सब मानते हैं की नारी का दर्जा समाज में दोयम हैं .
क्यूँ हैं के प्रश्न पर तर्क दिया जाता हैं की वो विवश हैं ,
वो कमजोर हैं और
वो अबला हैं .
क्या आप को लगता हैं केवल यही कारण हैं नारी को दोयम का दर्जा दिया जाने का .
लोग कहते हैं लड़कियों की शादी उनके माँ पिता करते हैं इस लिये माँ पिता को कटघरे में लाओ क्युकी अपनी बेटियों की असमय शादी करने के जिम्मेदार वो हैं . वो अपनी बेटियों को अवसर नहीं देते की वो आर्थिक रूप से सक्षम हो सके .
क्या ये सही हैं ?
१२ वी की परीक्षा के परिणाम देखे तो पता चलता हैं की लड़कियों ने हमेशा बेहतर रिजल्ट दिया हैं और इस बार तो आ ई आ ई टी मे भी लडकिया बहुत गयी हैं फिर अवसर की बात कहा हैं .
बहुधा जो लडकिया खुद अपने पेरो पर खडी नहीं होना चाहती और आसान रास्ता चाहती हैं वो अपने माँ पिता के संरक्षण से अपने पति के संरक्षण मे जाने को सबसे ज्यादा उत्सुक होती हैं .
एक घटना बताती हूँ
अभी बुक फेयर मे एक महिला की किताब का विमोचन था . महिला रिश्ते में मेरी बहिन सामान हैं और क्युकी मेरी माँ उनकी गुरु हैं और माँ अस्वस्थ थी तो उनकी जगह मुझे विमोचन में जाना था .
वो महिला अपनी ही पुस्तक के विमोचन में दे से आयी . कारण पहले उन्होने अपने पति का इंतज़ार किया की वो अपनी बड़ी गाडी एस यू वी ले आये , फिर वो अपनी सास को लेने गयी . उसके बाद प्रगति मैदान पहुच कर पार्किंग नहीं मिली तो पति को गाडी में छोड़ कर वो उनकी सास और उनके बच्चे स्टाल तक पहुचे . इस बीच में वो प्रसाधन कक्ष मे गयी और उन्होने मेकप किया और कपड़े बदले . इतना सब करके जब वो विमोचन के लिये पहुची तो विमोचन हो चुका था .
ख़ैर वहाँ उनकी सहेली भी थी . सब कहने लगी चलो चलो अब जीजा से ५ स्टार में डिनर लेते हैं . सब मिला कर १२ लोग थे .
सास की वजह से प्रोग्राम नहीं बना और मुझे ले कर वो अपने साथ अपनी कार से वापस चल दी . उनके पति ने एक बार भी नहीं पूछा , किताब कहां हैं ??
दो दिन बाद वो घर आयी और बोली पति ने कहा हैं की घर में रद्दी मत रखो और सारी किताबे हटाओ . ऐसा उनके साथ बहुत बार हुआ हैं . दस साल से मे उन्हे रोते ही देखती हूँ पर कोई निर्णय वो नहीं लेना चाहती
उस दिन मेने कहा जब आप के पति को ये सब पसंद नहीं हैं तो आप उस दिन अपनी मित्रो को ५ स्टार कैसे ले जाती . कम से कम २५००० तो जरुर खर्च होता . बोली वो तो पति करते . मेरे इस प्रश्न पर की जो पैसा आप ने कमाया ही नहीं उसको इतने अधिकार से आप कैसे खर्च करने को कह सकती हैं . वो मौन रही और फिर बोली अब शादी के यही सुख हैं , इसी सब के लिये तो इतना सहती हूँ .
उनकी लड़की जो २१ साल की बोली मौसी मे तो इनलोगों के झगड़ो के इतना तंग हूँ की सोचती हूँ जितनी जल्दी मेरी शादी हो जाए मे यहाँ से चली जायुं और मै ये भी चाहती हूँ की मेरे पति का इन लोगो से कम से कम संपर्क रहे . उनकी लड़की डेंटिस्ट का कोर्स कर रही हैं .
अपनी लड़की को वो कहती हैं की क्लिनिक नहीं बनवायेगी क्युकी शादी में खर्च करना हैं और डबल खर्चा क्यूँ करना .
