नारी की आवाज को वजन देने के लिए ही यह ब्लॉग बनाया गया था तो इस बार भी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कुछ अलग करने की सोच कर चला है ये नारी ब्लॉग का काफिला -- साल में सिर्फ एक दिन ही क्यों दिया गया उसको? क्योंकि उसके लिए कोई अलग से दिन था ही कहाँ? वह तो घर के बोझ को अपने दायरे में रहकर ढोने वाली और उसको चलाने के लिए बनायीं गयी एक सदस्य थी . कहने को तो वह सृष्टि को आगे ले जाने वाली है और लेकिन तब उसका एक वही दायित्व बना दिया गया था . कालांतर में वह घर से बाहर निकलने लगी और पुरुष को सहारा देने के लिए काम भी करने लगी . उसका दायरा बढ़ गया और जिम्मेदारियां भी लेकिन अधिकार के नाम पर वह बहुत आगे न बढ़ पायी , तब यूरोपियन देशों में पहली बार महिला दिवस को आरम्भ किया गया . तब ये कामकाजी महिलाओं के लिए रखा गया था और इसका नाम भी ' इंटरनेशनल वर्किंग वीमेन डे ' ही रखा गया था और इसको पहली बार १८ मार्च १९११ मनाया गया था . फिर कालांतर में इसको महिला दिवस का नाम दिया गया और इसकी पहल हुई सोवियत रूस में ८ मार्च १९१७ से यह महिला दिवस के रूप में में मनाया जाने लगा.
बल्कि सच बात तो यह है कि इस दिवस के बारे में मैंने भी ( जिसमें विभिन्न पत्र और पत्रिकाओं के बीच ही आँखें खोली थी .) तब जाना जब कि कंप्यूटर के संपर्क में आयी . फिर विश्व में आधी आबादी का कितना प्रतिशत इस बात से वाकिफ होगा नहीं जानती हूँ . हाँ संचार के साधनों के बढ़ने से इसका दायरा बढ़ गया है लेकिन इस दिन महिलाओं के लिए क्या किया जाता है ये तो हम नहीं जानते हैं? क्योंकि न इस दिन कामकाजी या घरेलू महिलाओं को छुट्टी मिलती है और न ही उनको किसी भी रूप में सम्मानित किया जाता है. इस जगह विश्व की चंद गिनी चुनी महिलाओं की बात मैं नहीं कर रही हूँ .
चंद अँगुलियों पर गिनी जाने वाली महिलायें एक आदर्श बन चुकी हैं, वे अपने क्षेत्र की आइकॉन हैं . हम उन्हीं को देख कर नारी सशक्तिकरण की बात करने लगे है। इसमें कोई शक नहीं है कि नारी अब घर से बाहर निकल कर पुरुषों के कंधे से कन्धा मिलाकर काम कर रही है , वह घर , नौकरी , बच्चे और अगर हैं तो घर के बुजुर्गों की जिम्मेदारी भी निभा रही है . वह मशीन बन चुकी है - ये वर्ग है मध्यम वर्गीय वर्ग - जिसकी महिलायें आज के समय में बच्चों के भविष्य को देखते हुए नौकरी भी कर रही हैं लेकिन वे कैसे इसको प्रबंधित कर रही हैं इसको सिर्फ और सिर्फ वह ही जानती है . इस महिला दिवस से हम कुछ ऐसे ही महिलाओं के जीवन पर दृष्टि डालेंगे जो कैसे अपने जीवन को इतने सारे दायित्वों के साथ जी रही हैं . कैसे कैसे वह इनसे जूझ रही है और फिर निकल रही है. किसी का सफर पूरा हो चुका है और वे अब चैन की सांस ले रही हैं और कुछ अभी चल रही हैं इसी मार्ग पर. वैसे आज की पीढी के पुरुष बहुत सहयोगी हो रहे हैं , उनकी सोच में परिवर्तन आ रहा है और वे नारी के हर काम में उनका हाथ बंटाने लगे हैं . एक सार्थक परिवर्तन है लेकिन ये भी कितने प्रतिशत है इसको भी देखेंगे . अभी तो हमारे समाज की मानसिकता इस तरह से है कि वह तो बनी है इन सब के लिए है. बल्कि सच कहू नारी भी अपनी सोच बदलने ई आवश्यकता है नारी के प्रति बदलने की . हम पूरी तरह से इसके लिए पुरुष को ही दोषी ठहरा सकते है . आगे आने वाले हमारे अध्ययन और विश्लेषण इस बात को सिद्ध करने में सहायक होंगे .
.
विचारणीय
ReplyDeleteगुज़ारिश : ''महिला दिवस पर एक गुज़ारिश ''
happy women's day all friends..
ReplyDeleteभले महिला दिवस एक दिन मनाया जा रहा हो किन्तु उन्हें आगे ले जाने का काम रोज किया जा रहा है और ये युही रोज होता रहेगा थोडा थोडा ही सही ।
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (9-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!
महिलाएं सचेत हो जायें तो दिन मनाना भी सार्थक हो!
ReplyDelete