नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

March 21, 2013

कितनी आसानी से ये कह दिया जाता हैं की "ऐसा तो होता रहा हैं "

शरद यादव ने कहा था, "हम में से किसने पीछा नहीं किया है. और जब महिला से बात करनी होती है तब पहल महिला नहीं करती है, पहल तो हमें ही करना होता है. कोशिश तो हमें ही करनी पड़ती है. प्यार से बताना पढ़ता है, यह पूरे देश का किस्सा है. हमने खुद अनुभव किया है. हम सब लोग उस दौर से गुजरे हैं, उसको ऐसे मत भूलो.'' लिंक 

लीजिये हम तो अब तक यही सोचते थे की गुंडे , मवाली , छिछोरे लड़कियों का पीछा करते हैं लेकिन अब पता चला सब " मर्द " पूरे देश के सब मर्द यही करते हैं बस मौक़ा मिलना चाहिये . सब इस दौर से गुजरे हैं खुद मर्दों के चुने हर नुमाइन्दे इस बात को संसद में कह रहे हैं

शरद  यादव , लालू यादव और मुलायम सिंह यादव सबको आपत्ति हुई की क्यूँ
स्टाकिंग को कानून अपराध मानने की प्रक्रिया की शुरुवात हो रही हैं . यानी अब लड़कियों को " घूरना " गुनाह हैं
अब अगर पुरुष इसको अपना अधिकार हनन मान रहे है तो उन्हे पी आ ई एल लगा ही देनी चाहिये

कभी कभी बड़ा अजीब लगता है जब लोग एक सही प्रक्रिया को इसलिये रोकना चाहते हैं क्युकी सदियों से गलत प्रक्रिया को मान्यता मिलती रही हैं


कितनी आसानी से ये कह दिया जाता हैं की "ऐसा तो होता रहा हैं "
 

42 comments:

  1. in netaon ka koi shidant nahin,moral nahin,ye desh ki janta ka pratinidhitav karne yogya nahin.

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    शरद यादव जी ने कहा "हम में से किसने पीछा नहीं किया है. और जब महिला से बात करनी होती है तब पहल महिला नहीं करती है, पहल तो हमें ही करना होता है. कोशिश तो हमें ही करनी पड़ती है. प्यार से बताना पढ़ता है, यह पूरे देश का किस्सा है. हमने खुद अनुभव किया है. हम सब लोग उस दौर से गुजरे हैं, उसको ऐसे मत भूलो."... शरद यादव , लालू यादव और मुलायम सिंह यादव सभी को आपत्ति है और इन आपत्तियों को हल्के से नहीं लिया जा सकता...

    रचना जी,

    इंसान का बच्चा जब जवान होता है तो केवल उसके शरीर में ही परिवर्तन नहीं हो रहे होते... उसकी सोच व व्यवहार भी बदलता है... विपरीतलिंगी के प्रति वह पहले सा सहज नहीं रह पाता, उसमें यौनाकर्षण उत्पन्न होता है व वह सामने उपलब्ध सभी विपरीतलिंगियों में से अपने लिये सबसे श्रेष्ठ जीवनसाथी की तलाश भी शुरू कर देता है... विपरीतलिंगी को निहारना, उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना, ध्यानाकर्षण के लिये सजना संवरना, Daring Acts करना व विपरीतलिंगी की रजामंदी हासिल करने के लिये उसे pursue करना यह सब Great game of human courtship का हिस्सा हैं... चंद मामलों को छोड़ ज्यादातर मामलों में कोई भी जब यह करता है तो उसे केवल और केवल अपने जोड़े की तलाश होती है... और इस सब के पीछे कोई criminal intent नहीं होती है...

    कानून बनाने से पहले हमें 'घूरना' और 'stalking' को अच्छी तरह से परिभाषित कर लेना चाहिये, वह भी मानव व्यवहारशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों व मनोवैज्ञानिकों की विशेषज्ञता का लाभ लेकर... नहीं तो वह दिन भी आ सकता है कि हर दूसरा जवान लड़का जेल में होगा घूरने या stalking के इल्जाम में...

    और जब भी यह कानून बने, तो लागू सभी पर हो, बिना लिंगभेद के, कानून के द्वारा परिभाषित 'घूरना' व stalking चाहे लड़की करे या लड़का, सजा दोनों को मिले...

    वैसे यह मौका अच्छा है बता ही देता हूँ, अप्रतिम स्त्री सौंदर्य जब भी मुझे दिखाई देता है तो मैंने पाया है कि मैं भी बहुधा सुधबुध भूल उसे निहारने लगता हूँ... जबकि इसके पीछे मेरे दिमाग में कोई शरारत नहीं होती... उम्मीद करता हूँ कि मुझ जैसों को जेल में नहीं डाला जायेगा... :)



    ...

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    1. और जब भी यह कानून बने, तो लागू सभी पर हो, बिना लिंगभेद के, कानून के द्वारा परिभाषित 'घूरना' व stalking चाहे लड़की करे या लड़का, सजा दोनों को मिले...

