tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post1186161140315788918..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: कितनी आसानी से ये कह दिया जाता हैं की "ऐसा तो होता रहा हैं " रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger42125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-83936276376935377532013-12-04T08:03:45.154+05:302013-12-04T08:03:45.154+05:30ना ना करते प्यार तुम्ही से कर बैठे
करना था इन्कार ...ना ना करते प्यार तुम्ही से कर बैठे<br />करना था इन्कार मगर इकरार तुम्ही से कर बैठे<br /><br />बॉलीवुड का मशहूर गाना अब बेमानी हो जाएगा।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/10888258577104247184noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-76742956128723885512013-03-23T14:44:12.632+05:302013-03-23T14:44:12.632+05:30हां का मतलब ना तो हरगिज नहीं होता , ऐसा जरुर हो ...हां का मतलब ना तो हरगिज नहीं होता , ऐसा जरुर हो सकता है / होता है की पहली बार में कोई व्यक्ति आपको अच्छा नहीं लगे , मगर जब उसको जानने लगो तो आपका नजरिया बदल जाए ,यह हो सकता की ना आगे जाकर हाँ में बदलती हो मगर ना का मतलब ना ही होता है , हाँ नहीं ! <br />अभी दो तीन पहले ही कही कविता पढ़ी , लिंक याद नहीं है . कुल लब्बो लुआब था कविता कि स्त्रियों की ना को तुमने हां समझ लिया , हां किया तो हाँ तो थी , चालू समझा और परेशां होकर जब उसने हां किया ना ना किया तो तुमने उसे मौन सहमति मान लिया ! कुल मिलकर तुमने वही जो तुम्हे सोचना था !<br /><br /> सुज्ञ जी की टिप्पणी गहन है ! <br /><br />वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-11223219451504731032013-03-23T12:09:30.407+05:302013-03-23T12:09:30.407+05:30रचना जी,आपकी बात सही है लेकिन मानसिकता बदलने में क...रचना जी,आपकी बात सही है लेकिन मानसिकता बदलने में कानून का रोल कुछ खास नहीं होता।कानून का उद्देश्य दूसरा है।घूरने वाली बात पर भी यही बात लागू होती है पश्चिम में लोग दूसरों की निजता का महत्तव समझते हैं।किसी कानून के कारण नहीं शिष्टाचार के कारण वो ऐसा ध्यान रखते हैं कि किसी की प्राइवेसी भंग न होने पाए।जबकि भारत में ऐसा नहीं है।और कोई भी किसीकी तरफ घूरकर देखे परेशानी सबको होती है।कोई महिला आपको और आपके पहनावे को देखेगी तो भी आप असहज हो जाएंगी ।मुझे कोई लडका भी घूरकर देखता है तो लगता है कि इसका मुँह तोड़ दूँ हाँ यदि कभी लगा कि किसी महिला का ध्यान मेरे ऊपर है तो मैं अतिरिक्त रूप से सतर्क हो जाता हूँ।हाथ अपने आप चेहरे की और चला जाता है कि कहीं कुछ लग तो नहीं रहा है या बाल तो खड़े हुए नहीं है या ये महिला कहीं मुझे पहचानती तो नहीं।कई बार लोगों को खुद होश नहीं रहता कि वो किसीको घूर रहे हैं और इससे दूसरों को परेशानी हो रही।राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-22535792822677612013-03-23T11:52:04.588+05:302013-03-23T11:52:04.588+05:30अंशुमाला जी,मुझे तो लगता है कि ऐसे मामले में .01 फ...अंशुमाला जी,मुझे तो लगता है कि ऐसे मामले में .01 फीसद भी रिस्क नहीं लेनी चाहिए या तो रास्ता बदलो या थोडा इंतजार करो।और लडकियाँ भी सभी एक तरह से सोचने वाली नहीं होती।