सानिया मिर्ज़ा हो या करीना कपूर या फिर कोई भी ऐसी समर्थ नारी जो अपनी जिन्दगी अपनी शर्तो पर जी सकती हो वो जब सामाजिक रूप से ऐसे मानदंड स्थापित करती हैं जिन से समाज का कोई भला होना संभव ही नहीं हैं तो मन मे केवल और केवल एक मलाल ही उत्पन्न होता हैं ।
करीना कपूर के और सैफ के एयर टेल के विज्ञापन मे जिस प्रकार से करीना एक "बिम्बेट" की तरह पेश आयी हैं उसको देख कर लगता हैं कि क्या दिखना चाह रही हैं कि इनके दिमाग है ही नहीं ?? इस प्रकार के विज्ञापन से बार बार सिद्ध किया जाता हैं लड़कियों के दिमाग होता ही नहीं हैं और जब करीना एक लड़की हो कर इसका हिस्सा बनती हैं तो वो लड़कियों को एक गलत दिशा कि तरफ मोडती हैं कि पुरुष कि चाहत उसी लड़की को मिलेगी जो दिमाग से नहीं चलेगी । क्या यही ट्रेनिग दी जा रही हैं हमारी लड़कियों को ??
सानिया मिर्ज़ा को पूरे पुरुष समाज मे वो पुरुष पसंद आया जिस पर मैच फिक्सिंग का आरोप सिद्ध हो चुका हैं और जो निरंतर झूठ ही बोल रहा हैं । शादी करना एक व्यक्तिगत प्रश्न हैं पर जब एक पब्लिक फिगर शादी करती हैं तो निरंतर उस शादी कि चर्चा होती हैं और आम लड़की जो उस पब्लिक फिगर को मोडल के रूप मे देखती हैं और उस जैसा बनना चाहती हैं वो एक गलत रास्ते पर जाती हैं ।क्या यही ट्रेनिग दी जा रही हैं हमारी लड़कियों को ?? सानिया ने शोहब से विवाह को जो निर्णय लिया वो उनका व्यक्तिगत निर्णय हैं लेकिन इस प्रकार के निर्णय जब एक सशक्त महिला लेती हैं तो अफ़सोस करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते हां मन मे ये जरुर आता हैं कि इतने बड़े भारत मे क्या कोई समाचार नहीं रह गया कि न्यूज़ देखें के लिये जब भी कोई भी चॅनल लगाओ सानिया और शोहब कि बकवास ही सुनाई देती हैं
कई दिन से काम के सिलसिले मे दिल्ली से बाहर थी इसलिये नीचे दी हुई खबर पर नारी ब्लॉग पर कोई पोस्ट नहीं आ सकी इसका अफ़सोस हैं
अफ़सोसजनक दुर्घटना में छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ़ के 75 से ज्यादा जवानों को 1000 से अधिक नक्सलवादियों ने घेर कर मार दिया। समाज का सुधार कर रहे हैं नक्सलवादी क्या वाकयी । मेरी संवेदनाये जवानों के परिवारों के साथ हैं और आज के अखबार कि खबर के हिसाब से चले तो ये जवान जंगल मे ड्यूटी करने के लिये ट्रेन नहीं किये गए थे । क्या हम अपने जवानो को केवल और केवल मरने कि ट्रेनिंग ही देते हैं । कौन ज़िम्मेदार हैं इन मौतों का क्या नक्सलवादी या हमारा सिस्टम ।
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
April 09, 2010
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रचना,
ReplyDeleteइस पर पोस्ट आ सकती थी और इसको तैयार करने में सक्षम भी थी लेकिन क्या यह पोस्ट नारी ब्लॉग के मानदंडों के अनुरूप थी? मुझे तो नहीं लगी क्योंकि इस घटना का नारी के किसी भी मुद्दे से कोई रिश्ता नहीं था. बस इसी लिए जो लिखा अपने ब्लॉग पर ही डाल दिया.
रचना,
ReplyDeleteऐसी बात नहीं है, छत्तीसगढ़ कि दुखद घटना पर पोस्ट मैं लिख कर डाल सकती थी, इस बारे में सक्षम भी हूँ, लेकिन फिर सोचा कि क्या ये पोस्ट नारी ब्लॉग के मानदंडों के अनुरूपहोगी?
इसी उहापोह में नहीं डाली. जो भी लिखा अपने ब्लॉग पर ही डाल दिया.
रचना जी,
ReplyDeleteआप बिलकुल सही कह रही हैं...
दरअसल, जो लोग 'पब्लिक फिगर' हैं, उन्हें इस चीज़ का तो ख़्याल ही रखना चाहिए कि कहीं उनकी किसी गतिविधि का समाज पर ग़लत असर तो नहीं पड़ेगा...
विज्ञापनों के बारे में यही कहा जा सकता है...
"असभ्य और फूहड़"
रचना जी,
ReplyDeleteआप बिलकुल सही कह रही हैं...
दरअसल, जो लोग 'पब्लिक फिगर' हैं, उन्हें इस चीज़ का तो ख़्याल ही रखना चाहिए कि कहीं उनकी किसी गतिविधि का समाज पर ग़लत असर तो नहीं पड़ेगा...
विज्ञापनों के बारे में यही कहा जा सकता है...
"असभ्य और फूहड़"
करीना कपूर जैसे लोग तो पैसे के लिये कुछ भी कर सकते हैं. वो विज्ञापन भी इसीलिये कर रहीं हैं, पर सानिया ने ऐसा कदम क्यों उठाया यह सोचने वाली बात है. फिर भी, मेरे ख्याल से ये उनका व्यक्तिगत मामला है.
ReplyDeletehi u having nice thought for saaniya and the other one. May God save them!.