      कितनी अजीब बात हैं की अभी तो लिंग भेद
      यानी जहां स्त्री को दोयम का दर्ज दिया जाता रहा हो , जहां उसको केवल इस लिये क्युकी वो स्त्री हैं कमतर आक़ा जाता रहा हो और उसको ऑब्जेक्ट , सम्पत्ति , वंश चलाने की मशीन समझा जाता रहा हो
      के खिलाफ कानून बनने की महज एक शुरुवात ही हुई हैं
      और लोगो को रिवर्स लिंग भेद यानी पुरुष के अधिकारों की चिंता हो रही हैं

      सोच कर देखिये कितना सहा हैं स्त्री ने और दो कानून आते ही आप को महसूस होने लगा कानून ऐसा हो जहां लिंग भेद ना हो

      क्या ये सही हैं

      @मुझ जैसों को जेल में नहीं डाला जायेगा... :
      किसी की औकात हैं जो किसी भी घूरने वाले को जेल भेज सके , ये तो आप का अधिकार हैं , आप किसी भी उम्र के हो , किसी भी अहोदे पर हो , किसी को भी कभी भी घुर सकते हैं और विपरीत लिंग का आकर्षण कह कर स्माइली लगा सकते हैं
      कानून जेल भेज सकता हैं गलत करने पर , लेकिन जब मानसिकता ही गलत हो तो कुछ नहीं किया जा सकता
      वैसे कभी उस सौंदर्य की देवी , प्रतिमा से पूछ कर देखिये की आप का उसको घुरना और फिर मुस्कुराना उसको कैसा लगता हैं या उसकी मर्जी की तो अहमियत ही क्या क्या हैं

      stalking is clearly defined and all of us know it but perhaps only those who stalk are "naive" and continue to do "mistakes" like that poor juvinile who was responsible for dec 16 rape and subsequent death of a girl .
      it all starts with a lame excuse of opposite sex attraction and ends up in humiliating woman , her body and more important her whole existence

      and no one tries to find a person to marry by oogling at them , very lame excuse

      but yes u have a right to give such excues because most man are conditioned to think that woman , her beauty and her body are for oogling and also they believe that woman can be wooed this way

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    2. क्षमा करना प्रवीण भाई, लेकिन जब भी कहीं आपकी बात में विरोधाभास देखता हूँ तो अपने आप को प्रतिक्रिया देने से रोक नहीं पाता. चुकि आप धूर तार्किक है अतः आपकी बातो मेँ परस्पर अंतर की उपेक्षा करना कठिन हो जाता है.

      आपने जिस मनोविज्ञान "विपरीतलिंगियों के यौनाकर्षण",और "केवल और केवल अपने जोड़े की तलाश होती है" को प्रस्तुत किया वह पशुओँ का मनोविज्ञान है. हाँ, मानता हूँ मनुष्य भी भौतिक- शारिरिक रूप से प्राणी ही है लेकिन बुद्धि और विवेक ऐसे दो गुण है जो मनुष्य को पशुओँ से अलग करते है. मनुष्य अपने लिए संरक्षण व सुरक्षा के लिए सुनियोजित समाज की रचना करता है. स्वयं पर अनुशासन के लिए नियमों अथवा मर्यादाओँ का निर्धारण करता है और अपने ही सुखी संतुष्ट सँसार के लिए उन नियमों का पालन करता है. प्राकृतिक आवेग तो पशु और मनुष्य में समान है किंतु यह नियमबद्धता और विवेक ही उसे पशु मनोविज्ञान से अलग करता है. इसलिए इंसान का मनो व्यवहार प्रतिक्षण जोडे बनाने की ही अपेक्षा लिए नहीं होता. घूरते वे भी है जिनके जोडे अस्तित्व मेँ है, और कुछ प्रतिदिन स्वछंद जोडे बनाने की कामना लिए घूमते घूरते है.इंसान वक्र बुद्धि भी रखता है जिससे उसके प्रयोजन भी पता नहीँ चलते. अतः मनुष्य को जोडे बनाने के प्राकृतिक आवेग का लाभ नहीं दिया जा सकता. इससे समाज की व्यवस्था को गम्भीर क्षति पहूँचने का आधार बनता है.

      अब आप जब कहते है कि "मैं भी बहुधा 'सुधबुध' भूल उसे निहारने लगता हूँ... जबकि इसके पीछे मेरे दिमाग में कोई शरारत नहीं होती..." जबकि आप स्थापित कर चुके है कि- निहारना,ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना, यौनाकर्षण उत्पन्न होना, रजामंदी हासिल करने के लिये होता है और वह केवल और केवल जोड़े तलाशने/बनाने के लिए होता है तो फिर इससे अधिक वह कौन सी शरारत हो सकती है जो आपके दिमाग मेँ नहीं आती?