कोई बिल्कुल बेपरवाह तो कोई संवेदनशील तो कोई अतिसंवेदनशील।हमें भी ये अंतर लड़कियों की बातों से ही पता चलता है।मेरे बडे पापा यानी ताऊजी की लडकी है वह यदि मुझसे कहती है कि भैया मैं वहाँ से पैदल आ रही थी और एक लड़का मेरे पीछे पीछे चल रहा था और मैं तो डर ही गई ।तब ये अहसास ज्यादा होता है कि कोई महिला ऐसी स्थिति मे हमारे बारे में भी यही सोच सकती है।ठीक है कि 99 तो नहीं ही करेंगी लेकिन एक ने भी गलतफहमी में आ आसपास वालों को ही कुछ कह दिया तो ?और यदि कोई गलत फँस गया तो इस बात से उसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि ये अपराध जमानती है या नहीं।ये उसके लिए कोई बहुत राहत की बात नहीं हो जाती ।आप भी समझती होंगी इस बात को ।इसलिए कहा कि कानून बनाओ तो सभी पहलुओ का ध्यान रखो । <br />राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-80809659354518927942013-03-23T11:50:22.442+05:302013-03-23T11:50:22.442+05:30अंशुमाला जी,मुझे तो लगता है कि ऐसे मामले में .01 फ...अंशुमाला जी,मुझे तो लगता है कि ऐसे मामले में .01 फीसद भी रिस्क नहीं लेनी चाहिए या तो रास्ता बदलो या थोडा इंतजार करो।और लडकियाँ भी सभी एक तरह से सोचने वाली नहीं होती।कोई बिल्कुल बेपरवाह तो कोई संवेदनशील तो कोई अतिसंवेदनशील।हमें भी ये अंतर लड़कियों की बातों से ही पता चलता है।मेरे बडे पापा यानी ताऊजी की लडकी है वह यदि मुझसे कहती है कि भैया मैं वहाँ से पैदल आ रही थी और एक लड़का मेरे पीछे पीछे चल रहा था और मैं तो डर ही गई ।तब ये अहसास ज्यादा होता है कि कोई महिला ऐसी स्थिति मे हमारे बारे में भी यही सोच सकती है।ठीक है कि 99 तो नहीं ही करेंगी लेकिन एक ने भी गलतफहमी में आ आसपास वालों को ही कुछ कह दिया तो ?और यदि कोई गलत फँस गया तो इस बात से उसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि ये अपराध जमानती है या नहीं।ये उसके लिए कोई बहुत राहत की बात नहीं हो जाती ।आप भी समझती होंगी इस बात को ।इसलिए कहा कि कानून बनाओ तो सभी पहलुओ का ध्यान रखो । <br />राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-11639045623756085722013-03-23T10:34:39.825+05:302013-03-23T10:34:39.825+05:30और अंशुमाला जी यदि कानून की किसी एक बात या आधी बात...और अंशुमाला जी यदि कानून की किसी एक बात या आधी बात का विरोध किया जा रहा है इसलिए कि वह गलत है तो इसका अर्थ ये नहीं है कि पूरे कानून की जरूरत को ही नकारा जा रहा है।वैसे तो मैं मान के चल रहा हूँ कि ये बात आपने मेरे लिए या केवल मेरे लिए नहीं कही होगी लेकिन फिर भी अपनी सफाई में कहूँगा कि यदि कानून की कोई एक बात गलत या अस्पष्ट या अतार्किक है तो उस पर भी बात जरूर होनी चाहिए।मुझे इस कानून में जो बात अच्छी लगी उसके बारे में भी टिप्पणी में कहा और जो गलत लगी उस पर भी।और आपको भी पता है कि मुझे किस बात पर आपत्ति थी या है मैं तो बहस के लिए भी तैयार हूँ।हाँ ये हो सकता है कि आपको वह बात इतनी महत्वपूर्ण न लगे तो ऐसा होता है ।सभी एक तरीके से नहीं सोचते ।लेकिन आप पहले ही तय कर लेते हैं कि कौन किसलिए विरोध कर रहा है या उस एक बात का विरोध करने का मतलब पूरे कानून को ही खारिज करना है तो वह भी गलत है।