ReplyDeletejin mahilaao ko 'पब्लिक फिगर'kaha jaa rah hai ve keval figar hai public se unhen koi lena-dena nahi. apana hit sadhana hi unaka kaam hai ve aadrsh nahi kahi ja sakati.
ReplyDeletebilkul theek.. mashhoor logo ko kuchh to apni jimmedari ka ehsaas hona chahiye...!
ReplyDeleteajeeb hai !
Rachaa jee,
ReplyDeleteShayad hame muddon tak hi seemit rahana chahiye.Kisi par seedhe hamla naheen karna chahiye.kareena kapoor ne bhale hi jo bhi add kiya ho parantuapne jeevan ko unhone apne tareeke se jiya hai.Unme himmat hai duniyan ka samna karne ki..khair..unki tarafdaari karne ki koi mansha nahin thi hamari bas aise hi likh diya.High profile logon me sahi ghalat hota rahega. yadi ham madhyam varga ki mahila kee ghutan ko anpe lekhon ke madhyam se kuch kam kar paayen to usi me hamaro asli jeet hogi.Ek baat aur...yadi ek mahila ko kisi add me buddhu dikhaya jaye to iska matlab ye nahin ki sab mahilaon par koi hamla ho raha hai.kabhi kabhi prurshon ko bhi aisa dikhaya jata hai tab koi purush ye sochkar aahat nahin hota ki purush jaati par koi hamla ho gaya.Ek swabhimaani mahila hone ke naate aapki pratikriya swabhavik hai..parantu yeh hai hamare bheetar chipee asuraksha kee bhawna ke kaaran.Hame aisa nahin sochna hain;asurakshit anubhav naheen karna hai.hame bhwnatmak roop se mazboot banna hai bahut mazboot...
मुझे लगता है हमारे देश में एक विचित्र मानसिकता है, हम किसी भी प्रसिद्द व्यक्तित्व को अपना अनुकरणीय, रोल माडल और महान मान लेते हैं चाहे वे अभिनेता/अभिनेत्री हों,खिलाड़ी हों,माडल हों,व्यवसायी हों या किसी भी अन्य क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति...
ReplyDeleteसानिया सोहेब अपने अपने क्षेत्र के खिलाड़ी मात्र हैं,समाज के पथप्रदर्शक नहीं....उनसे फिलोसफ़र गाइड धर्मगुरुओं की तरह यह अपेक्षा रखना कि वे समाज के लिए अपने जीवन को एक सात्विक पथप्रदर्शक रूप में रखेंगे, हमारी मूर्खता भी है और उनपर अत्याचार भी...सो उन्हें छोड़ देना ही श्रेयकर है...मिडिया द्वारा नितांत ही अनावश्यक रूप से खींची जाने वाली इस घटना को देख मन वैसे ही बहुत अधिक क्षुब्ध है,इसकी और कहीं चर्चा देख मितली सी आने लगती है...
देखिये न मिडिया तो यूँ ही इतना गिर चुका है कि उसे ऐसे भौंडे खबरों के सामने अस्सी जवानों की मौत की खबर और इतनी विकराल नक्सल समस्या भी नगण्य
और तुच्छ लगती है...सो इसकी बातों को क्या सुनना...
bilkul theek.. mashhoor logo ko kuchh to apni jimmedari ka ehsaas hona chahiye...!
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ ही क्यों हमारे चारों ओर जो होरहा है उससे यह साफ हो जाता है कि यहां आम आदमी की जान की कोई कीमत नहीं है। छत्तीसगढ़ के आम आदिवासियों को विकास या नक्सलवाद के नाम पर उजाड़ा जारहा है।नक्सलवाद को दबाने के लिए जिन जवानों को भेजा जाता है वे सभी भी गरीब परिवारों से होते है। यह बिडम्बना ही है कि गरीब (सर्वहारा )के स्वंयभू हितैषी इन गरीब परिवारों के जवानों पर ही क्यों वार करते हैं?अभी हरियाणा में दलितों के घर जला दिए गए। इसमें पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में एक 17 साल की पोलियो ग्रसित लड़की व उसका 70साल का बूढ़ा पिता जिंदा जला दिये गए। राज्य सरकार ने लापरवाही बरतने वाले पुलिस कर्मियों पर कार्यवाही करने के लिए सोनियां गांधी के पत्र व राहुल गांधी की यात्रा का इंतजार किया।यदि यह पत्र नही आता राहुल गांधी का दौरा नहीं होता तो दोषी पुलिस कर्मियों के विरुद्ध कार्यवाही भी शायद नहीं होती।यदि उत्तर प्रदेश में चुनावों की आगाज नहीं होती और वहां सत्ता की डोरी दलितों के हाथ में नहीं होती तो क्या यह पत्र व दौरा होता? संदेश साफ है खास के संरक्षण के बिना आम की खैर नहीं।
ReplyDeleteपरिवार में बे-मौत कोई भी मरे असली मौत तो उस परिवार की स्त्रियों की होती है। किसी का बेटा तो किसी का भाई या किसी का पिता यदि अकस्मात चला जाता है तो वह सामाजिक,आर्थिक, भावनात्मक रूप से पूरी तरह टूट जाती है।सरकार सरकारी मुलाजिमों को मुआवजा देकर अपने फर्ज की इतिश्री मान लेती है।कई बार यह मुआवजा परिवार के गलत लोगों के हाथ पड़ जाता है और औरत सड़क पर आजाती है। और जो हिंसा की शिकार आम स्त्री है उसकी तो नियति ही है सड़क पर आना।नारी के मुद्दों को उठाने वाले झंड़वरदार भी उसकी पीड़ा को आंख उठाकर देखना गवारा नहीं करते।