अगर भारत में शादी एक परिवार से होती हैं तो जब डाइवोर्स होता हैं तो पूरी सम्पत्ति का बटवारा क्यूँ नहीं होता हैं तब केवल पति की संपत्ति पर ही पत्नी का अधिकार क्यूँ माना जाता हैं या माना जाना चाहिये ?
अगर शादी दो लोगो की मर्ज़ी का गठबंधन हैं तो फिर एक व्यक्ति अगर डाइवोर्स चाहता हैं तो उसको क्यूँ नहीं मिल सकता ?
जब से संसद ने भारतीये विवाह कानून में बदलाव को मंजूरी दी हैं कुछ इसी प्रकार के सवाल न्यूज़ पेपर में पढने को मिल रहे हैं .
बदलाव का बिल अगर कानून की शकल में आ जाता हैं तो "कोई ऐसी वजह , जिसके कारण शादी नहीं निभ रही हैं यानी’ ‘Irretrievable breakdown of marriage
को ध्यान मे रखते हुए कोर्ट सम्पत्ति का बटवारा का आदेश दे सकता हैं .
इस कानून के आने से हमारे समाज में कुछ बदलाव जरुर आ सकते हैं
सबसे पहला बदलाव होगा मानसिक रूप से बेटे के माँ पिता अपनी संपत्ति का वारिस बेटे को नहीं बनायेगे अन्यथा सम्पत्ति के बटवारा होते समय बहु का पूरी संपत्ति पर "बटवारा अधिकार " हो सकता हैं .
इस कानून के आ जाने से हो सकता हैं समाज में बेटी की स्थिति मे भी अंतर आये क्युकी अगर बेटा और बेटी समान होगे , उनके अधिकार समान होगे तो सम्पत्ति पर वारिस का हक़ भी समान होगा .
अभी जब परिवार शादी के लिये बात करते हैं तो सबसे पहले लड़की के माँ पिता ये देखते हैं की लडके के पास घर हैं या नहीं , उसकी नौकरी कैसी हैं , उस पर घर परिवार की कितनी जिम्मेदारी हैं ? बहुत से परिवारों में कम आय या अपना और अपने परिवार का निर्वाह कर करने में असमर्थ यानी कम आय और बिना आय वाले लडको की शादी महज इस लिये होती हैं क्युकी लड़की के माता पिता ये देख लेते हैं की लडके के पिता का घर हैं और पिता घर चला रहे हैं . लड़की अपने दहेज़ के सामान से काम चला सकती हैं [ क्युकी लड़की की शादी करना अनिवार्य हैं इस लिये शादी जरुरी हैं किस से हो रही हैं ये जरुरी नहीं हैं } . इस कानून के आने से इस सोच में भी बदलाव आयेगा क्युकी अगर लडके को वारिस बनाना बंद होगया तो ऐसी शादियों में कमी होगी .
इस के अलावा अभी जो विदेशो में होता हैं यानी contract शादी का यानी जिसमे वकील की मौजूदगी में एक करार किया जाता हैं की शादी के बाद डाइवोर्स की स्थिति में किसको क्या मिलेगा , शायद लडके वाले अब खुद इस बात पर जोर देगे .
अभी तक "दहेज़ " केवल लड़की वाले देते थे और इस लिये लडकियां उनको बोझ लगती थी क्युकी उनको अपनी कन्या का दान करना होता था अब इस कानून के बाद बहुत संभव हैं इस स्थिति में भी सुधार हो और लड़की वाले जागे और अपनी लड़की के आर्थिक संरक्षण की सोचे ना की दहेज़ दे कर लड़की को दान करने की .
पहले के समय में नारी शिक्षित नहीं थी , उसकी शिक्षा से उसमे बदलाव आया हैं , उसकी शिक्षा ने उसको समझाया हैं की गलत का प्रतिकार करो फिर चाहे वो गलत विवाह ही क्यूँ ना हो .
प्रश्न अभी केवल कानून बनाने का नहीं प्रश्न हैं मानसिकता बदलने का जहां हम डाइवोर्स जैसे विषय पर खुल कर बहस और बातचीत कर सके .