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    3. प्रवीण जी,
      यदि आप सुध बुध खो बैठते हैं तो जरूर उस महिला को प्रपोज भी कर देते होंगे या टच भी कर लेते होंगे?
      क्यों?
      क्योंकि जो सुध बुध खो बैठता है उसे तो सही गलत का कुछ पता ही नही रहता ।लेकिन आप ऐसा नहीं करते क्योंकि आप पूरे होश में रहते है और आपको पता है इससे आगे बढ़ना गलत है(यदि सचमुच आपके मन में कोई शरारत नहीं है तो वर्ना कई लोगों को आगे बढ़ने से पूर्व विरोध का डर रहता है)।पर घूरने पर आप कंट्रोल नहीं कर पाते।आकर्षण का होना एक सच्चाई है लेकिन इसके वशीभूत हो किसी महिला को घूरना तो अनैतिक और असभ्यता ही माना जाएगा यह उस महिला की निजता में दखल भी है।हाँ ये बात सही है कि यह कोई कानून का मसला नहीं है और बहुत सी लडकियाँ भी ऐसा करती है।पर इसे रोकने के लिए कानून की जरूरत नहीं है और न इसे कानून के जरिए सुधारा जा सकता है।

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      क्षमा करें दोस्तों... पर मेरी समझ में निहारना-अवलोकन करना (लिंक) तथा घूरना (लिंक) दो बिल्कुल अलग चीजें हैं...

      इसलिये रचना जी आपकि आपत्ति निराधार है... सुज्ञ जी, आपका मैं नहीं बता सकता, पर मुझ जैसे साधारण इंसान को सौन्दर्य, चाहे मानवीय हो या प्रकृति का, अपनी ओर आकृष्ट करता है... और यह सारी फैशन-कॉस्मेटिक-ग्लैमर इंडस्ट्री इंसान की इसी प्रवृत्ति के चलते कायम हैं... राजन जी, आप कमोबेश मुझसे सहमत ही हैं, स्पष्ट कर ही दिया है कि निहारना घूरना नहीं है, दोनों में फर्क है...

      मैं निहारने और घूरने के फर्क को पहचानने की बात कर रहा हूँ यहाँ... स्माइली तो बोनस है, कोई माफी नहीं... :)


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    5. Meaning of stalking , ogling , voyeurism are all well defined in IPC we dont need to redifine them just because they are now PUNISHABLE OFFENCE

      please understand one thing hindi bloggers like you dilute the issue by giving hindi translations . why dont you go and see wiki for exact english translations

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    6. स्माइली तो बोनस है
      what is smiliy ?? its an emotion shown on line to make the other person understand that we are smiling

      what are the conditions in which a person smiles
      and when a person smiles during a serious discussion its either to ridicule the other person , or its simply that the person is unable to understand the gravity of the discussion and since he cant do any thing he just keeps smiling

      there is no logic of putting a smiley after every comment
      i take it as insult something like when a lewd comment is passed against a woman and she gets irritated the person who passed the lewd comment just gives a lecherous smile to show his superiority

      I WOULD REQUEST YOU TO PLEASE UNDERSTAND THE CONCEPT OF PUTTING SMILEY

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    7. प्रवीण जी

      शायद आप मजाक के मुड में है, कोई बात नहीं जी ज्यादा दिन नहीं बस कुछ सालो की बात है इन बातो को फिर आप मजाक में नहीं लेंगे {मै जानती हूँ आप बहुत समझदार है :)) }और घुरना , ताड़ना , देखना सभी का अर्थ बहुत ही अच्छे से समझ जायेंगे , क्योकि किताबी बाते किताबी होती है असल बात तो व्यवहारिक होती है , जब आप को भी शिकायते मिलेगी तो आप की राय कैसे बदलेगी वो हम अभी से जानते है :) आदत के अनुसार हमारी मुफ्त की राय बोनस में ;-)

      जैसा की सुज्ञ जी ने कहा की इन्सान और जानवर में फर्क होता है इन्सान के पास विवेक है जिसका प्रयोग उसे करना चाहिए , जो नहीं करता है अपराध वही होता है । महिलाए जब घर से निकलती है तो सारे रस्ते ये नहीं देखती है की किस किस ने हमें देखा, घुरा और किस किस को पकड़ कर थाने ले जाना है । शब्दों को पकड़ कर बात को खिचिये मत , कानून में कही बात का अर्थ है की यदि कोई लड़की "बार बार" ( कोई भी व्यक्ति एक बार देखने भर से ही किसी को पुलिस के पास नहीं ले जायेगा ) किसी के घुरने , पीछा करने आदि से परेशां है तो वो पुलिस में जा कर शिकायत करे , अब उसके लिए भी एक कानून है जिसके तहत ऐसा करने वालो को जेल हो सकती है , पहले ये नहीं था ज्यादातर मामले तो पुलिस तक जाते ही नहीं थे और लड़किया ( लड़किया से बेहतर शब्द बेटिया और बहने होगा क्योकि ऐसा लिखने पर लोग आगे खड़ी महिला को नहीं पीछे खड़ी अपनी बेटी बहन के बारे में सोच कर विचार रखेंगे ) और उनके घरवाले परेशां होते थे या फिर सजा के टूर पर लड़कियों के ही घर से बाहर निकलने पर रोक लगा दी जाती थी और यदि मामला पुलिस के पास गया भी तो पुलिस वाले अपने स्तर पर ही निपटा दिया करते थे , जैसे अभी तक घरेलु हिंसा कानून नहीं था जिसके करना महिलाओ को काफी परेशानी होती थी और सही कानून न होने के कारण मामले दहेज़ कानून में दर्ज होते थे , या फिर पति के पीटने को कोई अपराध मना ही नहीं जाता था , अब कानून है और महिलाओ की सुनी जा रही है , उसी तरह ज्यादातर लड़किया गंभीर किसम के छेड़ छाड़ से परेशां होती है , किन्तु वो उसके खिलाफ कुछ कर नहीं पाती है , अब चुकी कानून है तो वो उसके खिलाफ कुछ कर सकती है। बाकि मजाक करना तो हमको भी खूब आता है ।