<br />राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-22903436840356873822013-03-23T10:32:51.629+05:302013-03-23T10:32:51.629+05:30अंशुमाला जी,किताबी ही सही लेकिन बात ज्यादा उस प्रा...अंशुमाला जी,किताबी ही सही लेकिन बात ज्यादा उस प्रावधान पर ही होगी जो नया हो अभी भी ऐसा ही हो रहा है।पीछे ही पड़ जाने और मानसिक रूप से परेशान करने आदि को लेकर पहले से कानून थे उनके नाम ही अलग थे बस लडकियाँ ही अवेयर नहीं थी।जहाँ तक व्यवहारिकता की बात है आपने बिल्कुल सही कहा।यदि आपने पिछली पोस्ट पर मेरी टिप्पणी पढी हो तो मैं खुद इस घूरने संबंधी प्रावधान को ज्यादा महत्तव नहीं दे रहा क्योंकि न ये (महिलाओं के लिए)व्यहारिक है न समस्या का हल।और मानसिक रूप से परेशान करने आदि को लेकर इसी कानून में दूसरे प्रावधान है ही ।यहाँ प्रवीण जी ने बात छेडी इसलिए मैंने टिप्पणी की।पर मैं ये जरूर मानता हूँ कि अव्यहारिक और किताबी बातें कानून में नहीं जोड़नी चाहिए वर्ना लोग इससे जुड़ी बाकि बातों को भी हल्के में लेने लगेंगे।इसीलिए अभी कुछ समय पहले जब ऐसे कानून की बात उठती रही थी जिसमें रेप के लिए महिला के खिलाफ भी शिकायत करने का प्रावधान हो तो इसका बहुत से लोगों खासकर महिलाओं और महिला संगठनो ने विरोध किया वर्ना यह तो सब जानते ही है कि व्यवहारिक धरातल पर ऐसे प्रावधान का कोई मतलब ही नहीं क्योंकि महिलाएँ पुरुषों का बलात्कार नहीं करती।<br />राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-24355516798479980512013-03-22T14:53:20.461+05:302013-03-22T14:53:20.461+05:30 क्या कानून बना भर देने से समाज और पुलिस की सोच बद... क्या कानून बना भर देने से समाज और पुलिस की सोच बदेलेगी ?<br /><br />nahin par kahin naa kahin sajaa dilvaane kaa silsilaa shuru to karna hi <br />hogaaरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-73788072284896402552013-03-22T14:51:42.190+05:302013-03-22T14:51:42.190+05:30राजन १९८६ में नौकरी शुरू की थी , डी टी से बस आती ज...राजन १९८६ में नौकरी शुरू की थी , डी टी से बस आती जाती थी सुबह ८.३० और शाम को भी तकरीबन ९ बज जाते थे saath के सह यात्री ज्यादा पुरुष ही होते थे , कोई ना कोई अवश्य ये ध्यान भी रखता था की मै सुरक्षित महसूस करूँ तो कोई ना को ये भी ध्यान देता था की कैसे तंग किया जाए लेकिन सुरक्षा gheraa हमेशा मिला बस waesaa ही surkasha gheraa agar sab को miltaa rhaey तो raasta और manjil aasan ho जाती हैं . baat सिर्फ और सिर्फ मानिकता की हैं . रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-36103617002549008892013-03-22T14:50:55.258+05:302013-03-22T14:50:55.258+05:30राजन १९८६ में नौकरी शुरू की थी , डी टी से बस आती ज...राजन १९८६ में नौकरी शुरू की थी , डी टी से बस आती जाती थी सुबह ८.३० और शाम को भी तकरीबन ९ बज जाते थे saath के सह यात्री ज्यादा पुरुष ही होते थे , कोई ना कोई अवश्य ये ध्यान भी रखता था की मै सुरक्षित महसूस करूँ तो कोई ना को ये भी ध्यान देता था की कैसे तंग किया जाए लेकिन सुरक्षा gheraa हमेशा मिला बस waesaa ही surkasha gheraa agar sab को miltaa rhaey तो raasta और manjil aasan ho जाती हैं . baat सिर्फ और सिर्फ मानिकता की हैं . रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-83249505056709726832013-03-22T13:45:48.362+05:302013-03-22T13:45:48.362+05:30 राजन जी
