देश आज स्वतंत्रता दिवस मना रहा हैं । सबको बधाई ।
आज़ादी जो किसी का भी जन्म सिद्ध अधिकार होता हैं जब छिन्न जाती हैं तो बहुत घुटन होती हैं और ये घुटन मानसिक ज्यादा होती हैं । इस घुटन से मुक्ति पाने के लिये सब जुट जाते हैं कभी एक जुट होकर तो कभी व्यक्तिगत रूप से और आज़ादी को अर्जित कर ही लेते हैं ।
मेरे ब्लॉग की टैग लाइन हैं नारी - जिसने घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित की ।
नारी इस विषय पर कुछ बात करनी हो , कुछ पूछना हो , कुछ लिखना हो तो समाज की सोच को ध्यान में रखने को कहा जाता हैं यानी वही लिखना चाहिये जो समाज पढना चाहता हैं । आप का अपना नज़रिया , आप की अपनी सोच आप की अपनी जरुरत का क़ोई महत्व हैं ही नहीं क्युकी आप नारी हैं और आप को ये अधिकार हैं ही नहीं की आप सोच सके और आप ना केवल सोच रही हैं अपितु बोल भी रही हैं , तर्क भी कर रही हैं ।
यहाँ से विभाजन / वर्गीकरण/Segmentation शुरू होता हैं "नारी" का ।
नारी
भारतीये नारी / पश्चिमी नारी
मिडल क्लास / हाई सोसाइटी
शादीशुदा नारी / कुंवारी नारी
कुंवारी नारी / परित्यक्ता नारी
शादीशुदा नारी / तलाकशुदा नारी
बीवी / दूसरी औरत
माँ / बिना बच्चो वाली
माँ / बाँझ
स्तन पान करने वाली / नहीं कराने वाली
साडी पहने वाली / नहीं पहनने वाली
गृहणी / नौकरी करती गृहणी
सास / बहू
नन्द / भाभी
माँ / बेटी
यानी किसी भी समस्या पर बात करनी हो पहले आप को तैयार रहना होता हैं इस विभाजन में बंटने के लिये । इस लिस्ट को समाज अपने अनुसार घटा बढ़ा लेता हैं और
हर बार मुद्दा जो " नर - नारी " समानता और स्वतंत्रता का हैं वो ख़तम हो जाता हैं । वो स्वतंत्रता वो समानता जो कानून और हमारा संविधान हमे देता हैं । और जिसका हनन हर वर्ग में होता हैं ।
ये सब लोग रियल दुनिया से लेकर आभासी दुनिया तक में करते हैं । मुद्दे को भटका कर बात ही नहीं होने देते ।
हर मुद्दे को घुमा कर "नारी " को किसी ना किसी तरह "नर " की और ही मोड़ दिया जाता हैं और उसको अहसास दिलाया जाता हैं की वो स्वतंत्र तो हैं पर सुरक्षित तभी हैं जब वो किसी की माँ , बहिन या पत्नी हैं । इसके इतर ना तो नारी का क़ोई भूत हैं ना वर्तमान और ना भविष्य । अगर उसको समाज में रहना हैं तो नर की कुछ ना कुछ बन कर ही रहना होगा तभी समाज की स्वीकृति की वो हकदार होगी ।
पुरुष को अपनी सुरक्षा का जिम्मा जो नारी दे देती हैं वही समाज में सुरक्षित हैं । समाज उसको , उसके काम को स्वीकार तो करता हैं पर "बराबरी का दर्जा " कभी उसको भी नहीं देता । हाँ समाज उनके जरिये उन सब नारियों को भी सबक सिखाता हैं जो बराबरी के दर्जे की बात करती हैं । हथियार की तरह इस्तमाल करता है समाज एक नारी को दूसरी के खिलाफ , विभाजन करता हैं समाज नारी - नारी में { ऊपर लिस्ट हैं } । लेकिन हर विभाजन के बाद वही समाज कहता हैं नारी ही नारी की दुश्मन हैं ।
नारी के विभाजन की प्रक्रिया से जो स्थिति उत्पन्न होती हैं महिला के लिये वही कंडिशनिंग का कारण हैं ।
आप जब भी कहीं दो स्त्रियों में दुराव देखे तो विभाजन वाली लिस्ट पर ध्यान दे आप को खुद समझ आ जाएगा इस के लिये कंडिशनिंग कितनी जिम्मेदार हैं ।
नारी को कंडीशन करके ,
उसको सामाजिक सुरक्षा का भय दिखा कर उसको ही हथियार बना दिया जाता हैं
और
समानता और स्वतंत्रता की बात यानी नर नारी दोनों को बराबर अधिकार हैं का मुद्दा हमेशा रास्ता भटका दिया जाता हैं ।
नारी जब तक इस कंडिशनिंग को नहीं तोड़ेगी
तब तक वो हमेशा इस भ्रम में जियेगी की उसकी सामाजिक सुरक्षा की जिम्मेदारी पुरुष की हैं कानून और संविधान की नहीं । तब तक वो मानसिक रूप से कभी स्वतंत्र होगी ही नहीं ।
नारी के सम्बन्ध में स्वतंत्र शब्द आते हैं पर्याय वाची शब्दों की भरमार हो जाती हैं जैसे स्वच्छंद, निरंकुश, प्रगतिशील , नारीवादी ,फेमिनिस्ट और भी ना जाने क्या क्या ।
ब्लॉग जगत में में वेश्या तक कह दिया गया इस मुद्दे पर बात करने वालो को ।
इन शब्दों से बचने का आसान तरीका हैं पुरुष की सुरक्षा {क्युकी नारी का उद्धार करना पुरुष कर्तव्यों में गिना जाता हैं } और अपनी कंडिशनिंग के तहत बहुत सी नारियां इसके लिये सहर्ष तैयार होती हैं .