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    8. प्रवीण जी,
      हो सकता है 'निहारने' और 'घूरने' में फर्क हो। दोनो के अलग अलग भेद हो। किन्तु मेरे भौतिकवादी मित्र अगर दोनो का बायलोजिकल उद्देश्य (जैसा कि आपने डिफाईन किया यौनाकर्षण और जोडे बनाने का उद्देश्य) एक है तो 'निहारने' और 'घूरने' शब्द के भिन्न भिन्न अर्थ होने से क्या फर्क पडता है?

      इस पोस्ट पर ध्रुव सवाल यही है। शरद यादव द्वारा 'घूरना' 'पीछा करना' 'पहल करना' (पटाना) सहज सामान्य और पारम्परिक कहा जा रहा है। ऐसे में आप भी इसे केवल और केवल बायलोजिकल प्राकृतिक प्रवृति में ही लेना चाहते है। क्या इन आवेगों, क्रियाओं को कुदरती होने के नाम पर उपेक्षणीय या क्षम्य किया जा सकता है? वस्तुतः जब जब यह प्राकृतिक प्रवृति जोर मारती है, संयम, विवेक और नियमों की मर्यादा अति आवश्यक हो जाती है। निहारना या घूरना जो भी हो अगर उद्देश्य यौन उमंग पैदा करना है तो दोनो के बीच का हल्का का अर्थान्तर कभी भी समाप्त हो जाता है।

      अथवा फिर आप निहारने की जरूरत का, यौनाकर्षण से इतर, कोई अन्य बायलोजिकल कारण या उद्देश्य दीजिए…।

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    9. अंशुमाला जी, बाकी बातें आपकी बिल्कुल ठीक है जो आपने प्रवीण जी को कही लेकिन कानून के मामले में आपकी जानकारी सही नहीं।आप जो घूरने की परिभाषा बता रही हैं वह पीछा करने के अंतर्गत आ जाती है ।लेकिन इस कानून के हिसाब से घूरने का अर्थ है किसी लड़की को चौदह सैकेंड से ज्यादा एकटक देखा तो जेल।
      यदि मैं अपडेट नहीं तो कृपया मुझे सही करें।

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    10. @और जब भी यह कानून बने, तो लागू सभी पर हो, बिना लिंगभेद के, कानून के द्वारा परिभाषित 'घूरना' व stalking चाहे लड़की करे या लड़का, सजा दोनों को मिले...

      प्रवीण जी,

      आज की स्थिति में तो यौन प्रताड़ना की शिकार स्त्री ही है ऐसी परिस्थिति में सुरक्षा के कानून उसी के लिए बनने चाहिए। कालान्तर में कभी नारी की स्थिति सुदृढ हो जाय और वह अपनी सुदृढ स्थिति का फायदा उठाने लगे, पुरूष को यौन उत्पीड़न की नजर से घूरे, पुरूष का घात लगाकर पिछा करे, धूर्तता से पटाने लगे, पुरूष का बलात्कार करे और उसके बाद का उसका जीवन नरक समान बने तो उस दशा में ऐसे कानून दोनो पर समान रूप से लागू हो। विडम्बना है कि पुरूष का हमेशा ही मजेदार स्थिति में रहना तय है अतः मुझे तो ऐसी सम्भावनाएं कम ही लगती है।

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    11. राजन जी

      जैसा की मैंने कहा है की किताबी बाते किताबी होती है वो कानून की ही किताब क्यों न हो व्यवहारिकता की बाते करे मैंने ये भी लिखा है की कोई लड़की बस ये नहीं देखती फिरेगी की उसे कौन देखा रहा है घुर रहा है और न ही पहली बार में जेल में भेजने वाली है , जब बात बार बार घुरने और मानसिक रूप से परेशां करने की होगी कारवाही तभी कोई लड़की करेगी , बाकि कानून के किसी एक बात को पकड़ कर पुरे कानून को बेकार और गलत नहीं कहा जा सकता है , नए संशोधन में तो पहली बार में उसे जमानती भी बना दिया गया है , दुबारा करने पर ही जमानत नहीं मिलेगी , जबकि पहले गैर जमानती बनाया गया था । बाकि घुरना और नियत के बारे में आप मुझसे बेहतर जानते होंगे आप पुरुषो के स्वभाव के बारे में मुझसे बेहतर जानते होंगे , बाकि लड़किया तो खूब समझती है की कौन बस देख भर रहा है और कौन गलत नियत से घुर रहा है , और किसकी नज़ारे लड़की को देखते ही एक्सरे जैसी हो गई है ।