जैसा की मैंने कहा है की किताबी ब... राजन जी <br /><br /> जैसा की मैंने कहा है की किताबी बाते किताबी होती है वो कानून की ही किताब क्यों न हो व्यवहारिकता की बाते करे मैंने ये भी लिखा है की कोई लड़की बस ये नहीं देखती फिरेगी की उसे कौन देखा रहा है घुर रहा है और न ही पहली बार में जेल में भेजने वाली है , जब बात बार बार घुरने और मानसिक रूप से परेशां करने की होगी कारवाही तभी कोई लड़की करेगी , बाकि कानून के किसी एक बात को पकड़ कर पुरे कानून को बेकार और गलत नहीं कहा जा सकता है , नए संशोधन में तो पहली बार में उसे जमानती भी बना दिया गया है , दुबारा करने पर ही जमानत नहीं मिलेगी , जबकि पहले गैर जमानती बनाया गया था । बाकि घुरना और नियत के बारे में आप मुझसे बेहतर जानते होंगे आप पुरुषो के स्वभाव के बारे में मुझसे बेहतर जानते होंगे , बाकि लड़किया तो खूब समझती है की कौन बस देख भर रहा है और कौन गलत नियत से घुर रहा है , और किसकी नज़ारे लड़की को देखते ही एक्सरे जैसी हो गई है । anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-53390470764372994662013-03-22T13:19:44.325+05:302013-03-22T13:19:44.325+05:30साम-दाम-दंड़-भेद के बाद, 'ना' अक्सर 'हा...साम-दाम-दंड़-भेद के बाद, 'ना' अक्सर 'हाँ' में सुनाई देती है। सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-28883943303858278962013-03-22T13:18:09.714+05:302013-03-22T13:18:09.714+05:30If anybody says 'No' it always meant to be...If anybody says 'No' it always meant to be 'No' only.PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-41738960677999640442013-03-22T13:14:15.529+05:302013-03-22T13:14:15.529+05:30राजन जी, आपने बहुत ही गम्भीरता से स्पष्ट किया। पूर...राजन जी, आपने बहुत ही गम्भीरता से स्पष्ट किया। पूर्ण व्यवहारिक!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-35404550731553156292013-03-22T13:07:55.622+05:302013-03-22T13:07:55.622+05:30@और जब भी यह कानून बने, तो लागू सभी पर हो, बिना लि...@और जब भी यह कानून बने, तो लागू सभी पर हो, बिना लिंगभेद के, कानून के द्वारा परिभाषित 'घूरना' व stalking चाहे लड़की करे या लड़का, सजा दोनों को मिले...<br /><br />प्रवीण जी,<br /><br />आज की स्थिति में तो यौन प्रताड़ना की शिकार स्त्री ही है ऐसी परिस्थिति में सुरक्षा के कानून उसी के लिए बनने चाहिए। कालान्तर में कभी नारी की स्थिति सुदृढ हो जाय और वह अपनी सुदृढ स्थिति का फायदा उठाने लगे, पुरूष को यौन उत्पीड़न की नजर से घूरे, पुरूष का घात लगाकर पिछा करे, धूर्तता से पटाने लगे, पुरूष का बलात्कार करे और उसके बाद का उसका जीवन नरक समान बने तो उस दशा में ऐसे कानून दोनो पर समान रूप से लागू हो। विडम्बना है कि पुरूष का हमेशा ही मजेदार स्थिति में रहना तय है अतः मुझे तो ऐसी सम्भावनाएं कम ही लगती है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-37348336095091080762013-03-22T13:07:19.761+05:302013-03-22T13:07:19.761+05:30 समाज में जब भी दबे ,पिछड़े और कमजोर वर्ग के लिए क... समाज में जब भी दबे ,पिछड़े और कमजोर