शादी का महातम ना डाइवोर्स से कम होगा ना बढ़ेगा हाँ इस डर से की अगर डाइवोर्स होता हैं तो उसमे पति की संपत्ति पर पत्नी का अधिकार होगा जिसमे पैत्रिक संपत्ति भी होगी शायद विवाहित महिला ख़ास कर वो जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं का शोषण होना कम हो जाए
जुल्म पहला हो या सौवा क्यूँ सहना ??? सहने वाला , सह कर खुद ही जुल्म का हिस्सा बनता हैं . विद्रोह समाज से नहीं सबसे पहले उस कंडिशनिंग से करना होता जो ये समाज करता हैं
सास की कंडिशनिंग की बहु उसकी प्रतिद्वंदी हैं
नन्द की कंडिशनिंग भाभी के आते ही सब बदल जाएगा
पति की कंडिशनिंग पत्नी शरीर मात्र हैं उसके ऊपर का दिमाग "दिखाए " तो पत्नी नहीं पति पर तनी होती हैं सो सबसे पहले उस दिमाग को कुंद कर दो
और
बहु/भाभी / पत्नी की कंडिशनिंग की अगर मे बोली तो निकाल दे गे , फिर कहां जाउंगी अब यही मेरी ससुराल है , माँ के घर सच नहीं बता सकना और भी ना जाने क्या क्या
अगर सौ जुल्म सह लिये तो महाभारत तो अपने घर में खुद ही "जी " ली , उसके बाद जीने को जीवन शेष नहीं रहता हैं हां सांसे चलती हैं
महज अपना जीवन ख़तम करके टिकठी पर लाल बिंदी लगा कर शादी का जोड़ा पहन कर पति के / पुत्र के कंधे पर चिता तक जाना और समाज में "सुरक्षित और खुश एंड मोस्ट इम्पोर्टेंट अच्छा होने का प्रमाण पत्र" पाना जिन्दगी शायद इस कानून के बाद नारी की ना रहे
इस कानून से शायद लड़कियों की उस बेचारगी में कमी आये जहां वो अपने को हमेशा लाचार और अबला कहती दिखती हैं . शायद महिला कथाकारों के पास कुछ नये विषय हो नयी कहानी लिखने के लिये जिनमे हमेशा बहु को अत्याचार सहते हुए दिखाया जाता हैं .
All post are covered under copy right law . Any one who wants to use the content has to take permission of the author before reproducing the post in full or part in blog medium or print medium .Indian Copyright Rules
अगर शादी दो लोगो की मर्ज़ी का गठबंधन हैं तो फिर एक व्यक्ति अगर डाइवोर्स चाहता हैं तो उसको क्यूँ नहीं मिल सकता ?
जब से संसद ने भारतीये विवाह कानून में बदलाव को मंजूरी दी हैं कुछ इसी प्रकार के सवाल न्यूज़ पेपर में पढने को मिल रहे हैं .
बदलाव का बिल अगर कानून की शकल में आ जाता हैं तो "कोई ऐसी वजह , जिसके कारण शादी नहीं निभ रही हैं यानी’ ‘Irretrievable breakdown of marriage
को ध्यान मे रखते हुए कोर्ट सम्पत्ति का बटवारा का आदेश दे सकता हैं .
इस कानून के आने से हमारे समाज में कुछ बदलाव जरुर आ सकते हैं
सबसे पहला बदलाव होगा मानसिक रूप से बेटे के माँ पिता अपनी संपत्ति का वारिस बेटे को नहीं बनायेगे अन्यथा सम्पत्ति के बटवारा होते समय बहु का पूरी संपत्ति पर "बटवारा अधिकार " हो सकता हैं .
इस कानून के आ जाने से हो सकता हैं समाज में बेटी की स्थिति मे भी अंतर आये क्युकी अगर बेटा और बेटी समान होगे , उनके अधिकार समान होगे तो सम्पत्ति पर वारिस का हक़ भी समान होगा .
