब में क्यों न हो... (यह अच्छी बात है कि दूसरे धर्मों में सुधारवादी हैं और उन समाज की ख़ामियां दूर हुई हैं... वहां सुधार की गुंजाइश है...) मगर हमारे यहां ऐसा नहीं है, जो भी सुधार की बात करता है, उसे लाईमान (बिना ईमान वाला) घोषित कर दिया जाता है...
समाज के लोग आज भी अपनी अक़ल का इस्तेमाल करने की बजाय मुल्लाओं की बात को ही सर्वोपरि मानते हैं... और इनका कहा ही 'आख़िरी सच' होता है... हद तो यह है ज़्यादातर मामलों (तलाक़) में कि ये कठमुल्ला 'क़ुरआन' तक को ताक़ पर रख देते हैं... ऐसे लोग जब ख़ुद 'क़ुरआन' का पालन नहीं करते, उनकी हर बात को आंख मूंदकर मान लेना कितना सही है...???
मुल्लाओं की बात लोग मानते हैं, इसलिए इन लोगों का फ़र्ज़ होना चाहिए कि ये कौम की भलाई के लिए आदर्श स्थापित करें और लोगों को वो रास्ता दिखाएं जो ख़ुशहाली की तरफ़ जाता हो, लेकिन अफ़सोस कुछ लोग कौम को जहालत की गर्त में ले जाकर 'जेहादी' (तालिबानी)बनाने पर तुले हुए हैं... ऐसी कौम का मुस्तक़बिल (भविष्य) क्या होगा...???
हमारा मानना है... कोई भी इंसान मज़हब के लिहाज़ से अच्छा या बुरा नहीं होता... मज़हब इंसान का इबादत का तरीक़ा तो बदल सकता है, लेकिन किरदार नहीं... हम हिन्दुस्तान में रहते हैं और इस लिहाज़ से 'हिन्दू' हैं... हमारी आस्था इस मुल्क के क़ानून में है... सऊदी अरब के नहीं... और हमें हिन्दुस्तानी मुसलमान कहलाने पर फ़क्र है...
बक़ौल बुल्ले शाह :
करम शरा दे धरम बतावन
संगल पावन पैरी।
जात मज़हब एह इश्क़ ना पुछदा
इश्क़ शरा दा वैरी॥
हिंदुस्तान मे धर्म हैं
ReplyDeleteमुस्लिम , सिख , ईसाई
और हिंदू ?
धर्मं नहीं हैं "हिंदू"
हिंदुस्तान मे
हिंदू यानि
हिंदुस्तान की सभ्यता और संस्कृति
हिंदू यानि सर्वधर्म समन्वयता
हिंदू यानी सर्वधर्म सहिष्णुता
पाकिस्तान मे हिंदू यानी एक धर्म
इटली मे हिंदू यानी एक धर्म
लन्दन मे हिंदू यानी एक धर्म
पर हिंदुस्तान मे हिंदू
यानी
एक जीवन शैली
एक आस्था
एक विश्वास
http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/2008/10/blog-post_4047.html
firdaus
i wrote this log back and i aprreciate the way you are writing to make improvement in society
पर हिंदुस्तान मे हिंदू
ReplyDeleteयानी
एक जीवन शैली
एक आस्था
एक विश्वास .galat hai.nice
naari ek aisa ped hai jhan akar shanti milti hai...
ReplyDeletenaari ek aisa ped hai jhan akar shanti milti hai...
ReplyDeleteyah blog nar-naari sambandho par charchaa karata hai. hindu muslim dharm par charcha karake vishay parivartan lagata hai. kya yah aavashyak hai? nari sabhi dharmo men hai. dharmparivartan samadhan nahi.
ReplyDeletehar dhram mae naari ki sthiti par charcha hotee haen yahaan
ReplyDeleteफिरदौस मुझे आपकी चिंता है -इतना बेलौस, बिंदास आप लिखती हैं -चश्मे बद्दूर !
ReplyDeleteहम हिन्दुस्तान में रहते हैं और इस लिहाज़ से 'हिन्दू' हैं... हमारी आस्था इस मुल्क के क़ानून में है... सऊदी अरब के नहीं... और हमें हिन्दुस्तानी मुसलमान कहलाने पर फ़क्र है... ....बहुत खूब....आप बहुत अच्छा लिखती है.....
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने फ़िरदौस और तार्किक ढंग से भी. मानव धर्म सभी धर्मों से बढ़कर है. अगर हम अपनी इन्सानियत बनाये रखते हैं, तो किस धर्म का पालन करते हैं, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता. आपका स्टैंड बिल्कुल ठीक है कि अगर आप जैसी निडर होकर अपनी बात कहने वाली लड़कियाँ हिन्दू धर्म अपना लेंगी तो मुस्लिम बहनों का क्या होगा? आप इसी तरह से लिखती रहें. हम बहनें आपके साथ हैं. हमें कट्टरवादियों को ये दिखा देना है कि औरतों पर अत्याचार अब बर्दाश्त नहीं. हम एक हैं और एक साथ हर धर्म की बुराइयों का विरोध करते हैं.