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    12. अंशुमाला जी,किताबी ही सही लेकिन बात ज्यादा उस प्रावधान पर ही होगी जो नया हो अभी भी ऐसा ही हो रहा है।पीछे ही पड़ जाने और मानसिक रूप से परेशान करने आदि को लेकर पहले से कानून थे उनके नाम ही अलग थे बस लडकियाँ ही अवेयर नहीं थी।जहाँ तक व्यवहारिकता की बात है आपने बिल्कुल सही कहा।यदि आपने पिछली पोस्ट पर मेरी टिप्पणी पढी हो तो मैं खुद इस घूरने संबंधी प्रावधान को ज्यादा महत्तव नहीं दे रहा क्योंकि न ये (महिलाओं के लिए)व्यहारिक है न समस्या का हल।और मानसिक रूप से परेशान करने आदि को लेकर इसी कानून में दूसरे प्रावधान है ही ।यहाँ प्रवीण जी ने बात छेडी इसलिए मैंने टिप्पणी की।पर मैं ये जरूर मानता हूँ कि अव्यहारिक और किताबी बातें कानून में नहीं जोड़नी चाहिए वर्ना लोग इससे जुड़ी बाकि बातों को भी हल्के में लेने लगेंगे।इसीलिए अभी कुछ समय पहले जब ऐसे कानून की बात उठती रही थी जिसमें रेप के लिए महिला के खिलाफ भी शिकायत करने का प्रावधान हो तो इसका बहुत से लोगों खासकर महिलाओं और महिला संगठनो ने विरोध किया वर्ना यह तो सब जानते ही है कि व्यवहारिक धरातल पर ऐसे प्रावधान का कोई मतलब ही नहीं क्योंकि महिलाएँ पुरुषों का बलात्कार नहीं करती।

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    13. और अंशुमाला जी यदि कानून की किसी एक बात या आधी बात का विरोध किया जा रहा है इसलिए कि वह गलत है तो इसका अर्थ ये नहीं है कि पूरे कानून की जरूरत को ही नकारा जा रहा है।वैसे तो मैं मान के चल रहा हूँ कि ये बात आपने मेरे लिए या केवल मेरे लिए नहीं कही होगी लेकिन फिर भी अपनी सफाई में कहूँगा कि यदि कानून की कोई एक बात गलत या अस्पष्ट या अतार्किक है तो उस पर भी बात जरूर होनी चाहिए।मुझे इस कानून में जो बात अच्छी लगी उसके बारे में भी टिप्पणी में कहा और जो गलत लगी उस पर भी।और आपको भी पता है कि मुझे किस बात पर आपत्ति थी या है मैं तो बहस के लिए भी तैयार हूँ।हाँ ये हो सकता है कि आपको वह बात इतनी महत्वपूर्ण न लगे तो ऐसा होता है ।सभी एक तरीके से नहीं सोचते ।लेकिन आप पहले ही तय कर लेते हैं कि कौन किसलिए विरोध कर रहा है या उस एक बात का विरोध करने का मतलब पूरे कानून को ही खारिज करना है तो वह भी गलत है।

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  3. There is a difference between courting and stalking. If your intent is to just talk to someone because you like them, then the slightest refusal from the girl is respected and any decent person will apologize profusely for invading into her space. Girls accept this and there are no hard feelings.

    Stalking and harassment is entirely different game where guys shamelessly and on purpose pursue a girl to the extent that she is really scared.

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      Neeraj ji,

      Sometimes it also happens that the girl says 'no' but she actually means 'yes', some times 'yes' is uttered after a long-long time. There are no hard and fast rules in human courtship, one has to read the subtle signals, any error in reading the signals, if corrected well in time, does not deserve punishment, This is the point Sharad Yadav is trying to make.


      ...

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    2. Oh my god
      when the girl says NO she means a NO
      THIS IS WHAT THE ENTIRE MOVEMENT IS ALL ABOUT

      shard yadav has many a times said many a things such the net and see them , this is the latest .

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    3. .
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      Rachna ji,

      There is no point in arguing about this, You may be correct, but I am also speaking the truth. Basically, both of us are speaking of our experiences, and, experiences may differ.

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    4. Mr Praveen
      I am not discussing any any personal experience . Its not any more about being correct or not correct . Its about making a law where
      stalking has been made a punishable offence

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    5. If anybody says 'No' it always meant to be 'No' only.

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    6. ना ना करते प्यार तुम्ही से कर बैठे
      करना था इन्कार मगर इकरार तुम्ही से कर बैठे