अपने लिये अपने पति से १० लाख के हीरे के कंगन शौक से बनवा लेती हैं , २५ हजार में किताब छपवा लेती हैं ये कह कर की किटी का पैसा हैं { अब बिना नौकरी के किटी के लिये पैसा शायद पति की कमायी से ही होगा } लेकिन पति से आग्रह कर के अपनी किताबे घर में रखवा सके इस में वो अक्षम हैं , रो सकती हैं , भरपाई में एक जेवर और ले सकती हैं पर अपनी बात के लिये और अपने आत्म सम्मान के लिये कुछ करने में वो "अबला " हो जाती हैं .
लोग कहते बच्चो के लिये नारी सहन करती हैं पर यहाँ तो लड़की खुद कह रही हैं की घर की बातो से दुखी हैं फिर सेहन शीलता का क्या काम और मकसद .
जानती हूँ विचार गड्ड मड्ड हैं पर विचार हैं .
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आप के विचार गड्ड मड्ड क्यों हैं? समाज शासकवर्ग की विचारधारा जीता है। शासकवर्ग की विचारधारा पुरुषप्रधानता की है। उसी विचारधारा को स्त्रियाँ जीती हैं। आप की विचारधारा स्त्री-पुरुष समानता की है वह शासकवर्ग की विरोधीविचारधारा है। उसे स्थापित करने के लिए बहुत लंबे संघर्ष करने होंगे। लेकिन भौतिक परिस्थितियाँ समानता के विचार के लिए अनुकूल हैं। शासकवर्ग भी खुल कर उस का विरोध नहीं कर पाता। उस पर आधारित कानून बनने से नहीं रोक पाता। लेकिन अंदर ही अंदर अपनी विचारधारा का प्रभुत्व कायम रखना चाहता है उस के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है। समानता के विचार के पक्षधरों को एकजुट भी होना होगा और लगातार संघर्षरत भी रहना होगा। विचार के स्तर पर समानता का विचार विजयी विचार है। बस उसे धरातलीय वास्तविकता बनाना है।
ReplyDeletedinesh ji , main aapse sahmat hoon . ye sochna jaruri hai
Deleteपचास प्रतिशत से ज्यादा स्त्रियाँ अपना आत्म-सम्मान त्यागकर ही जी रही हैं। शर्म आती है इनके स्त्री होने पर। गाय-भेंड की तरह जहाँ चाहे हांक दो।
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा मुददा उठाया है।
ReplyDeleteआज की तरक्कीपसंद दुनिया में भी औरत को बेचा और ख़रीदा जाता है।
उसे दिल बहलाने का खिलौना माना जाता है।
इस मुददे पर अनेक पोस्ट्स
ब्लॉगर्स मीट वीकली 40 में
http://hbfint.blogspot.in/2012/04/40-last-sermon.html
आपके विचारों का स्वागत है
कल रात फिल्म द बैंडिट क्वीन देख रहा था.. काफी समय के बाद दुबारा देखी फिल्म.. सच्ची कहानी है इसलिए उदाहरण दे सकता हूँ.. आपने जिस समाज की बात कही है वो दोगला समाज है.. यानि खुद को एडवांस भी दिखाते हैं और अंदर से वही मिडल क्लास मानसिकता.. इन सारी समस्याओं की जड़ में बस यही समस्या है.. बिलकुल नीचले तबके में देखें तो फूलन के साथ किये गए अन्याय का बदला उसने बड़ी निडरता से लिया चाहे उसके साथ बलात्कार करने वाला उसका पति हो या बलात्कारी समाज..
ReplyDeleteया फिर बिलकुल हाई सोसाइटी में यह संभव है जहाँ आर्थिक स्वतन्त्रता है औरतों को.. नहीं तो यह बगावत संभव नहीं.. मिडल क्लास की औरतों के लिए अभी बहुत कुछ अंदर से बदले जाने की ज़रूरत है.. पढाई अच्छा करती हैं, मगर आगे पढाई रोक देने पर वो कहाँ से लाएंगी पढाई जारी रखने का सामर्थ्य?? डेंटिस्ट लड़की ने माँ-बाप से क्यों पैसे मांगे.. बैंक से क़र्ज़ मिल सकता है अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए!! किसी का एहसान लेने की ज़रूरत नहीं.. इसलिए अगर माँ-बाप ने नहीं दिया तो उनको अपने पैरों पर खड़े होकर दिखाना चाहिए.. एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए..