वर्ग के लिए कोई भी कानून बनेगा तो उससे उसे दबाने वाले ऊपर के तबके को परेशानी होगी ही , क्योकि अब सत्ता उसके हाथ से निकल रही है , अब वो भी कानून के शिकंजे में आ सकता है उन कामो के लिए जिसे वो सामान्य कह कर पुकारता रहा है , महिलाओ के लिए या दलित पिछडो के लिए बने सभी कानूनों का हर ऊपर का वर्ग विरोध करता है उसे ये अपने अधिकार में हनन लगता है लगता है की इन कानूनों से उसका शोषण होगा क्योकि वो जानता है की वो सामने वाले को कमजोर मान कर उसे शोषित करता रहा है अब उसकी आदत तो जाएगी नहीं हा कानून का डर उसे हो जाता है । इस तर्क पर हंसी आती है की पुरुषो के अन्दर टेस्टरौन बह रहा है उनकी ये हरकत तो मर्दाना है स्वाभाविक है , तब तो ये माना जाना चाहिए की भी सबसे बड़ा मर्द तो बलात्कारी है क्योकि उसके अन्दर कुछ ज्यादा ही मर्दानगी बह रही है और जो पुरुष लड़की न छेड़े उन्हें न देखे वो सब के सब नामर्द है उनके अन्दर कोई मर्दाना केमिकल बह ही नहीं रहा है । <br /> किन्तु समस्या ये है की हमारे यहाँ कानून से थाने नहीं चलते है वो तो पैसे रुतबे पहचान से चलते है , जहा पीड़ित सबसे पहले पहुंचता है , दूसरा समाज है , अभी गाजिय बाद में ही एक घटना टीवी पर देखि लड़का लड़की को जबरजस्ती रास्ते से ले जाने का प्रयास कर रहा था लड़की ने मना किया तो लडके ने रास्ते में ही उसके कपडे फाड़ दिए लड़की पुलिस में गई उसकी बाते मैंने टीवी पर सुनी और दुसरे दिन पता चला की उसने आत्महत्या कर ली क्योकि लडके वाले उसके घर आ कर उसे ही बेइज्जत करने लगे और कहने लगे की बदनामी तो लड़की की ही होनी है । क्या कानून बना भर देने से समाज और पुलिस की सोच बदेलेगी ?anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-4550500666093312013-03-22T13:07:18.931+05:302013-03-22T13:07:18.931+05:30अंशुमाला जी, बाकी बातें आपकी बिल्कुल ठीक है जो आपन...अंशुमाला जी, बाकी बातें आपकी बिल्कुल ठीक है जो आपने प्रवीण जी को कही लेकिन कानून के मामले में आपकी जानकारी सही नहीं।आप जो घूरने की परिभाषा बता रही हैं वह पीछा करने के अंतर्गत आ जाती है ।लेकिन इस कानून के हिसाब से घूरने का अर्थ है किसी लड़की को चौदह सैकेंड से ज्यादा एकटक देखा तो जेल।<br />यदि मैं अपडेट नहीं तो कृपया मुझे सही करें।राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-35521510019801265782013-03-22T12:52:48.936+05:302013-03-22T12:52:48.936+05:30लड़कियों की "ना" का मतलब भी "हा&quo...लड़कियों की "ना" का मतलब भी "हा" होता है और "हा" का मतलब भी "हा" ही होता है तो क्या लड़किया कभी "ना" कहती ही नहीं है और कहती है तो कैसे , जरा मुझे भी बता दे मेरे आस पास बहुत सी है जिन्हें मै बता दो की भाई ऐसे " ना' कहो तो लड़को को समझ में आता है की "ना" कहा गया है इसमे कही भी "हा" नहीं छुपा है । <br /><br />वैसे आप की इस हां ना की कक्षा तो हमें भी करनी है , आप को पत्नियों की " हा " "ना" कितनी समझ आती है वो भी बता दीजिये , सिख लू आप से मेरे काम आयेगी :))anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-80326438798971116592013-03-22T12:45:57.978+05:302013-03-22T12:45:57.978+05:30 राजन जी
