कामकाजी महिलायें उन लोगों की दृष्टि में- जो कामकाजी नहीं है फिर घर में रहने वाले सदस्यों की नजर में वे क्या है? इस दिशा में कभी सोचा गया है , शायद नहीं आज के दौर के देखते हुए किसी न किसी रूप में स्त्री औरपुरुष दोनों काम करके अपने जीवन को सुखपूर्वक जीना चाह रहे हैं और अगर वे सक्षम है तो फिर सिर्फ घर के बैठ कर अपनी प्रतिभा की हत्या क्यों करें ? उनका काम करना और उनका अर्जित पैसा उनके परिवार के जीवन स्तर को और बेहतर बनाता है लेकिन वह कामकाजी महिला किस तरह से घर, बच्चे , परिवार और गृहस्थी के बीच पिसती है, इस बात को किसी ने सोचा हो न सोचा हो लेकिन मैंने इसको बहुत गहरे से देखा है, भोगा है और दूसरों को भोगते हुए देखा है.
आज समाज में करीब ७० प्रतिशत महिलायें काम करती हैं , जरूरी नहीं है कि वे उच्च पदों पर हों - वे एक घरेलू काम करने वाली मेट से लेकर बड़े पदों पर आसीन महिलायें हैं लेकिन सबकी जिन्दगी अपने अपने ढंग से अलग अलग तरह से चल रही है . कभी सोचा था कि घर और नौकरी के बीच पिसते हुए जो जीवन मैंने जिया उसको पन्नों पर उतारूंगी लेकिन जैसे जैसे जीवन आगे बढ़ा और फिर भविष्य में ऑफिस की बस में मिली दूसरे विभागों की काम करने वाली महिलाओं से बात हुई तो सबका एक अलग संघर्ष था . अगर संयुक्त परिवार है तो सहयोग नहीं बल्कि घर के काम में पूरा पूरा आधे की हिस्सेदारी उसके नाम होती क्योंकि वह काम रही है तो अपने बेहतरी के लिए, लेकिन घर में किये खर्च को कोई नहीं देखता . अगर अकेली है तो जरूरी नहीं है कि पति की घर के कामों में कोई हिस्सेदारी हो। वह तो सारे काम औरतों के होते हैं तो वह तो करना ही होगा . कमा रही हैं तो कोई उनपर अहसान तो नहीं कर रही हैं . अगर नौकरी करनी है तो घर के काम पहले रखो , ऑफिस या स्कूल के बाद में . अगर कहीं फैक्ट्री की नौकरी हो तो फिर तो दिन के २० घंटे उसके लिए दिन के ही होते है . कब सोना है और कब उठना है सब काम घडी की सुई पर चलता है. सोचा कि उनकी जिन्दगी से हम सब वाकिफ तो हो लें . वे नहीं लिख सकती हैं तो फिर हम ही उन्हें शब्द दे दें और फिर सब उसको जाने कि एक कामकाजी औरत की जिन्दगी कितनी संघर्षपूर्ण है और वह इसके बाद भी कितनी स्वतन्त्र है अपने कमाए पैसों को खर्चने के लिए।
वह भी एक वर्ग है जो हममें ही जीता है लेकिन उनकी जिन्दगी की दुश्वारियां कठपुतली बना कर रख देती है .
यह एक साझा ब्लॉग है और हम सभी पढ़ने वालों और इसके इतने सारे सदस्यों से मेरी गुजारिश है की ऐसे लोगों की जिन्दगी से वे वाकिफ हों या फिर खुद ही जूझ रहे हों या जूझ कर चुके हों तो बताएं और ताकि जो लोग कहते हैं :
--नौकरी करने वाली महिलाओं को बनठन कर निकल जाती हैं,
--ऑफिस में क्या बैठ कर गप्पें मारती होगी .
--आठ घंटे घर से बाहर घूमना तो हो जाता है. .
--घर के काम से बचने का एक साधन है .
--घर में मन नहीं लगता तो नौकरी कर ली .