कंडिशनिंग नारी को " एक सामाजिक छवि" में कैद कर देती हैं और इस वजह से नारी केवल वही कहती और करती हैं जो उसको "स्वीकार्य " की परिधि में लाता हो "बराबरी " पर नहीं ।
इस कंडिशनिंग के क्या परिणाम हमारे समाज ने खुद भोगे हैं इस ब्लॉग पर इस पर अब विस्तार से मेरा view यानी नज़रिया पढने को मिलेगा और नारी स्वतंत्रता का सफ़र निरंतर जारी रहेगा । नर नारी , बेटा बेटी , पति पत्नी , भाई बहिन और हर वो सम्बन्ध जहां विपरीत लिंग एक दूसरे से जुड़े हैं वो जुड़े होने के बाद भी अपने आप में एक स्वतंत्र इकाई हैं और उनके सामाजिक और क़ानूनी अधिकार बिलकुल बराबर हैं फिर भी नारी को कंडीशन किया जाता रहा हैं दोयम का दर्जा स्वीकार करने के लिये । उसको मानसिक रूप से मजबूर किया जाता हैं की वो समाज में सुरक्षा की बात करे समानता की नहीं ।
नारी ब्लॉग पर पिछले ३ सालो में बहुत सी समस्या पर बात हुई हैं उन पर मेरी व्यक्तिगत अनालिसिस को पढने के इच्छुक पढ़ कर अपनी राय जोड़ सकते हैं । टिपण्णी में आप अपना नज़रिया जोड़ सकते । बस मुद्दे को भटकाने की बात न करे ।
- अगर मुद्दा बलात्कार का हैं तो स्त्री के कपड़े उसका कारण हैं ये कह कर स्त्रियों के ऊपर ही उनके प्रति हुए इस अत्याचार के लिये उनको ही दोषी ना बनादे ।
- कन्या भुंण ह्त्या में ये ना कहे दादी को पोता चाहिये ,
- बहू के जलाये जाने पर ये ना कहे सास ने उकसाया था ।
मै नर - नारी समानता की पक्षधर हूँ और रहूंगी । मुझे कानून और संविधान की बात मानना , समाज की कंडिशनिंग मानने से ज्यादा अच्छा और सुविधाजनक लगता हैं । मुझे लगता हैं की सदियों से जिन कुरीतियों की वजह से बहन , बेटी , बहू जलायी जाती हैं , लड़कियों को कोख में मारा जाता हैं , घर में रह कर जो महिला घुटन पाती हैं और भी बहुत कुछ उन सब कुरीतिओं से आंखे मूंद लेने से कुछ नहीं होगा ।
एक बार ये मानना होगा की समस्या हैं । नारी को लेकर समाज का नजरिया दोयम का हैं । जब तक आप जान कर भी इस समस्या को समस्या नहीं मानेगे इस बार ना तो खुल कर बात होगी और ना कभी इस को दूर करने का प्रयास होगा ।
ReplyDeleteबहुत सशक्त लेखन और क्या कहूँ हर बार निशब्द
हो जाता हूँ कुछ ऐसा पड़ता हूँ तो .....