ऐसे मौके पर हमेसा महिला के आ... राजन जी <br /><br /> ऐसे मौके पर हमेसा महिला के आगे आ जाना चाहिए वही बेहतर होता है , दूसरी बात कोई एक बार में ही आप को पुलिस के पास ले जाने वाला नहीं है , लड़कियों के पास और भी काम है :) anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-82208418286067085512013-03-22T12:43:11.224+05:302013-03-22T12:43:11.224+05:30प्रवीण जी,
हो सकता है 'निहारने' और 'घू...प्रवीण जी,<br />हो सकता है 'निहारने' और 'घूरने' में फर्क हो। दोनो के अलग अलग भेद हो। किन्तु मेरे भौतिकवादी मित्र अगर दोनो का बायलोजिकल उद्देश्य (जैसा कि आपने डिफाईन किया यौनाकर्षण और जोडे बनाने का उद्देश्य) एक है तो 'निहारने' और 'घूरने' शब्द के भिन्न भिन्न अर्थ होने से क्या फर्क पडता है?<br /><br />इस पोस्ट पर ध्रुव सवाल यही है। शरद यादव द्वारा 'घूरना' 'पीछा करना' 'पहल करना' (पटाना) सहज सामान्य और पारम्परिक कहा जा रहा है। ऐसे में आप भी इसे केवल और केवल बायलोजिकल प्राकृतिक प्रवृति में ही लेना चाहते है। क्या इन आवेगों, क्रियाओं को कुदरती होने के नाम पर उपेक्षणीय या क्षम्य किया जा सकता है? वस्तुतः जब जब यह प्राकृतिक प्रवृति जोर मारती है, संयम, विवेक और नियमों की मर्यादा अति आवश्यक हो जाती है। निहारना या घूरना जो भी हो अगर उद्देश्य यौन उमंग पैदा करना है तो दोनो के बीच का हल्का का अर्थान्तर कभी भी समाप्त हो जाता है। <br /><br />अथवा फिर आप निहारने की जरूरत का, यौनाकर्षण से इतर, कोई अन्य बायलोजिकल कारण या उद्देश्य दीजिए…।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-91150035170562477302013-03-22T12:41:39.771+05:302013-03-22T12:41:39.771+05:30प्रवीण जी
शायद आप मजाक के मुड म...प्रवीण जी <br /><br /> शायद आप मजाक के मुड में है, कोई बात नहीं जी ज्यादा दिन नहीं बस कुछ सालो की बात है इन बातो को फिर आप मजाक में नहीं लेंगे {मै जानती हूँ आप बहुत समझदार है :)) }और घुरना , ताड़ना , देखना सभी का अर्थ बहुत ही अच्छे से समझ जायेंगे , क्योकि किताबी बाते किताबी होती है असल बात तो व्यवहारिक होती है , जब आप को भी शिकायते मिलेगी तो आप की राय कैसे बदलेगी वो हम अभी से जानते है :) आदत के अनुसार हमारी मुफ्त की राय बोनस में ;-)<br /><br />जैसा की सुज्ञ जी ने कहा की इन्सान और जानवर में फर्क होता है इन्सान के पास विवेक है जिसका प्रयोग उसे करना चाहिए , जो नहीं करता है अपराध वही होता है । महिलाए जब घर से निकलती है तो सारे रस्ते ये नहीं देखती है की किस किस ने हमें देखा, घुरा और किस किस को पकड़ कर थाने ले जाना है । शब्दों को पकड़ कर बात को खिचिये मत , कानून में कही बात का अर्थ है की यदि कोई लड़की "बार बार" ( कोई भी व्यक्ति एक बार देखने भर से ही किसी को पुलिस के पास नहीं ले जायेगा ) किसी के घुरने , पीछा करने आदि से परेशां है तो वो पुलिस में जा कर शिकायत करे , अब उसके लिए भी एक कानून है जिसके तहत ऐसा करने वालो को जेल हो सकती है , पहले ये नहीं था ज्यादातर मामले तो पुलिस तक जाते ही नहीं थे और लड़किया ( लड़किया से बेहतर शब्द बेटिया और बहने होगा क्योकि ऐसा लिखने पर लोग आगे खड़ी महिला को नहीं पीछे खड़ी अपनी बेटी बहन के बारे में सोच कर विचार रखेंगे ) और उनके घरवाले परेशां होते थे या फिर सजा के टूर पर लड़कियों के ही घर से बाहर निकलने पर रोक लगा