      बॉलीवुड का मशहूर गाना अब बेमानी हो जाएगा।

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  4. इन नेताओं की बुद्धि पर तरस आता है।इन्हे प्यार और पीछा करने के मामले में अंतर ही नही नजर आता।और ये बात सही है कि प्यार का इजहार की पहल तो पुरुषों को ही करनी पड़ती है पश्चिम में भी ये ही हाल है।लेकिन ये तभी होता जब लडका लडकी की थोडी पहले से ही पहचान हो।पीछा करने के मामले में ऐसा नहीं होता।लेकिन जहाँ प्यार दोस्ती के मामले में भी एक बार लड़के लड़की ने ना कर दी तो फिर इसे स्वीकार करना चाहिए।लेकिन कोई पीछे ही पड़ जाए तो बिल्कुल कानूनन उसे सजा होनी ही चाहिए।लडकियों को सजा का प्रावधान जरूरी नहीं है क्योंकि उनसे पुरुषों को कोई खतरा नहीं है।अभी जो कानून बना है वो बहुत गंभीर मामलों में लागू होगा जो सिर्फ लड़कियों को फेस करना पड़ता है जैसा फिल्म डर में होता है।एक नाना पाटेकर वाली फिल्म भी थी मुझे नाम याद नहीं आ रहा।पर इतना जरूर कहूँगा कि केवल एक बार लड़की के पीछे जाने की वजह से सजा नहीं होनी चाहिए ।इसलिए नहीं कि लड़कियाँ इसका दुरुपयोग करेंगी बल्कि इसलिए कि इसमे उन्हें गलतफहमी हो सकती है।छेडछाड के कई केस ऐसे भी होते है जो वास्तव में गलतफहमी का नतीजा होते हैं (पर इसका अर्थ ये नही कि सभी मामले ऐसे होते है या ये समस्या गंभीर नही)

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    1. राजन जी, आपने बहुत ही गम्भीरता से स्पष्ट किया। पूर्ण व्यवहारिक!!

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  5. मैं ऐसा इसलिए भी कह रहा हूँ क्योंकि एक समस्या मेरे साथ आती रहती है कि मान लीजिए मैं किसी गली मैं जाने को हूँ और मेरे आगे कोई अकेली लड़की या महिला पहले ही उस गली में चल रही है।तो इस स्थिति में मुझे भी बड़ी परेशानी होती है।मैं अक्सर समझ नहीं पाता हूँ कि अब क्या करूँ।न उनके पीछे पीछे चल सकते हैं न उनके आगे निकलने की कोशिश कर सकते हैं एक तो महिलाओं की चाल पुरुषों की तुलना में बहुत धीमी होती है ऊपर से यदि मुझे जल्दी हो तो मैं उससे आगे निकलने की कोशिश नहीं कर सकता वर्ना सुनसान गली में वो महिला डर जाएगी उसे लगेगा कि ये मुझे पकड़ने आ रहा है।आपको शायद मेरी बात अजीब लगेगी या हो सकता है लगे कि मैं बढ़ा चढ़ाकर बोल रहा हूँ पर आप यकीन नहीं करेंगी कई बार इसी वजह से मुझे रास्ता तक बदलना पड़ा है और ये अक्सर होता रहता है,मेरे साथ ही नहीं बहुत से पुरुषों के साथ लेकिन किसी महिला के पीछे चलने से पहले हर कोई इतना सोचे ये जरूरी नहीं।जो महिला मुझे जानती नहीं उसे तो कुछ भी गलतफहमी हो सकती है।

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    1. राजन जी

      ऐसे मौके पर हमेसा महिला के आगे आ जाना चाहिए वही बेहतर होता है , दूसरी बात कोई एक बार में ही आप को पुलिस के पास ले जाने वाला नहीं है , लड़कियों के पास और भी काम है :)

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    2. राजन १९८६ में नौकरी शुरू की थी , डी टी से बस आती जाती थी सुबह ८.३० और शाम को भी तकरीबन ९ बज जाते थे saath के सह यात्री ज्यादा पुरुष ही होते थे , कोई ना कोई अवश्य ये ध्यान भी रखता था की मै सुरक्षित महसूस करूँ तो कोई ना को ये भी ध्यान देता था की कैसे तंग किया जाए लेकिन सुरक्षा gheraa हमेशा मिला बस waesaa ही surkasha gheraa agar sab को miltaa rhaey तो raasta और manjil aasan ho जाती हैं . baat सिर्फ और सिर्फ मानिकता की हैं .

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    3. राजन १९८६ में नौकरी शुरू की थी , डी टी से बस आती जाती थी सुबह ८.३० और शाम को भी तकरीबन ९ बज जाते थे saath के सह यात्री ज्यादा पुरुष ही होते थे , कोई ना कोई अवश्य ये ध्यान भी रखता था की मै सुरक्षित महसूस करूँ तो कोई ना को ये भी ध्यान देता था की कैसे तंग किया जाए लेकिन सुरक्षा gheraa हमेशा मिला बस waesaa ही surkasha gheraa agar sab को miltaa rhaey तो raasta और manjil aasan ho जाती हैं . baat सिर्फ और सिर्फ मानिकता की हैं .

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    4. अंशुमाला जी,मुझे तो लगता है कि ऐसे मामले में .01 फीसद भी रिस्क नहीं लेनी चाहिए या तो रास्ता बदलो या थोडा इंतजार करो।और लडकियाँ भी सभी एक तरह से सोचने वाली नहीं होती।कोई बिल्कुल बेपरवाह तो कोई संवेदनशील तो कोई अतिसंवेदनशील।हमें भी ये अंतर लड़कियों की बातों से ही पता चलता है।मेरे बडे पापा यानी ताऊजी की लडकी है वह यदि मुझसे कहती है कि भैया मैं वहाँ से पैदल आ रही थी और एक लड़का मेरे पीछे पीछे चल रहा था और मैं तो डर ही गई ।तब ये अहसास ज्यादा होता है कि कोई महिला ऐसी स्थिति मे हमारे बारे में भी यही सोच सकती है।ठीक है कि 99 तो नहीं ही करेंगी लेकिन एक ने भी गलतफहमी में आ आसपास वालों को ही कुछ कह दिया तो ?और यदि कोई गलत फँस गया तो इस बात से उसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि ये अपराध जमानती है या नहीं।ये उसके लिए कोई बहुत राहत की बात नहीं हो जाती ।आप भी समझती होंगी इस बात को ।इसलिए कहा कि कानून बनाओ तो सभी पहलुओ का ध्यान रखो ।