ReplyDeleteyah ek achha blogg hai jisme naari apane jajbaato kp bayan kar sakti hai.
ReplyDeleteहिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्तान हमारा ...
ReplyDeleteविचारोत्तेजक प्रविष्टि ...
फिरदौस जी ,
ReplyDeleteनहीं... और हमें हिन्दुस्तानी मुसलमान कहलाने पर फ़क्र.
मुझे आपके लिखने पर फक्र है, इतनी बेबाकी से लिखना और मुल्क के प्रति समर्पण ही सच्चे हिन्दुस्तानी का फर्ज है. अगर सभी ये सबक सेख लें तो यहाँ बम विस्फोट, आत्मघाती हमले और दंगे जैसी अमानवीय घटनाओं के लिए कोई जगह ही न रहे.
इस प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई.
नारी न हिन्दू है न मुस्लमान...बस इन्सान है ..यही सोच सभी नारियों को आगे ले जा सकती है ...
ReplyDelete(यह अच्छी बात है कि दूसरे धर्मों में सुधारवादी हैं और उन समाज की ख़ामियां दूर हुई हैं... वहां सुधार की गुंजाइश है...) मगर हमारे यहां ऐसा नहीं है, जो भी सुधार की बात करता है, उसे लाईमान (बिना ईमान वाला) घोषित कर दिया जाता है...| ऐसे मुसलमान भाईयो की कमी नहीं है जो आवाज उठाते है पर वो आवाज सिर्फ गुजरात दंगो या कही हुए बम विस्फोटो के बाद पुलिसिया कार्यवाही के खिलाफ ही उठती है इस्लाम में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ बोलते समय उनकी बोलती बंद हो जाती है जब पोलियो की खुराक को दो बून्द जहर की कही जाती है या इमराना और गुडिया का मामलों या महिला आरक्षण पर एक मुल्ला द्वारा ये कहा जाता है की महिलाओ का काम तो सिर्फ बच्चे पैदा करना है तो वो चुप रह जाते है | इस्लाम में व्याप्त हर बुरे को दूर करने और लोगों को आगे बढ़ाने के लिए मुसलिम विद्वानों और बुद्धिजीवी वर्ग को ही आगे आना होगा कोई और ये काम नहीं कर सकता है |
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ReplyDeleteमज़हब के ठेकेदारों के खौफ़ से हम हिन्दू धर्म अपना लें, ऐसा कभी हो नहीं सकता...क्योंकि
ReplyDeleteपलायन हमारी फ़ितरत में शामिल नहीं है... यानि 'न दैन्यम न पलायनम'
हमने कट्टरपंथियों के विरोध से घबराकर हिन्दू धर्म अपना लिया तो...हमारी कौम की बहनों का क्या होगा...???
हम बेशक मज़हब के लिहाज़ से मुसलमान हैं, लेकिन सबसे पहले हम इंसान हैं... और मज़हब से ज़्यादा इंसानियत और रूहानियत में यक़ीन करते हैं... हम नमाज़ भी पढ़ते हैं, रोज़े रखते हैं और 'क़ुरआन' की तिलावत भी करते हैं... हम गीता भी पढ़ते हैं और बाइबल भी... क़ुरआन में हमारी आस्था है, तो गीता और बाइबल के लिए भी हमारे मन में श्रद्धा है... हमने कई बार अपनी हिन्दू सखियों के लिए 'माता की कथा' पढ़ी है... और यज्ञ में आहुतियां भी डाली हैं...
अगर इंसान अल्लाह या ईश्वर से इश्क़ करे तो... फिर इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि उसने किसी मस्जिद में नमाज़ पढ़कर उसकी (अल्लाह) इबादत की है... या फिर किसी मन्दिर में पूजा करके उसे (ईश्वर) याद किया है...
फ़िरदौस जी, ने बहुत सही कहा है.
अगर देश के सभी मुसलमान इस तरह सोचने लगें तो वो दिन दूर नहीं जब भारत का सबसे ताक़तवर देश बनकर उभर सकता है.
इस देश में हर तरफ़ सुख और शान्ति होगी.
नारी ब्लॉग, बहुत अच्छा है. ब्लॉग की नारी शक्ति को नमन !!!
फिरदौस जी,
ReplyDeleteआपकी हिम्मत को जितने भी सलाम करूँ कम है .बहुत सारी टिप्पणिओं में कहे गए को दुहराऊंगा नहीं . सिर्फ कुछ जोडूंगा .
अपनी वर्तमान अवस्था में सभी धर्म ' नारी द्रोही ' ही हैं और औरतों के हर सामाजिक शोषण और गुलामी के औजार .
अब वक्त आ गया है कि सभी धर्मों को नारियां ही नहीं हर नैतिक मानवीय व्यक्ति और शक्तियां
' कठघरे ' में खड़ा कर जबाब मांगें . अगर धर्मों (?) का यही स्वरुप है तो सब धर्मों को ख़त्म करने की प्रार्थना ही नहीं विनाशक आघात करना होगा .