दी जाती थी और यदि मामला पुलिस के पास गया भी तो पुलिस वाले अपने स्तर पर ही निपटा दिया करते थे , जैसे अभी तक घरेलु हिंसा कानून नहीं था जिसके करना महिलाओ को काफी परेशानी होती थी और सही कानून न होने के कारण मामले दहेज़ कानून में दर्ज होते थे , या फिर पति के पीटने को कोई अपराध मना ही नहीं जाता था , अब कानून है और महिलाओ की सुनी जा रही है , उसी तरह ज्यादातर लड़किया गंभीर किसम के छेड़ छाड़ से परेशां होती है , किन्तु वो उसके खिलाफ कुछ कर नहीं पाती है , अब चुकी कानून है तो वो उसके खिलाफ कुछ कर सकती है। बाकि मजाक करना तो हमको भी खूब आता है । <br /><br /> anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-59545881375514419902013-03-22T12:06:42.368+05:302013-03-22T12:06:42.368+05:30http://indianhomemaker.wordpress.com/2013/03/21/wh...http://indianhomemaker.wordpress.com/2013/03/21/why-did-sharad-yadav-say-who-amongst-us-has-not-followed-girls/रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-36991971650039751732013-03-22T12:02:16.768+05:302013-03-22T12:02:16.768+05:30 स्माइली तो बोनस है
what is smiliy ?? its an emoti... स्माइली तो बोनस है<br />what is smiliy ?? its an emotion shown on line to make the other person understand that we are smiling <br /><br />what are the conditions in which a person smiles <br />and when a person smiles during a serious discussion its either to ridicule the other person , or its simply that the person is unable to understand the gravity of the discussion and since he cant do any thing he just keeps smiling <br /><br />there is no logic of putting a smiley after every comment <br />i take it as insult something like when a lewd comment is passed against a woman and she gets irritated the person who passed the lewd comment just gives a lecherous smile to show his superiority <br /><br />I WOULD REQUEST YOU TO PLEASE UNDERSTAND THE CONCEPT OF PUTTING SMILEY रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-3508203345418413302013-03-22T11:55:23.445+05:302013-03-22T11:55:23.445+05:30Meaning of stalking , ogling , voyeurism are all w...Meaning of stalking , ogling , voyeurism are all well defined in IPC we dont need to redifine them just because they are now PUNISHABLE OFFENCE <br /><br />please understand one thing hindi bloggers like you dilute the issue by giving hindi translations . why dont you go and see wiki for exact english translations <br /><br />रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-33768733147759223142013-03-22T11:49:07.530+05:302013-03-22T11:49:07.530+05:30Mr Praveen
I am not discussing any any personal e...Mr Praveen <br />I am not discussing any any personal experience . Its not any more about being correct or not correct . Its about making a law where <br />stalking has been made a punishable offence रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com