अभी जब परिवार शादी के लिये बात करते हैं तो सबसे पहले लड़की के माँ पिता ये देखते हैं की लडके के पास घर हैं या नहीं , उसकी नौकरी कैसी हैं , उस पर घर परिवार की कितनी जिम्मेदारी हैं ? बहुत से परिवारों में कम आय या अपना और अपने परिवार का निर्वाह कर करने में असमर्थ यानी कम आय और बिना आय वाले लडको की शादी महज इस लिये होती हैं क्युकी लड़की के माता पिता ये देख लेते हैं की लडके के पिता का घर हैं और पिता घर चला रहे हैं . लड़की अपने दहेज़ के सामान से काम चला सकती हैं [ क्युकी लड़की की शादी करना अनिवार्य हैं इस लिये शादी जरुरी हैं किस से हो रही हैं ये जरुरी नहीं हैं } . इस कानून के आने से इस सोच में भी बदलाव आयेगा क्युकी अगर लडके को वारिस बनाना बंद होगया तो ऐसी शादियों में कमी होगी .
इस के अलावा अभी जो विदेशो में होता हैं यानी contract शादी का यानी जिसमे वकील की मौजूदगी में एक करार किया जाता हैं की शादी के बाद डाइवोर्स की स्थिति में किसको क्या मिलेगा , शायद लडके वाले अब खुद इस बात पर जोर देगे .
अभी तक "दहेज़ " केवल लड़की वाले देते थे और इस लिये लडकियां उनको बोझ लगती थी क्युकी उनको अपनी कन्या का दान करना होता था अब इस कानून के बाद बहुत संभव हैं इस स्थिति में भी सुधार हो और लड़की वाले जागे और अपनी लड़की के आर्थिक संरक्षण की सोचे ना की दहेज़ दे कर लड़की को दान करने की .
पहले के समय में नारी शिक्षित नहीं थी , उसकी शिक्षा से उसमे बदलाव आया हैं , उसकी शिक्षा ने उसको समझाया हैं की गलत का प्रतिकार करो फिर चाहे वो गलत विवाह ही क्यूँ ना हो .
प्रश्न अभी केवल कानून बनाने का नहीं प्रश्न हैं मानसिकता बदलने का जहां हम डाइवोर्स जैसे विषय पर खुल कर बहस और बातचीत कर सके .
शादी का महातम ना डाइवोर्स से कम होगा ना बढ़ेगा हाँ इस डर से की अगर डाइवोर्स होता हैं तो उसमे पति की संपत्ति पर पत्नी का अधिकार होगा जिसमे पैत्रिक संपत्ति भी होगी शायद विवाहित महिला ख़ास कर वो जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं का शोषण होना कम हो जाए
जुल्म पहला हो या सौवा क्यूँ सहना ??? सहने वाला , सह कर खुद ही जुल्म का हिस्सा बनता हैं . विद्रोह समाज से नहीं सबसे पहले उस कंडिशनिंग से करना होता जो ये समाज करता हैं
सास की कंडिशनिंग की बहु उसकी प्रतिद्वंदी हैं
नन्द की कंडिशनिंग भाभी के आते ही सब बदल जाएगा
पति की कंडिशनिंग पत्नी शरीर मात्र हैं उसके ऊपर का दिमाग "दिखाए " तो पत्नी नहीं पति पर तनी होती हैं सो सबसे पहले उस दिमाग को कुंद कर दो
और
बहु/भाभी / पत्नी की कंडिशनिंग की अगर मे बोली तो निकाल दे गे , फिर कहां जाउंगी अब यही मेरी ससुराल है , माँ के घर सच नहीं बता सकना और भी ना जाने क्या क्या
अगर सौ जुल्म सह लिये तो महाभारत तो अपने घर में खुद ही "जी " ली , उसके बाद जीने को जीवन शेष नहीं रहता हैं हां सांसे चलती हैं
महज अपना जीवन ख़तम करके टिकठी पर लाल बिंदी लगा कर शादी का जोड़ा पहन कर पति के / पुत्र के कंधे पर चिता तक जाना और समाज में "सुरक्षित और खुश एंड मोस्ट इम्पोर्टेंट अच्छा होने का प्रमाण पत्र" पाना जिन्दगी शायद इस कानून के बाद नारी की ना रहे
इस कानून से शायद लड़कियों की उस बेचारगी में कमी आये जहां वो अपने को हमेशा लाचार और अबला कहती दिखती हैं . शायद महिला कथाकारों के पास कुछ नये विषय हो नयी कहानी लिखने के लिये जिनमे हमेशा बहु को अत्याचार सहते हुए दिखाया जाता हैं .
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