इससे भी अतिरिक्त बहुत सारे जुमले हैं जो सिर्फ परिवार में ही नहीं बल्कि परिवेश के पुरुष और महिलायों से सुनने को मिल जाते है . उनके लिए कुछ मिसालें हम प्रस्तुत कर सकते है . आप सभी आपनी पोस्ट बनाकर इस पर डालें तो अपने ब्लॉग का नाम सही अर्थों में जीवंत करने की दिशा में एक कदम होगा . टाइम पास
आज समाज में करीब ७० प्रतिशत महिलायें काम करती हैं , जरूरी नहीं है कि वे उच्च पदों पर हों - वे एक घरेलू काम करने वाली मेट से लेकर बड़े पदों पर आसीन महिलायें हैं लेकिन सबकी जिन्दगी अपने अपने ढंग से अलग अलग तरह से चल रही है . कभी सोचा था कि घर और नौकरी के बीच पिसते हुए जो जीवन मैंने जिया उसको पन्नों पर उतारूंगी लेकिन जैसे जैसे जीवन आगे बढ़ा और फिर भविष्य में ऑफिस की बस में मिली दूसरे विभागों की काम करने वाली महिलाओं से बात हुई तो सबका एक अलग संघर्ष था . अगर संयुक्त परिवार है तो सहयोग नहीं बल्कि घर के काम में पूरा पूरा आधे की हिस्सेदारी उसके नाम होती क्योंकि वह काम रही है तो अपने बेहतरी के लिए, लेकिन घर में किये खर्च को कोई नहीं देखता . अगर अकेली है तो जरूरी नहीं है कि पति की घर के कामों में कोई हिस्सेदारी हो। वह तो सारे काम औरतों के होते हैं तो वह तो करना ही होगा . कमा रही हैं तो कोई उनपर अहसान तो नहीं कर रही हैं . अगर नौकरी करनी है तो घर के काम पहले रखो , ऑफिस या स्कूल के बाद में . अगर कहीं फैक्ट्री की नौकरी हो तो फिर तो दिन के २० घंटे उसके लिए दिन के ही होते है . कब सोना है और कब उठना है सब काम घडी की सुई पर चलता है. सोचा कि उनकी जिन्दगी से हम सब वाकिफ तो हो लें . वे नहीं लिख सकती हैं तो फिर हम ही उन्हें शब्द दे दें और फिर सब उसको जाने कि एक कामकाजी औरत की जिन्दगी कितनी संघर्षपूर्ण है और वह इसके बाद भी कितनी स्वतन्त्र है अपने कमाए पैसों को खर्चने के लिए।
वह भी एक वर्ग है जो हममें ही जीता है लेकिन उनकी जिन्दगी की दुश्वारियां कठपुतली बना कर रख देती है .
यह एक साझा ब्लॉग है और हम सभी पढ़ने वालों और इसके इतने सारे सदस्यों से मेरी गुजारिश है की ऐसे लोगों की जिन्दगी से वे वाकिफ हों या फिर खुद ही जूझ रहे हों या जूझ कर चुके हों तो बताएं और ताकि जो लोग कहते हैं :
--नौकरी करने वाली महिलाओं को बनठन कर निकल जाती हैं,
--ऑफिस में क्या बैठ कर गप्पें मारती होगी .
--आठ घंटे घर से बाहर घूमना तो हो जाता है. .
--घर के काम से बचने का एक साधन है .
--घर में मन नहीं लगता तो नौकरी कर ली .
इससे भी अतिरिक्त बहुत सारे जुमले हैं जो सिर्फ परिवार में ही नहीं बल्कि परिवेश के पुरुष और महिलायों से सुनने को मिल जाते है . उनके लिए कुछ मिसालें हम प्रस्तुत कर सकते है . आप सभी आपनी पोस्ट बनाकर इस पर डालें तो अपने ब्लॉग का नाम सही अर्थों में जीवंत करने की दिशा में एक कदम होगा . टाइम पास
its ok thanks
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