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    5. अंशुमाला जी,मुझे तो लगता है कि ऐसे मामले में .01 फीसद भी रिस्क नहीं लेनी चाहिए या तो रास्ता बदलो या थोडा इंतजार करो।और लडकियाँ भी सभी एक तरह से सोचने वाली नहीं होती।कोई बिल्कुल बेपरवाह तो कोई संवेदनशील तो कोई अतिसंवेदनशील।हमें भी ये अंतर लड़कियों की बातों से ही पता चलता है।मेरे बडे पापा यानी ताऊजी की लडकी है वह यदि मुझसे कहती है कि भैया मैं वहाँ से पैदल आ रही थी और एक लड़का मेरे पीछे पीछे चल रहा था और मैं तो डर ही गई ।तब ये अहसास ज्यादा होता है कि कोई महिला ऐसी स्थिति मे हमारे बारे में भी यही सोच सकती है।ठीक है कि 99 तो नहीं ही करेंगी लेकिन एक ने भी गलतफहमी में आ आसपास वालों को ही कुछ कह दिया तो ?और यदि कोई गलत फँस गया तो इस बात से उसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि ये अपराध जमानती है या नहीं।ये उसके लिए कोई बहुत राहत की बात नहीं हो जाती ।आप भी समझती होंगी इस बात को ।इसलिए कहा कि कानून बनाओ तो सभी पहलुओ का ध्यान रखो ।

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    6. रचना जी,आपकी बात सही है लेकिन मानसिकता बदलने में कानून का रोल कुछ खास नहीं होता।कानून का उद्देश्य दूसरा है।घूरने वाली बात पर भी यही बात लागू होती है पश्चिम में लोग दूसरों की निजता का महत्तव समझते हैं।किसी कानून के कारण नहीं शिष्टाचार के कारण वो ऐसा ध्यान रखते हैं कि किसी की प्राइवेसी भंग न होने पाए।जबकि भारत में ऐसा नहीं है।और कोई भी किसीकी तरफ घूरकर देखे परेशानी सबको होती है।कोई महिला आपको और आपके पहनावे को देखेगी तो भी आप असहज हो जाएंगी ।मुझे कोई लडका भी घूरकर देखता है तो लगता है कि इसका मुँह तोड़ दूँ हाँ यदि कभी लगा कि किसी महिला का ध्यान मेरे ऊपर है तो मैं अतिरिक्त रूप से सतर्क हो जाता हूँ।हाथ अपने आप चेहरे की और चला जाता है कि कहीं कुछ लग तो नहीं रहा है या बाल तो खड़े हुए नहीं है या ये महिला कहीं मुझे पहचानती तो नहीं।कई बार लोगों को खुद होश नहीं रहता कि वो किसीको घूर रहे हैं और इससे दूसरों को परेशानी हो रही।

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  7. बाकी तो इस कानून को मीडिया ने पहले ही अपनी आधी अधूरी जानकारी के बल पर गलत प्रचारित कर रखा था खासकर सहमति की उम्र सीमा को लेकर ।बचकानेपन में ऐसा प्रचार कर डाला मानो लड़कों को बलात्कार करने की खुली छूट दे दी हो खासकर दैनिक भास्कर तो कुछ ज्यादा ही आक्रामक हो गया था ।जबकि पूरे कानून को ही मीडिया ने तोड़ मरोडकर पेश किया ।और अभी भी मीडिया को कोई अक्ल नहीं आई है।सरकार ने अब उम्र सीमा को लेकर जो संशोधन किया इसके बारे में तो सब बता रहे है लेकिन इसके साथ शर्तें क्या जोड़ी हैं ये केवल एक दो मीडिया साईटों पर ही देखने को मिला।हालाँकि नाबालिगों के बीच शारीरिक संबंधों के मामले में सरकार ने दबाव में आ केवल नाबालिग लडकों के खिलाफ एकतरफा कानून बनाकर अच्छा नहीं किया ।इसमें और सुधार की जरूरत है ।सरकार को पहले समाज के हर तबके की राय लेनी चाहिए ।

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  8. मैं महिला संगठनों की इस माँग के साथ हूँ कि सहमति से सेक्स की उम्र सोलह वर्ष ही होनी चाहिए खासकर तब जबकि सरकार बलात्कार की परिभाषा व्यापक करने जा रही हो ।साथ ही छेडछाड या बलात्कार के लिए सोलह से अठारह वर्ष के लडकों को भी बालिगों के समान ही सजा दी जानी चाहिए।
    माफ कीजिए टिप्पणियाँ आज कुछ ज्यादा ही हो गई।बाद में पढ़ने आता हूँ।

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  9. " ना का मतलब हाँ होता है " पुरानी हिंदी फिल्मों का यह फितूर कब निकलेगा दिमागों से .!!