मान रखूं मैं उनका भी जिनसे हुई अपमानित मैं
जीत कर भी हारूं पल-पल तुमसे हुई पराजित मैं
किसकी थी किसकी हुई रिश्तों में आज बांटी गई
कौन है मेरा मैं किसकी टुकडो में हुई विभाजित मैं !! अक्षय-मन
अब इन सभी बातों में अन्तर आया है, मै मेरे गाँव में ही बदलाब देख रहा हूँ, जिसको मै सबसे पिछड़ा मानता हूँ,
ReplyDeleteवहाँ यदि किसी घर में बेटा पढ़ रहा है तो बेटी भी पढ़ रही है, यदि बेटे कों नौकरी करने की इजाजत है तो बेटी कों भी है, अब लड़कों को पढ़ी लिखी लडकी ही चाहिए कभी कभी तो ज्यादा पढ़ी लिखी पर भी ऐतराज नहीं करते और खुद से ज्यादा कमाने वाली पर भी उनको कोई परेशानी नहीं है
यदि सुबह की बस से शहर की तरफ आयेंगे तो देखेंगे कि लड़कों से ज्यादा लडकियां बस में हैं वो अध्यापिका अथवा शिक्षामित्र के रूप में अपनी नौकरी पर जा रही होतीं हैं
सरकारी कर्मचारियों के रूप में देखें तो आप पाएंगी कि महिला पुलिस भी उन सभी गालिओं का खुले आम प्रयोग करती है जिनका पुरुषों पर किसी समय में एकाधिकार माना जाता था, मेरे गाँव की प्राथमिक पाठशाला हमेशा खाली रहती है जबकि उसमे २ अध्यापिका तथा १ अध्यापक की नियुक्ति है
किसी भी प्राइवेट स्कूल में आप जाइए आपको अध्यापिकाओं का अनुपात हमेशा अध्यापकों से ज्यादा ही मिलेगा
बैंक, रेलवे स्टेशन, सिनेमा की टिकट खिडकी पर आपको महिला-पुरुष दोनों ही धक्का-मुक्की करते हुए नजर आएँगे, कुछ महिलाएं खुद कों दयनीय दिखाते हुए तथा कुछ पुरुष आपकी चापलूसी करते हुए आपसे उनके लिए टिकट लेने के लिए कहेंगे
कुल मिलाकर मै यह कहना चाहता हूँ कि आज सिर्फ वही महिला अपने अधिकारों से वंचित है जो खुद नहीं चाहती, महिलाओं का पुरुषों पर अत्याचार का अनुपात यदि ज्यादा नहीं तो पुरुषों का महिलाओं पर अत्याचार के बराबर ही होगा, कम होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता
जब मै छोटा था तब अपने गांव की महिलाओं कों अपने पतियों द्वारा पीटा जाना सुनता था तथा कभी कभी देख भी लेता था, पिछले १०-१२ सालों से मैंने बहू ने सास कों मारा, पति पर दहेज अभियोग लगा दिया इत्यादि सुना है पर इसका उल्टा नहीं सुना (मेरे गाँव में, शहर में यह अनुपात बराबर है)
आप काफी दिनों से भारत से दूर हैं, आप यहाँ आकर देखिये आपको अब महिलाओं की स्थिती में काफी सुखद बदलाब दिखाई देंगे :)
नारी ब्लॉग के नए रूप तथा आपके विचारों का स्वागत है रचना ...आशा करता हूँ कि आपको पढना और समझना सुखकर रहेगा !
ReplyDeleteशुभकामनायें !
आप काफी दिनों से भारत से दूर हैं, आप यहाँ आकर देखिये आपको अब महिलाओं की स्थिती में काफी सुखद बदलाब दिखाई देंगे :)
ReplyDeleteयोगेन्द्र
मै हमेशा से भारत में ही रही हूँ । काम के सिलसिले में विदेश जाती रही हूँ ।
पता नहीं आप को ये कैसे लगा मै भारत में नहीं हूँ।
यहाँ हूँ इस लिये ही यहाँ पर सुधार की बात करती हूँ बदलाव हैं पर उतना शायाद नहीं जितना मुझे लगता हैं होना चाहिये था
नयी शुरुआत , नयी पहल ... बधाई :)
ReplyDeleteआपकी अधिकतर बातों से सहमत हूँ, आगे चर्चा होती रहेगी
शुभकामनाएं
सार्थक और सटीक बातें . प्रस्तावना दमदार रही . आभार .
ReplyDelete"मै नर - नारी समानता की पक्षधर हूँ और रहूंगी । मुझे कानून और संविधान की बात मानना , समाज की कंडिशनिंग मानने से ज्यादा अच्छा और सुविधाजनक लगता हैं । "
ReplyDeleteआपकी इस बात से असहमति का प्रश्न ही नहीं उठता....सही और खरी बात कही है आपने...
नीरज
nari ke naye svaroop ka svagat hai. vah apane unhin uddeshyon ke sath age badhi aur aage badhti rahegi. koi bhi mudda pahale bhi nahin choota aur ab bhi nahin chootega.
ReplyDeletenari ke vargikaran se sahmat hoon. jo sach hai vah sach hai.
बदलाव सोच में आने लगे हैं, लेकिन अपेक्षित नहीं।
ReplyDeleteनिरंतर जागरूकता अभियान और शिक्षा होते रहना चाहिए।
रचना जी, नमस्ते.