जिस पति को कविताओं में रूचि नहीं उन्हें क्यों कविता की पुस्तकें दिखाना या बेमन से क्यों बुलाना समारोह में.. टैक्सी लेकर भी समय पर आ सकती थीं.. मेरे ब्लॉग में मेरी पत्नी को रूचि नहीं है तो मैं ज़बरदस्ती उनको नहीं पढ़ने को कह सकता, न पढकर सुना सकता हूँ!! अब अगर मैं कहूँ कि मेरे लेखों के लिए कोई सम्मान नहीं है मेरी पत्नी की नज़र में.. तो ये मेरी गलत एक्सपेक्टेशन का नतीजा है!!
शिल्पा जी की पोसट पर आपके विचार पढे जो संविधान विषयक थे.
ReplyDeleteसटीक चिंतन के लिए आभार प्रकट करने हेतु इधर आया तो यहां भी आपका उत्कृष्ट चिंतन सामने आया.
बारंबार धन्यवाद .
सलिल जी
ReplyDeleteपति को पुस्तकों मे ही रूचि नहीं हैं और वो पुस्तकों को कबाड़ कहते हैं , इनकी शादी को २८ वर्ष हो चुके , अब जो बात शादी से पहले जान लेना जरुरी था की पति की पसंद और इनकी पसंद के अंतर उसको इन्होने नज़र अंदाजा किया क्युकी शादी करना जरुरी था . फिर लगातार पति के हिसाब से चल रही हैं क्युकी खुद कुछ करने के लिये संघर्ष चाहिये जो पति की बात मान लेने से कम होता हैं .
नारी की कंडिशनिंग कहती हैं की एक की बात सुन लो यानी पति की अगर नौकरी करोगी तो दस की सुननी होगी !!!!
जब खुद ही चुनी हो राह, तो फिर शिकायत करके लोगों की सिम्पथी बटोरते हैं ऐसे लोग (मर्द और औरत दोनों)... बिटिया को अभी भी बाहर आना चाहिए इस कंडीशनिंग के जाल से.. मुश्किल भी नहीं है, बस मज़बूत इच्छाशक्ति चाहिए..!! हाँ, दो नावों की सवारी दुर्घटना को जन्म देती है!!
Deleteaaj bahut badhiya likha apne . ye ek aisi baat hai . jis par soch jaruri hai
ReplyDeletevidambana
ReplyDeleteसुख और दुख दोनों के अपने अपने गुणा भाग हैं।
ReplyDeleteजिस पर जो राज़ी है, उसी पर वह जी रहा है।
जिन्होंने बग़ावत कर दी है वे भी कहां पहुंची ?
कहीं न कहीं आकर उन्हें भी समझौता करना पड़ता है।
अपनी ज़िंदगी को आसान करने के लिए हरेक समझौता करके ही जी रहा है।
ख्वाहिशों की तकमील और इंसाफ़ महज़ किताबी अल्फ़ाज़ हैं।
हक़ीक़त एक समझौता है हालात से।
sachmuch shadi ke yahi sukh hae phir bhi pati men beesion dosh hae,
ReplyDeleteEK TATHYA PARAK AALEKH
आप में से अगर कोई भी ये सोच रहा हैं की ये पोस्ट महिला के विरुद्ध हैं तो दुबारा सोचे , क्युकी अपने को सुधारने की जरुरत महिला को हैं इस लिये उनको खुद की गलती का आकलन करना चाहिये और अपने को सक्षम बनाना चाहिये . सदियों से अबला का टैग लेकर मजबूर रही हैं तो वो टैग उनको खुद उतारना होगा अपना रास्ता खुद साफ़ करना होगा , अपने कांटे खुद निकालने होगे
ReplyDeleteआगे बढ़ने के लिए आत्मालोचना जरूरी है। कमजोरियों पर विजय प्राप्त कर के ही सैनिक मजबूत होते हैं।
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