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    1. .
      .
      .
      ओफ् ओह वाणी जी, कम से कम आपसे तो उम्मीद थी कि आप समझेंगी... :)

      चलिये आप की मान ली ' ना का मतलब ना ही होता है'... पर 'कई कई बार ना के बाद ही 'हाँ' सुनाई देती है, अनेक मामलों में'... ज्यादा दूर नहीं जाईये, आपको अपने ईर्द गिर्द ही कई ऐसे जोड़े मिल जायेंगे...


      ...

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    2. लड़कियों की "ना" का मतलब भी "हा" होता है और "हा" का मतलब भी "हा" ही होता है तो क्या लड़किया कभी "ना" कहती ही नहीं है और कहती है तो कैसे , जरा मुझे भी बता दे मेरे आस पास बहुत सी है जिन्हें मै बता दो की भाई ऐसे " ना' कहो तो लड़को को समझ में आता है की "ना" कहा गया है इसमे कही भी "हा" नहीं छुपा है ।

      वैसे आप की इस हां ना की कक्षा तो हमें भी करनी है , आप को पत्नियों की " हा " "ना" कितनी समझ आती है वो भी बता दीजिये , सिख लू आप से मेरे काम आयेगी :))

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    3. साम-दाम-दंड़-भेद के बाद, 'ना' अक्सर 'हाँ' में सुनाई देती है।

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    4. हां का मतलब ना तो हरगिज नहीं होता , ऐसा जरुर हो सकता है / होता है की पहली बार में कोई व्यक्ति आपको अच्छा नहीं लगे , मगर जब उसको जानने लगो तो आपका नजरिया बदल जाए ,यह हो सकता की ना आगे जाकर हाँ में बदलती हो मगर ना का मतलब ना ही होता है , हाँ नहीं !
      अभी दो तीन पहले ही कही कविता पढ़ी , लिंक याद नहीं है . कुल लब्बो लुआब था कविता कि स्त्रियों की ना को तुमने हां समझ लिया , हां किया तो हाँ तो थी , चालू समझा और परेशां होकर जब उसने हां किया ना ना किया तो तुमने उसे मौन सहमति मान लिया ! कुल मिलकर तुमने वही जो तुम्हे सोचना था !

      सुज्ञ जी की टिप्पणी गहन है !

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  10. http://indianhomemaker.wordpress.com/2013/03/21/why-did-sharad-yadav-say-who-amongst-us-has-not-followed-girls/

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  11. समाज में जब भी दबे ,पिछड़े और कमजोर वर्ग के लिए कोई भी कानून बनेगा तो उससे उसे दबाने वाले ऊपर के तबके को परेशानी होगी ही , क्योकि अब सत्ता उसके हाथ से निकल रही है , अब वो भी कानून के शिकंजे में आ सकता है उन कामो के लिए जिसे वो सामान्य कह कर पुकारता रहा है , महिलाओ के लिए या दलित पिछडो के लिए बने सभी कानूनों का हर ऊपर का वर्ग विरोध करता है उसे ये अपने अधिकार में हनन लगता है लगता है की इन कानूनों से उसका शोषण होगा क्योकि वो जानता है की वो सामने वाले को कमजोर मान कर उसे शोषित करता रहा है अब उसकी आदत तो जाएगी नहीं हा कानून का डर उसे हो जाता है । इस तर्क पर हंसी आती है की पुरुषो के अन्दर टेस्टरौन बह रहा है उनकी ये हरकत तो मर्दाना है स्वाभाविक है , तब तो ये माना जाना चाहिए की भी सबसे बड़ा मर्द तो बलात्कारी है क्योकि उसके अन्दर कुछ ज्यादा ही मर्दानगी बह रही है और जो पुरुष लड़की न छेड़े उन्हें न देखे वो सब के सब नामर्द है उनके अन्दर कोई मर्दाना केमिकल बह ही नहीं रहा है ।
    किन्तु समस्या ये है की हमारे यहाँ कानून से थाने नहीं चलते है वो तो पैसे रुतबे पहचान से चलते है , जहा पीड़ित सबसे पहले पहुंचता है , दूसरा समाज है , अभी गाजिय बाद में ही एक घटना टीवी पर देखि लड़का लड़की को जबरजस्ती रास्ते से ले जाने का प्रयास कर रहा था लड़की ने मना किया तो लडके ने रास्ते में ही उसके कपडे फाड़ दिए लड़की पुलिस में गई उसकी बाते मैंने टीवी पर सुनी और दुसरे दिन पता चला की उसने आत्महत्या कर ली क्योकि लडके वाले उसके घर आ कर उसे ही बेइज्जत करने लगे और कहने लगे की बदनामी तो लड़की की ही होनी है । क्या कानून बना भर देने से समाज और पुलिस की सोच बदेलेगी ?

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    1. क्या कानून बना भर देने से समाज और पुलिस की सोच बदेलेगी ?

      nahin par kahin naa kahin sajaa dilvaane kaa silsilaa shuru to karna hi
      hogaa

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