ReplyDeleteमन की इच्छा पूरी हुई.... आपने 'नारी' ब्लॉग पर लिखना शुरू किया... आपके लेखन का अंदाज थोड़ा-सा सुगंध लिए है...
विचारों की सही जगह बाहर है ... मतलब अच्छे पाठकों के पास....
मन में विचारों को केवल उपजाना चाहिये ... उनका संग्रह नहीं करना चाहिये...
संग्रह पाठकों को करने दो........ अब से जो भी बात हो ...... पाठकों की तरफ उछाल दिया करो...हम उसको अपना नज़रिया देंगे ...
"हर मुद्दे को घुमा कर "नारी " को किसी ना किसी तरह "नर " की और ही मोड़ दिया जाता हैं" ---उपरोक्त कथ्य पूरी तरह से भ्रमित कथ्य है .....मुझे लगता है यह पाश्चात्य सोच है ..भारतीय आधुनिक सोच नहीं ....
ReplyDelete---क्या कोई भी सामाजिक /मानवीय मुद्दा ..बिना नर व नारी दोनों का समन्वय किये ...हो सकता है....क्या कभी..किसी काल में नर व नारी पृथक पृथक वर्णित या व्याख्यायित किये जा सकते हैं..????...तो फिर समाज किस बात का...नर-नारी के समन्वित विकास से ही तो समाज नामक संस्था का विकास हुआ....
कोई कुछ भी कहे लेकिन अंत में वो होकर रहेगा जो होना चाहिये रफ्तार भले ही थोडी धीमी हो.आप लगे रहें.स्त्री पुरुष के बीच साथी सहयोगी का रिश्ता होना चाहिये न कि मालिक व गुलाम का या इंसान और राक्षस का.उम्मीद है बदलाव जल्द आएगा.
ReplyDeleteआप अपने लक्ष्य में सफ़ल हों यही कामना है... स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteनर और नारी के सामन अधिकार की बात से कभी इनकार हो नहीं सकता , कर्तव्य भी उसी अनुपात में समान हो , बस यही आग्रह रहा है !
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आपकी नयी शुरुआत सार्थक और सकारत्मक हो , शुभकामनायें !
kuch baaton ko chodkar baaki pooraa lekh bahut achcha hai naari sasktikaran ke baare main aapke vichaar uchit hain.aapko swatantrataa diwas ki bahut shubkamnaayen.
ReplyDeletecomment on buzz
ReplyDeleteDr shyam gupt - "हर मुद्दे को घुमा कर "नारी " को किसी ना किसी तरह "नर " की और ही मोड़ दिया जाता हैं" ---उपरोक्त कथ्य पूरी तरह से भ्रमित कथ्य है .....मुझे लगता है यह पाश्चात्य सोच है ..भारतीय आधुनिक सोच नहीं ....
---क्या कोई भी सामाजिक /मानवीय मुद्दा ..बिना नर व नारी दोनों का समन्वय किये ...हो सकता है....क्या कभी..किसी काल में नर व नारी पृथक पृथक वर्णित या व्याख्यायित किये जा सकते हैं..????...तो फिर समाज किस बात का...नर-नारी के समन्वित विकास से ही तो समाज नामक संस्था का विकास हुआ....
------ ये आपके द्वारा गिनाए गए ...वर्गीकरण नहीं हैं ...अपितु एक ही नारी में विभिन्न प्रतिमान स्थापना है जो नारी के बहु-रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो नारी की विशिष्ट -विशेषता है....
---दोबारा गहन भाव लेकर सोचिये ..व बदलिए ..15/8 (edited 15/8)
मै नर - नारी समानता की पक्षधर हूँ और रहूंगी । मुझे कानून और संविधान की बात मानना , समाज की कंडिशनिंग मानने से ज्यादा अच्छा और सुविधाजनक लगता हैं
ReplyDelete-बिल्कुल होना भी यही चाहिये. आप जागरुक हैं और आप जैसे लोगों के माध्यम से ही यह सुखद बदलाव की गति और तेज होगी. अनेक शुभकामनाएँ.
aapne sahi likha hai, par agar dusri taraf se dekha jaye mera matlab hai ki jaise kaha jata h narri nar ke bina adhuri hai usi tarah nar bhi narri k bina adhura hai.. jitna akele naari ka rehna mushkil hai utna hi nar bhi nahi reh sakte is samaj mei akele har rishte ka ak pehlu hota hai...bharat purush pradhan desh hai sadiyo se ye paramparaye pursho ne apne swarth hetu banai h... inko sudharne mei samy lagega, agar hum abhi kosish karenge to humare aage aane wali generation ko faida hoga
ReplyDeleteआपका मत प्रभावित करता है ...इस पर विचार होना चाहिए
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