आपने संविधान की बात कही . वह तो इतना लज्जित्कर्ता है कि ' हिन्दू कोड बिल और मुस्लिम पर्सनल ला ' जैसी चीजें , दोहरे माप दंड वाली अपने में समेटे है .
एक देश ,एक झंडा और एक ही समान संहिता के बिना यह संविधान दोगला है .
आप मुस्लिम मुल्ला मौलवियों से ये भी पूछीये कि सजा और उसका तरीका भी हर एक अपराध के लिए एक जैसा ही क्यूं हो ? मुसलमानों के लिए पूरा ' शरिया ' लागू करें तो पाएंगे के कितने तो सर धड से अलग होंगे और कितने मुस्लमान बिना हाँथ पैर के नज़र आयेंगे .
नारी ब्लॉग की कुछ बहुत ही अच्छे आलेखों में आपका आलेख मेरी नज़र में सिरमौर है .
उम्मीद है आप इसी तरह निर्भीकता और साहस से अपनी आवाज़ बुलंद रखेंगी .
और आपके ' न दैन्यम न पलायनम ' के फलसफे और हिम्मत का मैं भी हमसफ़र हूँ .
दुवा करता हूँ कि आप और आप का ज़ज्बा ,दोनों सलामत रहें .
बहुत ही बढ़िया आलेख है!
ReplyDeleteबहुत बेबेाकी से आपने
अपने विचारो को व्यक्त किया है!
फ़िरदौस जी, आपके जज़्बे को सलाम
ReplyDeleteआपका प्रयास सराहनीय है.
आप अपनी मुहिम को जारी रखिये.
भारत मां के करोड़ों सपूत आपके साथ हैं.
मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना ।
ReplyDeleteफिरदौस जी आपका आलेख वास्तव में एक ऐसा आलेख है, जो बंद आँखों को खोलता है और कमजोर को शोषण के खिलाफ लड़ने की हिम्मत दे रहा है . लेकिन यह जरूरी है कि हम हिम्मत के साथ एक जुट होकर आगे बढें,क्योंकि एकता में ही ऐसी शक्ति है जिससे दुर्गम से दुर्गम मार्ग भी सुगम
ReplyDeleteबन जाता है. आज देश को ऐसे ही साहसी लोगों की ज़रूरत है. निर्भीक और साहसिक अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई.
मीना
आपको कहना बहुत सही है ......
ReplyDeleteअगर इंसान अल्लाह या ईश्वर से इश्क़ करे तो... फिर इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि उसने किसी मस्जिद में नमाज़ पढ़कर उसकी (अल्लाह) इबादत की है... या फिर किसी मन्दिर में पूजा करके उसे (ईश्वर) याद किया है..... ....
कोई भी धर्म हो सभी एक ही बृक्ष की शाखाएं है ...मूल में सभी का एक ही है ...वह तो हम इंसानों ने ही स्वयं से विग्रह कर अपने आप को बाँट दिया है ... अल्लाह या ईश्वर के लिए तो सारी दुनिया के प्राणी एक ही हैं .......
और कोई भी इंसान मज़हब के लिहाज़ से अच्छा या बुरा नहीं होता... मज़हब इंसान का इबादत का तरीक़ा तो बदल सकता है, लेकिन किरदार नहीं...
आवाज किसी की भी उठे पर समाज में व्याप्त बुराई के खिलाफ आवाज उठाना आज की जरुरत बनी है .. निर्भीक और साहसिक अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई...
हम हिन्दुस्तान में रहते हैं और इस लिहाज़ से 'हिन्दू' हैं... हमारी आस्था इस मुल्क के क़ानून में है..
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने फ़िरदौस और तार्किक ढंग से भी. मानव धर्म सभी धर्मों से बढ़कर है. अगर हम अपनी इन्सानियत बनाये रखते हैं, तो किस धर्म का पालन करते हैं, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता.
ReplyDeleteन दैन्यम न पलायनम--बहुत सटीक बात कही है फ़िरदौस, आपके तर्क-प्रश्न मूल प्रश्न हैं, जो हर धर्म के अति बादी लोगों से पूछे जा सकते हैं।
ReplyDeleteमैं आपकी बात से बिलकुल सहमत हूं। अपनी लड़ाई खुद ही लड़ी जाती है। धर्म कोई भी हो सभी में पितृसत्ता हावी रहती है। नारी के स्व-निर्णय लेने की संभावना से ही पितृसत्ता कांपने लगती है। ऐसी किसी भी संभावना को जड़ से उखाड़ फैकने के लिए पितसत्ता धर्म का सहारा लेती है।इसलिए बाबा साहब आंमबेडकर की तरह आज हमें हर धर्म की नारी विरोधी प्रकृति को समझना व समझाना होगा।साथ अपने अपने धर्म ग्रंथों से नारी विरोधी तत्वों को हटाने की मांग करनी होगी।एक लिंग निरपेक्ष धर्म की संभावना पर भी विचार करना होगा।
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